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होलिका दहन दारूण रात्रि

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होलिका दहन दारूण रात्रि

आओ फाल्गुन मनाते है आओ प्रेम गीत गाते है....... राधा के कान्हा के साथ रंगो की होली मनाते है.......

ऋतु सन्धिषु रोगा जायन्ते―

अर्थात् ऋतुओं के मिलने पर रोग उत्पन्न होते हैं, उनके निवारण के लिए यह यज्ञ किये जाते थे। यह होली हेमन्त और बसन्त ऋतु का योग है। रोग निवारण के लिए यज्ञ ही सर्वोत्तम साधन है। अब होली प्राचीनतम वैदिक परम्परा के आधार पर समझ गये होंगे कि होली नवान्न वर्ष का प्रतीक है। *पौराणिक मत में कथा इस प्रकार है―होलिका हिरण्यकश्यपु नाम के राक्षस की बहिन थी। उसे यह वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी। हिरण्यकश्यपु का प्रह्लाद नाम का आस्तिक पुत्र विष्णु की पूजा करता था। वह उसको कहता था कि तू विष्णु को न पूजकर मेरी पूजा किया कर। जब वह नहीं माना तो हिरण्यकश्यपु ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को आग में लेकर बैठे। वह प्रह्लाद को आग में गोद में लेकर बैठ गई, होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। होलिका की स्मृति में होली का त्यौहार मनाया जाता है l जो नितांत मिथ्या हैं।। होली उत्सव यज्ञ का प्रतीक है। स्वयं से पहले जड़ और चेतन देवों को आहुति देने का पर्व हैं। आईये इसके वास्तविक स्वरुप को समझ कर इस सांस्कृतिक त्योहार को बनाये। होलिका दहन रूपी यज्ञ में यज्ञ परम्परा का पालन करते हुए शुद्ध सामग्री, तिल, मुंग, जड़ी बूटी आदि का प्रयोग कीजिये।

होलिका― किसी भी अनाज के ऊपरी पर्त को होलिका कहते हैं-जैसे-चने का पट पर (पर्त) मटर का पट पर (पर्त), गेहूँ, जौ का गिद्दी से ऊपर वाला पर्त। इसी प्रकार चना, मटर, गेहूँ, जौ की गिदी को प्रह्लाद कहते हैं। होलिका को माता इसलिए कहते है कि वह चनादि का निर्माण करती (माता निर्माता भवति) यदि यह पर्त पर (होलिका) न हो तो चना, मटर रुपी प्रह्लाद का जन्म नहीं हो सकता। जब चना, मटर, गेहूँ व जौ भुनते हैं तो वह पट पर या गेहूँ, जौ की ऊपरी खोल पहले जलता है, इस प्रकार प्रह्लाद बच जाता है। उस समय प्रसन्नता से जय घोष करते हैं कि होलिका माता की जय अर्थात् होलिका रुपी पट पर (पर्त) ने अपने को देकर प्रह्लाद (चना-मटर) को बचा लिया। (स) अधजले अन्न को होलक कहते हैं। इसी कारण इस पर्व का नाम होलिकोत्सव है और बसन्त ऋतुओं में नये अन्न से यज्ञ (येष्ट) करते हैं। इसलिए इस पर्व का नाम वासन्ती नव सस्येष्टि है। यथा―वासन्तो=वसन्त ऋतु। नव=नये। येष्टि=यज्ञ। इसका दूसरा नाम नव सम्वतसर है। मानव सृष्टि के आदि से आर्यों की यह परम्परा रही है कि वह नवान्न को सर्वप्रथम अग्निदेव पितरों को समर्पित करते थे। तत्पश्चात् स्वयं भोग करते थे।

हमारा कृषि वर्ग दो भागों में बँटा है―

(1) वैशाखी, (2) कार्तिकी। इसी को क्रमश: वासन्ती और शारदीय एवं रबी और खरीफ की फसल कहते हैं। फाल्गुन पूर्णमासी वासन्ती फसल का आरम्भ है। अब तक चना, मटर, अरहर व जौ आदि अनेक नवान्न पक चुके होते हैं। अत: परम्परानुसार पितरों देवों को समर्पित करें, कैसे सम्भव है। तो कहा गया है– अग्निवै देवानाम मुखं अर्थात् अग्नि देवों–पितरों का मुख है जो अन्नादि शाकल्यादि आग में डाला जायेगा। वह सूक्ष्म होकर पितरों देवों को प्राप्त होगा। हमारे यहाँ आर्यों में चातुर्य्यमास यज्ञ की परम्परा है। वेदज्ञों ने चातुर्य्यमास यज्ञ को वर्ष में तीन समय निश्चित किये हैं―

