
।। श्रीगणेशमातृका न्यासः ।।
यह न्यास हमारी सभी भौतिक और आध्यात्मिक इच्छाओं को प्राप्त करने और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में प्रगति करने के लिए, मातृकाओं की शक्तियों के साथ मिलकर भगवान गणेश के विभिन्न पहलुओं को उनकी शक्तियों (शक्तियों) के साथ साकार करने के लिए है। तथा गणेश मातृकान्यास करने सेशीघ्र जाग्रत होता है।विनियोगः ॐ अस्य श्रीगणेश मातृका न्यास मन्त्रस्य गणक ऋषिः र्निचृद् गायत्रीच्छन्दः शक्तिविनायको देवता सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे न्यासे विनियोगः।
षडङ्गन्यासः ॐ गां हृदयाय नमः, ॐ गीं शिरसे स्वाहा, ॐ गूं शिखायै वषट्, ॐ गैं कवचाय हुम्, ॐ गौं नेत्रत्रायाय वौषट्, ॐ गः अस्त्राय फट्।* ध्यान *
गुणांकुशवराभीतिपाणिं रक्ताब्ज हस्तया। प्रिययालिंगितं रक्तं त्रिनेत्रं गणपतिं भजे।।
अपने हाथों में त्रिशूल, अंकुश, वर और अभय धारण किये हुये, अपनी प्रियतमा द्वारा रक्तवर्ण के कमलों के समान हाथों से आलिंगित, त्रिनेत्र गणपति का मैं ध्यान करता हूँ।गणेश मातृकाएं
ध्यान कर लेने के पश्चात् अपने बीजाक्षरों को पहले लगाकर तदनन्तर ‘विघ्नेश ह्रीं’ आदि में चतुर्थ्यन्त द्विवचन, फिर ‘नमः’लगा कर गणेश मातृका न्यास करना चाहिये। विघ्नेश एवंं ह्रीं, विघ्नराज एवंं श्री, विनायक एवं पुष्टि, शिवोत्तम एवं शान्ति, विघ्नकृत् एवं स्वस्ति, विघ्नहर्ता एवं सरस्वती, गण एवं स्वाहा, एकदन्त एवं सुमेधा, द्विदन्त एवं कान्ति, गजवक्त्र एवं कामिनी, निरञ्जन एवं मोहिनी, कपर्दी एवं नटी, दीर्घजिह्व एवं पार्वती, शंकुकर्ण एवं ज्वालिनी, वृषभध्वज एवं नन्दा, सुरेश एवं गणनायक, गजेन्द्र एवं कामरूपिणी, सूर्पकर्ण और उमा, त्रिलोचन और तेजोवती, लम्बोदर एवं सत्या, महानन्द एवं विघ्नेशी, चतुर्मूर्ति एवं सुरूपिणी, सदाशिव एवं कामदा, आमोद एवं मदजिह्वा, दुर्मुख एवं भूति, सुमुख एवं भौतिक, प्रमोद एवं सिता, एकपाद एवं रमा, द्विजिह्वा एवं महिषी, शूर एवं भञ्जिनी, वीर एवं विकर्णा, षण्मुख एवं भृकुटी, वरद एवं लज्जा, वामदेव एवं दीर्घघोण, वक्रतुण्ड एवं धनुर्धरा, द्विरद एवं यामिनी, सेनानी एवं रात्रि, कामान्ध एवं ग्रामणी, मत्त एवं शशिप्रभा, विमत्त एवं लोललोचन, मत्तवाहन एवं चंचला, जटी एवं दीप्ति, मुण्डी एवं सुभगा, खङ्गी एवं दुर्भगा, वरेण्य एवं शिवा, वृषकेतन एवं भगा, भक्तप्रिय एवं भगिनी, गणेश एवं भोगिनी, मेघनाद एवं सुभगा, व्यासी एवं कालरात्रि और गणेश्वर एवं कालिका-51 गणेशमातृकाये हैं यकारादि वर्णो के साथ त्वगात्मभ्यामित्यादि का योग पूर्वोक्त रीति से कर लेना चाहिए।
