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चैत्र नवरात्रि क्या है?
(वेदों का नजरिया)

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चैत्र नवरात्रि क्या है?
(वेदों का नजरिया)

नवम आयाम रन्ध्र या कमी है जिसके कारण नयी सृष्टि होती है, अतः नव का अर्थ नया, 9-दोनों है-
नवो नवो भवति जायमानो ऽह्ना केतुरूपं मामेत्यग्रम्। (ऋक् ) = नव (9) से नया उत्पन्न होता है। दिनों के आरम्भ का सूचक (केतु) उषा पहले होता है।
सृष्टि का स्रोत अव्यक्त है, उसे मिलाकर सृष्टि के 10 स्तर हैं , जिनको दश-होता, दशाह, दश-रात्रि आदि कहा गया है-
यज्ञो वै दश होता। (तैत्तिरीय ब्राह्मण ) = यज्ञ 10 होता (निर्माता) है।
विराट् ही यज्ञ है। विराट् के 10 अक्षर हैं।
विराट् एक छन्द है जिसके प्रति पाद में १० अक्षर हैं।
अन्तो वा एष यज्ञस्य यद् दशममहः। (तैत्तिरीय ब्राह्मण)= इस यज्ञ का अन्त है जो 10 वां दिन है।
अथ यद् दशरात्रमुपयन्ति। विश्वानेव देवान्देवतां यजन्ते। (शतपथ ब्राह्मण )=अब जो 10 रात्रि तक चलता है उसमें सभी देव देवों का यजन करते हैं (पुरुष सूक्त १५ में-देवों ने पुरुष पशु से विश्व की सृष्टि की)
प्राणा वै दशवीराः।
= प्राण ही 10 वीर हैं
. मुख्य नवरात्र-वर्ष के 360 दिनों में 40 नवरात्र होंगे। अतः यज्ञ के वेद यजुर्वेद में 40 ग्रह हैं (ग्रह = जो ग्रहण करे)-यद् गृह्णाति तस्माद् ग्रहः। (शतपथ ब्राह्मण १०/१/१/५)
षट् त्रिंशाश्च चतुरः कल्पयन्तश्छन्दांसि च दधत आद्वादशम्।
यज्ञं विमाय कवयो मनीष ऋक् सामाभ्यां प्र रथं वर्त्तयन्ति। (ऋक् १०/११४/६)
= 36 और 4 प्रकार के ग्रह (सोम-पात्र) में 12 प्रकार के छन्द (सीमाबद्ध) होते हैं।
40 नवरात्रके लिये महाभारत में युद्ध के बाद 40 दिन का शोक बनाया गया था, जो आज भी इस्लाम में चल रहा है।
आजकल वर्ष में चन्द्रमा की 13 परिक्रमा के लिये 13 दिन का शोक मनाते हैं। (तेरहवीं)
40 नवरात्रों में 4 मुख्य हैं-
(१) दैव नवरात्र-उत्तरायण के आरम्भ में जो प्रायः 22 दिसम्बर को होता है। भीष्म ने इसी दिन देह त्याग किया था।
(२) पितर नवरात्र-दक्षिणायन आरम्भ-प्रायः 23 जून को।
(३) वासन्तिक नवरात्र-उत्तरायण में जब सूर्य विषुव रेखा पर हो।
(४) शारदीय नवरात्र-दक्षिणायन मार्ग में जब सूर्य विषुव रेखा पर हो।-ये दोनों मानुष नवरात्र हैं।
सभी नवरात्र इन समयों के चान्द्र मास के शुक्ल पक्ष में होते हैं-पौष, आषाढ़, चैत्र, आश्विन। 
नव संवत्सर…
कार्त्तिक की नव रात्रि-आकाश में ग्रह गति जानने के लिये क्रान्तिवृत्त है जो सूर्य के चारों तरफ पृथ्वी कक्षा के तल में है। पृथ्वी की घूर्णन गति जानने के लिये या सूर्य की पृथ्वी सतह पर उत्तरायण या दक्षिणायन जानने के लिये विषुव वृत्त है जो विषुव रेखा का अनन्त गोले की सतह पर प्रक्षेप है। उसी सतह पर क्रान्ति वृत्त भी है। दोनों परस्पर को २ विन्दुओं पर काटते हैं। यह किसी ग्लोब पर देखा जा सकता है। जिस विन्दु पर क्रान्तिवृत्त विषुव वृत्त से ऊपर उठता हुआ दीखता है, वहां सूर्य आने से विषुव संक्रान्ति होती है। जिस चान्द्र मास में यह संक्रान्ति होती है उससे वर्ष आरम्भ होता है। यहां पर दो रेखायें एक दूसरे को कैंची की तरह काटती हैं, अतः इस विन्दु को कृत्तिका (कैंची) कहते हैं। कलियुग आरम्भ में तथा उससे २६,००० वर्ष पूर्व यह विन्दु वहीं था जहां आकाश में कृत्तिका नक्षत्र दीखता है। वह पूर्व पुरुष (जिससे सभ्यता आरम्भ हुई) स्वायम्भुव को मनु कहते हैं। उसके ७१ युगों को मन्वन्तर कहते हैं।
ब्रह्माण्ड पुराण (१/२/२९)-त्रीणि वर्ष शतान्येव षष्टिवर्षाणि यानि तु। दिव्यः संवत्सरो ह्येष मानुषेण प्रकीर्त्तितः॥१६॥
= ३६० मनुष्य (सौर) वर्षों का १ दिव्य सम्वत्सर होता है।
एवं पञ्चवर्षस्य युगस्यादिः संवत्सरः'
अर्थात्
