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लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है?दीपावली काल और दर्शन

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लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है?दीपावली काल और दर्शन

दीपक हमारी प्रदीप्त चेतना का प्रतीक है। यह जितना ज्योतिर्मय होगा जीवन उतना प्रखर होगा। दीपावली हमारे जीवन में प्रकाश बिखरे। हम भटके मनुष्यों को उजाला पथ दिखाएं।हमारे मानसिक कुहासे तथा भावनाओं को घेरे बैठी तमस् घटाओं को विलीन कर नई ज्योति प्रदान करें। हम अपने विचारों भावनाओं और कर्मों में और भी प्रखर, पवित्र एवं निष्ठावान बने, यही दीपावली की शुभ प्रेरणा है। यदि हमारा जीवन इस प्रेरणा से प्रेरित होकर मानवता के पथ पर बढ़ते हुए आध्यात्मिकता ओर अग्रसर हो सके तो समझना चाहिए, दीपावली हमारे लिए सार्थक हुई। दीपावली का महत्त्व अधिकतर घरों में बच्चे यह दो प्रश्न अवश्य पूछते हैं जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है? राम और सीता की पूजा क्यों नही? दूसरा यह कि दीपावली पर लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों होती है, विष्णु भगवान की क्यों नहीं? इन प्रश्नों का उत्तर अधिकांशतः बच्चों को नहीं मिल पाता और जो मिलता है उससे बच्चे संतुष्ट नहीं हो पाते।आज की शब्दावली के अनुसार कुछ ‘लिबरर्ल्स लोग’ युवाओं और बच्चों के मस्तिष्क में यह प्रश्न डाल रहें हैं कि लक्ष्मी पूजन का औचित्य क्या है, जबकि दीपावली का उत्सव राम से जुड़ा हुआ है। कुल मिलाकर वह बच्चों का ब्रेनवॉश कर रहे हैं कि सनातन धर्म और सनातन त्यौहारों का आपस में कोई तारतम्य नहीं है।सनातन धर्म बेकार है।आप अपने बच्चों को इन प्रश्नों के सही उत्तर बतायें। दीपावली का उत्सव दो युग, सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मीजी का पूजन होता है। भगवान राम भी त्रेता युग में इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने घर घर दीपमाला जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है।अत: इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है। लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है? लक्ष्मी जी सागरमन्थन में मिलीं, भगवान विष्णु ने उनसे विवाह किया और उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया। लक्ष्मी जी ने धन बाँटने के लिए कुबेर को अपने साथ रखा। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते ही नहीं थे।वे खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। माता लक्ष्मी खिन्न हो गईं, उनकी सन्तानों को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने कहा कि तुम कुबेर के स्थान पर किसी अन्य को धन बाँटने का काम सौंप दो। माँ लक्ष्मी बोली कि यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा। तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को भी कुबेर के साथ बैठा दिया। गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले, माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊँगा , उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी।अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न, रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।कुबेर भंडारी देखते रह गए, गणेश जी कुबेर के भंडार का द्वार खोलने वाले बन गए। गणेश जी की भक्तों के प्रति ममता कृपा देख माँ लक्ष्मी ने अपने मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें। दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देव उठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिनों में।