विष्णु अवतार-गीता में कहा है कि असुरों के विनाश के लिए विष्णु ने अवतार लिया। इनका समय वायु, ब्रह्माण्ड आदि पुराणों में है-
वायु पुराण (अध्याय ९८)-युगाख्या दश सम्पूर्णा देवापाक्रम्यमूर्धनि।
तावन्तमेव कालं वै ब्रह्मा राज्यमभाषत॥५१॥
यज्ञं प्रवर्तयामास चैत्ये वैवस्वतेऽन्तरे॥७१॥
प्रादुर्भावे तदाऽन्यस्य ब्रह्मैवासीत् पुरोहितः। चतुर्थ्यां तु युगाख्यायामापन्नेष्वसुरेष्वथ॥७२॥
सम्भूतः स समुद्रान्तर्हिरण्यकशिपोर्वधे द्वितीयो नारसिंहोऽभूद्रुदः सुर पुरःसरः॥७३॥
बलिसंस्थेषु लोकेषु त्रेतायां सप्तमे युगे। दैत्यैस्त्रैलोक्य आक्रान्ते तृतीयो वामनोऽभवत्॥७४॥
एतास्तिस्रः स्मृतास्तस्य दिव्याः सम्भूतयः शुभाः। मानुष्याः सप्त यास्तस्य शापजांस्तान्निबोधत॥८७॥
त्रेतायुगे तु दशमे दत्तात्रेयो बभूव ह। नष्टे धर्मे चतुर्थश्च मार्कण्डेय पुरःसरः॥८८॥
पञ्चमः पञ्चदश्यां तु त्रेतायां सम्बभूव ह। मान्धातुश्चक्रवर्तित्वे तस्थौ तथ्य पुरः सरः॥८९॥
एकोनविंशे त्रेतायां सर्वक्षत्रान्तकोऽभवत्। जामदग्न्यास्तथा षष्ठो विश्वामित्र पुरः सरः॥९०॥
चतुर्विंशे युगे रामो वसिष्ठेन पुरोधसा। सप्तमो रावणस्यार्थे जज्ञे दशरथात्मजः॥९१॥
वैवस्वत मनु के पूर्व १० युगों तक असुरों का प्रभुत्व था (१० x ३६० =३६०० वर्ष)। असुरों के प्रभुत्व काल में विष्णु के ४ अवतार हुए-वराह, नरसिंह, वामन (विष्णु), कूर्म-
भगवान नृसिंह-
भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लेकर दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था। इस अवतार की कथा इस प्रकार है-
धर्म ग्रंथों के अनुसार दैत्यों का राजा हिरण्यकशिपु स्वयं को भगवान से भी अधिक बलवान मानता था।
उसे मनुष्य, देवता, पक्षी, पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न अस्त्र से, न शस्त्र से मरने का वरदान प्राप्त था।
उसके राज में जो भी भगवान विष्णु की पूजा करता था उसको दंड दिया जाता था। उसके पुत्र का नाम प्रह्लाद था।
प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। यह बात जब हिरण्यकशिपु का पता चली तो
वह बहुत क्रोधित हुआ और प्रह्लाद को समझाने का प्रयास किया, लेकिन फिर भी जब प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकशिपु ने उसे मृत्युदंड दे दिया।
हर बार भगवान विष्णु के चमत्कार से वह बच गया। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका,
जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त था, वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ गई।
तब भी भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई।
जब हिरण्यकशिपु स्वयं प्रह्लाद को मारने ही वाला था तब भगवान विष्णु नृसिंह का अवतार लेकर खंबे से प्रकट हुए और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकशिपु का वध कर दिया।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि
के दिन भगवान नरसिंह जयंती मनाई जाती है।भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे
, जिन्होंने हिरण्यकश्यप के वध के लिए धरती पर अवतरण लिया था।
इस विशेष दिन पर भगवान नरसिंह एवं भगवान विष्णु की उपासना करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं।
इस दिन भगवान विष्णु और नरसिंह भगवान की विधि-विधान उपासना करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
भगवान नरसिंह भगवान विष्णु के चौथे अवतार थे, जिन्होंने हिरण्यकश्यप के वध के लिए धरती पर अवतरण लिया था।
इस विशेष दिन पर भगवान नरसिंह एवं भगवान विष्णु की उपासना करने से सभी दुख दूर हो जाते हैं।
नरसिंह जयंती का शुभ मुहूर्त 03 मई 2023 को रात्रि 11 बजकर 49 मिनट पर प्रारंभ होगी और इसका समापन अगले दिन यानी
04 मई 2023 को रात्रि 11 बजकर 44 मिनट पर होगा। नरसिंह जयंती पर भगवान नरसिंह की पूजा सायं काल में की जाती है।
इसलिए पूजा का समय शाम 04 बजकर 18 मिनट से शाम 06 बजकर 58 मिनट तक ही रहेगा। वहीं व्रत का पारण अगले दिन यानी 5 मई को सुबह 05 बजकर 38 मिनट के बाद किया जाएगा
नरसिंह जयंती के दिन साधक सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद भगवान नरसिंह और माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
पूजा के समय विधि-विधान से नरसिंह भगवान की पूजा करें और उनकी मंत्रों का जाप करें।
शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान नरसिंह को लाल वस्त्र में नारियल लपेटकर अर्पित करने से विशेष लाभ मिलता है।
इस दिन नरसिंह भगवान को मिठाई, फल, केसर, फूल और कुमकुम जरूर अर्पित करें।
अंत में नरसिंह स्तोत्र का पाठ करें और आरती के साथ पूजा संपन्न करें।
मान्यता है कि भगवान नरसिंह की पूजा करने से शारीरिक व मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं
और कई प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। इसके साथ भगवान विष्णु के इन स्वरूप की उपासना करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं दूर हो जाती है।