(1) आषाढ़ मास, (2) कार्तिक मास (दीपावली) (3) फाल्गुन मास (होली) यथा फाल्गुन्या पौर्णामास्यां चातुर्मास्यानि प्रयुञ्जीत मुखं वा एतत सम्वत् सरस्य यत् फाल्गुनी पौर्णमासी आषाढ़ी पौर्णमासी अर्थात् फाल्गुनी पौर्णमासी, आषाढ़ी पौर्णमासी और कार्तिकी पौर्णमासी को जो यज्ञ किये जाते हैं वे चातुर्यमास कहे जाते हैं आग्रहाण या नव संस्येष्टि।

होलिका पर्व के प्रमुख कृत्य (शास्त्रोक्त) क्या महत्वपूर्ण है

- दहन हेतु काष्ठ का संचय - स्त्रियों द्वारा होलिका पूजन - होलिका दहन से पूर्व उसका पूजन, अर्घ्य - होलिका दहन - दहन उपरान्त प्रदक्षिणा - राक्षसी के नाश हेतु अपशब्द बोलना चीखना चिल्लाना - होलिका की अग्नि में नया अन्न पकाना - रात्रि में गीत गाना नृत्य करना - प्रतिपदा में धूलि वन्दन - प्रतिपदा में धुलेंडी - बच्चों द्वारा काष्ठ की तलवार से आपस में खेलना - प्रतिपदा में बसंतोत्सव मनाना, काम पूजा और चंदन मिश्रित आम का बौर ग्रहण करना

मुहूर्तहोलिका दहन 

 होली में होलिका दहन एक निश्चित मुहूर्त में किया जाता है | संवत 2080 दिनांक 24 मार्च 2024 को पूर्णिमा सवेरे 09.54 से 25 मार्च 24 को दोपहर 12.29 बजे तक होने के कारण और 24 मरवह को भद्रा दिन में 09.54 बजे से रात 11.13 बजे तक होने के कारण इस बार 24 मार्च 2024 को होलिका दहन रात 11.13 बजे बाद किया जायेगा और बहनें अपने भाइयों को माला घोलने का कार्य सवेरे 09.54 बजे से पहले ही कर लेना चाहिए | माला घोलने का काम कभी भी भद्रा में नहीं करना चाहिए यही शास्त्र आज्ञा होती है | होलिका दहन रात 11.13 बजे बाद

होलिका_ दहनकेनियम

होलिका दहन, धुलैण्डी की पूर्व सन्ध्या पर पूर्णिमा तिथि में प्रदोष काल में किया जाता है। होलिका दहन के नियमो का स्पष्ट रूप से उल्लेख शास्त्रों मे किया गया है, जोकि निम्नलिखित प्रकार से है

