हस्तरेखा शास्त्र विज्ञान सम्मत है।
हस्तरेखाओं से सम्बन्धित विषय सम्पूर्ण रूप से वैज्ञानिकहैं। यह भारतीय तत्व-विज्ञान की एक छोटी सी शाखा हैं। वस्तुत: यह तत्व-विज्ञान ही वास्तव में विज्ञान है, शेष सभी तुक्का है, जिसमें जानकारियाँ मात्र है और इन जानकारियों को ही भौतिक विज्ञान विज्ञान कहता है, जबकि विज्ञान का सम्बन्ध एक ऐसे सुव्यवस्थित सूत्रात्मक व्यवस्था के ज्ञान से हैं; जो प्रकृति के तमाम रहस्यो को व्यक्त कर सके । आधुनिक विज्ञान इस विषय पर कोरा है । वह मुट्ठी भर जानकारियों को ही विज्ञान कह रहा है ।
पुस्तक के सामुद्रिक खंड में हमने यह विवरण सम्पूर्ण रूप से स्पष्ट किया है कि किस प्रकार से मूलतत्व में भवँर का निर्माण होता है और किस प्रकार एक सृक्ष्मतम् परमाणु की उत्पत्ति होती है, जिसे वैदिक भाषा में 'आत्मा' कहा गया है । यह परमाणु एक सर्किट का रूप धारण कर लेता है, जो ऊर्जा-धाराओं (इसमें मृलतत्व ही घूमते हुए विभिन्न धाराओं में प्रवाहित होते है) के क्रास पर अपने ऊर्जा उत्सर्जन बिनु को उत्पन्न करताहैं। ये बिन्दु नये-नये स्वरूप में तरंगों को उत्सर्जित करते हैं और यह परमाणु स्वचालित हो जाता है ।
स्वचालित होकर यह नाचने लगता है और अपना विस्तार करने लगता है। इसके नाभिक से प्रथम परमाणु जैसे परमाणुओं की बौछार होने लगती है, और ये परमाणु नयी-नयी इकाइयों को उत्पन्न करने लगते हैं ।
सामुद्रिक विद्या का शरीर विज्ञान
पृथ्वी पर जो जीव-जन्तु या प्राणी दृष्टिगत होते हैं वे कोई विलक्षण उत्पत्ति नहीं हैं। इनकी उत्पत्ति भी उन्हीं सूत्रों एवं नियमों से होती है; जिन नियमों एवं सूत्रों से ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती हैं । पृथ्वी के नाभिकीय कण एवं सूर्य के नाभिकीय कणों के संयोग से प्रथम परमाणु जैसा ही एक सर्किट बनता है, जो प्राणविहीन स्थिति में पृथ्वी एवं सूर्य के नाभिकीय संयोजन के बल से अन्यन्त अल्पकाल तक सक्रिय रहता है । इसी बीच इसमेंब्रह्माडीय नाभिकीय कण समा जाता है और वह सर्किट स्वचालित होकर अनुभूत करने एवं प्रतिक्रिया व्यक्त करने लगता है । इस विषय में हम प्रथम खंडे में बता आये हैं कि यह सर्किट किस प्रकार सक्रिय होता है और कैसे पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से इसमें विभिन्न अंगों की उत्पत्ति होती है ।