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वैशाखमासमें भगवान्‌की प्रार्थनाका मन्त्र इस प्रकार है- मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रातः स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव ।। ‘हे मधुसूदन ! हे देवेश्वर माधव ! मैं मेषराशिमें सूर्यके स्थित होनेपर वैशाखमासमें प्रातः स्नान करूँगा

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वैशाखमासमें भगवान्‌की प्रार्थनाका मन्त्र इस प्रकार है- मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ। प्रातः स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव ।। ‘हे मधुसूदन ! हे देवेश्वर माधव ! मैं मेषराशिमें सूर्यके स्थित होनेपर वैशाखमासमें प्रातः स्नान करूँगा

सूर्यके मेषराशिपर स्थित रहते हुए वैशाख-मासमें प्रातः स्नानके नियममें संलग्न होकर मैं आपको अर्घ्य देता हूँ। मधुसूदन! इसे ग्रहण कीजिये।' इस प्रकार अर्घ्य समर्पण करके स्नान करे। फिर वस्त्रोंको पहनकर सन्ध्या-तर्पण आदि सब कर्मोंको पूरा करके वैशाखमासमें विकसित होनेवाले पुष्पोंसे भगवान् विष्णुकी पूजा करे। उसके बाद वैशाखमासके माहात्म्यको सूचित करनेवाली भगवान् विष्णुकी कथा सुने। ऐसा करनेसे कोटि जन्मोंके पापोंसे मुक्त होकर मनुष्य मोक्षको प्राप्त होता है। यह शरीर अपने अधीन है, जल भी अपने अधीन ही है, साथ ही अपनी जिह्वा भी अपने वशमें है। अतः इस स्वाधीन शरीरसे स्वाधीन जलमें स्नान करके स्वाधीन जिह्वासे 'हरि' इन दो अक्षरोंका उच्चारण करे। जो वैशाखमासमें तुलसीदलसे भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह विष्णुकी सायुज्य मुक्तिको पाता है। अतः अनेक प्रकारके भक्तिमार्गसे तथा भाँति-भाँतिके व्रतोंद्वारा भगवान् विष्णुकी सेवा तथा उनके सगुण या निर्गुण स्वरूपका अनन्य चित्तसे ध्यान करना चाहिये।

〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ वैशाख मास में विविध वस्तुओं के दान का महत्त्व तथा वैशाख स्नान के नियम... वैशाखमें तेल लगाना, दिनमें सोना, कांस्यके पात्रमें भोजन करना, खाटपर सोना, घरमें नहाना, निषिद्ध पदार्थ खाना, दुबारा भोजन करना तथा रातमें खाना- ये आठ बातें त्याग देनी चाहिये। जो वैशाखमें व्रतका पालन करनेवाला पुरुष पद्म-पत्तेमें भोजन करता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो विष्णुलोकमें जाता है। जो विष्णुभक्त पुरुष वैशाखमासमें नदी स्नान करता है, वह तीन जन्मोंके पापसे निश्चय ही मुक्त हो जाता है। जो प्रातःकाल सूर्योदयके समय किसी समुद्रगामिनी नदीमें वैशाख-स्नान करता है, वह सात जन्मोंके पापसे तत्काल छूट जाता है। जो मनुष्य सात गंगाओंमेंसे किसीमें ऊषः कालमें स्नान करता है, वह करोड़ों जन्मोंमें उपार्जित किये हुए पापसे निस्सन्देह मुक्त हो जाता है। जाह्नवी (गंगा), वृद्ध गंगा (गोदावरी), कालिन्दी (यमुना), सरस्वती, कावेरी, नर्मदा और वेणी- ये सात गंगाएँ कही गयी हैं। वैशाखमास आनेपर जो प्रातः काल बावलियोंमें स्नान करता है, उसके महापातकोंका नाश हो जाता है। कन्द, मूल, फल, शाक, नमक, गुड़, बेर, पत्र, जल और तक्र जो भी वैशाखमें दिया जाय, वह सब अक्षय होता है। ब्रह्मा आदि देवता भी बिना दिये हुए कोई वस्तु नहीं पाते। जो दानसे हीन है, वह निर्धन होता है। अतः सुखकी इच्छा रखनेवाले पुरुषको वैशाखमासमें अवश्य दान करना चाहिये। सूर्यदेवके मेषराशिमें स्थित होनेपर भगवान् विष्णुके उद्देश्यसे अवश्य प्रातः काल स्नान करके भगवान् विष्णुकी पूजा करनी चाहिये। कोई महीरथ नामक एक राजा था, जो कामनाओंमें आसक्त और अजितेन्द्रिय था। वह केवल वैशाख-स्नानके सुयोगसे स्वतः वैकुण्ठधामको चला गया। वैशाखमासके देवता भगवान् मधुसूदन हैं। अतएव वह सफल मास है। वैशाखमासमें भगवान्‌की प्रार्थनाका मन्त्र इस प्रकार है-

मधुसूदन देवेश वैशाखे मेषगे रवौ।

प्रातः स्नानं करिष्यामि निर्विघ्नं कुरु माधव ।। 'हे मधुसूदन ! हे देवेश्वर माधव ! मैं मेषराशिमें सूर्यके स्थित होनेपर वैशाखमासमें प्रातः स्नान करूँगा, आप इसे निर्विघ्न पूर्ण कीजिये।'

तत्पश्चात् निम्नांकित मन्त्रसे अर्घ्य प्रदान करे

वैशाखे मेषगे भानी प्रातः स्नानपरायणः । अर्घ्य तेऽहं प्रदास्यामि गृहाण मधुसूदन ।

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