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दुर्गा सप्तशती में स्त्री का निर्माण: स्त्री के निर्माण की आध्यात्मिक व्याख्या:

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दुर्गा सप्तशती में स्त्री का निर्माण: स्त्री के निर्माण की आध्यात्मिक व्याख्या:

बहुत सुंदर और गहराई से भरा हुआ प्रश्न है: “दुर्गा सप्तशती में स्त्री का निर्माण किस प्रकार किया गया है?” यह प्रश्न केवल पौराणिक नहीं, बल्कि दर्शन, समाज और आत्मशक्ति से भी जुड़ा हुआ है।

दुर्गा सप्तशती में स्त्री का निर्माण: एक दिव्य प्रतिरूप

‘श्री दुर्गा सप्तशती’ (मार्कण्डेय पुराण का हिस्सा), जिसे “चण्डी पाठ” भी कहते हैं, उसमें देवी दुर्गा का प्राकट्य त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की सम्मिलित शक्ति से होता है।

1. शक्ति का साकार रूप: • त्रिदेवों ने जब देखा कि असुर (महिषासुर) को कोई देवता नहीं मार सकता, क्योंकि उसे वरदान था कि उसे केवल स्त्री ही मार सकती है, तब उन्होंने अपनी अपनी शक्तियाँ एकत्र कर देवी दुर्गा का निर्माण किया। • देवी दुर्गा, स्त्री के उस परम शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक हैं, जिसमें कोमलता और क्रोध, सौंदर्य और साहस, करुणा और शक्ति – सब एक साथ विद्यमान हैं।

2. निर्माण की प्रक्रिया: • त्रिदेवों की तेजस्वी ऊर्जा से दुर्गा का शरीर बना। • देवताओं ने उन्हें शस्त्र और वस्त्र दिए – जैसे शिव ने त्रिशूल, विष्णु ने चक्र, इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी (सिंह)। • उनका रूप सौम्य भी है और उग्र भी।

3. स्त्री के भीतर शक्ति का बोध: • दुर्गा का यह निर्माण यह संदेश देता है कि स्त्री कोई द्वितीयक अस्तित्व नहीं, बल्कि समस्त ब्रह्मांड की ऊर्जा का केन्द्र है। • वह रक्षक भी है और संहारक भी। वह मातृत्व का प्रतिरूप है, पर अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाली भी। Anjana Medical Astrologer: ⸻

दुर्गा में स्त्री का समग्र रूप: 1. सौंदर्य + सामर्थ्य – वह सुंदर भी है और शक्तिशाली भी। 2. ममता + न्याय – करुणामयी है, पर अत्याचार के खिलाफ असहिष्णु। 3. एकता की प्रतिमूर्ति – समस्त देवताओं की शक्तियों का एकीकृत रूप। ⸻ आधुनिक स्त्री की प्रेरणा:

दुर्गा सप्तशती का यह संदेश है कि

“स्त्री में वह शक्ति है जो संपूर्ण ब्रह्मांड को संतुलित रख सकती है।”

इसलिए स्त्री को कभी अबला नहीं, “सबला” समझना चाहिए – जिसमें सृजन, संरक्षण और संहार – तीनों शक्तियाँ निहित हैं।

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