
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को शिव जी के रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी.
मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती मनाई जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को शिव जी के रौद्र स्वरूप काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी. ये भगवान भोलेनाथ के रौद्र रूप हैं. इनका केवल बटुक भैरव अवतार ही सौम्य माना जाता है. हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी व्रत रखा जाता है, उस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है. जो लोग काल भैरव जयंती के दिन व्रत रखते हैं और विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उनको रोग, दोष, अकाल मृत्यु के भय, तंत्र-मंत्र की बाधा से मुक्ति मिलती है.
05 दिसम्बर 2023 दिन मंगलवार को मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। आज श्रीकालभैरवाष्टमी का पावन व्रत है। इस व्रत को कालाष्टमी भी कहा जाता है। काशी में आज काल भैरव-बटुक भैरव-अष्ट भैरव मन्दिर में दर्शन एवं पूजन तथा अन्यत्र भी कालभैरव मन्दिर में दर्शन-पूजन आदि करना चाहिए। आज मनया व्रत भी है। आप सभी सनातनियों को “श्रीकालभैरवाष्टमी के पावन व्रत” की हार्दिक शुभकामनायें।।
काल भैरव जयंती 2023 पूजा मुहूर्त
काल भैरव जयंती के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 45 मिनट से देर रात 12 बजकर 39 मिनट तक है. काल भैरव की पूजा निशिता मुहूर्त में करते हैं. काल भैरव जयंती के दिन का शुभ मुहूर्त या अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 32 मिनट तक है.
काल भैरव जयंती का महत्व
तंत्र और मंत्र की सिद्धि के लिए काल भैरव की पूजा करते हैं. जिन लोगों को नकारात्मक शक्तियों या अकाल मुत्यु का डर रहता है, वे काल भैरव की पूजा करते हैं. काल भैरव भगवान शिव के रौद्र रूप हैं. जब ब्रह्म देव ने शिव जी का अपमान किया और क्रोध से उनका चौथा सिर जलने लगा तो शिव जी ने काल भैरव को उत्पन्न किया. उन्होंने ब्रह्मा जी का चौथा सिर काट दिया. स्कंदपुराण में यह कथा विस्तार से दी गई है. काल भैरव की एक कथा माता सती के पिता प्रजापति राजा दक्ष को दंडित करने से जुड़ी है.
काल भैरव से स्वयं काल भी डरता है, यमराज भी भय से कांपते हैं. इस वजह से वह महाकाल कहलाते हैं. उनकी कृपा से नकारात्मकता और बुरी शक्तियों का अंत हो जाता है.
👺 कैसे हुए काल भैरव प्रकट?
कालभैरव जयंती का दिन काल भैरव के साथ भगवान शिव की आराधना करने का विशेष महत्व है। हिंदू कथाओं के अनुसार, जब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश में इस बात में बहस छिड़ गई थी कि सबसे श्रेष्ठ कौन है, तो ऐसे में ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को कुछ अपशब्द कह दिए थे, जिससे वह अधिक क्रोधित हो गए है। इके बाद भगवान शिव के माथे से भैरव प्रकट हुए। उनका रौद्र रूप देखकर हर कोई डर गया और इसी समय उन्होंने भगवान ब्रह्मा का एक सिर काट दिया, जिससे उनके चार सिर हो गए। इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने उन्हें शांत किया और वह पुन: शिव जी के स्वरूप में वापस आ गए। लेकिन उन्होंने ब्रह्म हत्या कर दी थी। ऐसे में उन्होंने इस पाप से मुक्ति पाने के लिए काशी की शरण ली और वहीं पर रहकर पापों से मुक्ति पाई।
भगवान भैरव को पापियों को दंड देने के लिए एक छड़ी पकड़े हुए और कुत्ते पर सवारी करते हुए देखा जाता है। इस दिन भगवान काल भैरव की पूजा करने से अच्छा स्वास्थ्य और सफलता मिलती है। इसके साथ ही कुंडली से शनि और राहु दोष भी समाप्त हो जाता है।
कालाष्टमी व्रत फल
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कालाष्टमी व्रत बहुत ही फलदायी माना जाता है. इस दिन व्रत रखकर पूरे विधि-विधान से काल भैरव की पूजा करने से व्यक्ति के सारे कष्ट मिट जाते हैं काल उससे दूर हो जाता है. इसके अलावा व्यक्ति रोगों से दूर रहता है और उसे हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है।
इस मंत्र का करें जाप
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शिव पुराण में कहा है कि भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं इसलिए आज के दिन इस मंत्र का जाप करना फलदायी होता है
अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्,
भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!
