
सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार क्यों नहीं करते
हमारे सनातन धर्म में जन्म से लेकर मृत्युपरंत सोलह संस्कारों में दाह संस्कार अंतिम संस्कार है।
1.
आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो सूर्य समस्त जगत की आत्मा का कारक है।
मृत्युपरांत हमारी आत्मा का उसी में समा जाती है।
इसीलिए कोशिश यही की जाती है कि सूर्य की उदयावस्था क्षेत्र अनुसार जो हो उसी में दाह संस्कार हो।
पौराणिक मान्यता अनुसार सूर्यास्त उपरान्त दाह संस्कार से परलोक में कष्ट भोगने पड़ते हैं और अगले जन्म में भी अनेकानेक कष्ट भोगने पड़ सकते हैं।
हमारे संस्कारों में हमारे पुर्वजों द्वारा एक बहुत ही अच्छी प्रथा का पालन किया जाता आ रहा है कि,
जीवित रहते किसी से कितना भी वैर हो , लेकिन मृत्यु के बाद उसके शरीर से अनादर नहीं किया जाता।
और सभी यही कामना करते हैं कि परलोक में दिवंगत आत्मा को शांति मिले।
इसलिए उस प्रचलित प्रथा अनुसार दिन में ही दाह संस्कार किया जाता है ताकि उसे परलोक में कष्ट न मिले और आने वाला जीवन कष्टमय न हो।
धन्य है हमारी संस्कृति।
2. एक अन्य कारण यह भी है कि हमारे शरीर में सुक्ष्म प्राण भी होता है।
जो मृत्यु परांत शरीर में रह जाता है।
शास्त्रों अनुसार इसका निकास सिर के उपरी भाग से होता है।
जब मृत शरीर चिता पर कुछ जल जाता है तो घर का बड़ा पुत्र या उसके अभाव में कोई भी रिश्ते दार अथवा अन्य बांस से उसे वहां से मुक्त करता है।
और वह सुक्ष्म प्राण उदित सूर्य में समा जाता है।
3. सूर्यास्त के बाद एक दम दाह संस्कार न करे ताकि अन्य रिश्तेदार भी उनके अंतिम दर्शन कर सकें।
सूर्यास्त के बाद इस सुक्ष्म प्राण के सूर्य में न समाना और इधर उधर अन्य प्रेतादि योनियों में भटकना माना जा सकता है।
जो की पुर्ण रूप से आध्यात्मिक है इसे वैज्ञानिक संदर्भ से देखना मात्र एक विवाद तर्क कुतर्क का माध्यम कहा जा सकता है।
ऋषि मुनि सिद्ध पुरुष इस सुक्ष्म प्राण को अपने योग द्वारा ही उस परमात्मा में स्थापित कर शरीर का त्याग कर देते हैं।
तीसरा लौकिक सामाजिक दृष्टि से भी देखें तो कह सकते हैं कि खानदान के सभी रिश्ते दार समय से पहुंच जाएं तो उसके लिए भी यह एक विकल्प रहता है कि सूर्यास्त के बाद एक दम दाह संस्कार न करे ताकि अन्य रिश्तेदार भी उनके अंतिम दर्शन कर सकें।
कारण और भी हो सकते हैं