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दीपावली पूजन मुहूर्त महालक्ष्मी पूजन की विधि

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दीपावली पूजन मुहूर्त महालक्ष्मी पूजन की विधि

दीपावली पूजन मुहूर्त राशियों के अनुसार 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आप सभी सनातन धर्म प्रेमी बंधुओ को दीपोत्सव की हार्दिक मंगल कामनाएं। श्रीराम जी के वनवास समाप्त कर अयोध्या वापिस आने के उपलक्ष्य मे भारतवर्ष में आज दिपावली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज लक्ष्मी पूजन करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नही होती। क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है। जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है। दीपावली पूजन के लिये निम्न चार विशेष मुहूर्त होते है। 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ 1👉 वृश्चिक लग्न👉 यह लग्न दीपावली के सुबह आती है वृश्चिक लग्न में मंदिर, स्कूल, हॉस्पिटल, कॉलेज आदि में पूजा होती है। राजनीति से जुड़े लोग एवं कलाकार आदि इसी लग्न में पूजा करते हैं। 2👉 कुंभ लग्न👉 यह दीपावली की दोपहर का लग्न होता है। इस लग्न में प्राय बीमार लोग अथवा जिन्हें व्यापार में काफी हानि हो रही है, जिनकी शनि की खराब महादशा चल रही हो उन्हें इस लग्न में पूजा करना शुभ रहता है। 3👉 वृषभ लग्न👉 यह लग्न दीपावली की शाम को बढ़ाएं मिल ही जाता है तथा इस लग्न में गृहस्थ एवं व्यापारीयो को पूजा करना सबसे उत्तम माना गया है। 4👉 सिंह लग्न👉 यह लग्न दीपावली की मध्यरात्रि के आस पास पड़ता है तथा इस लग्न में तांत्रिक, सन्यासी आदि पूजा करना शुभ मानते हैं। अमावस्या तिथि प्रारम्भ👉 12 नवम्बर को दिन 02:41 बजे से। अमावस्या तिथि समाप्त👉 13 नवम्बर को दिन 02:56 बजे। व्यवसायियों के लिये गद्दी स्थापना-स्याही भरना-कलम दवात संवारने हेतु शुभ मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ प्रातः मुहूर्त 12 नवम्बर प्रातः 08:16 से 12:22 तक (इस अवधि मे चंचल, लाभ व अमृत की चौघड़ी रहेगी)। दिन 11:39 से 12:22, अभिजीत मुहूर्त, तथा सायं 05:46 से 08:04 तक प्रदोष काल में करना श्रेष्ठ रहेगा। (सायं 04:02 से 05:22 तक राहुकाल रहेगा इस अवधि मे पूजन से बचे) प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ गौधुली प्रदोष वेला👉 सायं 05:46 से रात्रि 08:04 तक प्रदोष काल रहेगा दीपावली पूजन के लिये यह समय उपयुक्त माना जाता है। शुभ लग्न में पूजन का मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ प्रदोष काल👉 सायं 05:46 से रात्रि 08:04 तक। वृषभ लग्न👉 05:48 से 07:45 तक वृष लग्न रहेगा प्रदोष काल व स्थिर लग्न दोनों रहने से गृहस्थ और व्यापारी वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये यही मुहुर्त सर्वाधिक शुभ रहेगा। सिंह लग्न 〰️〰️〰️〰️ रात्रि 12:10 से 02:25 तक सिंह लग्न रहेगी इस समयावधि में श्रीकनकधारा स्तोत्र का पठन पाठन विशेष श्रीकर सिद्ध होता है। निशिथ काल 〰️〰️〰️〰️〰️ निशिथ काल में स्थानीय प्रदेश समय के अनुसार इस समय में कुछ मिनट का अन्तर हो सकता है। रात्रि 11:39 से 12:31 तक निशिथ काल रहेगा। निशिथ काल में सन्यासी एवं तांत्रिक वर्ग के लिये लक्ष्मी पूजन के लिये यह समय अधिक उपयुक्त रहेगा। महानिशीथ काल 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ महानिशीथ काल मे धन लक्ष्मी का आहवाहन एवं पूजन, गल्ले की पूजा तथा हवन इत्यादि कार्य किया जाता है। श्री महालक्ष्मी पूजन, महाकाली पूजन, लेखनी, कुबेर पूजन, अन्य वैदिक तांत्रिक मंन्त्रों का जपानुष्ठान