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विवाह

प्रश्न - स्त्री और पुरुष का बहु विवाह होना योग्य है वा नहीं? उत्तर - युगपत् न अर्थात् एक समय में नहीं। प्रश्न - क्या समयान्तर में अनेक विवाह होने चाहिये? उत्तर - हां जैसे - या स्त्री त्वक्षतयोनिः स्याद् गतप्रत्यागतापि वा। पौनर्भवेन भर्त्रा सा पुनः संस्कारमर्हति।।मनु०।। जिस स्त्री वा पुरुष का पाणिग्रहणमात्र संस्कार हुआ हो और संयोग न हुआ हो अर्थात् अक्षतयोनि स्त्री और अक्षतवीर्य पुरुष हो, उनका अन्य स्त्री वा पुरुष के साथ पुनर्विवाह होना चाहिये। किन्तु ब्राह्मण क्षत्रिय और वैश्य वर्णोंमें क्षतयोनि स्त्री क्षतवीर्य पुरुष का पुनर्विवाह न होना चाहिये। प्रश्न - पुनर्विवाह में क्या दोष है? उत्तर - (पहला) स्त्री पुरुष में प्रेम न्यून होना क्योंकि जब चाहे तब पुरुष को स्त्री और स्त्री को पुरुष छोड़कर दूसरे के साथ सम्बन्ध कर ले। (दूसरा) जब स्त्री वा पुरुष पति स्त्री मरनेके पश्चात् दूसरा विवाह करना चाहें तब प्रथम स्त्री के वा पूर्व पति के पदार्थोंको उड़ा ले जाना और उनके कुटुम्ब वालोंका उनसे झगड़ा करना (तीसरा) बहुत-से भद्रकुल का नाम वा चिह्न भी न रह कर उसके पदार्थ छिन्न-भिन्न हो जाना (चौथा) पतिव्रत और स्त्रीव्रत धर्म नष्ट होना इत्यादि दोषों के अर्थ द्विजों में पुनर्विवाह वा अनेक विवाह कभी न होने चाहिये। प्रश्न - जब वंशच्छेदन हो जाय तब भी उसका कुल नष्ट हो जायगा और स्त्री पुरुष व्यभिचारादि कर्म करके गर्भपातनादि बहुत दुष्ट कर्म करेंगे इसलिये पुनर्विवाह होना अच्छा है। उत्तर - नहीं-नहीं क्योंकि जो स्त्री पुरुष ब्रह्मचर्य में स्थिर रहना चाहें तो कोई भी उपद्रव न होगा और जो कुलकी परम्परा रखनेके लिये किसी अपने स्वजाति का लड़का गोद ले लेंगे उससे कुल चलेगा और व्यभिचार भी न होगा और जो ब्रह्मचर्य न रख सकें तो नियोग करके सन्तानोत्पत्ति कर लें। प्रश्न - पुनर्विवाह और नियोग में क्या भेद है? उत्तर - (पहला) जैसे विवाह करनेमें कन्या अपने पिता का घर छोड़ पतिके घरको प्राप्त होती है और पिता से विशेष सम्बन्ध नहीं रहता और विधवा स्त्री उसी विवाहित पतिके घरमें रहती है। (दूसरा) उसी विवाहिता स्त्रीके लड़के उसी विवाहिता पतिके दायभागी होते हैं और विधवा स्त्रीके लड़के वीर्यदाता के न पुत्र कहलाते न उसका गोत्र होता और न उसका स्वत्व उन लड़कों पर रहता किन्तु मृतपतिके पुत्र बजते, उसीका गोत्र रहता और उसीके पदार्थोंके दायभागी होकर उसी घरमें रहते हैं। (तीसरा) विवाहित स्त्री-पुरुष को परस्पर सेवा और पालन करना अवश्य है। और नियुक्त स्त्री-पुरुषका कुछ भी सम्बन्ध नहीं रहता। (चौथा) विवाहित स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध मरणपर्यन्त रहता और नियुक्त स्त्री-पुरुषका कार्य के पश्चात् छूट जाता है। (पांचवां) विवाहित स्त्री-पुरुष आपस में गृहके कार्यों की सिद्धि करनेमें यत्न किया करते और नियुक्त स्त्री-पुरुष अपने-अपने घरके काम किया करते हैं।

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