कार्तिक मास
वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, पुष्पसार।
नंदिनी, कृष्णजीवनी, विश्वपावनी, तुलसी।
इस मंत्र से पूर्णिमा के दिन जो भी श्रद्धालु तुलसी महारानी की पूजा करता है वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है।
हिंदू धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व है। यह माह भगवान विष्णु के सबसे प्रिय मास में से एक है। इस पूरे महीने भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करने का विधान है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आठवां माह कार्तिक मास होता है, जो आश्विन मास के बाद आता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि कार्तिक मास के दौरान भगवान विष्णु जल में निवास करते हैं। इस कारण इस पूरे मास स्नान-दान करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस पूरे महीने में तुलसी के पौधे की पूजा करने से भी मां लक्ष्मी के साथ श्री हरि की असीम कृपा प्राप्त होती है।
कब से शुरू हो रहा कार्तिक मास?
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भगवान विष्णु का प्रिय माह कार्तिक मास 29 अक्टूबर से आरंभ हो रहा है, जो 27 नवंबर 2023 को समाप्त हो रहा है।
कार्तिक मास का महत्व-
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कार्तिक मास में तुलसी की पूजा का भी बहुत खास महत्व बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार तुलसी का पौधा भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय है। इस महीने में नियमित रूप से तुलसी की पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। कार्तिक मास में पूजा पाठ और उपवास करने से मनुष्य को वैभव की प्राप्ति होती है। इसके अलावा जो भी मनुष्य इस महीने में नियमित रूप से पूजा पाठ करता है और भगवान् विष्णु को तुलसी के पत्ते अर्पित करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास में श्रद्धा पूर्वक पूजा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मनुष्य के सभी रोग दूर हो जाते हैं और उनके जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
कार्तिक मास से जुडी विशेष बातें
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हिंदू धर्म में कार्तिक मास को बहुत ही खास महत्व दिया गया है। कार्तिक मास का आरंभ शरद पूर्णिमा के दिन से होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन कार्तिक मास का अंत होता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में दान पुण्य, पूजा पाठ और गंगा स्नान का बहुत ही महत्व बताया गया है। हमारे शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु 4 महीने की निद्रा के बाद कार्तिक मास में देव उठनी एकादशी के दिन जागते हैं, इसलिए इस महीने में भगवान विष्णु की पूजा का भी बहुत महत्व माना जाता है। धर्म पुराणों के अनुसार कार्तिक के महीने में श्रीमद् भागवत और गीता का पाठ करने से मनुष्य के सभी पाप दूर हो जाते हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कार्तिक मास में तुलसी के पौधे में राधा कृष्ण और भगवान् विष्णु के नाम का कलावा बांधकर विधिवत पूजा-अर्चना करें। ऐसा करने से आपकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाएँगी और आपके घर में कभी भी धन की कमी नहीं होगी।
