Vastu Consultants
Vastu Shastra is a traditional Hindu system of architecture and design that is believed to help promote health, prosperity, and happiness in a person's life. Vastu consultants are professionals who are trained in the principles of Vastu Shastra and who offer guidance and recommendations for designing and organizing homes and other buildings in accordance with these principles.
Vastu consultants may offer a variety of services, including site selection, building design, interior design, and feng shui consulting. They may use tools such as floor plans, elevations, and models to help visualize and plan the design of a space, and they may make recommendations for the placement of doors, windows, furniture, and other elements to promote the flow of positive energy and mitigate the negative effects of certain placements
वास्तु शास्त्र के १८ उपदेष्टा बताये गये हैं।
अथ श्लोकाः ...
भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वकर्मा, मयदानव, नारद, नग्नजित्, विशालाक्ष (शिव), पुरन्दर (इन्द्र), ब्रह्मा ,कुमार (स्कन्द), नन्दीश्वर, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति- ये १८ वास्तुशास्त्र के उपदेष्टा प्रसिद्ध हैं। मत्स्य रूपधारी देव ने मनु से संक्षेप में इस शास्त्र का उपदेश दिया था। वास्तु ज्ञान के लिये हम इन्हें अपना नमस्कार अर्पित कर रहे हैं।
" भृगवे नमः । अत्रये नमः ।वसिष्ठाय नमः।विश्वकर्माय नमः ।मयाय नमः । नारदाय नमः नग्नजिते नमः । विशालाक्षाय नमः ।पुरन्दराय नमः । ब्रह्मणे नमः । कुमाराय नमः । नन्दीशाय नमः । शौनकाय नमः । गर्गाय नमः । वासुदेवाय नमः । अनिरुद्धाय नमः । शुक्राय नमः बृहस्पतये नमः मत्स्यरूपिणे भगवते नमः । मनवे नमः ।वास्तुशास्त्राय नमः ।"
निवास स्थान कहाँ हो, कैसा हो? यही वास्तु का प्रतिपाद्य है। स्त्री की रक्षा के लिये, परिवार की वृद्धि के लिये, जीविकोर्जन हेतु रहने के लिये, धनधान्य के संग्रह के लिये तथा धार्मिक कृत्यों को सम्पन्न करने के लिये आश्रय की आवश्यकता होती है। सर्वप्रथम गृहस्थ को उत्तम देश में ऐसा स्थान ढूंढना चाहिये जहाँ वह अपने धन तथा स्त्री की भलीभाँति रक्षा कर सके। बिना आश्रय (आवास) के इन दोनों की रक्षा नहीं हो सकती। ये दोनों धन एवं स्त्री-त्रिवर्ग के हेतु हैं।
पुरुष, स्थान और घर- ये तीनों आश्रय कहलाते हैं। इन तीनों से स्त्री, धन एवं मान की रक्षा होती है। जहाँ धर्मात्मा पुरुष रहते हों, ऐसे नगर वा ग्राम में निवास करना चाहिये। कुलीन नीतिमान् बुद्धिमान् सत्यवादी विनयी धर्मात्मा दृढव्रती पुरुष आश्रय (पड़ोस) के योग्य होता है। सुस्थान में गुरुजनों की सहमति लेकर अथवा उस ग्राम आदि में बसने वाले श्रेष्ठजनों की सहमति प्राप्त कर रहने के लिये अविवादित स्थल में घर बनाना चाहिये। कहाँ घर नहीं बनाना चाहिये ? नगर के द्वार, चौक, यज्ञशाला, शिल्पियों के रहने के स्थान, जुआ खेलने के स्थान, मांस मद्यादि बेचने के स्थान, पाखण्डियों एवं राजा के नौकरों के रहने के स्थान, देवमन्दिर के मार्ग, राजमार्ग, राजप्रासाद, राजसचिवालय- इन स्थानों से दूर रहने के लिये अपना घर बनाना चाहिये। स्वच्छ रमणीय सुमार्ग युक्त सज्जनों से आवृत तथा दुष्टों के निवास से दूर ऐसे स्थान में गृह का निर्माण करना चाहिये।
