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शशिसूर्यनेत्रम्।

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शशिसूर्यनेत्रम्।

🔮     पावनपर्व मकर संक्रांति         की हार्दिक शुभकामनाएं ! प्रतिमास भगवान् भुवनभास्कर सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में गमन करते हैं। इसे संक्रान्ति या संक्रमण कहते हैं। धनुराशि से मकर राशि में संक्रमण को मकर संक्रान्ति कहते हैं। हम प्रतिवर्ष प्रसन्तापूर्वक मकर संक्रान्ति पर्व का यथाशक्ति समायोजन कर रहे हैं, किन्तु हमारी विचारधारा के क्षेत्र में कोई संक्रमण नहीं हो रहा है। उन त्योहार, पर्व या उत्सवों को मनाने का महत्व अधिक है जिनकी उत्पत्ति स्थानीय परम्परा, व्यक्ति विशेष या संस्कृति से न होकर जिनका उल्लेख वैदिक धर्मग्रंथ, धर्मसूत्र और आचार संहिता में मिलता है। ऐसे कुछ पर्व हैं और इनके मनाने के अपने नियम भी हैं। इन पर्वों में सूर्य-चंद्र की संक्रांतियों और कुम्भ का अधिक महत्व है। सूर्य संक्रांति में मकर सक्रांति का महत्व ही अधिक माना गया है। माघ माह में कृष्ण पंचमी को मकर सक्रांति देश के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग सांस्कृतिक रूपों में मनाई जाती है। प्रस्तुत है मकर संक्रांति के दिन किये जाने वाले खास कार्य- मकर संक्रांति में 'मकर' शब्द मकर राशि को इंगित करता है जबकि 'संक्रांति' का अर्थ संक्रमण अर्थात प्रवेश करना है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़कर दूसरे में प्रवेश करने की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते हैं। चूंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को 'मकर संक्रांति' कहा जाता है। हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। चन्द्र के आधार पर माह के २ भाग हैं- कृष्ण और शुक्ल पक्ष। इसी तरह सूर्य के आधार पर वर्ष के २ भाग हैं- उत्तरायण और दक्षिणायण। इस दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण अर्थात उस समय से धरती का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है, तो उत्तर ही से सूर्य निकलने लगता है। इसे सोम्यायन भी कहते हैं। ६ माह सूर्य उत्तरायण रहता है और ६ माह दक्षिणायण। अत: यह पर्व 'उत्तरायण' के नाम से भी जाना जाता है। मकर संक्रांति से लेकर कर्क संक्रांति के बीच के ६ मास के समयांतराल को उत्तरायण कहते हैं। इस पर्व का भौगोलिक विवरण- पृथ्वी साढ़े २३ डिग्री अक्ष पर झुकी हुई सूर्य की परिक्रमा करती है तब वर्ष में ४ स्थितियां ऐसी होती हैं, जब सूर्य की सीधी किरणें २१ मार्च और २३ सितंबर को विषुवत रेखा, २१ जून को कर्क रेखा और २२ दिसंबर को मकर रेखा पर पड़ती है। वास्तव में चन्द्रमा के पथ को २७ नक्षत्रों में बांटा गया है जबकि सूर्य के पथ को १२ राशियों में बांटा गया है। भारतीय ज्योतिष में इन ४ स्थितियों को १२ संक्रांतियों में बांटा गया है जिसमें से ४ संक्रांतियां महत्वपूर्ण होती हैं- मेष, तुला, कर्क और मकर संक्रांति। इस दिन से वसंत ऋतु की भी शुरुआत होती है और यह पर्व संपूर्ण अखंड भारत में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती हैं और खेतों में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं। खेत में सरसों के फूल मनमोहक लगते हैं।   