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“क्या वैदिक विवाह में कहीं चूक हो रही है?

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“क्या वैदिक विवाह में कहीं चूक हो रही है?

1. विवाह रीति-रिवाज कम क्यों हो रहे हैं?

🌆 (क) आधुनिकता और समय की कमी

  • शहरी जीवन में विवाह अब "समारोह" से अधिक "इवेंट" बन गया है।

  • लोग जल्दी और सरल तरीके से विवाह करना चाहते हैं, जिससे पारंपरिक विधियाँ बोझ लगने लगती हैं।

💸 (ख) खर्च और दिखावे का दबाव

  • समाज में विवाह को सामाजिक प्रतिष्ठा का मापदंड बना दिया गया है।

  • अधिक खर्च, डेकोरेशन, फोटोग्राफी, मेहमानों की भीड़ — इन सब में असली वैदिक भावना खो गई।

🤯 (ग) ज्ञान और आस्था की कमी

  • बहुत से युवाओं को वैदिक विवाह के अर्थ और महत्व की जानकारी नहीं है।

  • पंडित बुलाया जाता है "रीति निभाने" के लिए, न कि "ज्ञान देने" के लिए।

🌍 (घ) पश्चिमी प्रभाव और लिव-इन संस्कृति

  • युवा पीढ़ी स्वतंत्रता और व्यक्तिगत निर्णय को प्राथमिकता देती है।

  • "क्लिक" में रिश्ते बनते और "स्वाइप" में टूटते हैं — इस युग में संस्कारों की गहराई समझने का समय नहीं बचा।


🕉️ 2. क्या वैदिक विवाह में कहीं चूक हो रही है?

(क) संस्कार की भावना की जगह सिर्फ कर्मकांड

  • वैदिक विवाह में 7 फेरे, सप्तपदी, कन्यादान, हवन आदि के पीछे गहरे अर्थ हैं — लेकिन आज वे सिर्फ "रीति" बनकर रह गए हैं।

  • पंडित भी अक्सर संस्कृत मंत्रों का अर्थ नहीं बताते — इसलिए संस्कार, संवाद में बदल नहीं पाता।

🔄 (ख) विवाह को “डील” समझने की मानसिकता

  • पहले विवाह दो आत्माओं का पवित्र बंधन था, अब वह क्लास, कास्ट, कैश पर आधारित चयन बन गया है।

📚 (ग) विवाह की वैदिक शिक्षा का अभाव

  • वेदों में विवाह का उद्देश्य केवल संतानोत्पत्ति नहीं, बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की साझी यात्रा है।

  • पर आज ना स्कूलों में, ना घरों में, और ना ही विवाह से पहले युवाओं को यह सिखाया जाता है।


🌈 समाधान – वैदिक विवाह कैसे फिर जीवंत हो सकते हैं?

ज्ञान के साथ विवाह करें

👉 मंत्रों का अर्थ समझाया जाए
👉 सप्तपदी की हर प्रतिज्ञा को भाव से स्वीकारा जाए

संस्कार को कर्मकांड से ऊपर रखें

👉 समय कम हो तो भी विवाह को “पूर्ण श्रद्धा” से करें
👉 रीति को बोझ नहीं, समर्पण मानें

युवाओं को वैदिक विवाह का दर्शन सिखाएं

👉 विद्यालय, कोचिंग, सोशल मीडिया पर वैदिक विवाह की महिमा बताना ज़रूरी है


एक श्लोक – विवाह का वैदिक भाव

"सप्तपदी गता चेयम्, सख्यं तेऽहं मन्ये।"
(अब जब यह कन्या मेरे साथ सात पग चली, मैं इसे अपनी मित्र समझता हूँ।)
👉 विवाह स्वामित्व नहीं, मित्रता और समानता का बंधन है।

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