कार्तिक मास में हरी बोधनी एकादशी को भी बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के सामने घी कपूर का दीपक जलाने से अकाल मृत्यु की संभावना खत्म हो जाती है।
हमारे शास्त्रों में बताया गया है की दीपावली के 4 दिन पहले मां लक्ष्मी तेल में निवास करती हैं। इस दिन को नरक चौदस के रूप में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि नरक चौदस के दिन शरीर में सरसों का तेल लगाने से मनुष्य के जीवन में धन की कमी दूर हो जाती है। इसके अलावा नरक चौदस के दिन स्नान करने के बाद दीपदान करना शुभ माना जाता है।
कार्तिक मास में दीपदान का भी बहुत खास विधान है। आप चाहे तो मंदिर या नदी में दीप दान कर सकते हैं। इसके अलावा इस महीने में ब्राह्मणों को भोजन कराना, क्षमता अनुसार दान करना, तुलसी के पत्तों का दान करना, आंवले का दान करना और अन्न का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है।
कार्तिक मास महात्म्य व्रत एवं स्नान के नियम
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भगवान नारायण के शयन और प्रबोधन से चातुर्मास्य का प्रारम्भ और समापन होता है उत्तरायण को देवकाल और दक्षिणायन को आसुरिकाल माना जाता है दक्षिणायन में सत्गुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिए हमारे शास्त्रों में व्रत और तप का विधान है सूर्य का कर्क राशि पर आगमन दक्षिणायन का प्रारम्भ माना जाता है और कातिक मास इस अवधि में ही होता है पुराण आदि शास्त्रों में कार्तिक मास का विशेष महत्व है यूँ तो हर मास का अलग अलग महत्व है परन्तु व्रत, तप की दृष्टि से कार्तिक मास की महता अधिक है शास्त्रों में भगवान विष्णु और विष्णु तीर्थ के ही समान कर्तिक् मास को श्रेष्ट और दुर्लभ कहा गया है शास्त्रों में ये मास परम कल्याणकारी कहा गया है।
सूर्य भगवान जब तुला राशि पर आते है तो कार्तिक मास का प्रारम्भ होता है इस मास का माहत्म्य पद्मपुराण तथा स्कन्दपुराण में विस्तार पूर्वक मिलता है। कलियुग में कार्तिक मास को मोक्ष के साधन के रूप में दर्शाया गया है इस मास को धर्म,अर्थ काम और मोक्ष को देने वाला बताया गया है नारायण भगवान ने स्वयं इसे ब्रम्हा को, ब्रम्हा ने नारद को और नारद ने महाराज पृथु को कार्तिक मास के सर्वगुण सम्पन्न माहात्म्य के संदर्भ में बताया है।
इस संसार में प्रतेयक मनुष्य सुख शांति और परम आनंद की कामना करता है परन्तु प्रश्न यह है की दुखों से मुक्ति कैसे मिले? इसके लिए हमारे शास्त्रों में कई प्रकार उपाय बताए गए है परन्तु कार्तिक मास की महिमा अत्यंत उच्च बताई गयी है
कार्तिक मास व्रत एवं स्नान के नियम
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कार्तिक मास में जो भी व्रत आदि रखता है उसे सदा एक पहर रात बचते ही उठ जाना चाहिए फिर स्तोत्र आदि के द्वारा अपने इष्ट देव की स्तुति करते हुए दिन के बाकी कामों को करना चाहिए। गाँव अथवा नगर के अनुसार दैनिक कर्म – मल-मूत्र त्याग आदि कर उत्तर की ओर मुँह करके बैठना चाहिए। इसके साथ ही दाँत व जिह्वा की शुद्धि के लिए वृक्ष के समीप जाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए:-
आयुर्बल यशो वर्च: प्रजा पशुवसूनि च ।
