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चामुण्डा यै विच्चे”यह चण्ड क्या है?

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चामुण्डा यै विच्चे”यह चण्ड क्या है?

"चामुण्डा यै विच्चे" "चामुण्डा चण्ड घाती च यैकारी वरदायिनी" चामुण्डा शब्द चण्ड को नष्ट करने से है। यह चण्ड क्या है? शिवपुराण के वि.सं. 22/16,17 में है~ चण्डाधिकारो यत्रास्ति तद् भोक्तव्यं न मानवै:। चण्डाधिकारो नो यत्र भोक्तव्यं तच्च भक्तितः।। बाणलिङ्गे च लौहे च सिद्धेलिङ्गे स्वयंभुवि । प्रतिमासु च सर्वासु न चण्डोधिकृतोभवेत्।। जिस शिव लिङ्ग पर चण्ड का अधिकार है उस शिवलिङ्ग पर चढ़े निर्माल्य(फल फूल जल पत्र नैवेद्यादि) को मनुष्य को भोगना नही चाहिए।किन्तु जिस शिवलिङ्ग पर चण्ड का अधिकार नही है उस लिङ्ग पर चढ़े हुए निर्माल्य का भक्तिपूर्ण भोग करना चाहिए। बाणलिङ्ग (जो नर्वदा नदी में लुढ़कते हुए लम्बे गोलाकार की आकृति वाला लिङ्ग है) धातु के लिङ्ग, पारद आदि के सिद्ध लिङ्ग तथा स्वयंभू ज्योतिर्लिङ्ग इनमें सभी में चण्ड का अधिकार नही होता। अब हम शास्त्रों में जो चण्ड का अर्थ है उस पर चर्चा करेंगे~ चट या चडि धातु है जिसका अर्थ कोपे,चण्डयति,चण्ड,। चण्ड=उग्रता, प्रचण्ड(उग्रवेग)चण्डते,कुप्यतीति,तीक्ष्णता विशिष्ट:, चण्डवायुसमीरितम्। चड+अच्।यम किंकर: दैत्य विशेषः। शुम्भासुर सेनानी, चण्डते,रुष्टो भवतीति। चण्ड के साथ प्र प्रत्यय लगा देने से प्रचण्ड शब्द बनता है जिसका अर्थ उग्रवेग होता है, जो नाश के गति का द्योतक है। चडि+पचाद्यच्,चण्डाश्च,महानाशंश्च,दुष्टाश्च। चण्डश्च, चण्डालश्च। जो उग्र स्वभाव का दुष्टात्मा, पापी होता है उसे चण्ड कहा गया है। चण्ड का नाश करनेवाली शक्ति को चामुण्डा नाम दिया गया है। दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में चण्डमुण्ड का बध करनेवाली शक्ति को चामुण्डा नाम स्वयं उस आद्यशक्ति ने दिया। यै~ यै अक्षर हेतु कहा है~ "यैकारी वरदायिनी" अभय प्रदान करने से उस जगदम्बिके को "यै-कारी" शब्द से यै कहा है। यै अथवा या का अर्थ प्रापणे, याति,यातः,यान्ति जो प्राप्त के अर्थाने में है।या अथवा यै का याचने, याञ्चायाम्, "अव" धातु से है; जिसका अर्थ रक्षणाति,कान्ति, प्रीति, तृप्ति,अवगम, प्रवेश, अवति, आव आदि होने से यैकारी शब्द वरदहस्त से रक्षकरने वाली से है। विच्चे=विच्+चे=विचिर्, पृथगभावे,विनक्ति,अवैक्षीति, अविक्त, विविक्त:,विवेक:, पृथगात्मा,विवेकी आदि बहुत से अर्थ विचिर् के होते हैं। वागर्थाविवि सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये। जगतः पितरौ वन्दे पार्वती परमेश्वरौ ।। वाणी और उसका अर्थ जिसप्रकार एक दूसरे में गुंथे रहते है उसके पृथक्करण में हमें स्वर रूपा माता पार्वती और व्यञ्जन रूप पिता परमेश्वर उसके भेद को प्रकट करते हैं। इस प्रकार वाणी और अर्थ रूप उन जगत के माता पिता पार्वती और परमेश्वर शिव की हम वन्दना करते हैं। चे=चेलृ,चेष्टायाम्।गुरोश्च इत्यकारः। जो वाणी शब्द के चेष्टा को स्पष्ट करने वाले गुरुरूप चे अक्षर चेष्टारूप अन्तः में स्थित उस शक्ति का नाम चे अक्षर है।

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