
आज के कलिकाल मे पृथ्वी पर महारुद्र हनुमान , भैरव ओर महाकाली जाग्रत शक्ति है । हनुमानजी अगर पितृदोष है तो उन्हें प्रकट कर देते है ताकि त्रिपिंडी श्राद्ध या नारायण बलि से उनकी मुक्ति हो । ग्रहबाधा हो तो उत्तम ज्योतिष मार्गदर्शन मिल जाता है । देवदोष हो तो देव क्षमा प्रायश्चित का कार्य होता है । प्रेतबाधा या तंत्र कर्म है तो उनकी काट हो जाती है । कैसी भी नकारात्मक शक्ति हो नित्य पाठ करनेवाला अभय हो जाता है । साधक या उनके परिवार को कोई क्षति नही होती । ग्रहदोष ,देवदोष ओर पितृबाधाओ से सालों से पीड़ित को आज सुखी सम्पन होते हमने देखा है । बहुत ही कारगर साबित होता है जब इस विधि से किया जाता है। वैसे तो बहुत ज्यादा जरूरी न हो नही करना चाहिए। इसमे राम जी को हनुमान जी से निवेदन करना होता है। अपने अपने कुलगोत्र देवी देवता की पूजा के साथ हनुमानजी महाराज की भक्ति शीघ्र फलदायी होती है । प्रथम 👍🏻 नित्य स्नान शुद्धिकर आसन पर बैठकर हनुमानजी के नाम का दिया लगाए । एक घी का एक सरसो के तेल का। शिव रक्षा स्तोत्र एक पाठ कीजिये । दृतीय राम रक्षा स्तोत्र का एक पाठ तीसरा उसके बाद 11 पाठ बजरंग बाण करिए । शिव रक्षा स्तोत्र:- विनियोग;- अस्य श्रीशिवरक्षा-स्तोत्र-मन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः, श्रीसदाशिवो देवता, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीसदाशिव-प्रीत्यर्थे शिवरक्षा-स्तोत्र-जपे विनियोगः ॥ शिवरक्षा स्तोत्र :- चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् । अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम् ॥ (१) गौरी-विनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम् । शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्षां पठेन्नरः ॥ (२) गङ्गाधरः शिरः पातु भालमर्द्धेन्दु-शेखरः । नयने मदन-ध्वंसी कर्णौ सर्प-विभूषणः ॥ (३) घ्राणं पातु पुराराति-र्मुखं पातु जगत्पतिः । जिह्वां वागीश्वरः पातु कन्धरां शिति-कन्धरः ॥ (४) श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्व-धुरन्धरः । भुजौ भूभार-संहर्त्ता करौ पातु पिनाकधृक् ॥ (५) हृदयं शङ्करः पातु जठरं गिरिजापतिः । नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बरः ॥ (६) सक्थिनी पातु दीनार्त्त-शरणागत-वत्सलः । ऊरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः ॥ (७) जङ्घे पातु जगत्कर्त्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः । चरणौ करुणासिन्धुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः ॥ (८) एतां शिव-बलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत् । स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिव-सायुज्यमाप्नुयात् ॥ (९) ग्रह-भूत-पिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये । दूरादाशु पलायन्ते शिव-नामाभिरक्षणात् ॥ (१०) अभयङ्कर-नामेदं कवचं पार्वतीपतेः । भक्त्या बिभर्त्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत् त्रयम् ॥ (११) इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्षां यथादिशत् । प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथालिखत् ॥ (१२) राम रक्षा स्तोत्र ;- (दायिने हाथमे जल का चमच लीजिए और विनियोग पढ़िए ) ॐअस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्तोत्रजपे विनियोगः। (अब जल को जमीन पर छोड़कर भगवान श्रीराम का ध्यान करें…) अथ ध्यानम्: ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामांकारूढसीतामुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं नानालंकार दीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम। स्तोत्र ;- इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः।। रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरः।। रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम।। राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।। रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः।। श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम।। श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये।। माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने।। दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम्।। लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये।। मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये।। कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम।। आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्।। भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्।। रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः।। रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धराः।। राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने।। पाठ के बाद बजरंग बाण के 11 पाठ करिए । बजरंग बाण का पाठ;- सम्पूर्ण बजरंग बाण......🙏🙏 बाज़ार में उपलब्ध बजरंगबाण में 21 चौपाइयां छूटी हुई हैं. जिनमें दैन्यभाव की झलक के साथ इसके अनुष्ठान का दिग्दर्शन होता है. तुलसी दास जी महाराज बजरंग बाण का यह पाठक्रम प्रामाणिक और अनुभूत है. उपलब्ध पुस्तकों में लगभग 21 चौपाइयाँ छूटी हुई हैं. निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान । तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ।। जय हनुमन्त सन्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।। जन के काज विलम्ब न कीजै । