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श्री चन्द्र नवमी

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श्री चन्द्र नवमी

चंद्र नवमी तिथि: रविवार, 24 सितंबर 2023 भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को श्री चन्द्र नवमी के रूप में मनाया जाता है। वैदिक ज्योतिष में चंद्र को मन का कारक ग्रह कहा गया है। चंद्र मन को नियंत्रित करता है। यह भावनाओं का सैलाब लेकर आता है। यह किसी की मानसिक स्थिति को मजबूत कर सकता है तो किसी की हालत खराब भी कर सकता है। यह माता का कारक ग्रह भी है (मतलब: माता का सीधा संबंध चंद्र ग्रह से होता है। ज्योतिष में चंद्रमा को स्त्री ग्रह माना गया है। मन और माता दोनों का कारक चंद्र ग्रह है।)

चंद्र नवमी व्रत क्यों मनाया जाता है? ======================== यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चंद्र खराब हो तो वह अस्थिर रहता है और बात-बात पर विचलित हो जाता है। और यदि चंद्र बलवान हो तो व्यक्ति सचेत निर्णय लेने वाला होता है और हर जगह खुश रहता है। अगर आपकी कुंडली में भी चंद्र खराब स्थिति में है तो आपको चंद्र नवमी के दिन चंद्र देवता की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके साथ ही कुछ विशेष उपाय भी किए जा सकते हैं जिससे चंद्र ग्रह मजबूत होता है।

चंद्र नवमी व्रत कैसे करें? ================= ⦿ चंद्र नवमी के दिन व्रत रखा जाता है। जो लोग चंद्र नवमी का व्रत रखते हैं उन्हें सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर अपने पूजा कक्ष में भगवान के सामने चंद्र नवमी व्रत का संकल्प करना चाहिए। ⦿ इसके बाद पूरे दिन व्रत रखें, फल खा सकते हैं. ⦿ रात्रि में चंद्र उदय होने पर चंद्र के दर्शन करें, जल और अक्षत चढ़ाएं और अपने सभी कष्टों के नाश की कामना करके व्रत खोलें।

चंद्र नवमी व्रत के लाभ: =============== ⦿ जिन लोगों की कुंडली में चंद्र खराब स्थिति में है, कमजोर हैं, उन्हें चंद्र की मजबूती के लिए यह व्रत अवश्य करना चाहिए। ⦿ चंद्र नवमी के दिन चांदी का चंद्र बनवाकर गले में धारण करने से चंद्र मजबूत होता है। ⦿ कमजोर मानसिक स्थिति वाले लोगों को आठ कैरेट का मोती चांदी की अंगूठी में बनवाकर कनिष्ठा उंगली में धारण करना चाहिए। ⦿ अगर आर्थिक स्थिति कमजोर है तो चंद्र नवमी के दिन घर में चंद्र यंत्र स्थापित करें। इससे जल्द ही पैसों की कमी दूर हो जाएगी। ⦿ चंद्र नवमी के दिन अपने घर की तिजोरी में चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें, आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होने लगेगा।

आत्मा और शरीर दोनों का परिष्कार करें.... आत्मा परमात्मा का अंश है। जिन भोगों से शरीर को आनन्द मिलता है। उन्हीं से आत्मा को भी मिले आवश्यक नहीं। जिस क्षण से हम इस दुनिया में आते हैं उससे लेकर मृत्यु तक आत्मा हमारे शरीर में उपस्थित है। शरीर के भिन्न भिन्न अवयवों की क्षमता विशेषता एवं क्रिया कलाप के बारे में बहुत सी बातें जानते हैं और अधिक जानने का प्रयास करते हैं। लेकिन अपने ही अन्दर छिपी आत्मा को जानने पहचानने समझने एवं विकसित करने की बात हम नहीं जानते। जीवन के समग्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह आवश्यक है कि हम शरीर एवं आत्मा दोनों के समन्वित विकास परिष्कार एवं तुष्टि पुष्टि का दृष्टिकोण बनावे। एक को ही सिर्फ विकसित करे और एक को उपेक्षित करें ऐसा दृष्टिकोण अपनाने से सच्चा आनन्द नहीं मिल सकता। सिर्फ आत्मा का ही परिष्कार एवं विकास करें और शरीर को उपेक्षित करें इससे भी अपना कल्याण नहीं हो सकता। उसी प्रकार जब आत्मा को कष्ट पहुँचता है तो मन दुःखी होकर शरीर को प्रभावित करता है।

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