किया जाता है। महानिशीथ काल रात्रि में 11:41 से 12:55 मिनट तक महानिशीथ काल रहेगा। इस समयावधि में कर्क लग्न और सिंह लग्न होना शुभस्थ है। इसलिए अशुभ चौघडियों को भुलाकर यदि कोई कार्य प्रदोष काल अथवा निशिथ काल में शुरु करके इस महानिशीथ काल में संपन्न हो रहा हो तो भी वह अनुकूल ही माना जाता है। महानिशिथ काल में पूजा समय चर लग्न में कर्क लग्न उसके बाद स्थिर लग्न सिंह लग्न भी हों, तो विशेष शुभ माना जाता है। महानिशीथ काल में कर्क लग्न और सिंह लग्न होने के कारण यह समय शुभ हो गया है। जो शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, वह इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग कर सकते हैं। इसमें किया हुआ तंत्र प्रयोग मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन, स्तंभन इत्यादि कर्म तांत्रिकों की ओर से किए जाते हैं । इस समय में किया हुआ कोई भी मंत्र सिद्ध हो जाता है। इस समय में सभी आसुरी शक्तियां जागृत हो जाती हैं। इस समय में घोर, अघोर, डाबर, साबर सभी प्रकार के मंत्रों की सिद्धि हो जाती है। इसी समय उल्लूक तंत्र का प्रयोग साधक लोग करते हैं। पंच प्रकार की पूजा, काली पूजा, तारा, छिन्नमस्ता, बगुलामुखी पूजा इसी समय की जाती है। जो जन शास्त्रों के अनुसार दिपावली पूजन करना चाहते हो, उन्हें इस समयावधि को पूजा के लिये प्रयोग करना चाहिए। वृष एवं सिंह लग्न में कनकधारा एवं ललिता सहस्त्रनाम का पाठ विशेष लाभदायक माना गया है। दीपदान मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️ लक्ष्मी पूजा दीपदान के लिए प्रदोष काल (रात्रि का पंचमांष प्रदोष काल कहलाता है) ही विशेषतया प्रशस्त माना जाता है। दीपावली के दिन प्रदोष काल सायं 05:46 से रात्रि 08:04 बजे तक रहेगा। भारत के अन्य शहरों में लक्ष्मी पूजा मुहूर्त 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ पुणे👉 सायं 06:09 से रात्रि 08:09 नई दिल्ली👉 सायं 05:39 से सायं 07:35 चेन्नई👉 सायं 05:52 से सायं 07:54 जयपुर👉 सायं 05:48 से सायं 07:44 हैदराबाद👉 सायं 05:52 से सायं 07:53 गुरुग्राम सायं 05:40 से सायं 07:36 चण्डीगढ़👉 सायं 05:37 से सायं 07:32 कोलकाता👉 सायं 05:05 से सायं 07:03 मुम्बई👉 सायं 06:12 से रात्रि 08:12 बेंगलूरु👉 सायं 06:03 से रात्रि 08:05 अहमदाबाद👉 सायं 06:07 से रात्रि 08:06 नोएडा👉 सायं05:39 से सायं 07:34 आप उपरोक्त नगरों के आसपास अपना शहर खोजें तथा दिये गये समय में ही पूजा करें अथवा दैनिक सूर्योदयास्त से गणना कर अपना मुहूर्त निकाले। राशियों के अनुसार लक्ष्मी पूजन 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ मेष, सिंह और धनु 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ ये तीनो अग्नि तत्व प्रधान राशि है इन राशि वालों के लिए धन लक्ष्मी की पूजा विशेष लाभकारी होती है,मां लक्ष्मी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें उनके पास अनाज की ढेरी हो. चावल की ढेरी पर लक्ष्मीजी का स्वरूप स्थापित करें उनके सामने घी का दीपक जलाएं, उनको चांदी का सिक्का अर्पित करें. पूजा के उपरान्त उसी चांदी के सिक्के को अपने धन स्थान पर रख दें। मिथुन, तुला और कुम्भ राशि 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इन राशि वालों के लिए गजलक्ष्मी के स्वरूप की आराधना विशेष होती है, कारोबार में धन की प्राप्ति के लिए गज लक्ष्मी की पूजा, लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की स्थापना करें, जिसमें दोनों तरफ उनके साथ हाथी हों, लक्ष्मीजी के समक्ष घी के तीन दीपक जलाएं, मां लक्ष्मी को एक कमल या गुलाब का फूल अर्पित