
आचमन पात्र, गौघृत का दीपक, लघु नारियल, आत्मयंत्र (यंत्र चने की दाल से सफेद वस्त्र पर बना सकते हैं) मूंगामाला, दूध से बनी हुई मिठाई।
पितृपक्ष में मध्याह्न 11 बजे से 3 बजे के बीच यह साधना करनी चाहिए। साधक का मुँह पश्चिम की तरफ हो। निम्न मंत्र की नित्य 11 माला 11 दिन पितृपक्ष में करनी चाहिए, पितृपक्ष की अमावस्या तक 11 दिन हो । #जिन साधकों को साधना 11दिन तक करना संभव नहीं है। वे साधक किसी भी शनिवार, अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या को कर सकते हैं।# मंत्र:- ॐ श्रीं सर्वपितृदोष निवारणाय क्लेशं हन हन सुखशांतिं देहि देहि फट् स्वाहा। Om shreem sarv pitrdosh nivarnay klesham han han sukh shantim dehi dehi phat swaha. साधक सफेद वस्त्र पहनकर सफेद आसन पर बैठेंगे, मुख पश्चिम दिशा की ओर रखें। साधक अपने सामने एक मिट्टी के पात्र में धान बोयें और साधना करते समय नित्य थोडा़ थोडा़ जल चढायें ताकि अमावस्या तक धान उग जायेंगे। इसके बाद मिट्टी के पात्र के बगल में एक सफेद वस्त्र बिछा देंगे। उस पर तीन मुठ्ठी चने की दाल डालकर ढेरी बनी उसपर एक आत्मयंत्र एवं लघु नारियल रखें। बाद में गौघृत का दीपक एवं धूप जलायें, दूध से बनी मिठाई या खीर का नैवेद्य चढ़ाएं। अब ऊपर लिखित मंत्र का मूंगे की माला से 11 माला मंत्र 11 दिन जप करें। जिन्हे यह संभव नहीं लगता है वे लोग 5, 3 या 1 दिन (अमावस्या) में भी साधना कर सकते है। साधना के बाद मिट्टी का पात्र जिनमे गेहूँ जौ या धान बोया है। अमावस्या के दिन उसे किसी नदी या तालाब में विसर्जित करेंगे। लघु नारियल को किसी पीपल के वृक्ष के जड़ में दबा दें या घर में भी रख सकते हैं। नित्य दुध की बनाई मिठाई को घर के पश्चिम दिशा में फेंक दें। अंतिम दिन चने की दाल भी पश्चिम दिशा में फेंक दें। ऐसा करने पर निश्चित रूप से पितृदोष समाप्त होता है। और पितृ प्रसन्न होकर साधक को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जिससे उसके घर में सुख शांति रहती है। साधना के बाद नीचे दिया गया पितृ सूक्त का नित्य एक बार पाठ करेंगे। (ॐ ऐं सर्व पितृभ्यो नमः स्वधा।) पितृ-सूक्तम् उदिताम् अवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः। असुम् यऽ ईयुर-वृका ॠतज्ञास्ते नो ऽवन्तु पितरो हवेषु॥1॥ अंगिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वनो भृगवः सोम्यासः। तेषां वयम् सुमतो यज्ञियानाम् अपि भद्रे सौमनसे स्याम्॥2॥ ये नः पूर्वे पितरः सोम्यासो ऽनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठाः। तेभिर यमः सरराणो हवीष्य उशन्न उशद्भिः प्रतिकामम् अत्तु॥3॥ त्वं सोम प्र चिकितो मनीषा त्वं रजिष्ठम् अनु नेषि पंथाम्। तव प्रणीती पितरो न देवेषु रत्नम् अभजन्त धीराः॥4॥ त्वया हि नः पितरः सोम पूर्वे कर्माणि चक्रुः पवमान धीराः। वन्वन् अवातः परिधीन् ऽरपोर्णु वीरेभिः अश्वैः मघवा भवा नः॥5॥ त्वं सोम पितृभिः संविदानो ऽनु द्यावा-पृथिवीऽ आ ततन्थ। तस्मै तऽ इन्दो हविषा विधेम वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥6॥ बर्हिषदः पितरः ऊत्य-र्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्। तऽ आगत अवसा शन्तमे नाथा नः शंयोर ऽरपो दधात॥7॥ आहं पितृन्त् सुविदत्रान् ऽअवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णोः। बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पित्वः तऽ इहागमिष्ठाः॥8॥ उपहूताः पितरः सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु। तऽ आ गमन्तु तऽ इह श्रुवन्तु अधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥9॥ आ यन्तु नः पितरः सोम्यासो ऽग्निष्वात्ताः पथिभि-र्देवयानैः। अस्मिन् यज्ञे स्वधया मदन्तो ऽधि ब्रुवन्तु ते ऽवन्तु-अस्मान्॥10॥ अग्निष्वात्ताः पितर एह गच्छत सदःसदः सदत सु-प्रणीतयः। अत्ता हवींषि प्रयतानि बर्हिष्य-था रयिम् सर्व-वीरं दधातन॥11॥ येऽ अग्निष्वात्ता येऽ अनग्निष्वात्ता मध्ये दिवः स्वधया मादयन्ते। तेभ्यः स्वराड-सुनीतिम् एताम् यथा-वशं तन्वं कल्पयाति॥12॥ अग्निष्वात्तान् ॠतुमतो हवामहे नाराशं-से सोमपीथं यऽ आशुः। ते नो विप्रासः सुहवा भवन्तु वयं स्याम पतयो रयीणाम्॥13॥ आच्या जानु दक्षिणतो निषद्य इमम् यज्ञम् अभि गृणीत विश्वे। मा हिंसिष्ट पितरः केन चिन्नो यद्व आगः पुरूषता कराम॥14॥ आसीनासोऽ अरूणीनाम् उपस्थे रयिम् धत्त दाशुषे मर्त्याय। पुत्रेभ्यः पितरः तस्य वस्वः प्रयच्छत तऽ इह ऊर्जम् दधात॥15॥ ॐ शांति: शांति: शांति:!!! इस ऊपरोक्त स्तोत्र का पाठ सभी नित्य कर सकते हैं । माता पिता जीवित भी हो वे भी पितृपक्ष में नित्य यह स्तोत्र पाठ करने से सारे पितृदोष निकल जाते हैं। पुत्र संतति नहीं है वे इस स्तोत्र के पाठ से स्वयं का आत्मपिण्ड प्रदान करने का फल मिलता है। इस स्तोत्र को पढने के बाद पितृपक्ष में एक नारियल के साथ ब्राह्मण को दान देने से पितर तृप्त होते है।