ब्रह्म प्रज्ञां च मेघां च त्वं नो देहि वनस्पते ।।
अर्थात👉 हे वनस्पति! आप मुझे आयु, बल, यश, तेज, सन्तति, पशु, धन, वैदिक ज्ञान, प्रज्ञा एवं धारणाशक्ति प्रदान करें. इस प्रकार कहकर वृक्ष से दाँतुन लेनी चाहिए. दूध वाले वृक्षों की दाँतुन लेना वर्जित माना गया है. (वर्तमान समय में दाँतुन नहीं मिलती तो जिस तरह व्यक्ति दाँत साफ करते आया है वैसे ही करे) दाँतों को विधिपूर्वक शुद्ध करके मुँह को जल से धोना चाहिए. इसके बाद कार्तिक का व्रत करने वाले को विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
स्नान के बाद नए अथवा स्वच्छ वस्त्र धारण करके तिलक लगाना चाहिए फिर अपनी गोत्र विधि के अनुसार अथवा अपने घर के नियमानुसार संध्या उपासना करनी चाहिए. जब तक सूर्योदय ना हो जाए तब तक गायत्री मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। संध्योपासना के अंत में विष्णु सहस्त्रनाम आदि का पाठ करना चाहिए, फिर व्यक्ति को अपनी दिनचर्या आरंभ करनी चाहिए जैसे वह जो भी काम करता हो उस पर जाना चाहिए। मध्यान्ह में दाल के अलावा शेष अन्न का भोजन करना चाहिए। जो व्यक्ति अतिथियों को भोजन कराकर स्वयं भोजन ग्रहण करता है वह भोजन अमृततुल्य होता है।
मुख शुद्धि के लिए तुलसी का सेवन करना उत्तम है. उसके बाद शेष दिन सांसारिक व्यवहार में व्यतीत करना चाहिए. सायंकाल में पुन: भगवान के मन्दिर जाकर संध्या करके यथाशक्ति दीपदान करना चाहिए. भगवान विष्णु अथवा अपने देवता को प्रणाम करके आरती उतारनी चाहिए. प्रथम प्रहर में कीर्तन करते हुए जागरण करना चाहिए. प्रथम प्रहर के बीत जाने पर शयन करना चाहिए. इस प्रकार जो व्यक्ति एक महीने तक शास्त्र अनुसार विधि का पालन करते हुए कार्तिक मास में स्नान-दान करता है, उसे भगवान का सालोक्य प्राप्त होता है।
कार्तिक मास में निम्न वस्तुओं का त्याग करना चाहिए
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तेल लगाना, दूसरे का दिया भोजन ग्रहण करना, तेल खाना, अधिक बीज वाले फलों का सेवन, चावल ततथा दाल – ये खाद्य पदार्थ कार्तिक मास में नहीं खाने चाहिए. इसके अलावा गाजर, बैंगन, बासी खाना, मसूर, कांसे के बर्तन में भोजन, कांजी, दुर्गंधित पदार्थ, किसी भी समुदाय का अन्न अर्थात भण्डारा, शूद्र का अन्न, सूतक का अन्न, श्राद्ध का अन्न – यह कार्तिक व्रत करने वाले को त्याग देने चाहिए।
कार्तिक में केले और आंवले के फल का दान करना चाहिए. शीत से कष्ट पाने वाले निर्धन और ब्राह्मण को वस्त्र दान देना चाहिए. जो व्यक्ति इस माह भगवान को तुलसीदल समर्पित करता है, उसे मुक्ति मिलती है. जो कार्तिक की एकादशी को निराहार रहकर व्रत करता है, वह पूर्व जन्मों के पापों से छुटकारा पा लेता है. जो राह चलकर आये हुए थके व्यक्ति को अन्न देता है और भोजन के समय उसे भोजन कराकर संतुष्ट करता है, उससे अनन्य पुण्यों का फल मिलता है. कार्तिक में भगवान विष्णु की परिक्रमा करने वाले को पग-पग पर अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है. कार्तिक में भगवान के मन्दिरों में चूना-सफाई आदि करवाकर उन्हें सुन्दर बनाने में सहयोग देने वाले और उनमें भगवान के निमित्त नवीन वस्त्र – अलंकार भेंट करने वाले को विष्णु के सामीप्य का आनन्द अनुभव होता है.
