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माँ शैलपुत्री

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माँ शैलपुत्री

  नवरात्रि ======= नवरात्रि शब्द एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है 'नौ रातें'। इन नौ रातों और दस दिनों के दौरान, शक्ति/देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के नाम से प्रसिद्ध है। नवरात्रि वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ, अश्विन मास में प्रतिपदा से नवमी तक मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों - महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली के नौ स्वरुपों की पूजा होती है जिनके नाम और स्थान क्रमशः इस प्रकार है:- नंदा देवी योगमाया (विंध्यवासिनी शक्ति पीठ), रक्तदंतिका (सथूर), शाकम्भरी (सहारनपुर शक्तिपीठ), दुर्गा (काशी),भीमा (पिंजौर) और भ्रामरी (भ्रमराम्बा शक्तिपीठ) नवदुर्गा कहते हैं। नवरात्रि एक महत्वपूर्ण प्रमुख त्योहार है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है। नौ देवियाँ है :- =========== शैलपुत्री - इसका अर्थ- पहाड़ों की पुत्री होता है। ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ- ब्रह्मचारीणी। चंद्रघंटा - इसका अर्थ- चाँद की तरह चमकने वाली। कूष्माण्डा - इसका अर्थ- पूरा जगत उनके पैर में है। स्कंदमाता - इसका अर्थ- कार्तिक स्वामी की माता। कात्यायनी - इसका अर्थ- कात्यायन आश्रम में जन्मि। कालरात्रि - इसका अर्थ- काल का नाश करने वली। महागौरी - इसका अर्थ- सफेद रंग वाली मां। सिद्धिदात्री - इसका अर्थ- सर्व सिद्धि देने वाली। नवरात्रि के प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है. इसीलिए माँ के इस स्वरूप को शैलपुत्री कहा जाता है। इनकी आराधना से हम सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं. माँ शैलपुत्री को प्रसन्न करने के लिए ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ऊँ शैलपुत्री देव्यै नम: इस मन्त्र का जाप करना चाहिए। नवरात्रि में 9 तिथियाँ ================ नवरात्रि में 9तिथियों को3.3.3तिथि में बाँटा गया है। प्रथम 3 दिन मां दुर्गा की पूजा (तामस को जीतने की आराधना) बीच की तीन तिथि माँ लक्ष्मी की पूजा (रजस) को जीतने की आराधना) तथा अंतिम ०३ दिन माँ सरस्वती की पूजा (सत्व को जीतने आराधना) विशेष रुप से की जाती है। दुर्गा की पूजा करके प्रथम दिनों में मनुष्य अपने अंदर उपस्थित दैत्य, अपने विघ्न, रोग, पाप तथा शत्रु का नाश कर डालता है। उसके बाद अगले तीन दिन सभी भौतिकवादी, आध्यात्मिक धन और समृद्धि प्राप्त करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करता है।अंत में आध्यात्मिक ज्ञान के उद्देश्य से कला तथा ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की आराधना करता है। अब तीनों देवी के आराधना हेतू मंत्रोँ का वर्णन करता हूँ- माँ दूर्गा के लिए नवार्ण मंत्र महाम्ंत्र है, इसको मंत्रराज कहा गया है। नवार्ण मंत्र की साधना से धन-धान्य,सुख-समृद्धि आदि सहित सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। "ऐं हीं क्लीँ चामुण्डायै विच्चे" श्री लक्ष्मी जी का मूल मंत्र "ऊँ श्री हीं क्लीँ ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा" श्री माँ सरस्वती जी का वैदिक अष्टाक्षर मूल मंत्र जिसे भगवान शिव ने कणादमुनी तथा गौतम मुनि, श्री नारायण ने वाल्मीकि को, ब्रह्मा जी ने भृगु को, भृगुमुनि ने शुक्राचार्य को, शुक्राचार्य ने कश्यप को, कश्यप ने बृहस्पति को दिया था। जिसको सिद्ध करने से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है-- "श्री हीं सरस्वत्यै स्वाहा"  

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