शास्त्र के अनुसार विचार करके देवताओं ने उस बुध को चन्द्रमा को दे दिया।इसके बाद गुरु को उदास देखकर देवताओं ने उन दोनों को वर प्रदान किया – हे चंद्र ! अब तुम घर जाओ, यह तुम्हारा भी पुत्र है और बृहस्पति का भी है. यह तुम्हारा पुत्र ग्रहों में प्रतिष्ठित होगा.
कारण और कथन:
ब्रह्मा जी ने चन्द्रमा को ब्राह्मणों के राजा के रूप में अभिषिक्त किया. किसी समय उसने रूप तथा यौवन से संपन्न तारा नामक गुरु पत्नी को देखा. उसकी रूप संपदा से मोहित होकर वह काम के वशीभूत हो गया और उसे उसने अपने घर में रख लिया. इस प्रकार बहुत दिन बीतने पर उसे बुध नामक एक पुत्र हुआ जो बुद्धिमान, सौंदर्यशाली तथा सभी शुभ लक्षणों से युक्त था।
गुरु बृहस्पति को ज्ञात हुआ कि तारा, चन्द्रमा के घर में स्थित है तब उन्होंने चन्द्रमा से कहा कि मेरी पत्नी को वापिस कर दो, अनेक तरह से समझाने पर भी जब चन्द्रमा ने तारा को वापिस नहीं दिया तब बृहस्पति ने देवताओं की सभा में जाकर देवराज इंद्र को यह वृत्तांत बतलाया और कहा – हे शक्र ! आप देवताओं के राजा हैं अतः अपनी आज्ञा से आप उसे दिलाएं अन्यथा उस चन्द्रमा के द्वारा किया गया पाप आप को ही निसंदेह लगेगा क्योंकि शास्त्र निर्णय के अनुसार प्रजा के द्वारा किए गए पाप को राजा भोगता है. पुराण में भी ऐसा कहा गया है कि दुर्बल का बल राजा होता है. गुरु का यह वचन सुनकर चन्द्रमा ने कहा – मैं आपकी आज्ञा से तारा को तो दे दूँगा किन्तु इस पुत्र को नहीं दूँगा.
बुध-गुरु – का व्रत संपूर्ण सिद्धि:
जो बुद्धिमान व्यक्ति आप दोनों – बुध-गुरु – का व्रत मिलाकर करेगा उसकी संपूर्ण सिद्धि होगी, यह सत्य है, इसमें संदेह नहीं.
शंकर जी के लिए अत्यंत प्रिय इस श्रावण मास के आने पर जो लोग बुधवार तथा बृहस्पतिवार को पूजन व्रत करेंगे उन्हें सिद्धि प्राप्त होगी।इस विधि से सात वर्ष तक करने पर मनुष्य सभी मनोरथों को प्राप्त कर लेता है. जो इसे विद्या कि कामना से करता है, वह वेद व शास्त्र के अर्थों को जाने वाला हो जाता है. बुध बुद्धि प्रदान करते हैं और गुरु बृहस्पति गुरुता प्रदान करते हैं।
विधि:
इस व्रत में दही तथा भात का नैवेद्य व्रत सिद्धि में मूल हेतु है. स्थान भेद से आप दोनों की मूर्ति लिखकर पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होता है. यदि कोई हिंडोले के ऊपरी स्थान पर आप दोनों कि मूर्ति लिखकर पूजन करे तो वह सर्वगुणसंपन्न तथा दीर्घायु पुत्र प्राप्त करेगा. यदि मनुष्य कोषागार में मूर्ति को लिखकर पूजन करता है तो उसके कोष बढ़ते हैं और वे कभी क्षय को प्राप्त नहीं होते. इसी प्रकार पाकालय में पूजन करने से पाकवृद्धि और देवालय में पूजन करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. शय्यागार में लिखकर पूजन करने से स्त्री का वियोग कभी नहीं होता है. धान्यागार में लिखकर पूजन करने से धान्य की वृद्धि होती है. इस प्रकार मनुष्य उन-उन फलों को प्राप्त करता है।
उद्यापन:
इस प्रकार #सात वर्ष #तक करने के बाद उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन से पहले दिन अधिवासन करके रात्रि में जागरण करना चाहिए. सुवर्ण कि प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक सोलह उपचारों से पूजन करने के पश्चात् तिल, घृत, चारु और अपामार्ग तथा अश्वत्थ से युक्त समिधाओं से होम करना चाहिए, अंत में पूर्णाहुति देनी चाहिए. उसके बाद मामा व भांजे को प्रयत्नपूर्वक भोजन कराना चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को तथा अन्य लोगों को भी भोजन कराना चाहिए. स्वयं भी भोजन करना चाहिए.
विशेष:
मामा तथा भांजे को भोजन करना चाहिए।