रविवार के दिन लिंग बना कर षडाक्षर मन्त्र से सोलह उपचारों के द्वारा भक्तिपूर्ण मन से भगवान् शिव कि पूजा करनी चाहिए. ग्रह यज्ञ के साथ उद्यापन करना चाहिए, उसके बाद होम करना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
फल:
अनुष्ठान को करने वाले की अकाल मृत्यु नहीं होगी. यह व्रत बांझपन को दूर करने वाला, सभी विपत्तियों का नाश करने वाला तथा सभी संपत्तियों कि वृद्धि करने वाला है. मृत्यु के पश्चात वह मनुष्य कल्पपर्यन्त मेरे समीप कैलाशवास करता है. जो मनुष्य श्रावण मास में पंचामृत से शिवजी का अभिषेक करता है वह सदा पंचामृत का पान करने वाला, गोधन से संपन्न, अत्यंत मधुर भाषण करने वाला तथा त्रिपुर के शत्रु भगवान् शिव को प्रिय होता है. जो इस मास में अनोदान व्रत करने वाला तथा हविष्यान्न ग्रहण करने वाला होता है, वह व्रीहि आदि सभी प्रकार के धान्यों का अक्षय निधिस्वरूप हो जाता है. पत्तल पर भोजन करने वाला श्रेष्ठ मनुष्य सुवर्णपात्र में भोजन करने वाला तथा शाक को त्याग करने से शाककर्ता हो जाता है ।
श्रावण मास में केवल भूमि पर सोने वाला कैलाश में निवास प्राप्त करता है. इस मास में एक भी दिन प्रातःस्नान करने से मनुष्य को एक वर्ष स्नान करने के फल का भागी कहा गया है. इस मास में जितेन्द्रिय होने से इन्द्रियबल प्राप्त होता है.
शिवलिंग:
इस मास में स्फटिक, पाषाण, मृत्तिका, मरकतमणि, पिष्ट(पीठी), धातु, चन्दन, नवनीत आदि से निर्मित अथवा अन्य किसी भी शिवलिंग में साथ ही किसी स्वयं आविर्भूत न हुए लिंग में श्रेष्ठ पूजा करना चाहिए।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार:
1*श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार को मौन होकर उठ करके शीतल जल से स्नान करें.
2*उसके बाद अपना नित्यकर्म संपन्न करके पान के एक शुभ दल पर रक्त चन्दन से सूर्य के समान पूर्ण गोलाकार बारह परिधियों वाला सुन्दर मंडल बनाएं.
3*उस मंडल में रक्त चंदन से संज्ञा सहित सूर्य का पूजन करें. उसके बाद घुटनों के बल भूमि पर झुककर बारहों मंडलों पर अलग-अलग रक्तचंदन तथा जपाकुसुम से मिश्रित अर्घ्य श्रद्धा-भक्तिपूर्वक सूर्य को विधिवत प्रदान करें और लाल अक्षत, जपाकुसुम तथा अन्य उपचारों से पूजन करें.
4:उसके बाद मिश्री से युक्त नारिकेल के बीज का नैवेद्य अर्पित करके आदित्य मन्त्रों से सूर्य कि स्तुति करें
5:श्रेष्ठ द्वादश मन्त्रों से बारह नमस्कार तथा प्रदक्षिणाएँ करें.
6: उसके बाद छह तंतुओं से बनाए गए सूत्र में छह ग्रंथियां बनाकर देवेश सूर्य को अर्पण करके उसे अपने गले में बांधे ।
7: बारह फलों से युक्त वायन ब्राह्मण को प्रदान करें।
8:इस व्रत कि विधि को किसी के सामने नहीं सुनाना चाहिए.
फलस्वरूप लाभ:
इस विधि से व्रत के किए जाने पर धनहीन व्यक्ति धन प्राप्त कर्ता है, पुत्रहीन पुत्र प्राप्त कर्ता है, कोढ़ी कोढ़ से मुक्त हो जाता है, बंधन में पड़ा व्यक्ति बंधन से छूट जाता है, रोगी व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है. हे । साधक जिस-जिस अभीष्ट कि कामना कर्ता है वह इस व्रत के प्रभाव से उसे मिल जाता है।
संराश:
इस प्रकार श्रावण के चार रविवारों और कभी-कभी पांच रविवारों में इस व्रत को करना चाहिए. इसके बाद व्रत की संपूर्णता के लिए उद्यापन करना चाहिए. सभी कामनाओं की सिद्धि हो जाएगी.