शास्त्रानुसार होलिका दहन के समय भद्रा नहीं होनी चाहिए। सूर्यास्त के बाद अंधेरा होना चाहिए। इसके साथ ही पूर्णिमा का दिन भी होना चाहिए। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ रहा हो तो भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है, और अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा में रंग अर्थात धुलैण्डी का पर्व मनाया जाता है। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। धर्मसिंधु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। (शास्त्रों के अनुसार भद्रा मुख में होली दहन से न केवल दहन करने वाले का अहित होता है बल्कि यह पूरे गांव, शहर और देशवासियों के लिये भी अनिष्ट- कारी होता है। ) विशेष परिस्थितियों में यदि प्रदोष और भद्रा पूंछ दोनों में ही होलिका दहन संभव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये। #विशेष:- यदि भद्रा पूँछ प्रदोष से पहले और मध्य रात्रि के पश्चात व्याप्त हो तो उसे होलिका दहन के लिये नहीं लिया जा सकता क्योंकि होलिका दहन का मुहूर्त सूर्यास्त और मध्य रात्रि के बीच ही निर्धारित किया जाता है। कई स्थानोंपर लोग होलिका पूजन षोडशोपचारोंके साथ करते हैं । यदि यह संभव न हो, तो न्यूनतम पंचोपचार पूजन तो अवश्य करना चाहिए । होलिका-पूजन एवं प्रदीपन हेतु आवश्यक सामग्री पूजाकी थाली, हल्दी-कुमकुम, चंदन, फुल, तुलसीदल, अक्षत, अगरबत्ती घर, अगरबत्ती, फुलबाती, निरांजन, कर्पूर, कर्पूरार्ती, दियासलाई अर्थात मॅच बाक्स्, कलश, आचमनी, पंचपात्र, ताम्रपात्र, घंटा, समई, तेल एवं बाती, मीठी रोटीका नैवेद्य परोसी थाली, गुड डालकर बनाइ बिच्छूके आकारकी पुरी अग्निको समर्पित करनेके लिए होलिका-पूजन  . सूर्यास्तके समय पूजनकर्ता शूचिर्भूत होकर होलिका पूजनके लिए सिद्ध हों । . पूजक पूजास्थानपर रखे पीढेपर बैठें । . उसके पश्चात आचमन करें । अब होलिका पूजनका संकल्प करें । ‘काश्यप गोत्रे उत्पन्नः विनायक शर्मा अहं । मम सपरिवारस्य श्रीढुंढाराक्षसी प्रीतिद्वारा तत्कर्तृक सकल पीडा परिहारार्थं तथाच कुलाभिवृद्ध्यर्थंम् । श्रीहोलिका पूजनम् करिष्ये ।’ अब चंदन एवं पुष्प चढाकार कलश, घंटी तथा दीपपूजन करें । तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण अर्थात पूजा साहित्यपर प्रोक्षण करें । अब कर्पूरकी सहायतासे होलिका प्रज्वलित करें । होलिकापर चंदन चढाएं । होलिकापर हल्दी चढाएं । कुमकुम चढाकर पूजन आरंभ करें । अब पुष्प चढाएं । उसके उपरांत अगरबत्ती दिखाएं । तदुपरांत दीप दिखाएं । होलिकाको मीठी रोटीका नैवेद्य अर्पित कर प्रदीप्त होलीमें निवेदित करे । दूध एवं घी एकत्रित कर उसका प्रोक्षण करे। होलिकाकी तीन परिक्रमा लगाएं । परिक्रमा पूर्ण होनेपर मुंहपर उलटे हाथ रखकर ऊंचे स्वरमें चिल्लाएं । गुड एवं आटेसे बने बिच्छू आदि कीटक मंत्रपूर्वक अग्निमें समर्पित करे । सब मिलकर अग्निके भयसे रक्षा होने हेतु प्रार्थना करें । कई स्थानोंपर होलीके शांत होनेसे पूर्व इकट्ठे हुए लोगोंमें नारियल, चकोतरा (जिसे कुछ क्षेत्रोमें पपनस कहते हैं – नींबूकी जातिका खट्टा-मीठा फल) जैसे फल बांटे जाते हैं । कई स्थानोंपर सारी रात नृत्य-गायनमें व्यतीत की जाती है । 1. पूजक पूजास्थानपर रखे पीढेपर बैठें । 2. उसके पश्चात आचमन करें । 3अब होलिका पूजनका संकल्प करें ।

काश्यप गोत्रे उत्पन्नः विनायक शर्मा अहं । मम सपरिवारस्य श्रीढुंढाराक्षसी प्रीतिद्वारा तत्कर्तृक सकल पीडा परिहारार्थं तथाच कुलाभिवृद्ध्यर्थंम् । श्रीहोलिका पूजनम् करिष्ये ।’