भैरव जयंती की रात की जाने वाली साधना सिद्धिप्रद होती है .. भैरव तत्व सहाय्यक तत्व होता है .. जीवन मे भैरव तत्व बहुत उपयोगी होता है .. बिना भैरव के कोइ अकेला कुछ कार्य नही कर पाता है .. भैरव तत्व का मतलब है आपके जीवन मे कोइ मित्र , कोइ सहाय्यक , कोइ नौकर , कोइ शिष्य , कोइ follower , कोइ सिर्फ आपको मानने वाला , कोइ सिर्फ आप की सुननेवाला , कोइ सिर्फ आपका हितचिंतक .. उसे आपका भैरव कहते है .. जिस गुरु के उपर भैरव जी की कृपा होती है उन्हे समर्पित शिष्य मिलते है .. जिस सेनापती या राजा के उपर भैरव की कृपा हो उन्हे अपने प्राणो की आहुती देनेवाले सैनिक मिलते है . जिस नेता के उपर भैरव कृपा हो उन्हे समर्पित अनुयायी या कार्यकर्ता मिलते है .. जिस अधिकारी के उपर भैरव कृपा होती है उनके हाथ के नीचे काम करने वाले सदैव उनकी बात मानेंगे .. जिस व्यक्ती के उपर भैरव कृपा हो उसके मित्र उसके लिये कुछ भी करने के लिये तैयार होते हैं।
भैरव तत्व से युक्त शिष्य अपने गुरु के लिये जान न्यौछावर करता है .. भैरव एक ऐसा तत्व जो सिर्फ आपके लिये कुछ भी करने को तयार हो .. जब सती ने दक्ष के याग मे अपने आपको भस्म किया तब शिव जी क्रोधित हुये और उनके क्रोध से वीरभद्र का आविर्भाव हुवा जो भैरव थे . वीरभद्र ने सिर्फ शिव जी के लिये विष्णु आदि देवताओ से युद्ध किया था .. कालभैरव ने शिव जी के लिये ही ब्रम्हा का पांचवा मुख काट लिया था .. भैरव तत्व सैनिको मे होता है इस लिये वे देश के लिये बिना सोचे बलिदान देते है .. भैरव तत्व के कारण ही क्रान्तिकारी अपने देश के लिये हसते हसते फांसी चढ सकते है .. क्योंकि भैरव तत्व स्वार्थी नही होता ..
भैरव अपने स्वामी के लिये , अपने विचारो के लिये , अपने देश के लिये राज्य के लिये कुछ भी कर सकता है और भी किसी भी हद तक जा सकता है .. भैरव आपका संक्षरक है .. जब तक भैरव की आपके उपर कृपा है तब तक कोइ आपका बाल भी बांका नही कर सकता .. भैरव आपके शत्रू को ध्वंस कर देंगे .. सभी देवीयोंके पास शिवजी भैरव के रुप मे विद्यमान है .. यहाँ शिव तत्व शक्ती तत्व का सहाय्यक बन जाता है ..
भैरव कृपा के कारण ही छत्रपती शिवाजी महाराज को, महाराणा प्रताप को उनके लिये जान देने वाले असंख्य वीर मिल जाते है ,भैरव कृपा के कारण ही लोकमान्य तिलक ,नेताजी सुभाषचंद्र बोस ,गांधी जी के एक हांक पे लोग देश के लिये जान लुटाने को तयार थे .. अगर आपके जीवन मे कोइ व्यक्ती ऐसा हो जो आपके लिये कुछ भी करने को तयार हो तो भी समझ लिजिये की आपके उपर भैरव जी की कृपा है ..