कार्तिक मास में प्याज, सिंघाड़ा, सेज, बेर, राई, नशीली वस्तुएँ और चिवड़ा – इन सभी का उपयोग भी वर्जित है. कार्तिक व्रत करने वाले व्यक्ति को देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गौ, व्रती, स्त्री और महात्माओं की निन्दा नहीं करनी चाहिए. कार्तिक मास में नरक चतुर्दशी को (छोटी दीवाली) शरीर में तेल लगाना चाहिए. इसके अलावा व्रती मनुष्य को अन्य किसी भी दिन तेल नहीं लगाना चााहिए. व्रत करने वाले को कार्तिक में चाण्डाल, म्लेच्छ, पतित, व्रतहीन, ब्राह्मण द्वेषी और वेद बहिष्कृत लोगों से बातचीत भी नहीं करनी चाहिए।
कार्तिक मास स्नान के नियम
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कार्तिक स्नान आश्विन माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर अगले माह कार्तिक माह की पूर्णिमा पर समाप्त होता है। इस पवित्र स्नान को आरंभ करने से पहले आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी आने पर भगवान विष्णु को प्रणाम कर कार्तिक व्रत करने की आज्ञा लेनी चाहिए। इस तरह से आज्ञा लेने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्त पर कृपा कर उसे आत्मिक बल तथा मनोबल प्रदान करते हैं. साथ ही ईश्वर अपने भक्त को विधिपूर्वक कार्तिक व्रत करने की सद्बुद्धि देते हैं।
स्नान
स्नान किये बिना जो पुण्यकर्म किये जाते हैं वे निष्फल होते हैं और उसे राक्षस ग्रहण कर लेते हैं अतः स्नान करके ही पुण्यकर्म करें💐
विना स्नानं तू यत्कर्म पुण्यकार्यमयं शुभम्।
क्रियते निष्फलं ब्रह्मस्तत्प्रगृह्णन्ति राक्षसा:।।
दुःस्वप्न देखने,हजामत बनवाने,वमन होने,स्त्रीसंग करनेपर और श्मशानभूमि में जाने पर वस्त्र सहित स्नान करना चाहिए।
नदी जिस दिशा से आती हो उधर मुख करके तथा दूसरे जलाशयों में श्री सूर्यनारायण के सन्मुख होकर स्नान करना शास्त्रों में उत्तम कहा गया है।
सूर्य-ग्रहण, चंद्र-ग्रहण के समय रात्रि में भी स्नान कर सकते हैं अन्य समय में रात्रि में स्नान करना वर्जित है।
नग्न होकर स्नान कभी नहीं करना चाहिए।(मनुस्मृति)
शरीर की थकावट दुर करके और मुख धोकर ही स्नान करें।
स्नान के पश्चात हांथो से शरीर को न पोंछें और न ही गीले बालों को फटकारें।
सभी बारह मासों में मार्गशीर्ष मास को अत्यन्त पुण्यदायक कहा गया है, उससे भी अधिक पुण्य देने वाला वैशाख मास कहा गया है. प्रयाग में माघ मास का अधिक महत्व है तथा इससे भी महान तथा अधिक फलदायी कार्तिक मास को कहा गया है. जब ब्रह्मा जी ने एक तरफ सभी प्रकार के दान, व्रत तथा नियम रखे और दूसरी ओर कार्तिक का स्नान रखकर तौला तो कार्तिक स्नान का पलड़ा ही भारी पाया।
भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए आश्विन की पूर्णिमा से लेकर कार्तिक की पूर्णिमा तक प्रतिदिन गंगा जी में स्नान करना चाहिए. यदि गंगा जी नहीं है तब किसी भी नदी, तालाब अथवा पोखर आदि में कार्तिक स्नान करना चाहिए. यदि कुछ भी नहीं है तब नियमित रुप से घर पर ही बालटी अथवा जिस बीबी पात्र में स्नान करना है उसमें गंगा जी सहित सभी पवित्र नदियों की कल्पना करके स्नान करना चाहिए।
देवी पक्ष अर्थात भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी की महारात्रि आने तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए। श्रीगणेश जी को प्रसन्न करने के लिए आश्विन कृष्ण चतुर्थी से लेकर कार्तिक कृष्ण चतुर्थी तक नियमपूर्वक स्नान करना चाहिए। भगवान जनार्दन को प्रसन्न करने के लिए आश्विन शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।
