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होलिका सामूहिक यज्ञ है

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होलिका सामूहिक यज्ञ है

त्यौहारों का दर्शन.. रीतिरिवाज...पूर्णतः वैज्ञानिक है...ऋतुपरिवर्तन के साथ ही सनातन ऋषियों ने उसे त्यौहार के रूप में जोड़ा है..!
जिससे विद्वान और सामान्य जन भी ऋतुपरिवर्तन से होने वाले प्रभाव से रक्षा और जीवन मे स्वास्थ को लाभ पहुंचा सके..!
संस्कृत में भुने हुए अन्न को # होलका# कहा जाता है।इसी नाम पर होलिका उत्सव  कहा जाता है।
सर्दी के ऋतु के समाप्ति पर भुने हुए चने गेहूं की बाली को आग लगा कर
अर्थात यज्ञ कर उसकी राख को सिर पर लगाकर अन्न की बन्दना करते थे,
जिसका नाम धूलिहरी कहाजाता था।आज इस शब्द को धुलेंडी कर दिया।

एस्ट्रोलॉजी मे
वर्ष के अंतिम मास को पूंछ मास कहा जाता है। कहते है, भद्रा की पूंछ पर होली जलाई जाती है। होली को अग्नि दिशा में जलाते है। मीन राशि को शून्य (0) राशि कहा जाता है।
दो मछली की आकृति  ज्योतिष में मीन की आकृति। यह राशि अग्नि दिशा में उदित होती है। काल पुरुष की कुंडली में। उसके ठीक सामने 6राशि रोग भाव में है। सर्दी में शीत ऋतु में कफ से खांसी, जुकाम व ज्वर
शरीर शिथिल व कमजोर हो जाता है, जिससे होली जलाकर उसके सामने नाचने कूदने जोर जोर से आवाज करने से इस बीमारियों से मुक्ति मिलती है।  साधारण छोटे बच्चे को
होली की परिक्रमा करने बालक स्वस्थ रहता हैं। मार्च मास को अंग्रेजी में मार मास कहते हैं। क्योकिं इस मास में सर्दी मर जाती है, व गर्मी ऋतु का आगमन होता है। कंडे गोल बनाकर उसमें छेद कर (0) उसकी माला बनाकर जलानी चाहिए यह भी एक प्रकार का यज्ञ ही है।
वैज्ञानिक कारण
पलाश के पुष्पों में कई प्रकार के रोगाणु मारने की क्षमता है।
इस लिए इन पुष्पों से रंग बनाकर एक दूसरे पर लगाने से..
शरीर के चर्म विकार ठीक होते है।
जलती होली की परिक्रमा से फेफड़ो में जमा सारा कफ बाहर आता है..साथ शुष्क हो चुकी त्वचा पर तपिश का प्रभाव पड़ता है..जिससे तवहा सम्बन्धी रोगों से रक्षा होती है..साथ ही त्वचा की साफ सफाई होती है ...होलिका दहन के पशहात प्रातः कीच स्नान (मडबाथ) किया जाता है...इस समय मे रस भरे फ़्लो की प्रचुर आवक होती है जिनका सेवन किया जाता है...मीठी और ठंडी चीजो का सेवन ..ध्यान से देखे और समझे रीतिरिवाजों को..विशेष रूप से खानपान आहार विहार और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से..!

बाकी की परिहार्य और अपरिहार्य परम्पराए जड़ता और मूर्खता की देन है..
आध्यात्मिक कारण
प्रह्लाद को गोद मे बैठाकर होलिका जल कर भस्म होगई, यह कथा है।
मां के गर्भावस्था में बालक कैसे रहता है शून्या कार । पैर व मुंह  पासपास।
मां अपने गर्भ की रक्षा कैसे करती है।
स्वयं समझ सकते हो।मां अपनी आहुति देकर भी अपने गर्भ की रक्षा करती है। इसी तरह प्रह्लाद की भुआ मां हुई स्वयं जल गई लेकिन प्रह्लाद को नहीं जलने दिया। क्योंकि बालक तो ईश्वर के रूप में होता है, ईश्वर को कौन जला सकता है?
एक अपना अनुभव....
होली और दीपावली दो प्रमुख त्योहार होते है | दौनो समय पर सुनते रहे है की तंत्र बहुत अधिक होता है | मौसम भी बहुत कुछ समान ही होता है.... होली पर सर्दी से गर्मी आ रही होती है और दीपावली पर वर्षा के बाद सर्दी आ रही होती है | दिन गरम और रात सर्द.... होता ही है |
दीपावली पर रात्रि में पूजन होता है होलीका दहन भी रात्रि में ही होता है.... हल्की सर्द रात में... कुछ तो समानता होती है |
अब बात करते है तंत्र की तो हमने सुना है... सर्द और सीलन की जगह नकारात्मकता होती है... | कल ही हमारे एक मित्र कह रहे थे... कालरात्रि या महारात्री भी इन्ही रातो को कहा जाता है | इसी लिए साधक इन रातों में विशेष साधना करते है |
हमने किसी से सुना था टोना टोटका होली पर बहुत होते है |
हमारे घर की प्रथा है.... घर पर होलिका दहन की आग्नि मे छोटी छोटी रोटी जो हाथ से बनाई जाती है बनाते है | उनको अनाज के संग्रहण की जगह रखा जाता है, गेहू की बाली को वर्ष भर सेक सम्हाल कर रखते है | होली की राख को भी सम्हाल कर रखते है |
लेकिन हम अपने अनुभव से एक बात जरूर कहते है...