करें, पूजा के उपरान्त उसी फूल को अपनी तिजोरी मे रख दें। वृष, कन्या, मकर 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इस राशि के लोगों के लिए ऐश्वर्यलक्ष्मी की पूजा विशेष होती है, नौकरी में धन की बढ़ोतरी के लिए ऐश्वर्य लक्ष्मी की पूजा, गणेशजी के साथ लक्ष्मीजी की स्थापना करें, गणेशजी को पीले और लक्ष्मीजी को गुलाबी फूल चढ़ाएं, लक्ष्मीजी को अष्टगंध चरणों में अर्पित करें, नित्य प्रातः स्नान के बाद उसी अष्टगंध का तिलक लगाएं. कर्क, वृश्चिक और मीन राशि 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ इस राशि के लिए वर लक्ष्मी की पूजा विशेष होती है. धन के नुकसान से बचने के लिए वर लक्ष्मी की पूजा मे लक्ष्मीजी के उस स्वरूप की स्थापना करें. जिसमें वह खड़ी हों और धन दे रही हों,उनके सामने सिक्के तथा नोट अर्पित करें,पूजन के बाद यही धनराशि अपनी तिजोरी मे रखें, इसे खर्च न करें. उपरोक्त विधि विधान से पूजन करने पर महालक्ष्मी आप पर प्रसन्न होगीं तथा घर मे समृद्धि व प्रसन्नता आयेगी। महालक्ष्मी पूजन की विधि

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्र सीद मह्यम्।। अर्थात्-कमलवासिनी, हाथ में कमल धारण करने वाली, अत्यन्त धवल वस्त्र, गन्धानुलेप तथा पुष्पहार से सुशोभित होने वाली, भगवान विष्णु की प्रिया, लावण्यमयी तथा त्रिलोकी को ऐश्वर्य प्रदान करने वाली हे भगवति! मुझ पर प्रसन्न होइए। विष्णुप्रिया महालक्ष्मी सभी चल-अचल, दृश्य-अदृश्य सम्पत्तियों, सिद्धियों व निधियों की अधिष्ठात्री हैं। जीवन की सफलता, प्रसिद्धि और सम्मान का कारण लक्ष्मीजी ही हैं। चंचला लक्ष्मीजी का स्थिर रहना ही जीवन में उमंग, जोश और उत्साह पैदा करता है। मनुष्य ही नही देवताओं को भी लक्ष्मीजी की प्रसन्नता और कृपादृष्टि की आवश्यकता होती है। लक्ष्मी के रुष्ट हो जाने पर देवता भी श्रीहीन, निस्तेज व भयग्रस्त हो गए। लक्ष्मीजी का रुष्ट होकर देवलोक का त्याग व इन्द्र का श्रीहीन होना प्राचीनकाल में दुर्वासा के शाप से इन्द्र, देवता और मृत्युलोक–सभी श्रीहीन हो गए। रूठी हुई लक्ष्मी स्वर्ग का त्याग करके वैकुण्ठ में महालक्ष्मी में विलीन हो गयीं। सभी देवताओं के शोक की सीमा न रही। वे ब्रह्माजी को लेकर भगवान नारायण की शरण में गए। भगवान की आज्ञा मानकर इन्द्रसम्पत्तिस्वरूपा लक्ष्मी अपनी कला से समुद्र की कन्या हुईं। देवताओं व दैत्यों ने मिलकर क्षीरसागर का मन्थन किया। उससे लक्ष्मीजी का प्रादुर्भाव हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु को वरमाला अर्पित की। फिर देवताओं के स्तवन करने पर लक्ष्मीजी ने उनके भवनों पर केवल दृष्टि डाल दी। इतने से ही दुर्वासा मुनि के शाप से मुक्त होकर देवताओं को असुरों के हाथ में गया राज्य पुन: प्राप्त हो गया। देवराज इन्द्र ने ‘स्वर्गलक्ष्मी’ किस प्रकार पुन: प्राप्त की, किस विधि से उन्होंने लक्ष्मी का पूजन किया, इसी का वर्णन यहां किया गया है। उस दिव्य विधि का अनुसरण करके हम भी अपने घरों में महालक्ष्मी का आह्वान कर सकें ताकि महालक्ष्मी अपने सहस्त्ररूपों में हमारे घर स्वयं आने के लिए व्याकुल हो उठें और हमारे जीवन के समस्त दु:ख-दारिद्रय दूर हो सकें। देवराज इन्द्र द्वारा लक्ष्मीजी का सोलह उपचारों से (षोडशोपचार) पूजन देवराज इन्द्र ने क्षीरसमुद्र के तट पर कलश स्थापना करके गणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, शिव व दुर्गा की गन्ध, पुष्प आदि से पूजा की। फिर उन्होंने अपने पुरोहित बृहस्पति तथा ब्रह्माजी द्वारा बताये अनुसार महालक्ष्मी की पूजा की। इन्द्र द्वारा महालक्ष्मी का ध्यान देवराज इन्द्र ने पारिजात का चंदन-चर्चित