जो मनुष्य जाने-अनजाने कार्तिक मास में नियम से स्नान करते हैं, उन्हें कभी यम-यातना को नहीं देखना पड़ता. कार्तिक मास में तुलसी के पौधे के नीचे राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे भाव के साथ पूजा करनी चाहिए. यदि आंवले का पेड़ है तब उसके नीचे भी राधा-कृष्ण की मूर्त्ति रखकर पूरे श्रद्धा भाव से पूजन करना चाहिए।
विधिपूर्वक स्नान करने के लिए जब दो घड़ी रात बाकी बच जाए तब तुलसी की मिट्टी, वस्त्र और कलश लेकर जलाशय या गंगा तट अथवा पवित्र नदी के किनारे जाकर पैर धोने चाहिए तथा गंगा जी के साथ अन्य पवित्र नदियों का ध्यान करते हुए विष्णु, शिव आदि देवताओं का ध्यान करना चाहिए. उसके बाद नाभि तक जल में खड़े होकर निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
कार्तिकेsहं करिष्यामि प्रात: स्नानं जनार्दनं ।
प्रीत्यर्थं तव देवेश दामोदर मया सह ।।
अर्थात👉 हे जनार्दन देवेश्वर ! लक्ष्मी सहित आपकी प्रसन्नता के लिए मैं कार्तिक प्रात: स्नान करुँगा। उसके बाद निम्न मंत्र का उच्चारण करें:-
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ।
नम: कमलनाभाय नमस्ते जलशायिने ।।।
नमस्तेsस्तु हृषीकेश गृहाणार्घ्यं नमोsस्तुते ।।
अर्थात👉 आप मेरे द्वारा दिये गये इस अर्घ्य को श्रीराधाजी सहित स्वीकार करें. हे हरे! आप कमलनाभ को नमस्कार है, जल में शयन करने वाले आप नारायण को नमस्कार है. इस अर्घ्य को स्वीकार कीजिए. आपको बारम्बार नमस्कार है।
व्यक्ति किसी भी जलाशय में स्नान करे, उसे स्नान करते समय गंगा जी का ही ध्यान करना चाहिए. सबसे पहले मृत्तिका (मिट्टी) आदि से स्नान कर ऋचाओं द्वारा अपने मस्तक पर अभिषेक करें. अघमर्षण और स्नानांग तर्पण करें तथा पुरुष सूक्त द्वारा अपने सिर पर जल छिड़्के. इसके बाद जल से बाहर निकलकर दुबारा अपने मस्तक पर आचमन करना चाहिए और कपड़े बदलने चाहिए. कपड़े बदलने के बाद तिलक आदि लगाना चाहिए।
जब कुछ रात बाकी रह जाए तब स्नान किया जाना चाहिए क्योंकि यही स्नान उत्तम कहलाता है तथा भगवान विष्णु को पूर्ण रूप से संतुष्ट करता है. सूर्योदय काल में किया गया स्नान मध्यम स्नान कहलाता है. कृत्तिका अस्त होने से पहले तक का स्नान उत्तम माना जाता है. बहुत देर से किया गया स्नान कार्तिक स्नान नहीं माना जाता है।
मनीषियों द्वारा चार प्रकार के स्नान कहे गए हैं:-
1. वायव्य स्नान, 2. वारुण स्नान, 3. ब्राह्म स्नान तथा 4. दिव्य स्नान।
वायव्य स्नान👉 जिस स्नान को गोधूलि द्वारा किया जाए वह वायव्य स्नान कहलाता है।
वारुण स्नान 👉 जो स्नान समुद्र आदि के जल से किया जाए वह वारुण स्नान कहलाता है।
ब्राह्म स्नान 👉 वेद मन्त्रों के उच्चारण कर के जो स्नान किया जाता है उसे ब्राह्म स्नान कहते हैं।
दिव्य स्नान 👉 मेघों तथा सूर्य की किरणों द्वारा जो जल शरीर पर गिरता है उसे दिव्य स्नान कहा जाता है।
ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्यों के लिए मन्त्रोचारण करते हुए स्नान का विधान है. स्त्री तथा शूद्र को बिना मंत्रोच्चार के स्नान करना चाहिए. प्राचीनकाल में कार्तिक मास में पुष्कर का स्पर्श पाकर नन्दा परम धाम को प्राप्त हुई थी. राजा प्रभंजन भी कार्तिक मास में पुष्कर में स्नान करने से व्याघ्र योनि से मुक्त हुए थे. अत: कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रात:काल उठकर तीर्थ में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर परब्रह्म को प्राप्त होता है।
(कार्तिक) दान-पुण्य का महीना