कुत्ते के अंदर भैरव तत्व माना जाता है इसलिये कुत्ते मालिक के प्रती वफादार होते है ..इसि लिये काले कुत्ते को अगर रोटी खिला दे बहुत सारी बाधाये टल जाती है .. कुत्ते मालिक के लिये अपनी जान भी देते है .. भैरव तत्व ऐसा ही होता है .. आपके प्रती वफादार .. आपके हर आदेश का पालन करने वाला .. आपके शत्रू और विरोधी के उपर टूट पडने वाला .. आपका संरक्षक ..आपका अत्यंत करीबी .. जो आपकी ही छाया हो .. जो आपके लिये अपना सर कलम करने को तैयार ..
आपके लिये जान देने के लिये तयार और आपके शत्रू की जान भी ले सके .. अगर आप ऐसे व्यक्ती किसी भी रुप मे आपके जीवन मे चाहते है , अगर आप शत्रू बाधा से मुक्त होना चाहते है , अगर आप किसी व्यक्ती के द्वारा सदैव पिडीत रहते है लेकिन उसके खिलाफ कुछ भी नही कर सकते , अगर आप ऐसी समस्या मे घिर गये है जहा आपको रास्ता नही दिखायी दे रहा है ,या आपको कोइ मदद करने किये तयार नही है ,अगर आप अपने आप को बहुत दुर्बल , असहाय समझते है , अगर आप चाहते है की कोइ अदृश्य शक्ती सदैव आपका संरक्षण करे तो फिर आप भैरव साधना करे और निश्चिंत हो जाये ..
भैरव की कृपा से सारे बिगडे काम बनते जायेंगे .. कही से आपको मदद मिलेगी .. कोइ आपकी बात नही मान रहा है तो वो आपकी बात मानने लगेगा .. आपके शत्रू परास्त होंगे .. भैरव साधना से राहु और शनी की बाधा दूर होती है .. अगर कोइ तंत्र प्रयोग हुवा है तो भैरव साधना से उससे मुक्ती मिलेगी .. अगर कोइ आपका पैसा नही लौटा रहा है तो वह पैसा दे देगा .. कोइ आपको त्रस्त कर रहा है तो वो आपके सामने घुटने टेक देगा .. अगर किसी की शराब छुडानी हो तो भी आप यह भैरव साधना कर सकते है .. अगर आपके यहां नौकर टिकते नही है तो यह भैरव साधना कर सकते है ..
अगर परिवार में कोइ सदस्य आपको बिना वजह परेशान कर रहा है तो भी आप इस साधना से उससे छुटकारा पा सकते है .. अगर ऑफिस मे कोइ आपको तकलिफ दे रहा है तो यह भैरव साधना करके देखे .. अगर आप एक अच्छे शिष्य बनना चाहते तो आप को यह भैरव साधना जीवन मे करनी ही चाहिये .. बिना भैरव तत्व के शिष्य तत्व नही है .. राहु की महादशा चल रही है तो भैरव साधना करे .. जीवन कोइ भी बाधा हो तो इसे श्रद्धा से करे आप को फल जरुर मिलेगा ..
भैरव साधना बहुत प्राचीन काल से प्रचलित है .. इसे तंत्र क्षेत्र मे बहुत मान्यता है .. इस साधना को सात्विक, राजसिक और तामसिक इन तिनो पद्धती से किया जा सकता है .. हम गृहस्थ है इसलिये हमे सात्विक पद्धती से करना चाहिये .. काल भैरव जयंती मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथी को होती है ..इसे रात्री काल मे संपन्न करे .. यह रात्री सिद्धि प्रद होती है .. इस लिये इसे अपनी क्षमता नुसार अवश्य करे .. आपको अगर आत्मविश्वास बढाना है , अपनी मानसिक क्षमता का विकास करना है ,अपनी महत्वाकांक्षा को पूर्ण करना है तो यह साधना बहुत लाभदायी है ..