इसलिए वे अपने सँग ले आती हैं अपने मानस पुत्र गणेश जी को। इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है। यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है।इस लेख को पढ़ कर स्वयं भी लाभान्वित हों और अपनी अगली पीढ़ी को भी बतायें। दूसरों के साथ साझा करना भी ना भूलेंI दीपावली काल और दर्शन-astronomy जीवन में प्रगति के लिए-बृहदारण्यक उपनिषद् (१/३/२८)- असतो मा, सद् गमय = असत् (नहीं है, या अनुभव नहीं हो सके) नहीं, सत् (उपलब्ध या सत्य) की चेष्टा। तमसो मा, ज्योतिर्गमय = तमस (अन्धकार, अज्ञान) से ज्योति (प्रकाश) की तरफ। मृत्योर्मा, अमृतं गमय = मृत्यु या क्षणिक से अमृत अर्थात् सनातन स्थायी की चेष्टा। स्वयं दीपावली दिन अन्धकार की पूर्णता है। उस दिन दीप जलाना तम स्य् ज्योति की गति है। दीपावली के १ दिन पूर्व यम चतुर्दशी। १४ भुवन (स्तम्ब से ब्रह्म तक जीव स्तर) रूप १४ तिथि है। कृष्ण पक्ष में १४ तिथि यम या मृत्यु रूप है। इसका विपरीत दीपावली के १ दिन बाद अन्न-कूट या गोवर्धन पूजा है। गो-वर्धन तथा अन्न से जीवन चलता है, यह मृत्यु के विपरीत अमृत रूप हुआ। दीपावली के २ दिन पूर्व निर्ऋति (ऋत = सदाचरण, सम्पत्ति) का अभाव है। उस दिन कुछ स्थायी वस्तु खरीदते हैं। दीपावली के २ दिन बाद यम-द्वितीया है। इसका अर्थ भाई-बहन का जोड़ा है। यह असत् से सत् गति है। संवत्सर (वर्ष) चक्र में दीपावली रात्रि है। उस दिन चन्द्रमा विशाखा में रहता है। उसके विपरीत कृत्तिका नक्षत्र दिन है। कार्त्तिक पूर्णिमा को चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र में रहता है। कृत्तिका = कैंची (कर्तन = काटना), विशाखा = द्वि-शाखा का मिलन विन्दु। ये २ वृत्तों के मिलन विन्दु हैं। पृथ्वी का भ्रमण पथ बड़े गोल की सतह पर क्रान्ति वृत्त है। उसी गोल पर विषुव रेखा लिखा जाय तो यह प्रायः २३.५ अंश झुका रहेगा, जितना पृथ्वी कक्षा का क्रान्ति वृत्त पर झुकाव है। पृथ्वी से देखने पर सूर्य परिक्रमा कर रहा है। क्रान्ति वृत्त विषुव को २ विन्दुओं पर काटता है, यह ग्लोब में दिखाया जाता है। जिस विन्दु पर यह विषुव से ऊपर उठ रहा है अर्थात् सूर्य विषुव वृत्त से उत्तर की तरफ जा रहा है, वह विन्दु कृत्तिका है। इस विन्दु से कैंची (कृत्तिका) की तरह २ शाखायें मिलती हैं। इस विन्दु पर सूर्य किरण विषुव रेखा पर लम्ब होती है। इसके विपरीत (१८० अंश दूर) दोनों वृत्तों की शाखायें मिलती हैं। वह विशाखा नक्षत्र है। कृत्तिका विन्दु से गोलीय त्रिभुज बनता है, अतः वहां से गणना होती है-मुखं वा एतत् नक्षत्राणां यत् कृत्तिकाः। एतद्वा अग्नेः नक्षत्रं यत् कृत्तिकाः। (तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/१/२/१, अग्नि = अग्रणी)। कृत्तिका प्रथमं। विशाखे उत्तमं। तानि देव नक्षत्राणि। यानि देवनक्षत्राणि तानि दक्षिणेन परियन्ति। अनुराधाः प्रथमम्। अपाभरणीरुत्तमम्। तानि यम नक्षत्राणि। यानि यम नक्षत्राणि तानि उत्तरेण (परियन्ति) (तैत्तिरीय ब्राह्मण, १/५/२/७) = कृत्तिका से आरम्भ कर प्रथम भाग में सूर्य विषुव के उत्तर रहेगा, दक्षिण से दूर गति। ये देव नक्षत्र हैं। विशाखा के बाद के नक्षत्र यम नक्षत्र हैं, उसमें सूर्य उत्तर से दूर जाता है। हम दीपावली का त्यौहार क्यों मनाते हैं? 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ इसका अधिकतर उत्तर मिलता है राम जी के वनवास से लौटने की ख़ुशी में सच है पर अधूरा। अगर ऐसा ही है तो फिर हम सब दीपावली पर भगवन राम की पूजा क्यों नहीं करते? लक्ष्मी जी और गणेश भगवन की क्यों करते हैं? सोच में पड़ गए न आप भी। इसका उत्तर आप तक पहुँचाने का प्रयत्न कर रहा हूँ अगर कोई त्रुटि रह जाये तो क्षमा कीजियेगा। 