साधना की चार रात्रियों में होली की रात्रि को *दारूण रात्रि* कहा गया है इसमें की गई तंत्र साधना आध्यात्मिक साधना व गुरु प्रदत्त मंत्र की साधना शीघ्र सफलता प्रदान करती है और इसका बहुत बड़ा महत्व भी है इस दिन सामान्य जन को जिन चीजों से बचना चाहिए..

होलिका पर्व के प्रमुख कृत्य (शास्त्रोक्त)

- दहन हेतु काष्ठ का संचय
- स्त्रियों द्वारा होलिका पूजन
- होलिका दहन से पूर्व उसका पूजन, अर्घ्य
- होलिका दहन
- दहन उपरान्त प्रदक्षिणा
- राक्षसी के नाश हेतु अपशब्द बोलना चीखना चिल्लाना
- होलिका की अग्नि में नया अन्न पकाना
- रात्रि में गीत गाना नृत्य करना
- प्रतिपदा में धूलि वन्दन
- प्रतिपदा में धुलेंडी
- बच्चों द्वारा काष्ठ की तलवार से आपस में खेलना
- प्रतिपदा में बसंतोत्सव मनाना, काम पूजा  और चंदन मिश्रित आम का बौर ग्रहण करना
विषय बड़ा है।
होलिका पूजन विधि

शुभासने प्रांगमुख उपविश्य आचम्य प्रणानाम्य। सुमुख्श्चेत्यादि पठित्वा।
*अध्येत्यादि सकुटुम्बस्य मम ढूंढाराक्षसीप्रीत्यर्थं तत्पीड़ापरिहारार्थं होलिका पूजनमहं करिष्ये।*

शुष्कानां काष्टानां  गोमयपिंडानां च राशि कृत्वा  शास्त्रोक्तसुविहितकाले वह्निना प्रदीप्य अक्षतान गृहीत्वा
*अस्माभिर्भयसंत्रस्तै: कृत्वा त्वं होली बालिशै:।*
*अतस्त्वां पूजयिष्यामि बहुते भूतिप्रदा भव।।*

होलिकायै नमः। होलिकामावाहयामि।
इत्यावाह्य होलिकायै नमः।
इति मन्त्रेण यथाशक्तया होलिकां सम्पूज्य प्रार्थयेत।

*वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्मणा शंकरेण च।*
*अतस्त्वं पाहि नो देवि भूते भूतिप्रदा भव।।*

इति सम्प्रार्थ्य तत: प्रदक्षिणा त्रयं कुर्यात।

*तमग्नि त्रि: परिक्रम्य गायन्तु च हसन्तु च।*
*जल्पन्तु स्वेच्छया लोका निः शंका यस्य यन्मत्तम।।*

इति प्रक्षिणात्रयं  कृत्वा अनया पूजया होलिका प्रीयताम। ब्राह्मणं सम्पूज्य तस्मै दक्षिणा दत्वा तेभ्य आशीषो गृहीत्वा गृहमागत्य यथेष्टं भुंजीत।।
होलिका त्यौहार क्यों मनाया जाता है इसके लिए एक लोककथा अत्यंत प्रसिद्द है। लोककथा के अनुसार हिरण्यकशिपु की बहिन होलिका ने प्रह्लाद के वध के लिए उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया और स्वयं को एक ऐसे वस्त्र से ढंक लिया जिससे अग्नि उसे न जला पाए । लेकिन वायु ने उस वस्त्र को होलिका से हटा कर प्रह्लाद पर डाल दिया जिससे प्रह्लाद बच गया लेकिन होलिका जल गई ।

इस लोककथा में चार जगह अपना ध्यान केंद्रित करें : *प्रह्लाद, होलिका, अग्नि, वस्त्र*

‘ह्लाद’ संस्कृत भाषा का शब्द है । ह्लाद शब्द में आ तथा प्र उपसर्ग का प्रयोग करने पर शब्द बनते है: आह्लाद एवं प्रह्लाद जिनका अर्थ होता है आनंद, उल्लास, प्रेम आदि।