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।२।। जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा । सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।। आगे जाय लंकिनी रोका । मारेहु लात गई सुर लोका ।।४।। जाय विभीषण को सुख दीन्हा । सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा । अति आतुर यम कातर तोरा ।।६।। अक्षय कुमार को मारिसंहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।। लाह समान लंक जरि गई । जै जै धुनि सुर पुर में भई ।।८।। अब विलंब केहि कारण स्वामी । कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ।। जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता । आतुरहोई दुख करहु निपाता ।।१०।। जै गिरधर जै जै सुख सागर । सुर समूह समरथ भट नागर ।। ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले । बैिरहिं मारू बज्र के कीलै ।।१२।। गदा बज्र तै बैरिहीं मारो । महाराज निज दास उबारो ।। सुनि हंकार हुंकार दै धावो । बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।।१४।। ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा । ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।। सत्य होहु हरि शपथ पायके । राम दुत धरू मारू धायके ।।१६।। जै हनुमन्त अनन्त अगाधा । दुःख पावत जन केहि अपराधा ।। पूजा जप तप नेम अचारा । नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।१८।। वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ।। पाँय परौं कर जोरि मनावौं । अपने काज लागि गुण गावौं ।। २०। ।जय अंजनि कुमार बलवन्ता । शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।। बदन कराल काल कुल घालक । राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।२२। ।भूत प्रेत पिशाच निशाचर । अग्नि बैताल काल मारी मर ।। इन्हें मारु तोहि शपथ राम की । राखुनाथ मर्जाद नाम की ।।२४। ।जनकसुतापति-दास कहावौ । ताकी शपथ विलम्ब न लावौ । ।जय जय जय धुनि होत अकाशा । सुमिरत होत दुसहु दुःख नाशा ।।२६। ।चरन पकरि कर जोरि मनावौं | एहि अवसर अब केहि गोहरावौं । ।उठु-उठु चलु तोहि राम दोहाई पाँय परौं कर जोरि मनाई ।।२८। ।ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता । ॐ हनु हनुहनु हनु हनु हनुमंता । ।ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल । ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।३०।। अपने जन को तुरत उबारौ । सुमिरत होतअनन्द हमारौ । ।ताते विनती करौं पुकारी । हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।३२। ।ऐसो प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा । कस नहरहु दुःख संकट मोरा ।। हे बजरंग, बाण सम धावो । मेटि सकल दुःख दरस दिखावो ।।३४।। हे कपिराज काज कब ऐहौ । अवसर चूकि अन्त पछितैहौ ।। जन की लाज जात ऐहि बारा । धावहु हे कपि पवन कुमारा ।।३६।। जयति जयति जय जय हनुमाना । जयति जयति गुणज्ञान निधाना ।। जयति जयति जय जय कपिराई । जयति जयतिजय जय सुखदाई ।।३८।। जयति जयति जय राम पियारे । जयति जयति जय सिया दुलारे ।। जयति जयति मुद मंगलदाता ।। जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।४०।। यहि प्रकार गावत गुण शेषा । पावत पार नहीं लवलेषा ।। राम रूप सर्वत्र समाना । देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२।। विधि शारदा सहित दिनराती । गावत कपि के गुण गण पांती ।। तुम सम नही जगत् बलवाना । करि विचारदेखेउं विधि नाना ।।४४।। यह जिय जानि शरण तव आई । ताते विनय करौं चित लाई ।। सुनि कपि आरत वचन हमारे । मेटहु सकलदुःख भ्रम सारे ।।४६।। यहि प्रकार विनती कपि केरी । जो जन करै लहै सुख ढेरी ।। याके पढ़त वीर हनुमाना । धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८।। मेटत आय दुःख क्षण मांहीं । दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ।। पाठ करै बजरंग बाण की । हनुमत रक्षाकरै प्राण की ।।५०।। डीठ, मूठ, टोनादिक नासै । परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे ।। भैरवादि सुर करै मिताई । आयसु मानि करैं सेवकाई ।।५२।। प्रण करि पाठ करैं मन लाई । अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई ।। आवृति ग्यारह प्रतिदिन जापै । ताकी छाँह काल नहिं चांपै ।।५४।। दै गूगल की धूप हमेशा। करै पाठ तन मिटै कलेशा ।। यह बजरंग बाण जेहि मारै । ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।५६।। शत्रु समूह मिटै सब आपै । देखत ताहिसुरासुर काँपै ।। तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई । रहै सदा कपिराज सहाई ।।५८।। प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै। सदा धरैं उर ध्यान ।। तेहि के कारज तुरत ही, सिद्ध करैं हनुमान ।। इति श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचितः बजरंगबाणः पाठ करने के बाद 20 मिनट सीताराम सीताराम नाम का जाप अवश्य करे। 11 पाठ करने के बाद हनुमानजी महाराज को आपकी समस्या के बारे मे निवेदन करे । इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करे। हनुमानजी के मंदिर जाकर दर्शन करे । सम्भव हो तो हनुमानजी की प्रसन्नता केलिए छोटे बच्चों को प्रसन्न करिए ।