मकर संक्रांति का सांस्कृतिक महत्व- मकर संक्रांति के इस पर्व को भारत के अलग-अलग राज्यों में वहां के स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी, खिचड़ी पर्व, पतंगोत्सव आदि कहा जाता है। मध्यभारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायन, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है। सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारियां जल्दी लगती हैं इसलिए इस दिन गुड़ और तिल से बने मिष्ठान्न या पकवान बनाए, खाए और बांटे जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्वों के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। उत्तर भारत में इस दिन खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। गुड़-तिल, रेवड़ी, गजक का प्रसाद बांटा जाता है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्यागकर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगासागर में मेला भी लगता है। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं। इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। यह पर्व 'पतंग महोत्सव' के नाम से भी जाना जाता है। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना। यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्द्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है। अत: उत्सव के साथ ही सेहत का भी लाभ मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के ६ मास के शुभ काल में जब सूर्यदेव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है, तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग ब्रह्म को प्राप्त होते हैं। यही कारण था कि भीष्म पितामह ने शरीर तब तक नहीं त्यागा था, जब तक कि सूर्य उत्तरायण नहीं हो गया। ऐतिहासिक तथ्‍य- हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति से देवताओं का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। भगवान् सूर्य परमात्मा के ही प्रत्यक्ष स्वरूप है। ये आरोग्य के अधिष्ठातृ देवता है। मत्स्यपुराण (67971) का वचन है कि 'आरोग्यं भास्करादिच्छेत्' अर्थात् आरोग्य की कामना भगवान सूर्य से करनी चाहिए, क्योंकि इनकी उपासना करने से मनुष्य नीरोग रहता है। वेद के कथनानुसार परमात्मा की आँखों से सूर्य की उत्पत्ति मानी जाती है-चक्षोः सूर्योऽजायत । श्रीमद्भगवतगीता के कथनानुसार ये भगवान् की आँखें है-शशिसूर्यनेत्रम्। (11/16) श्रीरामचरित मानस में भी कहा है-नयन दिवाकर कच घन माला (6/15/3) आँखों के सम्पूर्ण रोग सूर्य की उपासना से ठीक हो जाते हैं। भगवान सूर्य में जो प्रभा है, वह परमात्मा की ही प्रभा है वह परमात्मा की ही विभूति है प्रभास्मि शशिसूर्ययोः (गीता 718) यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ।। (गीता 15/12) भगवान् कहते हैं- 'जो सूर्यगत तेज समस्त जगत् को प्रकाशित करता है तथा चन्द्रमा एवं अग्नि में है, उस तेज को तू मेरा ही तेज जान इससे सिद्ध होता है कि परमात्मा और सूर्य- ये दोनों अभिन्न हैं। सूर्य की उपासना करने वाला परमात्मा की ही उपासना करता है। अतः नियमपूर्वक सूर्योपासना करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। ऐसा करने से जीवन में अनेक लाभ होते हैं। आयु, विद्या, बुद्धि, बल, तेज और मुक्ति तक की प्राप्ति सुलभ हो जाती है। इसमें संदेह नहीं करना चाहिए। मकर संक्रांति का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व "भास्करस्य यथा तेजो मकरस्थस्य वर्धते। तथैव भवतां तेजो. वर्धतामिति कामये।। मकर संक्रांतौ महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥" अर्थात जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान करता है, वह अपनी मृत्यु पश्चात जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है। "रसो वै सः'’ भारतीय तत्व वेत्ताओं ने जीवन को इसी रूप में परिभाषित किया है, रस यानि आनन्द-उल्लास, उमंग -उछाह। ये अवसर जीवन में बार-बार आएं, अनवरत आएं और सदा-सदा के लिए बने रहें, इसीलिए देव संस्कृति में पर्वों का सृजन किया गया। निर्मल आनन्द के पर्याय ये सभी पर्व लोक-जीवन