नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
शैलपुत्री---
जिसमें प्रथम मूर्ति का नाम शैलपुत्री है, जो गिरिराज हिमालय की पुत्री पार्वती देवी हैं। यद्यपि ये सबकी अधीश्वरी देवी हैं तथापि पुराणों के अनुसार हिमालय की तपस्या-प्रार्थना से प्रसन्न होकर कृपापूर्वक उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुईं।
नवरात्रि के प्रथम दिन शैलपुत्री जी की आराधना की जाती है
ध्यान---
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
अर्थात्
मैं मनोवाञ्छित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचन्द्र धारण करने
वाली, वृष पर आरूढ़ होने वाली, शूलधारिणी,यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वन्दना करता हूँ।
ब्रह्मचारिणी-
"ब्रह्म चारयितुं शीलंयस्याः सा ब्रह्मचारिणी"
अर्थात् सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरुप की प्राप्ति कराना जिनका स्वभाव हो, वे ब्रह्मचारिणी हैं।
ब्रह्म का अर्थ है, तपस्या।
तप का आचरण करने वाली भगवती। जिस कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया, वेदस्तत्त्वं तपो ब्रह्म- वेद, तत्व और तप। श् ब्रह्म श् शब्द का अर्थ है ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है। ़
नवरात्रि के द्वितीय दिन ब्रह्मचारिणी जी की आराधना शुभप्रद है।
ध्यान
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
अर्थात्
जो दोनों करकमलों में अक्षमाला व कमण्डलु धारण करती हैं, वे
सर्वश्रेष्ठा ब्रह्मचारिणी दुर्गा देवी मुझ पर प्रसन्न हों।
चंद्रघण्टा -
"चन्द्रः घण्टायां यस्याः सा चन्द्रघण्टिका"
अर्थात् आह्लादकारी चन्द्रमा युक्त घण्टे को हाथ में धारण करने
वाली देवी चन्द्रघण्टा हैं।
नवरात्रि के तृतीय दिन चंद्रघण्टा जी की पूजा करना उत्तम है। ध्यान -
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुतां मह्यं चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
अर्थात्
जो पक्षिप्रवर गरुड़ पर आरूढ़ होती हैं, उग्र कोप
और रौद्रता से युक्त रहती हैं तथा चंद्रघण्टा नाम से
विख्यात हैं,वे दुर्गा देवी मेरे लिए कृपा का विस्तार करें।
कूष्माण्डा--
"कुत्सितः ऊष्मा कूष्मा"
अर्थात् कुत्सित ऊष्मा [त्रिविध ताप/कष्ट] से कूष्मा शब्द बना।
त्रिविधतापयुत: संसार: स अण्डेमांसपेश्यामुदररुपायां यस्या: सा कूष्मांडा।
अर्थात् त्रिविध तापयुक्त --
पहला ताप है आध्यात्मिक---
जो शारीरिक व मानसिक दो तरह का होता है।
दूसरा ताप आधिभौतिक --
भौतिक पदार्थों/जीव-जंतुओं के कारण मनुष्य को होने वाला आधिभौतिक ताप।
तीसरा आधिदैविक ताप--
जो बाह्य कारण से उत्पन्न दु:ख हो जैसे भूकम्प,बाढ़ सूखे आदि से उत्पन्न कष्ट, संसार जिनके उदर में स्थित है, वे भगवती कूष्माण्डा कहलाती हैं।
नवरात्रि के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी की आराधना शुभप्रद है।
ध्यान -----
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधानाहस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
अर्थात्
रुधिर से परिप्लुत व सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करने वाली कूष्मांडा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों।
स्कन्दमाता
छान्दोग्य श्रुति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द था और उनकी माता होने से वे स्कन्दमाता कहलाती हैं। ये षण्मुख स्कन्द कार्तिकेय रूपी बालक को सदा गोद में लिए रहती हैं।
नवरात्रि के पंचम दिन स्कंदमाता जी की आराधना की जाती है।ध्यान -
सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्द माता यशस्विनी॥
अर्थात्
जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके
दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वे यशस्विनी दुर्गा देवी स्कन्दमाता सदा कल्याण दायिनी हों।
कात्यायनी
देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए देवी महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या माना; अत: ये कात्यायनी नाम से प्रसिद्ध हुईं।
नवरात्रि के अंतर्गत षष्ठी तिथि को कात्यायनी जी की पूजा उत्तम है।
ध्यान-
चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवीदानव घातिनी॥
अर्थात्
जिनका हाथ उज्जवल चन्द्रहास नामक तलवार से सुशोभित
होता है तथा सिंह प्रवर जिनका वाहन है, वे दानव संहारिणी कात्यायनी दुर्गा देवी मङ्गल प्रदान करें।
कालरात्रि
सबको मारने वाले उस काल की भी विनाशिनी या रात्रि होने से ही इन देवी का नाम कालरात्रि है।
नवरात्र के सप्तम दिन कालरात्रि जी की आराधना उत्तम है।
ध्यान -
करालरूपा कालाब्जसमानाकृतिविग्रहा।
कालरात्रिः शुभं दद्याद् देवी चण्डाट्टहासिनी॥
अर्थात्
जिनका रूप विकराल है, जिनकी आकृति और विग्रह
कृष्ण कमल-सदृश है तथा जो भयानक अट्टहास करने
वाली हैं, वे कालरात्रि देवी दुर्गा मङ्गल प्रदान करें।
महागौरी
भगवती ने तपस्या द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त कर लिया था। अत: ये महागौरी कहलाईं।
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी जी की आराधना शुभप्रद है।
ध्यान -
श्वेतवृषेसमारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
अर्थात्
जो श्वेत वृष पर आरूढ़ होती हैं, श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, सदा पवित्र रहती हैं तथा महादेव जी को आनन्द प्रदान करती हैं, वे महागौरी दुर्गा मङ्गल प्रदान करें।
सिद्धिदात्री
अर्थात् मोक्ष देनेवाली सिद्धिदात्री नामक शक्ति जिनकी सिद्ध, गंधर्व, यक्षादि भी स्तुति किया करते हैं।
नवरात्रि के अंतिम दिन नवमी तिथि को सिद्धिदात्री जी की पूजा उत्तम है।
ध्यान -
सिद्धगंधर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदाभूयात्सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
अर्थात्
सिद्धों, गन्धर्वों, यक्षों, असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होने
वाली सिद्धिदायिनी सिद्धिदात्री दुर्गा सिद्धि प्रदान करने वाली हों।
दुर्गा माँ के नौ रूप हैं जो नित्य ही नवीन हैं ।
नवदुर्गा की आराधना में स्तोत्रों का, ध्यान मंत्रों का यथाशक्ति निरंतर मानस पाठ करना उत्तम है।