पाँच वर्षों के युग के प्रथम वर्ष का आरम्भ सम्वत्सर से है ।
'वसन्त ऋतूनाम् '
अर्थात्
ऋतुओं में प्रथम स्थानीय ऋतु वसन्त है ।
'माघो मासानाम् '
अर्थात्
प्रथमस्थानीय मास माघ है।
'पक्षाणां शुक्लः '
अर्थात्
पक्षों में प्रथमस्थानीय पक्ष शुक्ल है।
'अयनयोरुत्तरम् '
अर्थात्
अयनों में उत्तर अयन प्रथम है।
'दिवसानां शुक्लप्रतिपत् '
अर्थात्
दिवसों में प्रथमस्थानीय दिवस शुक्ल प्रतिपदा वाला है ।
'मुहूर्तानां रौद्रः'
अर्थात्
मुहूर्त्तों में प्रथमस्थानीय मुहूर्त्त रौद्र है।
'करणानां किंस्तुघ्नः'
अर्थात्
करणों (तिथ्यर्द्ध) में प्रथमस्थानीय करण किंस्तुघ्न है। आथर्वण ज्योतिष में इसे कौस्तुभ कहा गया है।
'ग्रहाणां ध्रुवः"
अर्थात्
ग्रहों (खगोलीय पिण्डों) में प्रथमस्थान ध्रुव तारा का है ।
एवं पञ्चवर्षस्य युगस्यादिः संवत्सरः'
अर्थात्
पाँच वर्षों के युग के प्रथम वर्ष का आरम्भ सम्वत्सर से है ।
'वसन्त ऋतूनाम् '
अर्थात्
ऋतुओं में प्रथम स्थानीय ऋतु वसन्त है ।
'माघो मासानाम् '
अर्थात्
प्रथमस्थानीय मास माघ है।
'पक्षाणां शुक्लः '
अर्थात्
पक्षों में प्रथमस्थानीय पक्ष शुक्ल है।
'अयनयोरुत्तरम् '
अर्थात्
अयनों में उत्तर अयन प्रथम है।
'दिवसानां शुक्लप्रतिपत् '
अर्थात्
दिवसों में प्रथमस्थानीय दिवस शुक्ल प्रतिपदा वाला है ।
'मुहूर्तानां रौद्रः'
अर्थात्
मुहूर्त्तों में प्रथमस्थानीय मुहूर्त्त रौद्र है।
'करणानां किंस्तुघ्नः'
अर्थात्
करणों (तिथ्यर्द्ध) में प्रथमस्थानीय करण किंस्तुघ्न है। आथर्वण ज्योतिष में इसे कौस्तुभ कहा गया है।
'ग्रहाणां ध्रुवः"
अर्थात्
ग्रहों (खगोलीय पिण्डों) में प्रथमस्थान ध्रुव तारा का है ।
मेषादि राशिमाला का प्रथम बिंदु होने से यह सौर नव वर्ष होता है जिसे सतुवानि के रूप में भोजपुरी क्षेत्र में मनाया जाता है तो तमिलनाडु में नववर्ष के रूप में। पञ्जाब में बैसाखी के रूप में मनाया जाता है।
रबी की सस्य के अन्न से जुड़े इस पर्व में जौ, चना इत्यादि का सत्तू ग्रहण करने का पूरब में प्रचलन है।
तब युगादि वर्ष प्रतिपदा क्या थी?
नाम से ही स्पष्ट है - चंद्र मास का पहला दिन अर्थात वह नववर्ष चंद्र-सौर पञ्चांग से है। दोनों में क्या समानता है या दोनों कैसे सम्बंधित हैं?
उत्तर है कि दोनों वसंत विषुव के दिन के निकट हैं जब कि सूर्य ठीक पूरब में उग कर ठीक पश्चिम में अस्त होते हैं। यह 20 मार्च को पड़ता है, उसके निकट की पूर्णिमा को चंद्र चित्रा पर होते हैं तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा चंद्र-पञ्जाङ्ग से नववर्ष होती है।
ऐतरेय ब्राह्मण में हेमंत एवं शिशिर को मिला दिया गया है:
हेमन्‍तशिशिरयो: समासेन तावान्‍संवत्सर: संवत्सर: प्रजापति: प्रजापत्यायतनाभिरेवाभी राध्नोति य एवं वेद।
आजकल के आधे कार्त्तिक से आधे फाल्गुन तक के इस कालखण्‍ड में माघ महीना पड़ता है जो कभी संवत्सर का आरम्भ मास था, वही शीत अयनांत वाली उत्तरायण अवधि जिसे अब लोग संक्रांति के रूप में मनाते हैं। मैं संवत्सर में जिस दिन संवत्सर का प्रवेश होता है वह उस दिन का राजा होता है इस बार संवत्सर का प्रवेश बुधवार को हो रहा है बुध है।और जिस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है उस दिन का बार ही उस संवत्सर का मंत्री होता है इस बार सूर्य शुक्रवार प्रवेश कर रहे हैं तो मंत्री शुक्र होंगे
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा गुड़ी पड़वा पर 22 मार्च को हिन्दू नववर्ष विक्रम संवत् 2080 का आरंभ होगा।
संवत्सर जम्बूद्वीप यानि भारतीय उपमहाद्वीप में कई संवत्‌ प्रचलन में दो संवत्‌ अधिक प्रख्यात , पहला, विक्रम संवत्‌, दूसरा शक संवत्‌। इनके अलावा एक और संवत्सर प्रचलित है.
( 41 से 60)रूद्रविंशति होते हैI

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