पंचांग के अनुसार वैशाख पूर्णिमा की तिथि 4 मई को मध्यरात्रि 11 बजकर 44 मिनट पर ही लग जाएगी
और उसका समापन 5 मई को रात में 11 बजकर 30 मिनट पर होगा। इस प्रकार से उदया तिथि की मान्यता के अनुसार
वैशाख पूर्णिमा 5 मई 2023 को मनाई जाएगी। इस दिन बौद्ध धर्म से जुड़े लोग अपने धार्मिक स्थलों पर विशेष आयोजन करते हैं।
वैशाख पूर्णिमा का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही खास माना जाता है। इस दिन
भगवान विष्णु के नवें अवतार महात्मा बुद्ध प्रकए हुए थे। इसलिए इसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं।
वैशाख पूर्णिमा के दिन घर पर सत्यनारायण भगवान की कथा करवाने से सुख शांति स्थापित होती है और घर से हर प्रकार की बुरी शक्तियां समाप्त होती हैं।
वैशाख पूर्णिमा का शास्त्रों में बहुत ही खास महत्व बताया गया है। इस दिन दान-पुण्य और धार्मिक कार्य
करने का विशेष महत्व माना जाता है। वैशाख पूर्णिमा 5 मई 2023, शुक्रवार को पड़ रही है। मान्यता है कि वैशाख पूर्णिमा पर ही भगवान विष्णु के 9वें अवतार माने जाने वाले महात्मा
बुद्द्ध अवतार
बुद्ध अवतार-बौद्ध इतिहासकारों ने बुद्ध की महानता दिखाने के लिये कई बुद्धों को एक साथ मिला दिया है। सबसे प्रमुख बुद्ध इक्ष्वाकु वंश के कलि में २४में राजा शुद्धोदन के पुत्र थे जिनका जन्म का नाम सिद्धार्थ था। ज्ञान प्राप्ति के बाद ये बुद्ध हुये। पूरी जीवनी में यह कहीं नहीं लिखा है कि वे बीच में गौतम कब हुये। वस्तुतः गौतम बुद्ध उनके प्रायः १३०० वर्ष बाद हुये। बौद्ध ग्रन्थों (स्तूप = थूप वंश) में २८ बुद्धों की सूची दी है। बुद्धवंश में २८ बुद्धों की सूची के बाद सिद्धार्थ बुद्ध की प्रशंसा की है कि उन्होंने अपने उपदेश लिखित रूप में रखे अतः वे सुरक्षित रहे-
अतीत बुद्धानं जिनानं देसितं। निकीलितं बुद्ध परम्परागतं। पुब्बे निवासा निगताय बुद्धिया। पकासमी लोकहितं सदेवके॥
अन्य ४ बुद्ध थे-विपश्यि, शिखि, विश्वभू, तिष्य-जिनकी शिक्षा लिखित उपदेश के अभाव में नष्ट हो गयी। अश्वघोष के बुद्ध चरित (२३/४३,४४) में भी कई बुद्धों का उल्लेख है। यह पुस्तक पिछले १०० वर्षों से अधिकांश विश्वविद्यालयों की पाठ्य पुस्तक है, तथापि अंग्रेजी आज्ञा-पालन के कारण केवल सिद्धार्थ को बुद्ध मानते हैं-
अन्ये ये चापि सम्बुद्धा लोकं विद्योत्यधीत्विषा। दीप इव गतस्नेह निर्वाणं समुपागताः॥
भविष्यन्ति च ये बुद्धा भविष्यन्ति तपस्विनः। ज्वलित्वाऽन्तं प्रयास्यन्ति दग्धेन्धन कृशानुवत्॥
चीनी यात्री फा-हियान ने ४ बुद्धों के जन्म स्थान का वर्णन किया है
सामान्यतः ४८३ ईसा पूर्व में जिस बुद्ध का निर्वाण कहा जाता है, वह यही बुद्ध हैं जिनका काल कलि की २७ वीं शताब्दी (५०० ईसा पूर्व से आरम्भ) है। इन्होंने गौतम के न्याय दर्शन के तर्क द्वारा अन्य मतों का खण्डन किया तथा वैदिक मार्ग के उन्मूलन के लिये तीर्थों में यन्त्र स्थापित किये। गौतम मार्ग के कारण इनको गौतम बुद्ध कहा गया, जो इनका मूल नाम भी हो सकता है। स्वयं सिद्धार्थ बुद्ध ने कहा था कि उनका मार्ग १००० वर्षों तक चलेगा पर मठों में स्त्रियों के प्रवेश के बाद कहा कि यह ५०० वर्षों तक ही चलेगा। आज की धार्मिक संस्थाओं में भ्रष्टाचार उनकी दृष्टि में था। गौतम बुद्ध के काल में मुख्य धारा से द्वेष के कारण तथा सिद्धार्थ द्वारा दृष्ट दुराचारों के कारण इसका प्रचार शंकराचार्य (५०९-४७६ ईसा पूर्व) में कम हो गया। चीन में भी इसी काल में कन्फ्युशस तथा लाओत्से ने सुधार किये।
भविष्य पुराण, प्रतिसर्ग पर्व ३, अध्याय २१-
सप्तविंशच्छते भूमौ कलौ सम्वत्सरे गते॥२१॥ शाक्यसिंह गुरुर्गेयो बहु माया प्रवर्तकः॥३॥
स नाम्ना गौतमाचार्यो दैत्य पक्षविवर्धकः। सर्वतीर्थेषु तेनैव यन्त्राणि स्थापितानि वै॥ ३१॥