पुष्प लेकर महालक्ष्मी का निम्न प्रकार ध्यान किया। पराम्बा महालक्ष्मी सहस्त्रदल वाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। वे शरत्पूर्णिमा के करोड़ों चन्द्रमाओं की कान्ति से दीप्तिमान हैं, तपाये हुए सुवर्ण के समान वर्ण वाली, मुखमण्डल पर मन्द-मन्द मुसकान से शोभित, रत्नमय आभूषणों से अलंकृत तथा पीताम्बर से सुशोभित व सदैव स्थिर रहने वाले यौवन से सम्पन्न हैं। ऐसी सम्पत्तिदायिनी व कल्याणमयी देवी की मैं उपासना करता हूँ। इस प्रकार ध्यान करके देवराज इन्द्र ने सोलह प्रकार के उपचारों (षोडशोपचार) से लक्ष्मी का पूजन किया। इन्द्र ने मन्त्रपूर्वक विविध प्रकार के उपचार इस प्रकार समर्पित किए ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्ये स्वाहा’ (कुबेर ने इसी मन्त्र से महालक्ष्मी की आराधना करके परम ऐश्वर्य प्राप्त किया था। इसी मन्त्र के प्रभाव से मनु को राजाधिराज की पदवी प्राप्त हुई। प्रियव्रत, उत्तानपाद और राजा केदार इसी मन्त्र को सिद्ध करके ‘राजेन्द्र’ कहलाए।) मन्त्र सिद्ध होने पर महालक्ष्मी ने इन्द्र को दर्शन दिए। देवराज इन्द्र ने वैदिक स्तोत्रराज से उनकी स्तुति की। ॐ नमो महालक्ष्म्यै।। ॐ नम: कमलवासिन्यै नारायण्यै नमो नम:। कृष्णप्रियायै सततं महालक्ष्म्यै नमो नम:।। पद्मपत्रेक्षणायै च पद्मास्यायै नमो नम:। पद्मासनायै पद्मिन्यै वैष्णव्यै च नमो नम:।। सर्वसम्पत्स्वरूपिण्यै सर्वाराध्यै नमो नम:। हरिभक्तिप्रदात्र्यै च हर्षदात्र्यै नमो नम:।। कृष्णवक्ष:स्थितायै च कृष्णेशायै नमो नम:। चन्द्रशोभास्वरूपायै रत्नपद्मे च शोभने।। सम्पत्त्यधिष्ठातृदेव्यै महादेव्यै नमो नम:। नमो वृद्धिस्वरूपायै वृद्धिदायै नमो नम:।। वैकुण्ठे या महालक्ष्मीर्या लक्ष्मी: क्षीरसागरे। स्वर्गलक्ष्मीरिन्द्रगेहे राजलक्ष्मीर्नृपालये।। गृहलक्ष्मीश्च गृहिणां गेहे च गृहदेवता। सुरभि सागरे जाता दक्षिणा यज्ञकामिनी।। अर्थात्–देवी कमलवासिनी को नमस्कार है। देवी नारायणी को नमस्कार है, कृष्णप्रिया महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है। कमलपत्र के समान नेत्रवाली और कमल के समान मुख वाली को बार-बार नमस्कार है। पद्मासना, पद्मिनी और वैष्णवी को बार-बार नमस्कार है। सर्वसम्पत्स्वरूपा और सबकी आराध्या को बार-बार नमस्कार है। भगवान श्रीहरि की भक्ति प्रदान करने वाली तथा हर्षदायिनी लक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है। हे रत्नपद्मे! हे शोभने! श्रीकृष्ण के वक्ष:स्थल पर सुशोभित होने वाली तथा चन्द्रमा की शोभा धारण करने वाली आप कृष्णेश्वरी को बार-बार नमस्कार है। सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी को नमस्कार है। महादेवी को नमस्कार है। वृद्धिस्वरूपिणी महालक्ष्मी को नमस्कार है। वृद्धि प्रदान करने वाली महालक्ष्मी को बार-बार नमस्कार है। आप वैकुण्ठ में महालक्ष्मी, क्षीरसागर में लक्ष्मी, इन्द्र के स्वर्ग में स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं के भवन में राजलक्ष्मी, गृहस्थों के घर में गृहलक्ष्मी और गृहदेवता, सागर के यहां सुरभि तथा यज्ञ के पास दक्षिणा के रूप में विराजमान रहती हैं। 'चंदन धारण करने से नित्य पाप नाश होते हैं, पवित्रता प्राप्त होती है, आपदाएँ समाप्त होती हैं एवं लक्ष्मी का वास बना रहता है।' (स्वयं के मस्तक पर चंदन या कुंकु से तिलक लगाएँ)। पूजन हेतु वांछनीय जानकारियाँ

शुभ समय में, शुभ लग्न में पूजन प्रारंभ करें। (दीपावली पूजन की मुहूर्त तालिका पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।) पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो। (पूजन सामग्री की सूची भी पृथक से दी गई है, वहाँ देखें।)

सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए। महालक्ष्मी पूजन लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठकर करना चाहिए। पूजन सामग्री में जो वस्तु विद्यमान न हो उसके लिए उस वस्तु का नाम बोलकर 'मनसा परिकल्प समर्पयामि' बोलें। गणेश पूजन यदि गणेश की मूर्ति न हो तो पृथक सुपारी पर नाड़ा लपेटकर कुंकु लगाकर एक कोरे लाल वस्त्र पर अक्षत बिछाकर, उस पर स्थापित कर गणेश पूजन करें। पूजन प्रारंभ,,,

पवित्रकरण : पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री पर निम्न मंत्र बोलते हुए जल छिड़कें- 'भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।' (स्वयं पर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कें) आचमन : दाहिने हाथ में जल लेकर प्रत्येक मंत्र के साथ एक-एक बार आचमन करें- पश्चात ओम्‌ केशवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम्‌ माधवाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) ओम्‌ गोविन्दाय नम-ह स्वाहा (आचमन करें) निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें- ओम्‌ हृषिकेशाय्‌ नम-ह हस्त-म्‌ प्रक्षाल्‌-यामि। दीपक : शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न मंत्र बोलते हुए कुंकु, अक्षत व पुष्प से दीप-देवता की पूजा करें- 'हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।' (गंध, पुष्प से पूजन कर प्रणाम कर लें) स्वस्ति-वाचन : (निम्न मंगल मंत्रों का पाठ करें) ॐ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें। ॐ ! हे परब्रह्म परमेश्वर ! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो। हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें। श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार। संकल्प : दाहिने हाथ में जल, अक्षत और द्रव्य लेकर निम्न वाक्यांश संकल्प हेतु पढ़ें- (शास्त्रोक्त संकल्प के अभाव में निम्न संकल्प बोलें) आज दीपावली महोत्सव- शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ। इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।' श्री गणेश पूजन (अ) श्री गणेश का ध्यान व आवाहन- श्री गणेशजी! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं। अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र, अतिशय भोग और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आवाहन करते हैं। हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है। आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस याग (पूजन कर्म) की रक्षा भी करें। (पुष्प, अक्षत अर्पित करें) स्थापना- (अक्षत) ॐ भूर्भुवः स्वः निधि बुद्धि सहित भगवान गणेश पूजन हेतु आपका आवाहन करता हूँ, यहाँ स्थापित कर आपका पूजन करता हूँ। (अक्षत अर्पित करें) पाद्य, आचमन, स्नान पुनः आचमन- ॐ भूर्भुवः स्वः श्री गणेश आपकी सेवा में पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पुनः आचमन हेतु सुवासित जल समर्पित है। आप इसे ग्रहण करें। (यह बोलकर आचमनी से जल एक तासक (तसली) में छोड़ दें) पूजन- लं पृथ्व्यात्मकम्‌ गंधम्‌ समर्पयामि । (कुंकु-चंदन अर्पित करें) हं आकाशत्मकम्‌ पुष्पं समर्पयामि । (पुष्प अर्पित करें) यं वायव्यात्मकं धूपं आघ्रापयामि । (धूप आघ्र्रापित करें) रं तेजसात्मकं दीपं दर्शयामि । (दीपक प्रदर्शित करें) वं अमृतात्मकं नैवेद्यम्‌ निवेदयामि । (नैवेद्य निवेदित करें) सं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि । (तांबूलादि अर्पित करें) प्रार्थना- हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें। श्री लक्ष्मी पूजन-प्रारंभ 1 .