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 योगासन से हमारे ग्रह कैसे ठीक कर सकते हैं?- Astrological Lifestyle

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 योगासन से हमारे ग्रह कैसे ठीक कर सकते हैं?- Astrological Lifestyle

योग से ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने सनातन धर्म में शास्त्रों में जीवन जीने के तौर तरीके दिये हैं तो साथ मे ही स्वस्थ्य जीवन के लिए कुछ नियम भी बनाए गये हैं। वैसे भी आज के दौड़ भाग भरी जिंदगी में लोगो के पास स्वस्थ्य जीवन जीने का समय ही कहा बचा है, ऐसे में अगर सुबह के समय का आधा घंटा भी हम लोग अपने लिए निकाले तो इसके आधार पर हम स्वस्थ्य जीवन की कल्पना को साकार कर सकते हैं।
 
 
 
हर साल की तरह इस साल भी 21 जून के दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा साथ ही इस दिन लोगो को स्वस्थ्य लाइफ जीने के लिए प्रेरित किया जाएगा। वैसे तो पुराने समय से ही हमारे ऋषि-मुनि योग के जरिए अपने को निरोगी रखते थे। इसी योग को आम लोगों तक पहुचाकर जन जन में स्वास्थ्य क्रांति जगाने की कोशिश की जा रही है। आज हम इस लेख में योग दिवस के दिन योगासन के माध्यम से ग्रह के नकारात्मक प्रभाव को कैसे दूर किया जा सकता है इस बारे में बता रहें हैं, जिससे ग्रहों से होने वाली शारीरिक समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है। चारों ओर फैले हुए मायाजाल भौतिकतावाद में जीवन के मूल्यों को नष्ट कर दिया गया है और नकारात्मक विचार हमारे जीवन में कठिनाई लाते हैं और तनाव का सृजन होता है हमारे इन विचारों को दूर करने के लिए ऋषि-मुनियों ने अनेक सुझाव बताएं उन उपायों से हमारा अर्थ है आत्मबल बढ़ाना जिससे कि हमें सकारात्मक भावों विचारों का जन्म हो हंस योग इस क्रिया में बहुत सहायता करता है ज्योतिष को Art of planning Life कहे तो बेहतर होगा।
 
 
 
सूर्य जब भी हम व्यक्तित्व को निखारने की बात करते हैं या अपने कार्य क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं यह हमारा आत्मविश्वास बढ़ाना होता है जहां हमारी कोई एंटीबायोटिक चाहिए है बॉडी में इसके लिए हमें सूर्य को समझना बहुत जरूरी होता है और यह योग में किस तरह काम करता है जानते हैं।
सूर्य के लिए योगासन – अगर कुंडली में सूर्य की स्थिति अशुभ है तो इसके कारण आत्मविश्वास में कमी के साथ ही नकारात्मकता हावी होती है। साथ ही आंखों की रोशनी, स्नायु तंत्र, ह्रदय रोग और रक्त संबंधी समस्याओं रहती है। ससे बचने के लिए नियमित रूप से सूर्य नमस्कार, त्राटक योग, अनुलोम – विलोम और अग्निसार, सिद्धासन पद्मासन सिद्धासन आदि योग करना चाहिए।
 
 
चंद्रमा इंद्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्रांतीय हम अपनी प्राण शक्ति पर काबू रखें मन तो स्वता ही काबू रहेगा इसके लिए नियमित आसन और प्राणायाम ध्यान आवश्यक है
चंद्रमा के लिए योगासन – चंद्रमा की कमजोर स्थिति को कारण हमेशा तनाव और बेचैनी का एहसास होता है। व्यक्ति अपने को चंद्रमा की मजबूत स्थिति से बचाने के लिए नियमित रुप से अनुलोम–विलोम और भस्त्रिका प्राणायाम कर सकता है, इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा पानी भी पीएं।
 
 
मंगल के लिए योगासन – कुंडली के कमजोर मंगल के नकारात्मक प्रभाव से जीवन में अस्थिरता बनी रहती है। इसके कारण जीवन में कभी किसी चीज की काफी अधिकता तो काफी कमी हो जाती है। मंगल के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए पद्मासन, मयूरासन और शीतलीकरण प्राणायाम करें।
 
