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पितृपक्ष और क्‍यों करते हैं श्राद्ध?

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पितृपक्ष और क्‍यों करते हैं श्राद्ध?

भारतीय संस्‍कृति में माता-पिता को देवताओं के समान माना जाता है और शास्‍त्रों के अनुसार यदि माता-पिता प्रसन्‍न होते हैं, तो सभी देवतादि स्‍वयं ही प्रसन्‍न हो जाते हैं। ब्रम्‍हपुराण में तो यहां तक कहा गया है किश्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाला मनुष्‍य अपने पितरों के अलावा ब्रम्‍हा, रूद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, वायु, विश्‍वेदेव व मनुष्‍यगण को भी प्रसन्‍न करता है। यानी पितरों (पूर्वजों) के नाम से पितरों के लिए श्रृद्धापूर्वक जो कर्म किया जाता है, वही श्राद्ध है जबकि महर्षि बृहस्‍पति के अनुसार जिस कर्म विषेश में अच्‍छी प्रकार से पकाए हुए उत्‍तम व्‍यंजन को दूध, घी व शहद के साथ श्रृद्धापूर्वक पितरों के नाम से गाय, ब्राम्‍हण आदि को प्रदान किया जाता है, वही श्राद्ध है। हिन्‍दु धर्म की मान्‍यता है कि मृत्‍यु के बाद मनुष्‍य का पंचभूतों (पृथ्‍वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) से बना स्‍थूल शरीर तो यहीं रह जाता है, लेकिन सूक्ष्‍म शरीर (आत्‍मा) मनुष्‍य के शुभ-अशुभ कर्मों के अनुसार ईश्‍वर द्वारा बनाए गए कुल 14 लोकों में से किसी एक लोक को जाती है। यदि मनुष्‍य ने अपने जीवन में अच्‍छे कर्म किए होते हैं, तो उसकी आत्‍मा स्‍वर्ग लोक, ब्रम्‍ह लोक या विष्‍णु लोक जैसे उच्‍च लोकों में जाती है जबकि यदि मनुष्‍य ने पापकर्म ही अधिक किए हों, तो उसकी आत्‍मा पितृलोक में चली जाती है और इस लोक में गमन करने हेतु उन्‍हें भी शक्ति की आवश्‍यकता होती है, जिसे वेअपनी सं‍तति द्वारा पितृ पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के भोजन द्वारा प्राप्‍त करते हैं।
कितने प्रकार के होते हैं श्राद्ध
भारतीय शास्‍त्रानुसार श्राद्ध कुल बारह प्रकार के माने गए हैं- नित्‍य श्राद्धनैमित्तिक श्राद्धकाम्‍य श्राद्धवृद्धि श्राद्धसपिण्‍डन श्राद्धपार्वण श्राद्धगोष्‍ठ श्राद्धशुद्धयर्थ श्राद्धकर्मांग श्राद्धदैविक श्राद्धऔपचारिक श्राद्धसांवत्‍सरिक श्राद्ध सांवत्‍सरिक श्राद्ध सभी अन्‍य प्रकार के श्राद्धों में श्रेष्‍ठ माना गया है और भविष्‍य पुराण के अनुसार भगवान सूर्यदेव स्‍वयं कहते हैं कि- जो व्‍यक्ति सांवत्‍सरिक श्राद्ध नहीं करता, उसकी पूजा न तो मैं स्‍वीकार करता हूं, न ही भगवान विष्‍णु, न रूद्र और न ही अन्‍य देवगण ही ग्रहण करते हैं। अतएव व्‍यक्ति को प्रयत्‍नपूर्वक प्रतिवर्ष मृत व्‍यक्ति की पुण्‍य तिथि पर इस श्राद्ध को जरूर सम्‍पन्‍न करना चाहिए। श्राद्ध के मूलत: कुल चार भाग तर्पण, भोजनादि व पिण्‍डदान, वस्‍त्रदान व दक्षिणादान माने गए हैं जबकि शास्‍त्रों के अनुसार “गया जी” को श्राद्ध का सबसे श्रेष्‍ठ स्‍थान माना गया है।

श्राद्ध क्या है? ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाए वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है। पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है। क्यों जरूरी है श्राद्ध देना? मान्यता है कि अगर पितर रुष्ट हो जाए तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पितरों की अशांति के कारण धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। संतान-हीनता के मामलों में ज्योतिषी पितृ दोष को अवश्य देखते हैं। ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए। क्या दिया जाता है श्राद्ध में? श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है। श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्त्व होता है। श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए। श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है।

किस तिथि पर किसका श्राद्ध

भारतीय संस्‍कृति के अनुसार पितृपक्ष में तर्पण व श्राद्ध करने से व्‍यक्ति को पूर्वजों का आर्शीवाद प्राप्‍त होता है जिससे घर में सुख-शान्ति व समृद्धि बनी रहती है। हिन्‍दु शास्‍त्रों के अनुसार जिस तिथि को जिस व्‍यक्ति की मृत्‍यु होती है, पितर पक्ष में उसी तिथि को उस मृतक का श्राद्ध किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्‍यक्ति के पिता की मृत्‍यु तृतीया को हो, तो पितर पक्ष में उस मृतक का श्राद्ध भी तृतीया को ही किया जाता है जबकि यदि किसी व्‍यक्ति की मृत्‍यु की तिथि ज्ञान न हो, तो ऐसे किसी भी मृतक का श्राद्ध अमावश्‍या को किया जाता है। हालांकि यदि मृतक की मृत्‍यु तिथि ज्ञात हो, तो उस तिथि के अनुसार ही मृतक का श्राद्ध किया जाता है, जबकि तिथि ज्ञात न होने की स्थिति में अथवा श्राद्ध करने वाले व्‍यक्ति का मृतक व्‍यक्ति के साथ सम्‍बंध के आधार पर भी श्राद्ध किया जा सकता है। विभिन्‍न तिथियों के अनुसार किस तिथि को किस सम्‍बंधी का श्राद्ध किया जा सकता है.........

आश्विन कृष्‍ण प्रतिपदा

इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए उत्‍तम माना गया है।

आश्विन कृष्‍ण पंचमी

इस तिथि को परिवार के उन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी मृत्‍यु अविवाहित अवस्‍था में हो गई हो।

आश्विन कृष्‍ण नवमी

इस तिथि को माता व परिवार की अन्‍य महिलाओं के श्राद्ध के लिए उत्‍तम माना गया है।

आश्विन कृष्‍ण एकादशी व द्वादशी

इस तिथि को उन लोगों के श्राद्ध के लिए उत्‍तम माना गया है, जिन्‍होंने सन्‍यास ले लिया हो।

आश्विन कृष्‍ण चतुर्दशी

इस तिथि को उन पितरों का श्राद्ध किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्‍यु हुई हो।

आश्विन कृष्‍ण अमावस्‍या

इस तिथि को सर्व-पितृ अमावस्‍या भी कहा जाता है और इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध किया जाता है।

पितृ पक्ष का महत्व

अपने पितरों का श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है, जिस तिथि पर उनकी मृत्यु हुई हो। यदि पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है तो श्राद्ध पक्ष के अंतिम दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या के लिए श्राद्ध कर्म करना चाहिए।