3.अब चंदन एवं पुष्प चढाकार कलश, घंटी तथा दीपपूजन करें । तुलसीके पत्तेसे संभार प्रोक्षण अर्थात पूजा साहित्यपर प्रोक्षण करें । अब कर्पूरकी सहायतासे होलिका प्रज्वलित करें । होलिकापर चंदन चढाएं । होलिकापर हल्दी चढाएं । कुमकुम चढाकर पूजन आरंभ करें । 4.अब पुष्प चढाएं । 5.उसके उपरांत अगरबत्ती दिखाएं । 6.तदुपरांत दीप दिखाएं । 7.होलिकाको मीठी रोटीका नैवेद्य अर्पित कर प्रदीप्त होलीमें निवेदित करे । दूध एवं घी एकत्रित कर उसका प्रोक्षण करे। 8.होलिकाकी तीन परिक्रमा लगाएं । परिक्रमा पूर्ण होनेपर मुंहपर उलटे हाथ रखकर ऊंचे स्वरमें चिल्लाएं । गुड एवं आटेसे बने बिच्छू आदि कीटक मंत्रपूर्वक अग्निमें समर्पित करे । सब मिलकर अग्निके भयसे रक्षा होने हेतु प्रार्थना करें । 9.कई स्थानोंपर होलीके शांत होनेसे पूर्व इकट्ठे हुए लोगोंमें नारियल, चकोतरा (जिसे कुछ क्षेत्रोमें पपनस कहते हैं – नींबूकी जातिका खट्टा-मीठा फल) जैसे फल बांटे जाते हैं । कई स्थानोंपर सारी रात नृत्य-गायनमें व्यतीत की जाती है । 10.इसके बाद हनुमानजी की विशेष पूजा करें और उन्हें भोग लगाएं। 11.होली की रात को नृसिंह भगवान की पूजा करें। 12.भरभोलिए की छोटी माला बनाएं और सिर के ऊपर से 7 बार घूमा कर होली की आग में फेंक दें।

कंडे की माला को भरभोलिए कहते हैं। एक माला में 7 भरभोलिए होते हैं।

13.काले कपड़े में काली हल्दी को बांधकर 7 बार ऊपर से उतार कर होली की अग्नि में भस्म कर दें। 14.पान का एक पत्ता लें होलिका अग्नि की 7 परिक्रमा करें। 15.परिक्रमा पूरी होने के बाद पान का पत्ता माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए होली की आग में अर्पित कर दें।

दारूण रात्रि

साधना की चार रात्रियों में होली की रात्रि को दारूण रात्रि कहा गया है इसमें की गई तंत्र साधना आध्यात्मिक साधना व गुरु प्रदत्त मंत्र की साधना शीघ्र सफलता प्रदान करती है क्योंकि उस दिन ना केवल नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है अपितु किसी को कष्ट देने की भावना से किए गए कार्य में भी सफलता मिलती है... इसलिए सावधानियों का विशेष ध्यान रखें। किसी के भी द्वारा दी गई सफेद चीज मिठाई बिल्कुल ना खाएं। कहीं भी जाएं तो सड़क पर देख कर के चले किसी भी चीज को स्पर्श ना करें न उलांघे। पुरुष व स्त्री होली के दिन अपने सिर को ढक करके रखें तथा अपने सिर के बाल नाखून इधर उधर ना फेंके इसका विशेष रूप से ध्यान रखें। इस दिन किसी भी प्रकार का लेन-देन न करें आर्थिक रूप से और ना ही किसी को अपशब्द बोले चाहे कोई परिस्थिति हो। क्रोध व रति क्रिया भूलकर भी ना करें। नवविवाहिता तथा गर्भवती स्त्री होलिका दहन ना देखें तथा पहली होली सास बहू साथ में ना देखें। अपने कपड़ों का विशेष ध्यान रखें अपने कपड़ों का कोई भी हिस्सा बूम नहीं होना चाहिए यह विशेष रुप से ध्यान रखें इस दिन काले कपड़े में काले तिल सरसों राई लोंग बांधकर अपने पास रखें व रात्रि होलिका दहन में जला दे इससे किसी भी प्रकार की स्थिति का यदि कोई प्रभाव आप पर हुआ तो बहुत दूर हो जाएगा, होलिका दहन के बाद रात्रि में गुलाल ना खेले। इस दिन पीले रंग का झंडा बनाकर के विष्णु मंदिर अथवा पीपल के पेड़ पर अवश्य लगाएं तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ अवश्य करें यदि नहीं कर सकते हैं तो महामंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इसके अधिक से अधिक जाप करें।

आइए यहां जानिए होलिका दहन के दिन करने योग्य सरल अचूक उपाय...