को देव-जीवन की ओर उन्मुख करते हैं। इनमें भी मकर-संक्रान्ति के साथ ये अनुभूतियां कुछ अधिक ही गहराई के साथ जुड़ी हैं, यह जन-आस्था तथा लोकरुचि का पर्व है। इसे समूची सृष्टि में जीवन अनुप्राणित करने वाले भगवान सूर्य की उपासना का पर्व भी कहते हैं, इस अवसर पर उमड़ने वाले सात्विक भाव देश की सांस्कृतिक चेतना को पुष्ट करते हैं। लोक संस्कृति पर्व-मकर संक्रान्ति सम्पूर्ण भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सूर्य के उत्तर से दक्षिण की ओर बढ़ते जाने की अवधि को दक्षिणायन तथा दक्षिण से उत्तर की ओर के यात्रा काल को उत्तरायण कहते हैं। पृथ्वी की परिक्रमा करते समय सूर्य जिस राशि में दिखाई देता है, वही सूर्य की राशि कही जाती है, संक्रांति बारह राशियों में सूर्य का संक्रमण है---- "रवेः संक्रमण राषौ संक्रान्तिरिति कथ्यते।" मकर संक्रान्ति नवम धनु राशि से दशम मकर राशि में संक्रमण है। चन्द्रमास साढ़े उन्तीस दिन का एवं चन्द्रवर्ष 354 दिन का होता है, परन्तु सौर-दिन 30 दिन का एवं सौर वर्ष 365 दिन 6 घण्टे का होता है, चन्द्रवर्ष निश्चित नहीं होता है, उसमें परिवर्तन आता रहता है, इसी परिवर्तन के कारण चार वर्षों में फरवरी उन्तीस दिन की होती है। सूर्य का संक्रमण एक निश्चित अवधि एवं समय में सम्पन्न होता हैहै, इसी कारण मकर-संक्रान्ति प्रायः हर वर्ष 14 जनवरी को ही आती है, संक्रमण पर्व मकर संक्रान्ति का मकर शब्द का भी विशेष महत्व माना जाता है,इस महत्व को अलग-अलग भाषाओं के विद्वानो ने अपने-अपने ढंग से प्रतिपादित किया है----- हरीति ऋषि के अनुसार,मकर मत्स्य वर्ग के जल-जन्तुओं में सर्वश्रेष्ठ है--- "मत्स्यानां मकरः श्रेष्ठो।" इसीलिए यह गंगा का वाहन है,प्रायः सभी शास्त्रकारों ने गंगा को मकर वाहिनी माना है। कामदेव की पताका का प्रतीक मकर है,अतएव कामदेव को मकरध्वज भी कहा जाता है। बिहारी सतसई में महाकवि बिहारी ने भगवान श्रीकृष्ण के कुण्डलों का आकार मकरकृत बताया है--- "मकराकृत गोपाल कैं कुंडल सोहत कान । धंस्यौं मनौ हिय-घर समर ड्यौढ़ी लसत निसान।।" ज्योतिष गणना की बारह राशियों में से दसवीं राशि का नाम मकर है। पृथ्वी की एक अक्षांश रेखा को मकर रेखा कहते हैं। श्रीमद्भागवत के अनुसार- सुमेरु पर्वत के उत्तर में दो पर्वत में से एक का नाम मकर पर्वत है। तमिल वर्ष में ‘तई’ नामक महिला का उल्लेख है, जो सूर्य के मकर रेखा में आने के कारण उसका नामकरण हुआ। पुराणों में मकर संक्रान्ति का काफी विस्तार से वर्णन मिलता है। पुराणकारों ने सूर्य के दक्षिण से ऊर्ध्वमुखी होकर उत्तरस्थ होने की वेला को संक्रान्ति पर्व एवं संस्कृति पर्व के रूप में स्वीकार किया है। पौराणिक विवरण के अनुसार, उत्तरायण देवताओं का एक दिन एवं दक्षिणायन एक रात्रि मानी जाती है। यह वैज्ञानिक सत्य है कि उत्तरायण में सूर्य का ताप शीत के प्रकोप को कम करता है। शास्त्रकारों ने भी मकर संक्रान्ति को सूर्य उपासना का विशिष्ट पर्व माना है। इस अवसर पर भगवान सूर्य की गायत्री महामंत्र के साथ पूजा-उपासना, यज्ञ-हवन का अलौकिक महत्व है। मकर संक्रान्ति पर्व के देवता सूर्य को देवों में विश्व की आत्मा कहकर अलंकृत किया गया है। आयुर्वेद के मर्मज्ञों का मानना है, शीतकालीन ठण्डी हवा शरीर में अनेक व्याधियों को उत्पन्न करती है,इसीलिए तिल-गुड़ आदि वस्तुओं का इस अवसर पर प्रयोग करने का विशेष विधान है,चरक संहिता स्पष्ट उल्लेख है---- ’शीते शीतानिलर्स्पषसंरुद्धो बलिनां बली। रसं हिन्स्त्यतो वायुः शीतः शीते प्रयुप्यति।।" इस प्रकोप के निवारण के लिए आयुर्विज्ञान विशेष घी-तेल, तिल-गुड़, गन्ना, धूप और गर्म पानी सेवन की सलाह देते हैं। सूर्य उत्तरायण होने पर पितामहभीष्म की मृत्यु ---------- उत्तरायण में