
ओडिशा में लोकपर्व रज उत्सव रज- पर्व दिनांक जून 14 से 16 तक
ओडिशा में धरती यानी ‘भूदेवी’ भी तीन दिनों के लिए ‘रजस्वला’ होती है। यहां की पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक चांद्र- आषाढ़ की सुरु में विष्णु भगवान श्रीजगन्नाथ जी की पत्नी ‘भूदेवी’ (महालक्ष्मी) तीन दिनों के लिए जब रजस्वला होती है, तो राज्य में कृषि से संबंधित सभी कामकाज को पूरी तरह निषिद्ध कर दिया जाता है। तब उस दौरान ही एक प्रसिद्ध त्योहार ‘रजपर्व' बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।।
इस तीन दिवसीय ‘रजपर्व’ के दौरान घर की स्त्रियों और लड़कियों को घरेलू कामकाज से पूरी तरह स्वतंत्र कर दिया जाता है। कुंवारी लड़कियां पैरों में आलता लगा कर, नए कपड़े और आभूषणों से सज- धज कर घरों से बाहर निकलती हैं और पेड़ों की मजबूत डालियों से झूले बांध कर खूब झूला झूलती हैं, पारम्परिक तरीके से खेलती- कूदती हैं। विश्वास के अनुसार, इस ‘रजपर्व’ के दौरान धरती पर नंगे पैर चलने से सख्त मना ही होती है, क्योंकि ‘भूदेवी’ इस समय ‘मासिक धर्म’ की पीड़ा झेल रही होती हैं! दरअसल, धरती प्रकृति की ओर से स्त्री जाति का प्रतिनिधित्व करती है। शायद यही वजह है कि ‘भूदेवी’ के आषाढ़ माह में रजस्वला होने की मान्यता बनी है और ऐसा है, तो फिर स्त्री के रजस्वला होने से जुड़ी पवित्रता- अपवित्रता की मान्यता इस पर्व से भी स्पष्ट होती है। यहां धरती और स्त्री एकाकार हो जाती है।।
हिंदू धर्म की पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो भी महिला रजस्वला होती है, उसके पांचवे दिन बालों को धोकर नहाने के बाद ही पूरी तरह से सभी घरेलू कामों और पूजापाठ के लिए उसे शुद्ध, पवित्र और योग्य माना जाता है और रसोईघर के सभी कामों के लिए उसे इजाजत मिल पाती है। ठीक उसी तरह इस ‘
को आषाढ़ माह में मनाए जाने के पीछे भी यह नजर आता है कि, आषाढ़ के महीने में बारिश होती है और इसी के बाद रजस्वला स्त्रियों की तरह अच्छे से धरा या ‘भूदेवी’ की भी शुद्धिकरण की प्रक्रिया पूरी होती है। साथ ही इसी महीने से हलों को भी धरती में उतार कर कृषि कार्य की शुरुआत हो जाती है।