कैसे किया जाता है श्राद्ध

श्राद्ध के मूलतः चार भाग कहे गए हैं। तर्पण, पिंडदान, भोजन और वस्त्रदान या दक्षिणा दान। शास्त्रों में गयाजी को श्राद्ध करने का सबसे उत्तम स्थान कहा गया है। इस वारे में तो यहां तक कहा गया है कि जो मनुष्य एक बार अपने पितरों का श्राद्ध कर्म, पिंडदान, गयाजी में आकर करता है उसे फिर कभी श्राद्ध कर्म करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। श्राद्ध में चावल, जौ, तिल का अधिक महत्व है। इस चीजों से तर्पण किया जाता है। यह कोई भी योग्य ब्राह्मण करवा सकता है। तर्पण, पिंडदान के बाद यथाशक्ति गौ, श्वान, कौवा, ब्राह्मणों, जरूरतमंदों और पितरों का भाग निकाला जाता है। जरूरतमंदों, गरीबों, भिखारियों को दान-दक्षिणा देना चाहिए। भोजन करवाना चाहिए। हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है। मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण ना किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है। पितृ पक्ष का महत्त्व - ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है। पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते हैं। मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें।
वर्ष 2023 में पितृ पक्ष श्राद्ध की तिथियां निम्न हैं: - पितृपक्ष : 29 सितम्बर से 14 अक्टूबर 2023
29 सितंबर - पूर्णिमा श्राद्ध 30 सितंबर - प्रतिपदा श्राद्ध , द्वितीया श्राद्ध 01 अक्टूबर - तृतीया श्राद्ध 02 अक्टूबर - चतुर्थी श्राद्ध 03 अक्टूबर - पंचमी श्राद्ध 04 अक्टूबर - षष्ठी श्राद्ध 05 अक्टूबर - सप्तमी श्राद्ध 06 अक्टूबर - अष्टमी श्राद्ध 07 अक्टूबर - नवमी श्राद्ध 08 अक्टूबर - दशमी श्राद्ध 09 अक्टूबर - एकादशी श्राद्ध 11 अक्टूबर - द्वादशी श्राद्ध 12 अक्टूबर - त्रयोदशी श्राद्ध 13 अक्टूबर - चतुर्दशी श्राद्ध 14 अक्टूबर - सर्व पितृ अमावस्या
कौए और श्राद्ध
प्राचीन मान्‍यता के अनुसार पितर पक्ष में पूर्वजों की आत्‍माऐं धरती पर आती हैं क्‍योंकि उस समय चन्‍द्रमा, धरती के सबसे ज्‍यादा नजदीक होता है और पितर लोक को चन्‍द्रमा से ऊपर माना गया है। इसलिए जब चन्‍द्रमा, धरती के सबसे नजदीक होता है और ग्रहों की इस स्थिति में पितर लोक के पूर्वज, धरती पर रहने वाले अपने वंशजों के भी सर्वाधिक करीब होते हैं तथा कौओं के माध्‍यम से अपने वंशजों द्वारा अर्पित किए जाने वाले भोजन को ग्रहण करते हैं। आश्‍चर्य की बात ये भी है कि यदि हम सामान्‍य परिस्थितियों में कौओं को भोजन करने के लिए आमंत्रित करें, तो वे नहीं आते, लेकिन पितरपक्ष में अक्‍सर कौओं को पितरों के नाम पर अर्पित किए जाने वाले श्राद्ध के भोजन को ग्रहण करते हुए देखा जा सकता है। इसलिए पितर पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के दौरान काफी अच्‍छा व स्‍वादिष्‍ट भोजन पकाया जाता है, क्‍योंकि मान्‍यता ये है कि इस स्‍वादिष्‍ट भोजन को व्‍यक्ति के पूर्वज ग्रहण करते हैं और संतुष्‍ट होने पर आशीर्वाद देते हैं, जिससे पूरे साल भर धन-धान्‍य व समृद्धि की वृद्धि होती है, जबकि श्राद्ध न करने वाले अथवा अस्‍वादिष्‍ट, रूखा-सूखा, बासी भोजन देने वाले व्‍यक्ति के पितर (पूर्वज) कुपित होकर श्राप देते हैं, जिससे घर में विभिन्‍न प्रकार के नुकसान, अशान्ति, अकाल मृत्‍यु व मानसिक उन्‍माद जैसी बिमारियां होती हैं तथा पूर्वजों का श्राप जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष योग के रूप में परिलक्षित होता है।
महत्‍वपूर्ण कार्य पितर पक्ष में  न करना