शास्त्रो मे भैरव कुल 52 की संख्या मे माने गये है .. हालांकि अष्ट भैरव प्रमुख माने जाते है .. ग्रामीण इलाको मे इसे भैरु भी कहते है .. महाराष्ट्र मे खंडोबा जो है वे मार्तण्ड भैरव है जो भैरव का ही एक रुप है .. राजस्थान सहित उत्तर भारत मे भैरव जी के कइ सारे रुप मिलेंगे .. हर गांव की सीमा पर भैरव का मंदिर होता था .. वे गांव के संरक्षक होते थे .. नाथ परंपरा मे भी भैरव साधना की जाती है .. शाबर मंत्रो मे भैरव के कइ सारे मंत्र मिलेंगे ..
भैरवास्त्र एक बहुत ही सटिक और परिणाम कारक स्त्रोत्र है .. इसके परिणाम तुरंत दिखाई देते है .. साधक इसका प्रयोग करके देखे .. बटुक भैरव यानी भैरव का बाल रुप .. जैसे कन्या पूजन या कुमारी पूजन मे छोटी कन्या का पुजन करते है वैसे ही बटुक पूजन मे ५ साल के बच्चे को बटुक मानकर उसका पुजन करते है .. भैरव का एक और रुप है काल भैरव .. जो साक्षात काल स्वरुप है .. उज्जैन का काल भैरव मंदिर प्रख्यात है .. यहाँ भैरव जी को शराब चढायी जाती है जिसका वे पान करते है .. हजारो साल से चढाई गयी शराब कहा जाती है किसि को पता नही .. यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है ..
काल भैरव काशी के कोतवाल माने जाते है .. काशी मे उनका प्रसिद्ध मंदिर है .. यहा भक्तो की मनोकामना पूर्ण होती है .. भैरव जी कइ सारे प्रसिद्ध मंदिर है देशभर मे .. महाराष्ट्र मे अमरावती के पास भी परतवाडा से आगे पहाड पर बहिरम गाव मे एक प्रसिद्ध भैरव मंदिर है .. महाराष्ट्र के पश्चिम क्षेत्र मे कालभैरव के कइ सारे मंदिर मिलेंगे ..
दक्षिण भारत मे भी भैरव जी मंदिर मिलेंगे .. भक्तो के उपर तुरंत प्रसन्न होने वाले ,भक्तो की बिगडी बनाने वाले भैरव सर्वत्र पुजे जाते है .. भैरव का एक और रुप है आकाश भैरव जो शरभेश्वर है .. इनकी साधना तंत्र क्षेत्र मे एक उच्च कोटी की मानी जाती है .. नेपाल मे आकाश भैरव का प्रसिद्ध मंदिर है .. भैरव तत्व के उपर लिखने के लिये बहुत कुछ है .. उनकी साधना एक दिव्य साधना है .. साधको को इसे जरुर करना चाहिये .. और अनु
. रुद्राक्ष माला या काले हकिक की माला या मुंड माला(यह एक विशिष्ट माला होती है ) का प्रयोग कर सकते है ..समय रात का हो .. लाल रंग के फुल (गुलाब हो तो अच्छा ) .. और कोइ विशेष नियम नही है .. श्रद्धा और विश्वास से करे .. स्त्रिया भी इस साधना को कर सकती है .. उनके लिये जरुरी भी है क्योंकि भैरव उनके रक्षा कारक जैसी भुमिका निभायेंगे ..भैरव उनका हर पल संरक्षण करते रहेंगे .. साधक राहु और शनी बाधा के लिये इसे जरुर करे ..
भव लेने चाहिये ..
भैरव साधना मे लाल रंग के वस्त्र और आसन का प्रयोग हो तो और भी अच्छा .आदि शंकराचार्य जी का काल भैरव स्तोत्र प्रसिद्ध है .. उसका भी पाठ कर सकते है .. आठ मुखी रुद्राक्ष अष्ट भैरव का प्रतिक है .. उसे धारण कर सकते है ..भैरव साधना सात्विक रुप से करे .. यही सरल मार्ग है उनकी कृपा प्राप्त करने का .. बिना वजह कोइ जटील मार्ग ना अपनाये ..