 
बुध बुद्धि का कारक होता है आज के युग में रिश्ते नाते आदि के द्वारा भी कहीं तनाव देखा जा सकता है इसके लिए हमारी बुद्धि का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है।
बुध के लिए योगासन – बुध के नकारात्मक प्रभाव से लोगो को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बचने के लिए नियमित रुप से अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और भस्त्रिका योगसन को करना चाहिए। योगनिद्रा जिसमें की श्वास की गति मंद करनी होती है और अंगों को शिथिल करना होता है वही विचारों की गति को कम करके शरीर को ढीला छोड़ कर दृष्टा भाव से देखना होता है ओंकार की ध्वनि का उच्चारण करने पर विशेष रूप से भ्रमरी प्राणायाम द्वारा किया जा सकता है।
 
 
 
गुरु बृहस्पति जो हमारे विवेक के कारक हैं और हमारा हर कोशिका का संबंध गुरु से तत्व से है प्राण शक्ति शरीर मैं एक्स्ट्रा टिशू या मोटापा से कोशिकाओं को हटाने का काम प्राणायाम के द्वारा करके गुरु तत्व को बैलेंस किया जा सकता है।
 
 
 
बृहस्पति के लिए योगासन – कुंडली में कमजोर गुरु के कारण बीमारियों का सामना करना पडता है इसके कारण से डायबिटिज और कैंसर जैसे रोग होते हैं। इससे बाचव के लिए नियमित रुप से कपाल भाति, सर्वांगासन और अग्निसार के साथ ही सूर्य नमस्कार करें। इसके लिए ध्यान की भी जरूरत है यहां पर शारीरिक क्रिया व साक्षी भाव को फिल करना होता है
 
 
शुक्र हमारा भौतिकवादी युग में सबसे प्रबल हो चुका है जिसके कारण से हम आज किसी भी कार्य का उपभोग करते हैं और व्यायाम नहीं करते न पैदल चलते है और हारमोंस का संतुलन बिगड़ना तनाव रहना मन अशांत हो और सहज और आनंदित नहीं रह पाते इन सब का कारण होता है।
शुक्र के लिए योगासन – कमजोर शुक्र कुंडली मे है तो इसके कारण व्यक्तिगत समस्याएं आती हैं व महिलाओं को भी कई तरह के रोग होते हैं। इससे बचाव के लिए नियमित रुप से धनुरासन, हलासन और मूलबंध योगासन करें।
 
 
 
शनि ग्रह हमारे जो सांस लेते हैं वह सारे प्राणायाम में आता है। योग का यहां विषाक्त पदार्थों को कम करने के लिए पसीना हमारा सबसे बड़ा टॉक्सिन के रूप में होता उसे बाहर निकालने के लिए शनि ग्रह की जरूरत होती है और प्राण ऊर्जा मजबूत होती है फेफड़ों का व्यायाम भी जरूरी होता है।
शनि के लिए योगासन – कुड़ली में शनि के नकारात्मक प्रभाव के कारण गैस्ट्रिक, एसिडिटी,टाकसिन,आर्थराइटिस, उच्च रक्तचाप और ह्रदय संबंधी रोग परेशान करते हैं, इससे बचने के लिए कपाल भांति, अनुलोम – विलोम, अग्निसार और भ्रामरी योगासन करना चाहिए।
 
 
 
राहु वैसे तो छाया ग्रह हैं परंतु हमारे स्नायु संस्थान मस्तिष्क पर हाइपोथैलेमस पर अपना प्रभाव रखता है यह सिर के क्षेत्र में पिट्यूटरी ग्लैंड पर अपना अधिकार रखता है।
राहु के लिए योगासन – राहु का कुंडली में नकारात्मक प्रभाव होने से सोचने – समझने की शक्ति पर असर डलता है, इसके लिए अनुलोम – विलोम, भ्रामरी और भस्त्रिका योगसन से लाभ मिलेगा।
 
 
 
 
केतु हमारे जीवन में कंपन किसी तरह का अचानक दर्द होता और प्रतिरोधक क्षमता घटने, कोई रोग छिपा हुआ है इसका कारण होता है मांसपेशियों में सिकुड़ना खून के प्रभाव को रोकना हृदय की धड़कन को रोकना कोई दर्द अचानक शूल जैसा चुभना। लकवाग्रस्त होना।
केतु के लिए योगासन – केतु के नकारात्मक प्रभाव से एनिमिया के साथ ही बवासीर, पेट के रोग औऱ स्नायु तंत्र से संबंधी परेशानियां होती है। इससे बचने के लिए अनुलोम–विलोम और कपालभाती करना लाभकारी होता है।
इस तरह मनुष्य का शरीरिक और आंतरिक दोनों में एक सामंजस्य होना चाहिए और जिससे कि आसपास का वातावरण भी अच्छा होना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में योगासन सबसे अच्छा माना जाता है। प्राण के वशीभूत सारा जगत है सूर्य किरणों द्वारा और अंतरिक्ष में स्थित किरण पृथ्वी पर आने के बाद वायु तत्व में मिलकर जो हमारे जीवो की जीवन शक्ति है उसको हम सांसो में धड़कन प्राण वायु के द्वारा योग करें। योग में आचरण का भी महत्व बहुत ज्यादा है।
 
 
योग शास्त्र में दाहिने स्वर को सूर्य और बाय स्वर को चंद्रमा कहां है। ईश्वर ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य है। और योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। चरण स्पर्श से लेकर मुद्रा थेरेपी तक पूजा पाठ में उपयोग होने वाले न्यास विनियोग और मुद्राओं का प्रयोग भोग लगाने में किया गया है। यह सारे कृत पूजा-पाठ नमाज पढ़ना आदि भी योगों से ही संबंधित है प्रदक्षिणा करना जिमनास्टिक और कामसूत्र भी इसमें सम्मिलित है!
दवाओं की अपेक्षा योग बेहतर रिमेडिज है। जब हम कोई शारीरिक की मांसपेशियों व मस्तिष्क की मांसपेशियों में एक्सरसाइज करते हैं तो माइक्रो कंडिया की कम संख्या होने से शरीर की सहनशीलता व मस्तिष्क द्वारा स्रावित हार्मोन के असंतुलन को बढ़ाती है फल स्वरुप न्यूरोट्रांसमीटर काम नहीं कर पाते हैं और न्यूरो जैन नेटिव रोगों को बढ़ावा मिलता है शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि नियमित कसरत व्यायाम करने से मांसपेशी की कोशिकाओं में माइट्रोकांड्रिया की संख्या बढ़ती है और व्यायाम से मानसिक स्थिति में कई सकारात्मक परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं। जब शरीर द्वारा किया जाता है तो रक्त में ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ने लगता है और ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ते ही मस्तिष्क की कोशिकाओं में माइटोकॉन्डियां की संख्या बढ़ने लगती है और माइट्रो कोंडिया की संख्या जैसे ही बढ़ते हैं वैसे ही व्यक्ति में जोश, उंमग, तरोताजगी स्फूर्ति आने लगते हैं जिससे कि माइट्रोकांड्रिया कोशिकाओं में प्राण देने वाला यंत्र है जो कि शरीर में प्राण फूंकने की क्षमता रखता है।
 
 
मौसम के हिसाब से तो और ज्यादा लाभ मिल सकता है जैसे की सर्दियों में मौसम में करने वाला योग व्यायाम दौड़ना ट्रेडमिल साइकिलिंग वाकिंग योगनिद्रा कपालभाति भ्रामरी ताड़ासन
बरसात के मौसम में भुजंगासन धनुरासन नौकासन योग निद्रा और भ्रमरी गर्मियों के मौसम में किया जाने योग मुद्रासन उष्ट्रासन स्विमिंग स्वासन योग निद्रा अर्धमत्स्येंद्रासन और मत्स्यासन है।

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