मृत्यु का अर्थ है-- "ज्ञान की अथवा उत्तरावस्था में परिपक्व दशा मे मृत्यु।" कई पापी लोग तो वैसे भी उत्तरायण काल में मरते हैं , किन्तु फिर भी उनको सद्गति नही मिलती,और कई योगी जन दक्षिणायण में मरते है फिर भी उनकी दुर्गति नहीं होती। दक्षिण दिशा मे यमपुरी है, नरक लोक है। नरक लोक का अर्थ है -- "अंधकार" जिन्हें परमात्मा के स्वरुप का ज्ञान नहीं है , जिन्होंने परमात्मा का अनुभव नहीं किया है और वैसे ही मर जाते हैं उनकी मृत्यु दक्षिणायन कहलाती है। संतो का जन्म तो हमारी ही भाँति साधारण होता है किन्तु उनकी मृत्यु मंगलमय होती है। साधन भक्ति करते करते ही साध्य भक्ति सिद्ध होती है,जिसकी मृत्यु के समय देवगण बाजे बजाते हैं उसकी मृत्यु मंगलमय है,भीष्म के प्रयाण के समय देवों ने ऐसा ही किया था। ऐसे काम करना चाहिए---- "जब तुम आये जग में , तो वह हँसा तुम रोए। ऐसी करनी कर चलो , तुम हँसो जग रोए।।" मानव जीवन की अन्तिम परीक्षा उसकी मृत्यु ही है,जिसका जीवन सुन्दर होगा , उसकी मृत्यु मंगलमय होगी। जिसका मरण बिगड़ा उसका जीवन भी व्यर्थ रहा,मरण तब सुधरता है जब मानव प्रत्येक क्षण को सुधारता है। जो प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है ईश्वर को प्रतिक्षण स्मरण करता है उसकी मृत्यु भी सुधरती है किन्तु जो प्रत्येक क्षण का दुरुपयोग करता है ईश्वर का स्मरण नहीं करता उसकी मृत्यु बिगड़ती है । भीष्म आजीवन संयमी रहे थे संयम बढ़ाकर प्रभू के सतत स्मरण की आदत होने से मरण सुधरेगा,जीवन का अंतकाल बड़ा कठिन है,उस समय प्रभू का स्मरण करना आसान नहीं है----- "जन्म जन्म मुनि जतन कराहीं। अंत राम कहि आवत नाहीं।।" समस्त जीवन जिसकी लगन में बीता होगा वही अंतकाल में उसे याद आयेगा, ईश्वर तब तक कृपा नहीं करते जब तक मनुष्य स्वयं कोई प्रयत्न न करे, सारा जीवन भगवान के स्मरण में बीते और कदाचित वह अंतकाल में भगवान को भूल जाय तो भी भगवान उसे याद करेंगे। भगवान कहते हैं कि "भक्त मुझे भले ही भूल जाय किन्तु मै उसको नहीं भूल सकता।" अतः भीष्मपितामह की मृत्यु को उजागर करने के लिए ही द्वारिकाधीश भीष्म के पास पधारे थे। माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।। भावार्थ माघ मास की ऐसी विशेषता है कि इसमें जहाँ-कहीं भी जल हो, वह गंगाजल के समान होता है। इस मास में शीतल जल के भीतर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पाप मुक्त हो जाते हैं। सूर्योपासना में निम्न नियमों का पालन करना परम आवश्यक है। 1. प्रतिदिन सूर्योदय के पूर्व ही शय्या त्यागकर शौच स्नान करना चाहिये। 2. स्नानोपरान्त श्री सूर्य भगवान् को अर्घ्य देकर प्रणाम करें। 3. सन्ध्या-समय भी अर्घ्य देकर प्रणाम करना चाहिये। 4. प्रतिदिन सूर्य के 21 नाम, 108 नाम या 12 नाम से युक्त स्तोत्र का पाठ करें। सूर्यसहस्र नाम का पाठ भी महान लाभकारक है। 5. आदित्य हृदय का पाठ प्रतिदिन करें। 6. नेत्र रोग से बचने एवं अंधापन से रक्षा के लिये नेत्रोपनिषद (चाक्षुषोपनिषद्) का पाठ करके प्रतिदिन भगवान सूर्य को प्रणाम करें। 7. रविवार को तेल, नमक और अदरख का सेवन नहीं करें और न किसी को करायें। सूर्य जल अर्घ देने की विधि  गन्ध,अक्षत,पुष्प मिश्रित जल किसी (पात्र तांबे या पीतल का हो) सावित्री मन्त्र या एकाक्षरी बीज मंत्र से तीन अर्घ्य दे । गायत्री मंत्र का जप करें।काम से कम तीन बार या 108 बार आकाश में जब लालिमा हो उस समय से सूर्य उदय तक दे।देरी हो जाये तो चौथा अर्घ्य दे।क्षमा याचना के लिए दाहिने कान को स्पर्श करके अर्घ्य के बाद उसी जल से अपने माथे पर अभिषेक करें।ये जल आपके पैरों पर न पड़े इसलिए कोई बर्तन को रख कर दे।फिर जल को किसी पौधे में देदे अगर सूर्य न दिखता हो या खुला स्थान न हो तो भी जल दे।