वैदिक काल से ही सिंह का यह मुख, यह मघा बड़े ही महत्व का नक्षत्र रहा।
ऋग्वेद दशम मण्डल के पचासीवां सूक्त में तेरहवीं ऋचा है -
सूर्याया वहतुः प्रागात्सविता यमवासृजत् ।
अघासु हन्यन्ते गावोऽर्जुन्योः पर्युह्यते ॥१३॥
-- सूर्य्य ने अपनी पुत्री सूर्य्य के विवाह में जो कन्याधन दिया, वह आगे चला। उसे ढोने वाली गाड़ियों के बैलों को मघा नक्षत्र में मारना पड़ता है। दोनों फाल्गुनी नक्षत्रों में रथ वेग से आगे बढ़ता है।
माघ का महीना वसन्त का मौसम लाता है। वसन्त केवल मनुष्य के लिए नहीं , वसन्त समस्त प्रकृति के लिए। सभी अच्छों के लिए , बुरों के लिए भी। वसन्त में मस्ती है , अल्हड़पन है , नियम-भंजन है। वसन्त में इसी कारण स्वास्थ्य ही आनन्दित नहीं होता , रोग भी प्रसन्न हो जाते हैं। माघ में गुण ही नहीं खिलते , दोष भी प्रकट हो उठते हैं। ऐसी ढेरों संक्रामक-असंक्रामक बीमारियाँ हैं , जिनके रोगी माघ-वसन्त के इस समय में अधिक देखने को मिलते हैं। अलग-अलग अंग अगर इस ऋतु में खिलते हैं , तो रोगों के कारण मुरझा भी जाते हैं।
कालिदास और कोई नहीं आमाशय-आँतों से निर्मित पाचन-तन्त्र है। वह कालि का दास है : कालि वही पित्त है , जिसे यकृत बनाता है। यकृत को कालिक भी कहा गया है। जो कालि को उत्पन्न कर सके , वही कालिक है। हरे-भूरे रंग का यह द्रव यकृत से निकलता है , तभी भोजन का पाचन सुचारु होता है। कालिक के नीचे दबा यह आमाशय-स्वरूप कालिदास अपने भीतर उपमा का गुण लिये है। मा के कई अर्थों में नापने ( मापने ) का भाव भी है , मना करने का भी। जो मना करना जानता हो भोजन को और उसे माप सकता हो , वही उपमा-सम्पन्न है। इसीलिए स्वास्थ्य-काव्य का कालिदास उपमा-सम्पन्न है : यों ही कहावत नहीं बनी कि पेट बड़ा ईमानदार है !
सिंह राशि के अन्तर्गत आने वाले सवा दो नक्षत्रों में पहले मघा, फिर पूर्वा फाल्गुनी और फिर उत्तरा फाल्गुनी का प्रारम्भिक चतुर्थांश आते हैं।
तो सिंह का मुख है मघा!
सिंह की नाक से उसके गर्दन की अयाल तक है मघा।
अघा है मघा।
माघ में सजने का भाव है , चलने का भाव है , कुछ आरम्भ करने का भाव है। लेकिन यह ठगना और कलंकित करना भी जानता है। इस ऋतु में स्वास्थ्य बन सकता है , बिगड़ भी। बहुत सर्दी और बहुत गर्मी के बीच का समय सबको सुहाता है : रोगकारी को , रोगपीड़ित को और रोगनाशक को भी।
इस माघ के नाम में नक्षत्र मघा की संज्ञा छिपी है। माघ वह जिसकी पूर्णिमा को चन्द्रमा मघा से संचरण करे। मघा क्या ? एक तारा-समूह। पाँच तारों को लिए। आकृति भवन-जैसी। भवन कौन ? शरीर। पाँच बाण किसके ? काम के। काम केवल प्रेम का ही संचार नहीं करता , समस्त इच्छाओं-कामनाओं का करता है। सभी चाहतें काम हैं , जो हृदयरूपी इस नक्षत्र में रहती हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि इस नक्षत्र का स्थान भी सिंह राशि का हृदय है : लीक को छोड़ कर चलने वाले शायर , सिंह , सपूत ही तो सर्वाधिक काम-सम्पन्न होते हैं !
इसलिए माघ में चलिए , पर भटकिए नहीं। कालिदास के स्वास्थ्य पर ध्यान दीजिए , भारवि का अर्थ-गौरव सन्तुलित रखिए , दण्डी के पदलालित्य को बनाये रखिए।