यथा न्यास विधि ॐ अं विघ्नेशह्रींभ्यां नमः ललाटे। ॐ आं विघ्नराजश्रीभ्यां नमः मुखवृत्ते। ॐ इं विनायकपुष्टिभ्यां नमः दक्षनेत्रे। ॐ ई शिवोत्तशान्तिभ्यां नमः वामनेत्रे। ॐ उं विघ्नकृत्स्वस्तिभ्यां नमः दक्षकर्णे। ॐ ऊं विघ्नहर्तृसरस्वतीभ्यां नमः वामकर्णे। ॐ ऋं गणस्वाहाभ्या नमः दक्ष नासायाम्। ॐ ऋं एकदन्तसुमेधाभ्यां नमः वाम नासायाम्। ॐ लृं द्विदन्तकान्तिभ्यां नमः दक्षगण्डे। ॐ लृं गजवक्त्रकामिनीभ्यां नमः वामगण्डे। ॐ एं निरञ्जनमोहिनीभ्यां नमः ओष्ठे। ॐ ऐं कपर्दीनटीभ्यां नमः अधरे। ॐ ओं दीर्घजिह्वपार्वतीभ्यां नमः ऊर्ध्वदन्तपड्क्तौ। ॐ औं शड्कुकर्णज्वालिनीभ्यां नमः अधः दन्तपंक्तौ। ॐ अं वृषमध्वजनन्दाभ्यां नमः शिरसि। ॐ अः सुरेशगणनायकाभ्यां नमः मुखे। ॐ कं गजेन्द्रकामरुपिणीभ्यां नमः दक्षबाहूमूले। ॐ खं सूर्पकर्णोमाभ्यां नमः दक्षकूर्परे। ॐ गं त्रिलोचनतेजोवतीभ्यां नमः दक्षमणिबन्धे। ॐ घं लम्बोदरसत्याभ्यां नमः दक्षाङ्गुलिमूले। ॐ ङं महानन्दविघ्नेशीभ्यां नमः दक्षहस्ताड्गुल्यग्रे। ॐ चं चतुर्मूर्तिसुरुपिणीभ्यां नमः वामबाहूमूले। ॐ छं सदाशिवकामदाभ्यां नमः वाककूर्परे। ॐ जं आमोदमदजिह्वाभ्यां नमः वाममणिबन्धे। ॐ झं दुर्मुखभूतिभ्यां नमः वामबाहु अड्गुल्यग्रे। ॐ ञं सुमुखभौतिकाभ्यां नमः वामबाहु अड्गुल्यग्रे। ॐ टं प्रमोदसिताभ्यां नमः, दक्षपादमूले। ॐ ठं एकपादरमाभ्यां नमः दक्षजानौ। ॐ डं द्विजिह्वमहिषीभ्यां नमः दक्षगुल्फे। ॐ ढं शूरभञ्जनीभ्यां नमः दक्षपाड्गुलिमूले। ॐ णं वीरविकर्णाभ्यां नमः दक्षपादाड्गुल्यग्रे। ॐ तं षण्मुख भ्रुकुटीभ्यां नमः वामपादमूले। ॐ थं वरदलज्जाभ्या नमः वामजानौ। ॐ दं वामदेवदीर्घघोणाभ्यां नमः वामगुल्फे। ॐ धं वक्रतुण्डधनुर्धराभ्यां नमः वामपदाड्गुलिमूले। ॐ नं द्विरदयामिनीभ्यां नमः वामपादाड्गुल्यग्रे। ॐ पं सेनानीरात्रिभ्यां नमः दक्षपार्श्वे। ॐ फं कामान्धग्रामणीभ्यां नमः वामपार्श्वे। ॐ बं मत्तशशिप्रभाम्यां नमः पृष्ठे। ॐ भं विमललोललोचनाभ्यां नमः नाभौ। ॐ मं मत्तवाहनचञ्ज्चलाभ्यां नमः उदरे। ॐ यं त्वगात्मभ्याञ्जटीदीप्तिभ्यां नमः हृदि। ॐ रं असृगात्मभ्यां मुण्डीसुभगान्यां नमः दक्षांसे। ॐ लं मांसात्मभ्यां खड्गीदुर्भगाभ्यां नमः ककुदि। ॐ वं मेदात्मभ्यां वरेण्यशिवाभ्यां नमः वामांसे। ॐ शं अस्थ्यात्मभ्यां वृषकेतनभगाभ्यां नमः हृदयादिदक्षहस्तानाम्। ॐ षं मज्जात्मभ्यां भक्तप्रियभगिनीभ्यां नमः हृदयादिवामहस्तान्तम्। ॐ सं शुक्रात्मभ्यां गणेशभोगिनीभ्यां नमः हृदयादिदक्षपादान्तम्। ॐ हं प्राणात्मभ्यां मेघनादसुभगाभ्यां नमः हृदयादिवामपादान्तम्। ॐ ळं शक्त्यात्मभ्यां व्यासिकालरात्रिभ्यां नमः हृदयादिउदरान्तम्। ॐ क्षं क्रोधात्मभ्यां गणेश्वरकालिकाभ्यां नमः हृदयादिमस्तकान्तम्।।