1. आपको बता दें कि होलिका दहन में सभी घर वालों को यानी सभी सदस्यों को शामिल होना चाहिए और तीन परिक्रमा लेते हुए पीली सरसों, अलसी और गेहूं की बालियां अग्नि में डालनी चाहिए। इससे ग्रह अनुकूल होंगे, घर में शुभता आएगी। 2. होलिका दहन की भस्म का टीका करने से नजर दोष, ग्रह बाधा से मुक्ति मिलती है। 3. अगर आप किसी रोग से ग्रसित हैं, तो एक पान का पत्ता, एक गुलाब का ताजा फूल और कुछ बताशे लेकर रोगी के ऊपर से 31 बार उतार लें और उतारने के बाद इसे किसी चौराहे पर रखकर आ जाएं। आते वक्त पीछे मुड़कर न देखें। 4. जलती हुई होलिका की राख लेकर एक लोहे की कील से अपना केस नंबर और शत्रु का नाम एक कागज पर लिख दें और उसे होलिका की अग्नि में दहन कर दें। आपको कोर्ट-कचहरी में चल रहे आपके केस से निजात मिल जाएगी। 5. अपने इष्ट देवता, कुल देवी-देवता के साथ होली खेलने से घर में सुख-समृद्धि आती है। अत: धुलेंड़ी या होली के अवसर पर सबसे पहले देवी-देवता को रंग अर्पित करें। 6. विवाह में समस्या आ रही हो, तो इसे दूर करने के लिए होली वाले दिन एक पान के पत्ते पर एक सुपारी और एक हल्दी की गांठ रखकर शिवलिंग पर अर्पित कर दें और दारिद्र्य दहन शिव स्तोत्र का पाठ करें। 7. आर्थिक संकट से छुटकारा पाने के लिए होलिका दहन के समय श्री सूक्तम का पाठ करते हुए शकर की आहुति देना चाहिए। 8. यदि अभीष्ट कार्य की सिद्धि चाहिए तो इसके लिए तीन गोमती चक्र लेकर अपनी प्रार्थना को बोलते हुए अग्नि में डालकर प्रणाम करें। 9. यदि आप मानसिक तनाव से ग्रसित हैं, तो होली की रात चंद्रदेव को दूध का अर्घ्‍य देकर कोई सफेद मिठाई अर्पित करें। इस उपाय से मानसिक शांति प्राप्त होती है। 10. होलिका दहन के बाद बची हुई राख को अपने घर लाकर एक लाल कपडे में बांध कर अपनी तिजोरी में रखने से बरकत आती है तथा घर में होने वाले अनावश्यक खर्च रुकते हैं। 11. यदि आपको रोजगार की समस्या हो तो होली वाली रात्रि को एक नींबू लेकर किसी चौराहे पर जाएं और उसे काट कर चार टुकड़े कर दें। उसके बाद इन चारों दिशाओं में एक-एक टुकड़ा फेंक दें और घर वापस जाएं, बस आते वक्त पीछे मुड़कर न देखें।

समीक्षा―आप प्रतिवर्ष होली जलाते हो। उसमें आखत डालते हो जो आखत हैं–वे अक्षत का अपभ्रंश रुप हैं, अक्षत चावलों को कहते हैं और अवधि भाषा में आखत को आहुति कहते हैं। कुछ भी हो चाहे आहुति हो, चाहे चावल हों, यह सब यज्ञ की प्रक्रिया है। आप जो परिक्रमा देते हैं यह भी यज्ञ की प्रक्रिया है। क्योंकि आहुति या परिक्रमा सब यज्ञ की प्रक्रिया है, सब यज्ञ में ही होती है। आपकी इस प्रक्रिया से सिद्ध हुआ कि यहाँ पर प्रतिवर्ष सामूहिक यज्ञ की परम्परा रही होगी इस प्रकार चारों वर्ण परस्पर मिलकर इस होली रुपी विशाल यज्ञ को सम्पन्न करते थे। आप जो गुलरियाँ बनाकर अपने-अपने घरों में होली से अग्नि लेकर उन्हें जलाते हो। यह प्रक्रिया छोटे-छोटे हवनों की है। सामूहिक बड़े यज्ञ से अग्नि ले जाकर अपने-अपने घरों में हवन करते थे। बाहरी वायु शुद्धि के लिए विशाल सामूहिक यज्ञ होते थे और घर की वायु शुद्धि के लिए छोटे-छोटे हवन करते थे दूसरा कारण यह भी था।

आचार्या अंजना अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद 9407555063

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