सूर्य का प्रकाश सर्वत्र व्याप्त है। पूर्व की और मुख करके अगर पौधा न हो तो उस जल को नासिका से सूंघ कर कही भी फेक दें। सूर्य के 12 नाम बोलें। 1.ॐ सूर्य नमः 2 .ॐ मित्राय नमः 3 .ॐ खगाय नमः 4 .ॐ आदित्याय नमः 5 .ॐ हिरण्य गर्भाय नमः 6.ॐ भानवे नमः 7.ॐ सवित्रे नमः 8 ॐ भुवन भास्कर नमः 9 ॐ दिनकर नमः 10 ॐ अर्यमा नमः 11ॐ तिमिराश नमः 12 ॐ रवये नमः रविवार को एक ही बार भोजन करें। हविष्यान्न खाकर रहे। ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करें। उपासक स्मरण रखें कि भगवान श्रीराम ने आदित्य हृदय का पाठ करके ही रावण पर विजय पायी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने सूर्य के एक सौ आठ नामों का जप करके ही अक्षयपात्र प्राप्त किया था। समर्थ श्रीरामदास जी भगवान सूर्य को प्रतिदिन एक सौ आठ बार साष्टांग प्रणाम करते थे। संत श्रीतुलसीदास जी ने सूर्य का स्तवन किया था। इसलिये सूर्योपासना सबके लिये लाभप्रद है। माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।।*माघे *मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।। तिलवत् स्निग्धं मनोऽस्तु वाण्यां गुडवन्माधुर्यम्। तिलगुडलड्डुकवत् सम्बन्धेऽस्तु सुवृत्तत्त्वम्।। भावार्थः 👉 मकर संक्रांति के दिन जो व्यक्ति कम्बल और शुद्ध घी को दान के रूप में देता है वह व्यक्ति अपने जीवन-मरण के सम्बन्ध से मुक्त होने के बाद अर्थात् अपनी मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त करता है। मकर संक्रांति पर तिल समान हम सभी के मन स्नेहमय हो, गुड़ समान हमारे शब्दों में मिठास हो और जैसे लड्डू में तिल और गुड़ कि प्रबल घनिष्ठता है वैसे हमारे संबंध हो। वि संक्रमणे प्रासेन स्नानाद्यस्तु मानवः। सप्तजन्मनि रोगो स्द्यान्निर्धनश्चैव जायतेः। अर्थात् सूर्य की संक्रांति के दिन जो मनुष्य स्नान नहीं करता है। वो सात जन्मों तक रोगी रहता है। विशेषकर मकर संक्रान्ति पर तिल-स्नान को अत्यंत पुण्यदायक बतलाया गया है। शास्त्रो के अनुसार इस दिन तिल – स्नान करने वाला मनुष्य सात जन्म तक आरोग्य को प्राप्त करता है।। मकर संक्रान्ति के पुण्यकाल में हर मनुष्य को तीर्थ या नदी तट पर तिल मिश्रित जल से शुद्ध मनोभाव से स्नान करना चाहिए । यदि नदी में स्नान करना संभव ना हो, तो अपने घर में पूर्वाभिमुख होकर जल में तिल, दुर्वा, कच्चा दूध डालकर स्नान करें। मकर संक्रांति के दिन दान करने का अति विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार मकर संक्रांति के दिन दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है, इस पुण्य का फल जन्म जन्मान्तर तक मिलता रहता है । इस दिन कंबल, गर्म वस्त्र, घी, गुड़, नमक, दाल-चावल की कच्ची खिचड़ी और तिल आदि का दान विशेष रूप से फलदायी माना गया है। इस दिन तिल के दान से आपकी कुंडली के कई दोष दूर होते है , विशेष रूप से कालसर्प योग, शनि की साढ़ेसाती और ढय्या, राहु-केतु के दोष दूर हो जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन गुड़ का दान करने से कुंडली में सूर्य देव बलवान होते है । मकर संक्रांति के दिन घी, और अनाज दान करने से भी बहुत पुण्य मिलता है। मकर संक्रांति के दिन काले तिल को तांबे के पात्र में भरकर किसी निर्धन व्यक्ति या ब्राह्मण को दान करने से शनि देव प्रसन्न होते है, शनि की साढ़े साती तथा शनि की ढैय्या के अशुभ प्रभाव दूर होते है।। मकर संक्रांति से सूर्य का प्रकाश बढ़ने लगता है। प्रकाश बढ़ने के कारण प्रकृति के जीवन में नई चेतना तथा ऊष्मा आने लगती है तथा अन्न पकने लगता है। सर्दी के कारण शिथिल पड़े मानव के अंगों में पुनः उत्साह और स्फूर्ति का संचार होता है। यह दिन समाज को अज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर जाने की प्रेरणा देता है। जिस प्रकार प्रकृति में होने वाले सम्यक् दिशा के परिवर्तन का हम स्वागत करते हैं, ठीक उसी प्रकार समाज जीवन को बढ़ाने एवं मजबूत करने वाले परिवर्तनों का भी समर्थन अति आवश्यक है। इस दृष्टि से मकर संक्रांति का यह उत्सव सामाजिक परिवर्तन का सन्देश देता है।" मकर संक्रांति को कई नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरायण, पोंगल, तिल संक्रांत और माघ बीहू सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो मकर संक्रांति मनाई जाती है। मकर शनि की राशि है और पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवर्द्धक होने से साथ-साथ पापों का भी विनाशक है। सूर्य का दक्षिणायन से उत्तरायन हो जाना एक पुण्य पर्व है क्योंकि उत्तरायन देवताओं का दिन माना जाता है। अतः इस दिन से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। कहा जाता है कि इस दिन दिए गए दान का फल अक्षय होता है। तिल और गुड़ का दान करने से धन लाभ होता है और मान-सम्मान में वृद्धि होती है। इस दिन अनाज का दान करना भी बेहद शुभ फलदाई माना गया है। जानते हैं कि अशुभ फलों से बचने के लिए 15 जनवरी को कौनसे उपाय को अपनाना होगा। 🐑 मेष राशि- सूर्यदेव आपके दसवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान आपके करियर और पिता की उन्नति से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से करियर में आपको अपनी मेहनत का फल जरूर मिलेगा। आप काफी आगे बढ़ेंगे। साथ ही इस दौरान आपके पिता की भी तरक्की सुनिश्चित होगी। लिहाजा इस दौरान सूर्य के शुभ फल बनाये रखने के लिए सिर ढक्कर रखें। साथ ही काले और नीले रंग के कपड़े पहनना अवॉयड करें। 🐂 वृष राशि- सूर्यदेव आपके नवे स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में नवां स्थान भाग्य का स्थान है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से आपके भाग्य में वृद्धि होगी। आप अपने काम में जितनी मेहनत करेंगे, उसका शुभ फल आपको अवश्य ही मिलेगा। साथ ही धार्मिक कार्यों में भी आपकी रुचि बढ़ेगी। लिहाजा अगले संक्रांति तक सूर्य के शुभ फलों को सुनिश्चित करने के लिए घर में पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करें। साथ ही प्रतिदिन सूर्यदेव को नमस्कार करें। 👩‍❤️‍👨 मिथुन राशि- सूर्यदेव आपके आठवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान आयु से संबंध रखता है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से आपकी आयु में वृद्धि होगी और आपका स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। लिहाजा इस दौरान सूर्य के शुभ फल सुनिश्ति करने के लिए काली गाय या बड़े भाई की सेवा करें। 🦀 कर्क राशि- सूर्यदेव आपके सातवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान जीवनसाथी का होता है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से जीवनसाथी के साथ आपका तालमेल ठीक बना रहेगा और आपका वैवाहिक जीवन खुशहाल रहेगा। लिहाजा अगली संक्रांति तक सूर्यदेव के इस गोचर का शुभ फल बनाये रखने के लिए स्वयं भोजन करने से पहले किसी दूसरे व्यक्ति को भोजन जरूर खिलाएं। 🦁 सिंह राशि- सूर्यदेव आपके छठे स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान मित्र का होता है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से मित्रों के साथ अच्छे रिश्ते स्थापित करने के लिएआपको अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है। आपको इस दौरान अपने शत्रु पक्ष से बचकर रहने की जरूरत है। साथ ही अगले 30 दिनों के दौरान सूर्य के अशुभ फलों से बचने के लिएऔर शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए मंदिर में बाजरा दान करें। 