मान्‍यता ये है कि पितर पक्ष पूरी तरह से हमारे पूर्वजों का समय होता है और इस समय में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, बल्कि केवल शान्तिपूर्ण तरीके से इस समय को ईश्‍वर के भजन कीर्तन आदि में व्‍यतीत करना चाहिए। इस समय में कोई नया काम भी शुरू नहीं करना चाहिए, न ही कोई नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए। यहां तक कि इस समयावधि में किसी नए काम की Planning भी नहीं बनानी चाहिए। क्‍योंकि इस समयावधि में कोई मांगलिक कार्य जैसे कि शादी-विवाह आदि करते हैं, तो वह निश्चित रूप से असफल होता है, अथवा अत्‍यधिक परेशानियों का सामना करना पडता है। जबकि इस समयावधि में कोई सामान भी खरीदते हैं, तो उस सामान से दु:ख व नुकसान ही उठाना पडता है, बल्कि ये एक अनुभूत सत्‍य है कि इस समयावधिक में बनाए गए Plan भी Fail होते हैं। यानी ये समय भाैतिक सुख-सुविधाओं के लिए किए जाने वाले किसी भी प्रयास के लिए पूरी तरह से प्रतिकूल होता है। इसलिए इस समयावधि को यथास्थिति में रहते हुए सरलता से व्‍यतीत करना ही बेहतर रहता है। प‌ितृपक्ष यानी श्राद्ध का पक्ष शुरु हो चुका है। ऐसी मान्यता है क‌ि इन द‌िनों प‌‌ितर यानी पर‌िवार में ज‌िनकी मृत्यु हो चुकी है उनकी आत्मा पृथ्वी पर आती है और अपने पर‌िवार के लोगों के बीच रहती है। इसल‌िए प‌ितृपक्ष में शुभ काम करना अच्छा नहीं माना जाता है। इन द‌‌िनों कई ऐसे काम हैं ज‌िन्हें करने से लोग बचते हैं। जान‌िए यह काम कौन से और इन्हें भला क्यों नहीं करना चाह‌िए ऐसी मान्यता है क‌ि प‌ितृपक्ष के द‌िनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाह‌िए इसके पीछे यह धारणा है क‌ि प‌ितर आपके घर में होते हैं और यह उनके प्रत‌ि श्रद्धा प्रकट करने का समय होता है इसल‌िए इन द‌िनों संयम का पालन करना चाह‌िए। प‌ितृपक्ष में स्वर्ण और नए वस्‍त्रों की खरीदारी नहीं करनी चाह‌िए। ऐसा इसल‌िए माना जाता है क्योंक‌ि प‌ितृपक्ष उत्सव का नहीं बल्क‌ि एक तरह से शोक व्यक्त करने का समय होता है उनके प्रत‌ि जो अब हमारे बीच नहीं रहे। प‌ितृपक्ष में द्वार पर आए अत‌िथ‌ि और याचक को ब‌िना भोजन पानी द‌िए जाने नहीं देना चाह‌िए। माना जाता है क‌ि प‌ितर क‌िसी भी रुप में श्राद्ध मांगने आ सकते हैं। इसल‌िए क‌िसी का अनादर नहीं करना चाह‌िए माना जाता है क‌ि प‌ितृपक्ष में नया घर नहीं लेना चाह‌िए। असल में घर लेने में कोई बुराई नहीं है असल कारण है स्‍थान पर‌िवर्तन। माना जाता है ‌क‌ि जहां प‌ितरों की मृत्यु हुई होती है वह अपने उसी स्‍थान पर लौटते हैं। अगर उनके पर‌िजन उस स्‍थान पर नहीं म‌िलते हैं तो उन्हें तकलीफ होती है। अगर आप प‌ितरों के ल‌िए श्राद्ध तर्पण कर रहे हैं तो उन्हें आपके घर खरीदने से कोई परेशानी नहीं होती है। प‌ितृपक्ष को लेकर ऐसी मान्यता है क‌ि इन द‌िनों नए वाहन नहीं खरीदने चाह‌िए। असल में वाहन खरीदने में कोई बुराई नहीं है। शास्‍त्रों में इस बात की कहीं मनाही नहीं है। बात बस इतनी है क‌ि इसे भौत‌िक सुख से जोड़कर जाना जाता है। जब आप शोक में होते हैं तो या क‌िसी के प्रत‌ि दुख प्रकट करते है तो जश्न नहीं मनाते हैं। इसल‌िए धारणा है क‌ि इन द‌िनों वाहन नहीं खरीदना चाह‌िए। प‌ितृपक्ष में ब‌िना प‌ितरों को भोजन द‌िया स्वयं भोजन नहीं करना चाह‌िए इसका मतलब यह है क‌ि जो भी भोजन बने उसमें एक ह‌िस्सा गाय, कुत्ता, ब‌िल्ली, कौआ को ख‌िला देना चाह‌िए। मनुष्य इस पृथ्वी पर जब जन्म लेता है, तभी उस पर तीन ऋण चढ़ जाते हैं, जिन्हें देव ऋण, ऋणि ऋण और पितृ ऋण कहा जाता है। इनमें पितृ ऋण के निवारण के लिए पितृ तर्पण किया जाना आवश्यक होता है। जिसे सरल शब्दों में श्राद्ध कर्म कहा जाता है। जो भी मनुष्य जीवात्मा पृथ्वी पर जन्म लेती है, वह अपने पूर्णजों, माता-पिता, बुजुर्गों के कर्मों और स्वयं के पूर्व जन्मों के संचित कर्मों के अनुसार जन्म लेती है। जीवात्मा को पृथ्वी पर लाने के निमित्त जो ऋण जीवात्मा पर चढ़ता है उसे ही पितृ ऋण कहा जाता है। इसीलिए बुजुर्गों, माता-पिता या परिजनों का यह ऋण चुकाने के लिए श्राद्ध कर्म का विधान है।

गरूण पुराण

गरूड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष में समस्त आत्माएं अपने परिजनों से भोजन और जल प्राप्त करने के लिए पृथ्वी पर आती हैं। इसलिए उनकी संतुष्टि के लिए मनुष्यों को श्राद्ध कर्म का विधान अपनाना चाहिए। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों को संतुष्ट करना चाहिए।

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