मुख्य विचार: यजुर्वेद में ब्रह्मा का निराकार स्वरूप
1. “नेति नेति” का सिद्धांत (Not this, not this): • यजुर्वेद (बृहदारण्यक उपनिषद, जो यजुर्वेद का ही भाग है) में ब्रह्म को परिभाषित करते हुए कहा गया है: “नेति नेति” — “यह नहीं, यह नहीं” • इसका अर्थ है कि ब्रह्म किसी भी रूप, गुण, या पदार्थ से परे है। जो कुछ भी देखा, सुना या सोचा जा सकता है — ब्रह्म उससे परे है। ⸻ 2. ब्रह्म निराकार, निर्विकारी है: • यजुर्वेद 40.8 (ईशोपनिषद): “स पर्यगाच्छुक्रमकायमव्रणम… शुद्धं अपापविद्धम्” (sa paryagāc chukram akāyam avraṇam…) • अर्थ: वह सर्वव्यापी, तेजस्वी, शरीररहित, दोषरहित, शुद्ध और पापरहित ब्रह्म है। • “अकायम्” = निराकार, बिना शरीर के। ⸻ 3. आत्मा और ब्रह्म की एकता: • यजुर्वेद यह भी कहता है कि “आत्मा ही ब्रह्म है” (अहं ब्रह्मास्मि) — जो यह दर्शाता है कि ब्रह्म कोई अलग व्यक्ति नहीं, बल्कि चैतन्य तत्व है, जो हर जीव में समान रूप से व्याप्त है। ⸻ 4. यज्ञों के माध्यम से भी निराकार ब्रह्म की उपासना: • यजुर्वेद में यज्ञ-रीति दी गई है, लेकिन उसमें परम उद्देश्य इंद्र, अग्नि आदि देवताओं के पार जाकर उस एक निराकार ब्रह्म को प्राप्त करना है। ⸻ निष्कर्ष: यजुर्वेद के अनुसार: • ब्रह्मा कोई “देवता” नहीं, बल्कि एक सर्वव्यापी, निराकार, अजन्मा, अविनाशी चेतना है। • उसे किसी रूप, मूर्ति या कल्पना में बाँधा नहीं जा सकता। • उसे केवल ज्ञान, ध्यान और अनुभव से जाना जा सकता है—not through rituals alone.
यजुर्वेद में ब्रह्मा को निराकार किस तरह से माना हैं?
यजुर्वेद में ब्रह्मा (अर्थात ब्रह्म, परम तत्व) को निराकार, निर्गुण और अखंड चेतना के रूप में माना गया है। यजुर्वेद, विशेष रूप से उसका शुक्ल यजुर्वेद भाग, गूढ़ आध्यात्मिक विचारों से भरपूर है, जहाँ ब्रह्म को किसी मूर्त रूप या सीमित रूप में बाँधा नहीं गया है।
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