अष्टमी तिथी भैरव जी की तिथी है .. किसी भी महिने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भैरव साधना कर सकते है .. रविवार भैरव जी का वार माना जाता है .. अगर रविवार को कृष्ण पक्ष की अष्टमी आये तो और भी बढिया .. साधना रात्री मे 8 बजे के बाद ही करे .. पुजन, स्तोत्र पाठ ,मंत्र जाप और हवन जो चाहे कर सकते हैं ..
इसका लाभ जरुर मिलेगा .. भौतिक एवम आध्यात्मिक दोनो लाभ मिलेंगे ..
llभं भैरवाय नम: ll
◆भैरव/भैरवी -भेरू के 52 शक्ती और 52 रूप (नाम ) _:
1. हिंगलाज
शक्ति- कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा)
भैरव का नाम - भीमलोचन
2. शर्कररे (करवीर)
शक्ति- महिषासुरमर्दिनी
भैरव का नाम - क्रोधिश
3. सुगंधा- सुनंदा
शक्ति है सुनंदा
भैरव का नाम - त्र्यंबक
4. कश्मीर- महामाया
शक्ति है महामाया
भैरव का नाम - त्रिसंध्येश्वर
5. ज्वालामुखी- सिद्धिदा (अंबिका)
शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका)
भैरव का नाम - उन्मत्त
6. जालंधर- त्रिपुरमालिनी
शक्ति है त्रिपुरमालिनी
भैरव का नाम - भीषण
7. वैद्यनाथ- जयदुर्गा
शक्ति है जय दुर्गा
भैरव का नाम - वैद्यनाथ
8. नेपाल- महामाया ( गुहेश्वरी )
शक्ति है महशिरा (महामाया)
भैरव का नाम - कपाली
9. मानस- दाक्षायणी
शक्ति है दाक्षायनी
भैरव का नाम - अमर
10. विरजा- विरजाक्षेत्र
शक्ती है विमला
भैरव का नाम - जगन्नाथ
11. गंडकी- गंडकी
शक्ती है चण्डी
भैरव का नाम - चक्रपाणि
12. बहुला- बहुला (चंडिका)
शक्ति है देवी बाहुला
भैरव का नाम - भीरुक
13. उज्जयिनी- मांगल्य चंडिका
शक्ति है मंगल चंद्रिका
भैरव का नाम - कपिलांबर
14. त्रिपुरा- त्रिपुर सुंदरी
शक्ति है त्रिपुर सुंदरी
भैरव का नाम - त्रिपुरेश
15. चट्टल - भवानी
शक्ति है भवानी
भैरव का नाम - चंद्रशेखर
16. त्रिस्रोता- भ्रामरी
शक्ति है भ्रामरी
भैरव का नाम - अंबर और भैरवेश्वर
17. कामगिरि- कामाख्या
शक्ति है कामाख्या
भैरव का नाम - उमानंद
18. प्रयाग- ललिता
शक्ति है ललिता
भैरव का नाम - भव
19. जयंती- जयंती
शक्ति है जयंती
भैरव का नाम - क्रमदीश्वर
20. युगाद्या- भूतधात्री
शक्ति है भूतधात्री
भैरव का नाम - क्षीर खंडक
21. कालीपीठ- कालिका
शक्ति है कालिका
भैरव का नाम - नकुशील
22. किरीट- विमला (भुवनेशी)
शक्ति है विमला
भैरव का नाम - संवर्त्त
23. वाराणसी- विशालाक्षी
शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी
भैरव का नाम - काल भैरव
24. कन्याश्रम- सर्वाणी
शक्ति है सर्वाणी
भैरव का नाम - निमिष
25. कुरुक्षेत्र- सावित्री
शक्ति है सावित्री
भैरव का नाम - स्थाणु
26. मणिदेविक- गायत्री
शक्ति है गायत्री
भैरव का नाम - सर्वानंद
27. श्रीशैल- महालक्ष्मी
शक्ति है महालक्ष्मी
भैरव का नाम - शम्बरानंद
28. कांची- देवगर्भा
शक्ति है देवगर्भा
भैरव का नाम - रुरु
29. कालमाधव- देवी काली
शक्ति है काली
भैरव का नाम - असितांग
30. शोणदेश- नर्मदा (शोणाक्षी)
शक्ति है नर्मदा
भैरव का नाम - भद्रसेन
31. रामगिरि- शिवानी
शक्ति है शिवानी
भैरव का नाम - चंड
32. वृंदावन- उमा
शक्ति है उमा
भैरव का नाम - भूतेश
33. शुचि- नारायणी
शक्ति है नारायणी
भैरव का नाम - संहार
34. पंचसागर- वाराही
शक्ति है वराही
भैरव का नाम - महारुद्र
35. करतोयातट- अपर्णा
शक्ति है अर्पण
भैरव का नाम - वामन
36. श्रीपर्वत- श्रीसुंदरी
शक्ति है श्रीसुंदरी
भैरव का नाम - सुंदरानंद
37. विभाष- कपालिनी
शक्ति है कपालिनी (भीमरूप)
भैरव का नाम - शर्वानंद
38. प्रभास- चंद्रभागा
शक्ति है चंद्रभागा
भैरव का नाम - वक्रतुंड
39. भैरवपर्वत- अवंती
शक्ति है अवंति
भैरव का नाम - लम्बकर्ण
40. जनस्थान- भ्रामरी
शक्ति है भ्रामरी
भैरव का नाम - विकृताक्ष
41. सर्वशैल स्थान
शक्ति है राकिनी
भैरव का नाम - वत्सनाभम
42. गोदावरीतीर :
शक्ति है विश्वेश्वरी
भैरव का नाम - दंडपाणि
43. रत्नावली- कुमारी
शक्ति है कुमारी
भैरव का नाम - शिव
44. मिथिला- उमा (महादेवी)
शक्ति है उमा
भैरव का नाम - महोदर
45. नलहाटी- कालिका तारापीठ
शक्ति है कालिका देवी
भैरव का नाम योगेश
46. कर्णाट- जयदुर्गा
शक्ति है जयदुर्गा
भैरव का नाम - अभिरु
47. वक्रेश्वर- महिषमर्दिनी
शक्ति है महिषमर्दिनी
भैरव का नाम - वक्रनाथ
48. यशोर- यशोरेश्वरी
शक्ति है यशोरेश्वरी
भैरव का नाम - चण्ड
49. अट्टाहास- फुल्लरा
शक्ति है फुल्लरा
भैरव का नाम - विश्वेश
50. नंदीपूर- नंदिनी
शक्ति है नंदिनी और
भैरव का नाम नंदिकेश्वर
51. लंका- इंद्राक्षी
शक्ति है इंद्राक्षी
भैरव का नाम - राक्षसेश्वर
52. मगद - सर्वानन्दकरी
शक्ति है सर्वानन्दकरी
भैरब का नाम व्योमकेश
■"महाँकाल भैरव"
भैरव का नाम सुनते ही मन मे भाय व्याप्त हो जाता है , जबकि ऐसा नहीं है ...
