वैदिक संस्कृति के अनुसार सोलह संस्कारों को जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण संस्कार माने जाते हैं। विवाह संस्कार उन्हीं में से एक है जिसके बिना मानव जीवन पूर्ण नहीं हो सकता। हिंदू धर्म में विवाह संस्कार को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है।
शाब्दिक अर्थ
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विवाह = वि + वाह, अत: इसका शाब्दिक अर्थ है - विशेष रूप से (उत्तरदायित्व का) वहन करना। पाणिग्रहण संस्कार को सामान्य रूप से हिंदू विवाह के नाम से जाना जाता है। अन्य धर्मों में विवाह पति और पत्नी के बीच एक प्रकार का करार होता है जिसे कि विशेष परिस्थितियों में तोड़ा भी जा सकता है, परंतु हिंदू विवाह पति और पत्नी के बीच जन्म-जन्मांतरों का सम्बंध होता है जिसे किसी भी परिस्थिति में नहीं तोड़ा जा सकता। अग्नि के सात फेरे लेकर और ध्रुव तारा को साक्षी मान कर दो तन, मन तथा आत्मा एक पवित्र बंधन में बंध जाते हैं। हिंदू विवाह में पति और पत्नी के बीच शारीरिक संम्बंध से अधिक आत्मिक संम्बंध होता है और इस संम्बंध को अत्यंत पवित्र माना गया है।
सप्तम स्थान पर पडने वाला शुभ व अशुभ प्रभाव का मिला जुला रूप एक से अधिक शादी के योग बनाता है। बहु विवाह के योग कैसे बनते है और ग्रहों की वह कौन सी स्थिति है जिसके द्वारा यह जाना जाये की दो शादी क्यों होती है आइये जाने-
दूसरे विवाह का बन सकता है योग
– सप्तम स्थान पर यदि दो पापी ग्रहों का प्रभाव हो तथा सप्तमेष की दृष्टी सप्तम स्थान पर पड रही हो तो व्यक्ति का एक विवाह टूटने के बाद दूसरे विवाह का योग बनता है। इस योग में जहां सप्तम स्थान पर अशुभ ग्रह विवाह से दूर रखते है वहीं सप्तमेश का सप्तम स्थान पर प्रभाव विवाह का सुख बना देता है।
विवाह से पहले जरूर करें मैंच मेकिंग
प्रथम विवाह में आ सकती है दिक्कत
– सप्तमेष यदि दूसरे, छठें या बारहवें स्थान पर स्थित हो तथा सप्तम स्थान पर कोई पापी ग्रह बुरा प्रभाव बना रहा हो तो प्रथम विवाह में दिक्कत आती है। सप्तम स्थान पर अशुभ ग्रह का प्रभाव विवाह के सुखों से हीन करता है। जब सप्तमेष दूसरे स्थान पर होतो यह स्थान सप्तम से आठवां स्थान होता है, बारहवां स्थान कोर्ट कचहरी, और छठां स्थान रोग, अलगाव का स्थान
सप्तमेश वक्री ग्रह
– सप्तम स्थान पर राहु या केतु हो तथा सप्तमेश वक्री ग्रह के साथ स्थित तो दो विवाह के योग बनते है। राहु तथा केतु दोषकारी ग्रह है। इनका सम्बंध चलाकी, धोखा, भ्रम, तथा अनूचित कर्मो से है। इसके अतिरिकत सप्तमेष का वक्री ग्रहों के साथ बैठने का मतलब है एक से अधिक सम्बंध यही स्थिति कभी दंड की तरह कभी पुरुस्कार के रूप में व्यक्ति को प्राप्त होती है।
गुरु अनिष्टकारी स्थिति
– गुरु अनिष्टकारी स्थिति में होकर सप्तम स्थान तथा सप्तमेष को प्रभावित करता हो। गुरु सर्वाधिक शुभ ग्रह है यदि गुरु 6,8,12 का मालिक होकर प्रभाव देगा तो नियम के अनुसार वह अशुभ प्रभाव देगा लेकिन गुरु दुबारा विवाह के रास्ते भी बनाता है। यह पत्रिका कांगेस नेता दिग्विजय सिंह जी की है। अष्टमेष गुरु केतु के साथ सप्तम स्थान पर स्थित है तथा सप्तमेश मंगल सूर्य के प्रभाव में अस्त अवस्थागत है। इनके विवाह के बारें में आपने अवश्य सुना होगा।
