भारतीय सामुद्रिक विद्या की एक शाखा है, पर प्राचीनकाल में इसका स्वरूप सागर की भाँति विशाल था ।पृथ्वी पर जो जीव-जन्तु या प्राणी दृष्टिगत होते हैं वे कोई विलक्षण उत्पत्ति नहीं हैं। इनकी उत्पत्ति भी उन्हीं सूत्रों एवं नियमों से ब्रह्मांड की उत्पत्ति होती हैं ।
प्राचीन भारतीय भौतिकी और जेविकी का एक अंग है... सामुद्रिक शास्त्र
इसका संबंध मनुष्य ही नहीं परंतु परमाणु विज्ञान से भी है यह परमाणु विज्ञान जिसके लिए विश्व स्तर पर खोजबीन आज भी जारी है यह इतना रोमांचकारी विस्मयकारी और रहस्य पूर्ण विज्ञान है..
पृथ्वी के नाभिकीय कण एवं सूर्य के नाभिकीय कणों के संयोग से प्रथम परमाणु जैसा ही एक सर्किट बनता है, जो प्राणविहीन स्थिति में पृथ्वी एवं सूर्य के नाभिकीय संयोजन के बल से अल्पकाल तक सक्रिय रहता है ।
इसी बीच इसमेंब्रह्माडीय नाभिकीय कण समा जाता है और सर्किट स्वचालितअनुभूत प्रतिक्रिया होती है,पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के प्रभाव से इसमें सामुद्रिक शास्त्र का उपयोग आज मनुष्य के संबंधों में किया जा रहा है इससे परमाणु के आधार पर सृष्टि क्रियाशील है और यही
बिंदु सृष्टि का आधार है इसे ही विष्णु कहा गया है..
आंख फड़कना यह प्रकृति का ही एक शाश्वत गूढ सीक्रेट है जीव की इंद्रियां आंख, कान, नाक, मुंह, जननेंद्रिय इतनी विकसित है कि ब्रह्मांड के जिस भी रूप में होती हैं अनुभूत होती हैं विभिन्न अंगों की उत्पत्ति होती है ।
प्राचीन सामायिक
अंग सौंदर्य में आधा रूप चेहरे का है उससे बड़ा रूप आधार नाक को और नाक से भी ज्यादा आंख को माना गया है.. गोस्वामी तुलसीदास ने अपने भजन "श्री राम चंद्र कृपालु भजुमना" में अंतिम दोहे में इस अर्थ का उल्लेख किया है: जानि गौरी अनुपयुक्त, सिय हिय हरसु न जाहि कहि। मंजुल मंगल मूल, बाम अंग फरकन लगे । यह जानकर कि गौरी (देवी पार्वती) की कृपा थी, सिया (सीता) की खुशी अवर्णनीय थी, जो कि शुभ है, उसके बाएं शरीर के अंग हिलने / धड़कने लगे। (यानी उन्होंने शुभ समय की शुरुआत की)
वैज्ञानिक आधार:
आज भी हाथों के फिंगरप्रिंट से ज्यादा आंखों की पुतलियों एयरपोर्ट में चेकिंग की जाती है (दुबई ) इसका कारण यह है कि हर किसी की आंख की पुतली एक दूसरे से मैच नहीं कर सकती है.. आंखों में विरोनी आईलेट्स होती है जोकि आंखों की पलक दो मात्रा से कम समय के लिए बार-बार छपकती है.. जो तंत्रिका संबंधी होता है.. गैंग्लिया जैसे तंत्रिका रोग से पीड़ित व्यक्ति अपनी आंख की मांसपेशियों को प्रभावित कर सकता है जिसकेपरिणामस्वरूप एक आंख या दोनों का फड़कना हो सकता है। यह मांसपेशियों का विशेष काम होता है.. हर व्यक्ति महिला में पलक बंद करने का कम समय, मध्यम समय, और अधिक समय से संबंधित है.. कई बार खनिज तत्व, कैल्शियम की कमी या सेंट्रल नर्वस सिस्टम की प्रॉब्लम के कारण आंख लगातार फड़कती रहती है..
ज्योतिष आधार:
आंख फड़कना या "आंख फड़कना" [हिंदी] को भारतीय मान्यताओं में एक शगुन माना जाता है। नेत्र की दृष्टि से सूर्य व चंद्रमा के रूप में ज्योतिष में मान्यता है और इससे भी ज्योतिष का आधार माना है दाएं आंख में चंद्रमा का बाएं आंख में सूर्य का वास माना गया है
सूर्य🌼 नक्षत्रों का आकर्षक विज्ञान है सूर्य ही दिन रात का कारण है जो दाएं eye को बताता है.. यह पुरुषों से संबंधित है..
चंद्रमा:
स्त्री की आंखें का प्रभाव चंद्रमा से माना है चंद्रमा स्त्रियों में बाह्य व्यक्तित्व रूप में विभिन्न अंगों पर ज्यादा प्रभावी होता है इसका प्रभाव पिछले मस्तिष्क पर पड़ता है वह जगत में होने वाली क्रियाओं से संबंध रखता है इसलिए महिलाओं में आंखों के फड़कने का विशेष प्रभाव पड़ता है वह भावना संवेदना घरेलू जीवन आंखों पर नारी के गुप्तांगों पर भी यह आंखों का फड़कने से प्रभावी होता है.. वही हारमोंस का कारक चंद्रमा होता है..
ज्योतिष में दूसरा भाव राइट ऑय और द्वादश भाव Left eye को बताता है...
दूसरे भाव का कारक गुरु है और द्वादश भाव का कारक शनि है..
यह बॉडी के सिर में सेरीबेलम से जुड़ा है...
आंखों की पलक दो मात्रा से कम समय बंद करने पर व्यक्ति आश्रित मांगा जाता है 3 सेकेंड से भी कम मात्रा में पलक झपक ने वाला धनी माना जाता है वहीं पर जो लोग पलक बंद करके बैठे होते हैं उन्हें दीर्घायु माना जाता है या संत माना जाता है..
महिला व पुरुष आंखों का संबंध ग्रहों से और वैज्ञानिक आधार पर अलग-अलग देखा जाता है..