भैरव शिव के ही अंश हैं।
माँ सती के अंग जहां जहां गिरे थे वे सभी शक्ति पीठ हो गए , भगवान शिव ने प्रत्येक शक्ति पीठ की रक्षा हेतु एक भैरव नियुक्त किए हैं ।
धर्म ग्रंथों के अनुसार भैरव भी भगवान शंकर के ही अवतार हैं।
भगवान शंकर के इस अवतार से हमें अवगुणों को त्यागना सीखना चाहिए।
भैरव के बारे में प्रचलित है कि ये अति क्रोधी, तामसिक गुणों वाले तथा मदिरा का सेवन करने वाले हैं।
इस अवतार का मूल उद्देश्य है कि मनुष्य अपने सारे अवगुण जैसे- मदिरापान, तामसिक भोजन, क्रोधी स्वभाव आदि भैरव को समर्पित कर पूर्णत: धर्ममय आचरण करें।
भैरव अवतार से हमें यह भी शिक्षा मिलती है कि हर कार्य सोच-विचार कर करना ही ठीक रहता है।
बिना विचारे काम करने से पद व प्रतिष्ठा धूमिल होती है।
शिव महापुराण में भैरव को भगवान शंकर का पूर्ण रूप बताया है।
इनके अवतार की कथा इस प्रकार है-
एक बार भगवान शंकर की माया से प्रभावित होकर ब्रह्मा व विष्णु स्वयं को श्रेष्ठ मानने लगे।
इस विषय में जब वेदों से पूछा गया तब उन्होंने शिव को सर्वश्रेष्ठ एवं परमतत्व कहा। किंतु ब्रह्मा व विष्णु ने उनकी बात का खंडन कर दिया।
तभी वहां भगवान शंकर प्रकट हुए।
उन्हें देखकर ब्रह्माजी ने कहा- चंद्रशेखर तुम मेरे पुत्र हो।
अत: मेरी शरण में आओ।
ब्रह्मा की ऐसी बात सुनकर भगवान शंकर को क्रोध आ गया।
उनके क्रोध से वहां एक तेज-पुंज प्रकट हुआ और उसमें एक पुरुष दिखलाई पड़ा।
भगवान शिव ने उस पुरुषाकृति से कहा-
काल की भांति शोभित होने के कारण तुम साक्षात कालराज हो। तुम से काल भी भयभीत रहेगा, अत: तुम कालभैरव भी हो।
मुक्तिपुरी काशी का आधिपत्य तुमको सर्वदा प्राप्त रहेगा।
उस नगरी के पापियों के शासक भी तुम ही होंगे।
भगवान शंकर से इन वरों को प्राप्त कर कालभैरव ने अपनी अंगुली के नाखून से ब्रह्मा का एक सिर काट दिया।
भगवान भैरवनाथ को प्रसन्न करने के उपाय -
1. रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें।
इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें।
यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए।
यदि कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया।
यदि कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)।
यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए हैं।
2. उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें।
सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं।
स्मरण रहे , पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें।
यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।
3. शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो।
रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं।
मन लगाकर उनकी पूजन करें।
बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें।
साथ लाए जलेबी, नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे।
अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं।
4. प्रति गुरुवार कुत्ते को गुड़ खिलाएं।
5. रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें।
6. सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं।
7. शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें।
8. रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मंदिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं।
9. पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं।
10. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।
भैरव आराधना के लिए इनमे से कोई भी मंत्र ले सकते हैं -
- 'ॐ कालभैरवाय नम:।'
- ॐ भयहरणं च भैरव:।'
- 'ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।'
- 'ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:।'
- 'ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्।'
उपरोक्त मंत्र जप आपके समस्त शत्रुओं का नाश करके उन्हें भी आपके मित्र बना देंगे।
आपके द्वारा सच्चे मन से की गई भैरव आराधना और मंत्र जप से आप स्वयं को जीवन में संतुष्ट और शांति का अनुभव करेंगे।
भैरव अष्टमी की पौराणिक कथा
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एक बार की बात है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली। इस बात पर बहस बढ़ गई तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई। सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है। सभी ने अपने अपने विचार व्यक्त किए और उतर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया परन्तु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए। इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा।
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया। इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है। इनके एक हाथ में छड़ी है इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है। शिवजी के इस रूप को देख कर सभी देवता घबरा गए। भैरव ने क्रोध में ब्रह्मा जी के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया। तब से ब्रह्मा के पास चार मुख है। इस प्रकार ब्रह्माजी के सर को काटने के कारण भैरव जी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया। ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफ़ी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए।
भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा। इस प्रकार कई वर्षो बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता हैं। इसका एक नाम दंडपाणी पड़ा था। इस प्रकार भैरव जयंती को पाप का दंड मिलने वाला दिवस भी माना जाता है।