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कार्तिक महीना शरद पूर्णिमा से आरंभ हो जाता है और भगवान कृष्ण के लिए इस महीने का सबसे ज्यादा महत्व है। उन्होंने इस महीने में सबसे ज्यादा लीलाएं इस धराधाम पर कीं, भगवान विष्णु और राधारानी को भी यह महीना सबसे अधिक पसंद है।
भगवान विष्णु ने इसमें मस्य अवतार लिया था और राधारानी को यह महीना इसलिए पसंद है क्योंकि इसमें भगवान कृष्ण ने विलक्षण लीलाएं की हैं। तुलसी महारानी के लिए भी यह महीना बेहद महत्व रखता है।
तुलसी महारानी का प्राकट्य धराधाम पर कार्तिक की शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था।
कार्तिक की शरद पूर्णिमा सबसे अधिक महत्व इसलिए है क्योंकि इस पावन दिवस पर भगवान कृष्ण ने महारास रचाया था। इस दिन वैसे भी चांद की किरणों की शोभा निराली होती है। चांद का यौवन और शीतलता अद्भुत होती है। इस रात्रि वैष्णव भक्त खीर बनाकर उसे चंद्रमा की किरणों से आपुरित करके अगले दिन यह अमृत प्रसाद पाते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा के दिवस पर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण तुलसी महारानी की पूजा निम्नलिखित मंत्र से करते हैं :-वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, पुष्पसार।
नंदिनी, कृष्णजीवनी, विश्वपावनी, तुलसी।
इस मंत्र से पूर्णिमा के दिन जो भी श्रद्धालु तुलसी महारानी की पूजा करता है वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है।

इस मंत्र से पूर्णिमा के दिन जो भी श्रद्धालु तुलसी महारानी की पूजा करता है वह जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर गोलोक वृंदावन जाने का अधिकारी बनता है।
पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक महीने में कई कल्पों को एकत्रित करते हुए पाप दामोदर कृष्ण को दीपदान करने से समाप्त हो जाते हैं। पद्म पुराण में कृष्ण और सत्यभामा के बीच संवाद से कार्तिक महीने में दीपदान के अद्भुत फलों का रहस्य खुलता है। पूरे कार्तिक महीने भगवान कृष्ण को (जो कि दामोदार भाव में होने चाहिए) दीया दिखाने से अश्वमेघ यज्ञ के फल से भी अधिक लाभ मिलता है।
दामोदर भाव वाले कृष्ण यशोदा के द्वारा ऊखल से बांधे गए थे, लेकिन अपने भक्तों के दीपदान से वे उनको सांसारिक सभी बंधनों से छुटकारा दिला देते हैं।
पद्म पुराण के अनुसार कार्तिक में दीपदान करने वाले श्रद्धालु के पितर और अन्य परिजन कभी नरक का मुंह नहीं देखते। पूरे महीने दीपदान करके कोई भी श्रद्धालु अपनी संपत्ति दान देने के बराबर फल प्राप्त कर सकता है। जो श्रद्धालु किसी अन्य व्यक्ति को दीपदान के लिए अगर प्रेरित करता है तो उसे अग्निस्तोम यज्ञ का फल मिलता है।
गंगा या पुष्कर में स्नान करने के भी कार्तिक में बहुमूल्य लाभ हैं। इस स्थानों में स्नान करने से श्रद्धालुओं को अनगिनत पुण्य की प्राप्ति होती है।
स्कन्द पुराण में ब्रह्मा जी और नारद के बीच कार्तिक मास में दीपदान की महिमा को लेकर खासी चर्चा हुई है। उनके अनुसार ज्येष्ठ-आषाढ़ के जल दान या फिर पूरा अन्न दान के बराबर फल केवल दीपदान से मिल जाता है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मा जी ने दीपदान को राजसुय यज्ञ और अश्वमेघ यज्ञ के समान बताया गया है। पूरे साल भर में तपस्या और भक्ति के लिए निर्दिष्ट चार महीनों यानी चातुर्मास के तीन महीनों का फल अकेले कार्तिक मास में भगवान की सेवा करके प्राप्त किया जा सकता है।
विशेष कर कार्तिक माह के आखिरी पांच दिनों, जो कि भीष्म पंचक कहलाता है उसमें की गई तपस्या का फल पूरे साल की तपस्या के बराबर है।