राशि परिवर्तन
– सप्तम स्थान के मालिक तथा बारहवें स्थान के मालिक का राशि परिवर्तन दो विवाह करवाता है।
विवाह मुहूर्त 24
*अप्रैल 2024*
*मुहूर्त का समय*
18 अप्रैल, गुरुवारमध्यरात्रि 12 बजकर 44 मिनट से 19 अप्रैल की सुबह 05 बजकर 51 मिनट तक
19 अप्रैल, शुक्रवारसुबह 05 बजकर 51 मिनट से सुबह 06 बजकर 46 मिनट तक
20 अप्रैल, शनिवारदोपहर 02 बजकर 04 मिनट से 21 अप्रैल की मध्य रात्रि 02 बजकर 48 मिनट तक
21 अप्रैल, रविवारमध्य रात्रि 03 बजकर 45 मिनट से 22 अप्रैल की सुबह 05 बजकर 48 मिनट तक
22 अप्रैल, सोमवारसुबह 05 बजकर 48 मिनट से रात 08 बजे तक
*जुलाई 2024*
*मुहूर्त का समय*
9 जुलाई, मंगलवारदोपहर 02 बजकर 28 मिनट से शाम 06 बजकर 56 मिनट तक
11 जुलाई, गुरुवारदोपहर 01 बजकर 04 मिनट से 12 जुलाई की शाम 04 बजकर 09 मिनट तक
12 जुलाई, शुक्रवारसुबह 05 बजकर 15 मिनट से 13 जुलाई की सुबह 05 बजकर 32 मिनट तक
13 जुलाई, शनिवारसुबह 05 बजकर 32 मिनट से दोपहर 03 बजकर 05 मिनट तक
14 जुलाई, रविवाररात ** बजकर 06 मिनट से 15 जुलाई की सुबह 05 बजकर 33 मिनट तक
15 जुलाई, सोमवारसुबह 05 बजकर 33 मिनट से 16 जुलाई की मध्यरात्रि 12 बजकर 30 मिनट तक
*नवंबर 2024*
*मुहूर्त का समय*
12 नवंबर, मंगलवारशाम 04 बजकर 04 मिनट से शाम 07 बजकर 10 मिनट तक
13 नवंबर, बुधवारदोपहर 03 बजकर 26 मिनट से रात 09 बजकर 48 मिनट तक
16 नवंबर, शनिवाररात 11 बजकर 48 मिनट से 17 नवंबर की सुबह 06 बजकर 45 मिनट तक
17 नवंबर, रविवारसुबह 06 बजकर 45 मिनट से 18 नवंबर की सुबह 06 बजकर 46 मिनट तक
18 नवंबर, सोमवारसुबह 06 बजकर 46 मिनट से सुबह 07 बजकर 56 मिनट तक
22 नवंबर, शुक्रवाररात 11 बजकर 44 मिनट से 23 नवंबर की सुबह 06 बजकर 50 मिनट तक
23 नवंबर, शनिवारसुबह 06 बजकर 50 मिनट से रात 11 बजकर 42 मिनट तक
25 नवंबर, सोमवारमध्यरात्रि 01 बजकर 01 मिनट से 26 नवंबर की सुबह 06 बजकर 53 मिनट तक
26 नवंबर, मंगलवारसुबह 06 बजकर 53 मिनट से 27 नवंबर की सुबह 04 बजकर 35 मिनट तक
28 नवंबर, गुरुवारसुबह 07 बजकर 36 मिनट से 26 नवंबर की सुबह 06 बजकर 55 मिनट तक
29 नवंबर शुक्रवारसुबह 06 बजकर 55 मिनट से सुबह 08 बजकर 39 मिनट तक
*दिसंबर 2024*
*मुहूर्त का समय*
4 दिसंबर, बुधवारशाम 05 बजकर 15 मिनट से 5 दिसंबर की मध्यरात्रि 01 बजकर 02 मिनट तक
5 दिसंबर, गुरुवारमध्यरात्रि 12 बजकर 49 मिनट से शाम 05 बजकर 26 मिनट तक
9 दिसंबर, सोमवारदोपहर 02 बजकर 56 मिनट से 10 दिसंबर की मध्यरात्रि 01 बजकर 06 मिनट तक
10 दिसंबर, मंगलवार रात 10 बजकर 03 मिनट से 11 दिसंबर की सुबह 06 बजकर 13 मिनट तक
14 दिसंबर, शनिवारसुबह 07 बजकर 06 मिनट से शाम 04 बजकर 58 मिनट तक
15 दिसंबर, रविवारमध्यरात्रि 03 बजकर 42 मिनट से सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक