अमेरिका में एक प्रांत है - अलास्का।
गॉडविट्स नामक पक्षी

अमेरिका में एक प्रांत है - अलास्का।
गर्मियाँ तो फिर भी कट जाती हैं पर शीतकाल में तापमान इतना ठंडा होता होता हैं कि मनुष्य फ्रिज का उपयोग खाने पीने का सामान गर्म रखने के लिए करते हैं। अगस्त के बाद तो अंधेरा हो जाता है,चार पाँच महीने की रात.मनुष्य तो तकनीकी के सहारे तो रह लेता है, पर पशु-पक्षियों का क्या ?
यहाँ पाये जाते हैं गॉडविट्स नामक पक्षी.अगस्त के महीने में उनके सामने समस्या यह कि क्या करें.ठंडक में ठंड से मर जायें या फिर दूसरी और प्रशांत महासागर है,हज़ारों किमी का. उसे पार करना असंभव दिखता है न रास्ते में कहीं रुक सकते हैं न कुछ खाने को मिलेगा तो समुद्र में ही गिर कर मर जाना है.एक और समुद्र दूसरी और ठंड,कैसे मरना है पर हाँ अगर दूसरी और पहुँच गये तो उधर है ऑस्ट्रलिया जहां दिसंबर गर्म और जून ठंडा होता है।
मन-मस्तिष्क को अभूतपूर्व ऊर्जा
अब आरंभ होती है जीवन की लड़ाई.यह पक्षी एक ऐसी ट्रेनिंग पर निकलते हैं वह बिना कुछ खाये-पिये अपने शरीर को ऑटोफ़ेगी प्रक्रिया में ले जाते हैं जब आप कुछ नहीं खाते हैं तो शरीर सबसे पहले जो अनुपयोगी कोशिकाएँ होती है या मृत कोशिकायें होती हैं,कैंसरियास सेल होते हैं उन्हें त्याग देता है. इस तरह से वह अपने शरीर का 25% वजन कम करते हैं और इस प्रक्रिया में शरीर और ऊर्जावान हो जाता है क्योंकि काम तो 75% ही कर रहा था, वह बोझ ढो रहा था 25% का.फिर वह दूसरी प्रक्रिया करते हैं। केवल एस्ट्रा फैट डाइट लेते हैं.शरीर को जब कुछ खाने को नहीं मिलता है तो वह फैट को ऊर्जा में तुरंत बदल लेता है।मॉडर्न मे *कीटो डाइट का सिद्धांत भी कुछ ऐसा ही है.पक्षी मीठे फल,बेरीज आदि खा कर वजन दुगुना करते हैं - वह वजन जो फ़ैट के फॉर्म में हो.अब वह निकल पड़ते हैं एक कठिन यात्रा में.दस हज़ार किमी का सफ़र वह तय करते हैं न रुके,न सोये,न खाये.उन्हें समस्या नहीं होती क्योंकि उनके शरीर ने ओवर हेड त्याग दिये हैं और अब जो फ़ैट है वह ईंधन है.सफलता पूर्वक वह आठ दस दिन की यात्रा कर ऑस्ट्रेलिया पहुँचते है।
दो नवरात्रि उपवास
यह जो प्रक्रिया है मृत कोशिकाओं को शरीर से निकालने की उपवास से। वह साल में दो बार करते हैं - एक बार जाने के लिये व एक बार आने के लिये।
हमारे पूर्वज बहुत बुद्धिमान थे उन्होंने यही बात सिखाई थी वर्ष में दो नवरात्रि उपवास के ज़रिए.पर हमे अपने पूर्वजों की अच्छी बातें तब समझ आती हैं जब पश्चिम उन पर नोबल लेकर ऑटोफ़ेगी जैसे नाम दे देता है, हाँ हम हर ग़लत बात को डिफेंड करते हैं।पूर्वजों के नाम से वर्ष में दो बार ऐसा उपवास रखना शरीर और मन-मस्तिष्क को अभूतपूर्व ऊर्जा देता है।
इन्सान भूख से नहीं, अनावश्यक एवं स्वादिष्टता के कारण असमय मर रहे हैं !!
हम बदलेंगे,युग बदलेगा।