( उपनिषदों के पश्चात् ) दस पुराणों में शंभू मूर्ति बताई ( प्रधानता ) गई है --
#चार द्वारा विष्णु मूर्ति# - दो द्वारा ब्रह्मा मूर्ति# तथा एक - एक द्वारा #अग्नि और सूर्य मूर्तियाँ वर्णित हैं# --
सत्त्वादिस्वरूप - संसारवारक सब मूर्तियों में स्थित साक्षात् महादेव ही कहे गए हैं ।
#ब्रह्मा - विष्णु व रूद्र #भी इन परमशिव की ही उपासना करते हैं -- इन परमशिव से भिन्न सभी कुछ सान्त ( स अन्त ) है ( नाशवान है ) - ये अकेले ही विनाशरहित हैं ।
पुराणैर्दशर्व्रिप्राः प्रोक्तः शंभुस्तथैव च ।
चतुभिर्भगवान्विष्णुर्द्वाभ्यां ब्रह्मा प्रकीर्तितः।।
अग्निरेकेन विप्रेन्द्रास्तथैकेन दिवाकरः।
एवं मूर्त्यभिधानेन द्वारेणैव मुनीश्वराः।।
ब्रह्माविष्णुमहादेवैरूपास्यः सर्वदाः द्विजः।
अतोऽन्यदातं विप्रेन्द्रा अविनाश्योऽयमेव हि ।। "
" तथाऽपि #शिवमूर्तिष्वेव भूयसां पुराणानामादरपुराणैरिति। यान्यपि दशभ्योऽवशिष्टानि पुराणानि तेषामपि तत्तन्मूर्तयो द्वारमात्रम् । पर्यवसानं साक्षात्परम्परया वा परशिवे पर्यवसाने कारणमाह स एव मोचक इति । मोचको मोक्षप्रदः स एव साक्षान्मोक्षप्रदः। अन्ये तद्दयारा।। "