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CORPORATE ASTROLOGY

पोलटिकल एस्ट्रोलॉजी (पोलटिक्स )
ज्योतिष की सहायता से राज्य की राजनीति व्यवस्था का संचालन भी किया जाता रहा है ,16 संस्कारों के माध्यम से युवराजों का नामकरण ग्रह नक्षत्रों को देखकर ही किया जाता था। राजतिलक में मुहूर्त आदि का। प्राचीन भारत की ज्ञानधारा और राजनीतिक धार्मिक ज्ञान चक्षु रहा है जैसा कि आचार्य वाराहमिहीर ने कहा है दीपहीन रात्रि और सूर्यहीन आकाश की तरह ज्योतिष से हीन राजा शोभित ना होते हुए अंधे की तरह मार्ग में घूमता है।
अप्रदीपा यथा रात्रिरनादित्यं यथा नभः।तथा$सांवत्सरो राजा भ्रमत्यन्ध इवाध्वनि।।
राजा को जितना राजमाता, राजा का भाई ,स्वजन नहीं सोचते हैं उससे अधिक ज्योतिष शास्त्र राजा का हित करता है ।
राजनीति में वैदिक काल से यह प्रश्न रहा है कि राजा कौन होगा? कैसा होगा ?उसके राज्य की शासन की क्या स्थिति होगी ?इंसानी जिज्ञासाओं का समाधान ज्योतिष शास्त्रों के संहिता और होरा भाग में दृष्टिगोचर है। होरा में राजा कौन होगा इसका वर्णन विभिन्न योगों के माध्यम से हैं। आचार्य वराहमिहिर ने वृहद जातक ग्रंथ मे राजा का वर्णन किया है।
प्राहुयर्वनाः स्वतुड्.गैः क्रूरमहिर्महीपतिः*
यदि युवराज अथवा किसी भी जातक के जन्मांग चक्र में तीन गृह उच्चस्थ हूं वह राजा होता है अगर पाप ग्रह उच्चस्थ होने के पर नीच बुद्धि वाला राजा होगा बताया है ।
इसी तरह वृष लग्न में चंद्रमा हो ,चतुर्थ भाव में सिंह में सूर्य, सप्तम में गुरु दशम में कुंभ में शनि हो तो निश्चय ही राजा होता है ।अतः हम देखें तो राष्ट्र के उत्थान में इस तरह से राजा का सिंहासन में बैठने से लेकर युद्ध करने तक विभिन्न ज्योतिषियों से परामर्श करके समय ,दिन, दिशा, नक्षत्रों को जानकर युद्ध जीता जाता था ।
पांच मूल स्वरों में से अकार का निवास पूर्व में इकार का दक्षिण में उ कार का पश्चिम में एकार का उत्तर में तथा ओंकार का स्वर मध्य में रहता था, इस दिशा को ध्यान में रखकर राजा युद्ध को निकलता था और राजा संधियों को भी ग्रह नक्षत्र और राज्य की दिशा का ज्ञान लेकर सोचता था ।प्राचीन काल से ही राष्ट्र में शुभ अशुभ घटनाओं हानि से बचने के लिए ज्योतिष शास्त्र लाभदायक ही सिद्ध हुआ है।
विभिन्न राजयोगो का निर्माण ,राजनीति, संधि, दुर्ग, राज्यभिषेक,युद्ध, जय पराजय, सुभिक्ष,दुभिक्ष,राज्यसीमा तथा राजनीति व देश मे पडने वाली भविष्य योगी सूचनाएं प्रदान करता हैं।
पुरातन काल में शास्त्र लेख एवं आत्मवचन ही सत्य के प्रतिपादन में पर्याप्त माने जाते रहे हैं। उन दिनों प्रतिपादन करते महामनीषी ही होते थे , वे अपने शोध पवित्रता एवं पकड़ता के कारण प्रखरता के कारण वह वही कहते थे जो उनकी दृष्टि से सही होता था। किंतु यह आज बौध्दिक जगत में ऐसे ही असमंजस एवं विद्रोह भरी स्थिति का वातावरण छाया हुआ है।
भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की छमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा ।मनुष्य का कर्तव्य उसके सफलताओं का कारण है, हर व्यक्ति के जीवन में जोड़ बाकी गुणा भाग का काम करता है। अपना भू -लोक सौर मंडल के वृहत परिवार का एक सदस्य है , और उसमे सारे परिजन एक सूत्र में आबद्ध हैं।
राष्ट्र के निर्माण में ज्योतिष की महत्वता तब है कि राष्ट्र प्रगति करे समृद्धि प्राप्त करें परंतु मानसिक शांति प्रसन्नता को बढ़ावा मिले। अगर कोई देश सब तरफ से प्रगति करें परंतु उसमें यह गुण ना हो तो कैसे बुद्धिमत्ता प्रगतिशीलता कहा जाएगा ?साधनों को अत्यधिक महत्व देकर साध को भुला दिया? सभ्यता की चर्चा बहुत है, जीवन स्तर भी बढ़ रहा है ,परंतु हमारे संस्कार संस्कृति का नाश हो रहा है..

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