संस्कृत में धतूरे को कनक, धृत, धत्तूर, मातुल तथा अंग्रेजी में इसे थोर्न एपल (Thorn Apple) कहते हैं। धतूरा प्रायः गरम देशों में पाया जाता है। भारतवर्ष में यह सर्वत्र मिलता है।
काला धतूरा (धतूरा स्ट्रोमोनियम:
सफेद धतूरा (धतूरा इनोक्सिया:
₹धतूरा# क्षारीय का काम करता है..
नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है.. जिस से सोचने समझने की शक्ति कम हो जाती है जिससे सीधे ही है ब्रेन को डैमेज करता है..
कुल: सोलेने
यह बिष जाति के पौधों में लिया जाता है..
औषध में लोग #काले धतूरे #का व्यवहार अधिक करते है।
वैद्य लोग धतूरे के बीज तथा पत्ते के रस का दमें सें सेवन कराते हैं और वात की पीड़ा में उसका बाहरी प्रयोग करते हैं। साइंटिफिक रीजन में
डाक्टरों ने भी परीक्षण करके इन दोनों रोगों में धतूरे को बहुत उपकारी पाया है। सूखे पत्तों या बीजों के घुएँ से भी दमा का कष्ट दूर होता है। पहले डाक्टर लोग #धतूरे #के गुणों से अनभिज्ञ थे पर अब वे इसका उपयोग करने लगे हैं।

#धतूरे #के फूल फल शिव को चढ़ाए जाते हैं।
वैद्यक में #धतूरा# कसैला, उष्ण, गुरु तथा मंदाग्नि और वातकारक माना जाता है।
: #धतूरे# को राहु का कारक माना गया है, इसलिए भगवान शिव को #धतूरा# अर्पित करने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प, पितृदोष दूर हो जाते हैं। वहीं शास्त्रों में बेलपत्र के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया।
शिवजी का यह उदार रूप समाज जिसे तिरस्कृत कर देता है, शिव उसे स्वीकार लेते हैं। शिव पूजा में #धतूरे # व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में बुरे व्यवहार और कड़वी बाते बोलने से बचें।
#धतूरे #के फूल और फल मे नर और मादा दोनों लैंगिक तत्व होते हैं.. जोकि शिव और पार्वती दोनों को संकेत करते हैं अर्धनारीश्वर के रूप में..
: शंकर जी पर चढ़ने वाला #धतूरा#
धतूरे# में मौजदू औषधिय गुण घाव में बचाने और शारीरिक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं. पुरुषों के लिए #धतूरे# का सेवन करना किसी वरदान से कम नहीं है. इससे उनकी शारीरिक क्षमता (Physical Power) बढ़ती है.
शिवरात्रि पर विशेष रूप से #धतूरा# फल को चढ़ाने का यही कारण है कि विवाहित जीवन के लिए महत्वपूर्ण है..
: काम शक्ति को बढ़ाने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है..
