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आरती को कितनी बार घुमाना चाहिए ?

आदौ पाद चतुष्तले च विष्णौः द्वौ : नाभि देशे मुखबिम्ब एकैम्। सर्वेषु चांगेषु च सप्तवाराः नारार्तिकं भक्त जनस्तु कुर्यात्॥

आरती हमेशा श्री चरणों से ही प्रारम्भ करनी चाहिए

सबसे पहले भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार,मुख की एक बार फिर भगवान के समस्त श्री अंगों में यानी सिर से चरणों तक सात बार आरती घुमाएँ। इसका कारण है :- (4+2+1+7 = 14) इस तरह से आरती करने में चौदहों भवन जो भगवान में समाए हैं उन्हें तक आपका प्रणाम पहुंचता है।  

कितने दीपों से आरती करें ??

वर्तिकाःसप्त वा पंच कृत्वा वा दीप वर्तिकाम् कुर्यात् सप्त प्रदीपेन शंख घण्टादिवाद्यकैः॥

यानी आरती को पंचमुखी ज्योति या सप्तमुखी ज्योति से करना ही सर्वोतम है, जिसमें साथ साथ शंख और घन्टी अवश्य चले।

घी का दीपक जलाएं या तेल का ??

घृतेन दीपो दातव्य: तिल तैलेन वा पुनः !! (शास्त्रों में या तो शुद्ध घी का या तिल के तेल का दीपक जलाने का प्रमाण है, पर सरसों, नारियल आदि का कहीं नहीं है)

इसी के साथ ध्यान रखिए :- "घृत दीपो दक्षिणेस्यात तैलदीपस्तु वामत:" (घी का दोपक हमेशा भगवान के दक्षिण तरफ यानी ( और तिल के तेल का दीपक वाम भाग रखा जाता है।

दीपक को कैसे और कहाँ रखें ?

सर्वसहा वसुमती सहते न त्विदं द्वयम्। अकार्यपादघातं च दीपतापं तथैव च॥

दीपक को धरती पर रखने से धरती पर ताप बड़ता है, इसलिए कभी दीपक को घरती पर न रखें।

"न चैव स्थापेयदीपं साक्षातभूमौ कदाचन"॥ (दीपक को आसन या थाली में ही रखें)

दीपक को स्थापित कर, उसका पूजन कर और उसको प्रज्ज्वलित करने (यानी जलाने) के बाद हाथ को प्रक्षालित (जल से धोना या हाथों पर छीटा देना) अवश्य किया जाए। (ऐसा वारह पुराण में आता है) दीपं स्पृष्ट्वा तु यो देवी मम कर्माणि कारयेत्। तस्यापराधाद्वैभूमे पापं प्राप्नोति मानवः॥ (ऐसा न करने से पाप का भागीदार होता है)

दीपक का मुख किस और हो ?

आयुर्दः प्रांगमुखो दीपो धनदः स्यादु उदंग मुखः। प्रत्यंगमुखो दुखदोऽसौ हानिदो दक्षिणामुखः॥ (दीपक का मुख पूर्व दिशा में होगा तो वह आयु बढाने वाला होगा, उत्तर की तरफ वाला धन-धान्य देने वाला होता है, पश्चिम की तरफ दुख और दक्षिण की तरफ हानि देने वाला होता है.)

दीपक की लौ कैसी हो ?

लभ्यते यस्य तापस्तु दीपस्य चतुरगुंलात्। न स दीप इति ख्यातो ह्येघव हिन्स्तु स श्रुतः॥ (अगर दीपक की लोह चार उंगल से ये ऊपर का ताप दे रही है वह दीपक नहीं अग्नि है। दीपक की लोह 4 अंगुल से कम हो दीपक में से चड़चड़ की आवाज न आए और न ही दीपक में से धुंआ उठे, इस प्रकार की लौ सर्वश्रेष्ठ है.)

जब भी आप आरती करें, पहले भगवान के सामनें ॐ बनाने का प्रयास करें ! (यानी ॐ में घुमाएँ)

 

नियम 

1आरती कभी भी अखण्ड दीप या उस दीप से न करें जो आपने पूजा के लिए जलाया था। 2- आरती कभी भी बैठे-बैठे न करें। 3- आरती हमेशा दाहिने हाथ से करें। 4- कोई आरती कर रहा हो तो उस समय उसके ऊपर से ही हाथ घुमाना नही चाहिए, यह काम आरती खत्म होने के बाद करें। 5- आरती के बीच में बोलने, चींखने,छिंखने आदि से आरती खंडित होती है। 6- दीपक की वयवस्था इस प्रकार करें कि वह पूरी आरती में चले। 7- आरती कभी भी उल्टी न घुमाएं, आरती को हमेशा (यानी दक्षिणावर्त, जैसे घड़ी चलती है) में घुमाएं।

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