होला अर्थात् मुरझा कर सुखी हुई ज्वलनशील लकड़ी अतः होलिका जलन , इर्ष्या द्वेश का प्रतीक है।

वस्त्र और कुछ नहीं बल्कि राम नाम ही है . “रामनामजपतां कुतो भयं सर्वतापशमनैकभेषजम् । पश्य तात मम गात्रसन्निधौ पावकोSपि सलिलायतेSधुना ।।”

अतः होलिका त्यौहार प्रेम, आनंद तथा उल्लास का त्यौहार है जिसमें ईर्ष्या, द्वेष तथा अन्य समस्त बुराइयों को अग्नि में दाह किया जाता है . यह सब बिना राम नाम के संभव नहीं है .अग्नि की पूजा करते हैं। यज्ञ करते समय कंडा व लकड़ी जला कर आहुति देते हैं, इसी तरह लकड़ी व कंडा जला कर इसी ऋतु में उतप्पन अन्न की आहुति देते है।
निःसंदेह अग्नि की पूजा है..

सबसे पहले मैं उनके बारे में चर्चा करू ..क्योंकि उस दिन ना केवल नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ जाता है अपितु किसी को कष्ट देने की भावना से किए गए कार्य में भी सफलता मिलती है इसलिए सावधानियों का विशेष ध्यान रखें......
कर्म के साथ कुछ उपाय करना अलर्ट होकर करें...
🔔मून के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
किसी के भी द्वारा दी गई सफेद चीज मिठाई बिल्कुल ना खाएं।
🔔 राहु के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
कहीं भी जाएं तो सड़क पर देख कर के चले किसी भी चीज को स्पर्श ना करें न उलांघे।

🔔केतु के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
पुरुष व स्त्री होली के दिन अपने सिर को ढक करके रखें तथा अपने सिर के बाल नाखून इधर उधर ना फेंके इसका विशेष रूप से ध्यान रखें।

🔔मंगल के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
इस दिन किसी भी प्रकार का लेन-देन न करें आर्थिक रूप से और ना ही किसी को अपशब्द बोले चाहे कोई परिस्थिति हो।
🔔वीनस के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
क्रोध व रति क्रिया भूलकर भी ना करें।
🔔गुरु के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
नवविवाहिता तथा गर्भवती स्त्री होलिका दहन ना देखें तथा पहली होली सास बहू साथ में ना देखें।

🔔बुध के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
अपने कपड़ों का विशेष ध्यान रखें अपने कपड़ों का कोई भी हिस्सा बूम (फटा)नहीं होना चाहिए यह विशेष रुप से ध्यान रखें
🔔शनि के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
इस दिन काले कपड़े में काले तिल सरसों राई लोंग बांधकर अपने पास रखें व रात्रि होलिका दहन में जला दे इससे किसी भी प्रकार की स्थिति का यदि कोई प्रभाव आप पर हुआ तो बहुत दूर हो जाएगा..
🔔सूर्य के नेगेटिविटी से बचने के लिए...
होलिका दहन के बाद रात्रि में गुलाल ना खेले।
🔔🔔ग्रहों के  ठीक करने के लिए... इफेक्टिव उपाय
1.इस दिन पीले रंग का झंडा बनाकर के विष्णु मंदिर अथवा पीपल के पेड़ पर अवश्य लगाएं तथा विष्णु सहस्रनाम का पाठ अवश्य करें यदि नहीं कर सकते हैं तो महामंत्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इसके अधिक से अधिक जाप करें।
2.जल से डालते हुए परिक्रमा की जाती है।होलिका दहन से पहले.. नेगेटिविटी दूर करना चाहिए..
3.जिसे हम मारवाड़ में भरभौलियां कहते हैं।गोबर से गोल छिद्र युक्त रिंग जैसा नौ रिंग(नौ ग्रह )एक नारियल आकर का बना कर माला बनाते हैं,फिर घर के सभी परिवार सदस्यों पर उवार कर होली दहन के साथ जलाते हैं।
3.हर परिवार के सदस्य के नाम से सूखा नारियल 7बार उतार कर जलती होलिका मे डाल दे..
4. राई +नमक +सरसों +लोंग +चने का आटा मिलाकर उतरा करें.. होलिका मे डाल दे.
5. होली की ग़ुलाल मे होलिका की राख़ मिलाकर लगाए..
6. पान ओर बताशा के साथ नवग्रह की लकड़ी अर्पित करें..
7.होलिका की राख़ ओर होली की आग मे पानी गर्म करके नहाने से रोग नहीं होते है..

आचार्य अंजना 9407555063

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