👰🏻‍♀ कन्या राशि- सूर्यदेव आपके पांचवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान विद्या, गुरु, विवेक, संतान और जीवन में रोमांस से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से आपको इस दौरान अपने गुरु से बनाकर रखनी चाहिए। आपकी कही कोई बात उन्हें बुरी लग सकती है, इसलिए कोई भी बात संभलकर करें और अपना विवेक बनाये रखें। साथ ही इस दौरान आप रोमांस के मामले में कुछ पिछड़ सकते हैं। लिहाजा इस दौरान सूर्य के अशुभ फलों से छुटकारा के लिए जरूरतमंद लोगों को ऊनि वस्त्र दान करें। ⚖️ तुला राशि- सूर्यदेव आपके चौथे स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान माता, भूमि-भवन और वाहन के सुख से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से 13 फरवरी तक आपको अपने कार्यों में माता से पूरा सहयोग मिलेगा। वो आपके हर कदम में आपका साथ देंगी। साथ ही इस दौरान आपको भूमि-भवन और वाहन का सुख मिलने की भी पूरी उम्मीद है। लिहाजा इस 13 फरवरी तक सूर्य के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए किसी जरूरतमंद को भोजन कराएं। 🦂 वृश्चिक राशि- सूर्यदेव आपके तीसरे स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान भाई-बहन और आपकी अभिव्यक्ति से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से आपको भाई-बहनों से उम्मीद के अनुसार सहयोग मिलेगा। साथ ही आप अपनी बात को दूसरे के सामने अच्छे से एक्सप्रेस नहीं कर पायेंगे। लिहाजा सूर्य के अशुभ फलों से बचने के लिएऔर शुभ फल सुनिश्चित करने के लिएप्रतिदिन सूर्यदेव के इस मंत्र का 11 बार जप करें। मंत्र है - ऊँ घृणिः सूर्याय नमः। 🏹 धनु राशि- सूर्यदेव आपके दूसरे स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान धन से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से आपको धन की बढ़ोतरी के बहुत से साधन मिलेंगे। आपको अचानक से धन लाभ हो सकता है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी बनी रहेगी। लिहाजा सूर्य के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए मंदिर में नारियल का तेल या कच्चे नारियल का दान करें। 🐊 मकर राशि- सूर्यदेव आपके पहले यानि लग्न स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान व्यक्ति का अपना स्थान होता है। इससे किसी व्यक्ति के प्रेम, मान-सम्मान, धन और संतान के न्यायलय संबंधी कार्यों पर विचार किया जाता है। इस स्थान पर सूर्य के गोचर से लवमेट के साथ आपके रिश्ते मजबूत होंगे। आपके पास पैसों की लगातार आवक बनी रहेगी। साथ ही आपकी संतान को भी न्यायलय संबंधी कार्यों से भरपूर लाभ मिलेगा। लिहाजा 13 फरवरी तक सूर्य के इन शुभ फलों का लाभ पाने के लिए प्रतिदिन सुबह स्नान आदि के बाद सूर्यदेव को जल चढ़ाएं। ⚱️ कुम्भ राशि- सूर्यदेव आपके बारहवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान शैय्या सुख और व्यय से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से आपको शैय्या सुख की प्राप्ति तो होगी, लेकिन साथ ही आपके खर्चों में भी बढ़ोतरी होगी। लिहाजा आगली संक्रांति तक सूर्य के अशुभ प्रभावों से बचने के लिएऔर शुभ प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक कार्यों में अपना सहयोग दें। 🐬 मीन राशि- सूर्यदेव आपके ग्यारहवें स्थान पर गोचर किये हैं। जन्म कुंडली में यह स्थान आमदनी और कामना पूर्ति से संबंध रखता है। सूर्य के इस गोचर से आपकी अच्छी आमदनी होगी। आपको आमदनी के नये स्रोत भी मिलेंगे। साथ ही आपकी जो भी इच्छा होगी, वो जरूर पूरी होगी। लिहाजा इस दौरान सूर्य के शुभ फल सुनिश्चित करने के लिए मंदिर में मूली का दान करें।

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