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आश्विन माह•

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आश्विन माह•

आश्विन माह का सम्बन्ध अश्विनौ से है, जो सूर्य के दो पुत्र हैं एवम देवताओं के चिकित्सक हैं। इस माह का एक नाम क्वार भी है। "“तथैवाश्वयुजं मासमेकभक्तेन यः क्षिपेत्। प्रज्ञावान्वाहनाढ्यश्च बहुपुत्रश्च जायते॥”' अर्थात— जो आश्विन माह को एक समय भोजन करके व्यतीत करता है, वह पवित्र, नाना प्रकार के वाहनों से सम्पन्न तथा अनेक पुत्रों से युक्त होता है। ''"आश्विने भौमावास्याम जायते खलु पार्वती। विविध विपदाम धनक्षयं पापाचारम वर्धते॥"" अर्थात— आश्विन के महीने में यदि अमावस्या मंगलवार के दिन पड़े तो रोग, धन नाश एवम पापपूर्ण आचरण की वृद्धि होती है। महाभारत, अनुशासन पर्व के अनुसार— जो आश्विन माह में ब्राह्माणों को घृत दान करता है, उस पर दैव वैद्य अश्विनीकुमार प्रसन्न होकर उसे रूप प्रदान करते हैं। शिवपुराण के अनुसार— आश्विन में धान्य दान करने से अन्न एवम धन की वृद्धि होती है।  अग्निपुराण के अनुसार आश्विन के माह में गोरस— ❀गाय का घी, ❀दूध व ❀दही तथा ❀अन्न देनेवाला सब रोगों से छुटकारा पा जाता है। ""आश्विने कृष्णपक्षे तु षष्ठ्यां भौमेऽथ रोहिणी। व्यतीपातस्तदा षष्ठी कपिलानन्तपुण्यदा॥"" अर्थात— आश्विन माह के कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मंगलवार, रोहिणी नक्षत्र एवम व्यतिपात योग हो, तो वह अनन्त पुण्य देने वाला, कपिला षष्टी योग कहा जाता है। यह योग अत्यन्त दुर्लभ है। शिवपुराण के अनुसार— माता सती ने आश्विन माह में ❀नन्दा (प्रतिपदा, षष्ठी तथा एकादशी) तिथियों में भक्तिपूर्वक ❀गुड़, ❀भात एवम ❀नमक चढाकर देवाधिदेव महादेव शिवजी का पूजन किया तथा उन्हें नमस्कार करके उसी नियम के साथ उस माह को व्यतीत किया। आश्विन कृष्णपक्ष को पितृपक्ष महालय के नाम से जाना जाता है जिसमें पितृ ऋण से मुक्त होने तथा पितरों को तृप्त करने के उद्देश्य से श्राद्ध किया जाता है। आश्विन शुक्लपक्ष से शरद ऋतु का आरम्भ माना जाता है एवम इसमें आदिशक्ति माँ जगतजननी दुर्गा जी का शरत्कालीन पूजा महोत्सव मनाया जाता है। आश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा तथा कौमुदी कहते हैं... एक वाप ने अपनी बेटी से पूछा था कि कौन सा फूल सबसे सुन्दर होता है तो बेटी ने उत्तर दिया था , वापू! कपास का फूल सबसे सुन्दर होता है। मैत्रायणीयमानवगृह्यसूत्र के द्वितीय पुरुष के पन्द्रहवें खण्ड में 'कर्त' अर्थात् spindle का उल्लेख है। कार्तिक मास कृत्तिका नक्षत्रयुक्त पूर्णमासी होने से होता है। कृत्तिका अर्थात् कर्तन करने वाली। कपास का कर्तन अर्थात् कपास काटना और फिर सूत कातना। कर्तन शब्द कताई कार्य हेतु भी प्रयुक्त होता है। वेदमन्त्रों में कर्तवे क्रतु शब्दों को कपास कर्तन के सन्दर्भ में देखने से यह स्पष्ट होता है कि शतक्रतु उसे कह सकते हैं जिसने कपास की सौ फसलें उगा लीं। शरद में तैयार होने वाली कपास और जीवेम शरदः शतम्। दीपावली में दीप प्रज्वलन हेतु जिस तेल और बाती(वर्तिका) की आवश्यकता है वह अभी प्राप्त होने वाली तिल और कपास की उपज से ही आती है। धान से खीलें मिलती हैं और ईख भी अभी आती है। कार्तिक मास से कर्तन कार्य होने लगता है, जाड़ों के लिये रुई भरकर रजाई और गद्दों का तैयार किया जाना आरम्भ हो जाता है।शतपथ ब्राह्मण में वर्षा एवं शरद को मिला कर पाँच ऋतुओं की बात की गयी है: लोको॑वसन्त॑ऋतुर्य॑दूर्ध्व॑मस्मा॑ल्लोका॑दर्वाची॑नमन्त॑रिक्षात्त॑द्द्विती॑यम॑हस्त॑द्वस्याग्रीष्म॑ऋतु॑रन्त॑रिक्षमेवा॒स्य मध्यमम॑हरन्त॑रिक्षमस्य वर्षाशर॑दावृतू य॑दूर्ध्व॑म्न्त॑रिक्षादर्वाची॑नं दिवस्त॑च्चतुर्थम॑हस्त॑द्वस्य हेमन्त॑ऋतुर्द्यउ॑रेवा॒स्य पञ्चमम॑हर्द्यउ॑रस्य शि॑शिर ऋतुरि॑त्यधिदेवतम्।

ऐसा क्यों? इसमें उस समय की स्मृति है जब वर्ष का आरम्भ वर्षा से था। शरद मिला देने पर शरद विषुव (23 सितम्बर) जो कि वसंत विषुव (21 मार्च) से छ: महीने के अंतर पर पड़ता है, वर्षा के साथ आ जाता है, नाक्षत्रिक एवं ऋत्विक प्रेक्षणों के सम्मिलन से सुविधा हो जाती है (विषुव अर्थात जब उत्तर दक्षिण में दोलन करता सूर्य माध्य स्थिति में दिखे, ठीक पूरब में उगे, ठीक पश्चिम में अस्त हो।) ऐतरेय ब्राह्मण में हेमंत एवं शिशिर को मिला दिया गया है: हेमन्‍तशिशिरयो: समासेन तावान्‍संवत्सर: संवत्सर: प्रजापति: प्रजापत्यायतनाभिरेवाभी राध्नोति य एवं वेद। आजकल के आधे कार्त्तिक से आधे फाल्गुन तक के इस कालखण्‍ड में माघ महीना पड़ता है जो कभी संवत्सर का आरम्भ मास था, वही शीत अयनांत वाली उत्तरायण अवधि जिसे अब लोग संक्रांति के रूप में मनाते हैं।

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