1. देवी लक्ष्मी जी का प्राकट्य: 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन समुन्दर मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थीं। 2. भगवन विष्णु द्वारा लक्ष्मी जी को बचाना: 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 भगवन विष्णु ने आज ही के दिन अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में देवी लक्ष्मी को राजा बालि से मुक्त करवाया था। 3. नरकासुर वध कृष्ण द्वारा: 〰〰〰〰〰〰〰〰 इस दिन भगवन कृष्ण ने राक्षसों के राजा नरकासुर का वध कर उसके चंगुल से 16000 औरतों को मुक्त करवाया था। इसी ख़ुशी में दीपावली का त्यौहार दो दिन तक मनाया गया। इसे विजय पर्व के नाम से भी जाना जाता है। 4. पांडवो की वापसी: 〰〰〰〰〰〰 महाभारत में लिखे अनुसार कार्तिक अमावस्या को पांडव अपना 12 साल का वनवास काट कर वापिस आये थे जो की उन्हें चौसर में कौरवों द्वारा हराये जाने के परिणाम स्वरूप मिला था। इस प्रकार उनके लौटने की खुशी में दीपावली मनाई गई। 5. राम जी की विजय पर 〰〰〰〰〰〰〰〰 रामायण के अनुसार ये चंद्रमा के कार्तिक मास की अमावस्या के नए दिन की शुरुआत थी जब भगवन राम माता सीता और लक्ष्मण जी अयोध्या वापिस लौटे थे रावण और उसकी लंका का दहन करके। अयोध्या के नागरिकों ने पूरे राज्य को इस प्रकार दीपमाला से प्रकाशित किया था जैसा आजतक कभी भी नहीं हुआ था। 6. विक्रमादित्य का राजतिलक: 〰〰〰〰〰〰〰〰〰 आज ही के दिन भारत के महान राजा विक्रमदित्य का राज्याभिषेक हुआ था। इसी कारण दीपावली अपने आप में एक ऐतिहासिक घटना भी है। 7. आर्य समाज के लिए प्रमुख दिन: 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 आज ही के दिन कार्तिक अमावस्या को एक महान व्यक्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने हिंदुत्व का अस्तित्व बनाये रखने के लिए आर्य समाज की स्थापना की थी। 8. जैन धर्म का एक महत्वपूर्ण दिन 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 महावीर तीर्थंकंर जी ने कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही मोक्ष प्राप्त किया था। 9.सिक्खों के लिए महत्त्व 〰〰〰〰〰〰〰 तीसरे सिक्ख गुरु अमरदास जी ने लाल पत्र दिवस के रूप में मनाया था जिसमें सभी श्रद्धालु गुरु से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे और 1577 में अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का शिलान्यास किया गया था। 1619 में सिक्ख गुरु हरगोबिन्द जी को ग्वालियर के किले में 52 राजाओ के साथ मुक्त किया गया था जिन्हें मुगल बादशाह जहांगीर ने नजरबन्द किया हुआ था। इसे सिक्ख समाज बंदी छोड़ दिवस के रूप में भी जानते हैं। 10. द पोप का दीपावली पर भाषण 〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰〰 1999 में पॉप जॉन पॉल 2 ने भारत में एक खास भाषण दिया था जिसमे चर्च को दीपावली के दीयों से सजाया गया था। पॉप के माथे पर तिलक लगाया गया था और उन्होंने दीपावली के संदर्भ में रोंगटे खड़े कर देने वाली बातें बताई। भगवान् गणेश सभी देवो में प्रथम पूजनीय हैं इसी कारण उनकी देवी लक्ष्मी जी के साथ दीपावली पर पूजा होती है और बाकी सभी कारणों के लिए हम दीपमाला लगाकर दीपावली का त्यौहार मनाते हैं। अब आपसे एक विनम्र निवेदन की इस जानकारी को अपने परिवार अपने बच्चों से जरूर साँझा करे । ताकि उन्हें दीपावली के महत्त्व की पूरी जानकारी प्राप्त हो सके।

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