(ग) विष्णु अवतार बुद्ध- यह २००० कलि के कुछ बाद मगध (कीकट) में अजिन ब्राह्मण के पुत्र रूप में उत्पन्न हुये। दैत्यों का विनाश इन्होंने ही किया, सिद्धार्थ तथा गौतम मुख्यतः वेद मार्ग के विनाश में तत्पर थे। इसका मुख्य कारण था प्रायः ८०० ईसा पूर्व में असीरिया में असुर बनिपाल के नेतृत्व में असुर शक्ति का उदय। उसके प्रतिकार के लिये आबू पर्वत पर यज्ञ कर ४ शक्तिशाली राजाओं का संघ बना। ये राजा देश-रक्षा में अग्रणी या अग्री होने के कारण अग्निवंशी कहे गये-प्रमर (परमार-सामवेदी ब्राह्मण), प्रतिहार (परिहार), चाहमान (चौहान), चालुक्य (शुक्ल यजुर्वेदी, सोलंकी, सालुंखे)। इस संघ के नेता होने के कारण ब्राह्मण इन्द्राणीगुप्त को सम्मान के लिये शूद्रक (४ वर्णों या राजाओं का समन्वय) कहा गया तथा इस समय आरम्भ मालव-गण-सम्वत् (७५६ ईसा पूर्व) को कृत-सम्वत् कहा गया। ६१२ ईसा पूर्व में इस संघ के चाहमान ने असीरिया की राजधानी निनेवे को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया, जिसका उल्लेख बाइबिल में कई स्थानों पर है।
पूजन सत्यनारायण
वैशाख पूर्णिमा के दिन इस बार भद्रा भी लग रही है।
जो कि शाम को 5 बजकर 01 मिनट से लगेगी और
रात को 11 बजकर 27 मिनट तक रहेगी। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि कुछ ज्योतिषीय कारणों इस बार भद्रा अप्रभावी होगी।
चंद्रमा को अर्घ्य देने का समय: शाम को पौने सात बजे
लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त: 5 मई को रात में 11 बजकर 56 मिनट से 6 मई को 12 बजकर 39 मिनट तक
कूर्म अवतार-
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इन्द्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया। इन्द्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा। तब इन्द्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए।
समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके। तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए। भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ।
पीपल के पेड़ /पीपल के पत्तों का उपाय
आर्थिक तंगी दूर करने के लिए पीपल के पत्तों का उपाय
सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। यह उपाय पीपल के पत्तों से कि इसके बाद नित्य
कर्मों से निवृत्त होकर किसी पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें पत्ते पूरे
होने चाहिए, कहीं से टूटे या खंडित नहीं होने चाहिए। इन 11 पत्तों पर स्वच्छ जल
में कुमकुम या अष्टगंध या चंदन मिलाकर इससे पूरे पत्ते पर आगे पीछे सभी तरफ अधिक से अधिक संख्या में श्रीराम का नाम लिखें।
जब सभी पत्तों पर श्रीराम नाम लिख लें, उसके बाद राम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं।
इस माला को किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाकर वहां बजरंगबली को अर्पित करें
। इस प्रकार यह उपाय करते रहें। कुछ समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।

ध्यान रखें उपाय करने वाला भक्त किसी भी प्रकार के अधार्मिक कार्य न करें। अन्यथा इस उपाय का प्रभाव निष्फल हो जाएगा। उचित लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। साथ ही अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहें।
मनोकामनाएं पूर्ण करने पूर्णिमा की रात को चौमुखा दीपक लगाएं। यह एक बहुत ही छोटा लेकिन चमत्कारी उपाय है। ऐसा नियमित रूप से करने पर आपके घर-परिवार की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
किसी पीपल पेड़ को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें। इसके बाद पीपल के नीचे बैठकर मेडिटेशन करें।
बुध पूर्णिमा पर पीपल के पेड़ कर पूजा करने का खास महत्व माना गया है।
महात्मा बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे हुई थी। बोधि वृक्ष पीपल का पेड़ है।
इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा करना बहुत ही शुभ फलदायी है।
जल में शक्कर या गुड़ मिलाकर पीपल की जड़ को सींचें और दीप जलाएं।