ध्यान एवं आवाहन- (ध्यान एवं आवाहन हेतु अक्षत, पुष्प प्रदान करें) परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है। ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं। रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। इस प्रसन्न वदनवाली भगवती महालक्ष्मी के मुख पर मुस्कान छा रही है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं। ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं। (अक्षत एवं पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें) पुनः अक्षत व पुष्प लेकर आवाहन करें- हे माता! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आवाहन करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें। (अक्षत, पुष्प अर्पित करें) 2.आसन :- (अक्षत) भगवती महालक्ष्मी ! जो अमूल्य रत्नों का सार है तथा विश्वकर्मा जिसके निर्माता हैं, ऐसा यह विचित्र आसन स्वीकार कीजिए। (आसन हेतु अक्षत अर्पित करें) 3.पादय एवं अर्घ्य :- ॐ महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके चरणों में यह पाद्य जल अर्पित है। आपके हस्त में यह अर्घ्य जल अर्पित है। 4.स्नान :- (हल्दी, केशर, अक्षतयुक्त जल) श्री हरिप्रिये ! यह उत्तम गंधवाले पुष्पों से सुवासित जल तथा सुगंधपूर्ण आमलकी चूर्ण शरीर की सुंदरता बढ़ाने का परम साधन है। आप इस स्नानोपयोगी वस्तु को स्वीकार करें। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपके समस्त अंगों में स्नान हेतु यह सुवासित जल अर्पित है। (श्रीदेवी को स्नान कराएँ) 5.वस्त्र एवं उपवस्त्र :- (वस्त्र) देवी ! इन कपास तथा रेशम के सूत्र से बने हुए वस्त्रों को आप ग्रहण कीजिए। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न वस्त्र एवं उपवस्त्र अर्पित करता हूँ। (श्रीदेवी को वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित है) 6.चंदन :- (घिसा हुआ चंदन) देवी ! सुखदायी एवं सुगंधियुक्त यह चंदन सेवा में समर्पित है, स्वीकार करें। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ चंदन अर्पित है। (चंदन अर्पित करें) 7.पुष्पमाला :- (पुष्पों की माला) विविध ऋतुओं के पुष्पों से गूँथी गई, असीम शोभा की आश्रय तथा देवराज के लिए भी परम प्रिय इस मनोरम माला को स्वीकार करें। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न पुष्पों की माला अर्पित करता हूँ। (कमल, लाल गुलाब के पुष्पों की माला अर्पित करें) 8.नाना परिमल द्रव्य :- (अबीर-गुलाल आदि) देवी ! यही नहीं, किंतु पृथ्वी पर जितने भी अपूर्व द्रव्य शरीर को सजाने के लिए परम उपयोगी हैं, वे दुर्लभ वस्तुएँ भी आपकी सेवा में उपस्थित हैं, स्वीकार करें। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ विभिन्न नाना परिमल द्रव्य अर्पित करता हूँ। (अबीर, गुलाल आदि वस्तुएँ अर्पित करें) 9.दशांग धूप :- (सुगंधित धूप बत्ती जलाएँ) श्रीकृष्णकांते ! वृक्ष का रस सूखकर इस रूप में परिणत हो गया है। इसमें सुगंधित द्रव्य मिला दिए गए हैं। ऐसा यह पवित्र धूप स्वीकार कीजिए। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ सुगंधित धूप अर्पित करता हूँ। (सुगंधित धूप बत्ती के धुएँ को आध्रार्पित करें) 10.दीपक :- (घी का दीपक जलाकर हाथ धो लें) सुरेश्वरी ! जो जगत्‌ के लिए चक्षुस्वरूप है, जिसके सामने अंधकार टिक नहीं सकता तथा जो सुखस्वरूप है, ऐसे इस प्रज्वलित दीप को स्वीकार कीजिए। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नतार्थ यह दीप प्रदर्शित है। 11.नैवेद्य :- (विभिन्न मिष्ठान, ऋतुफल व सूखे मेवे आदि) देवी ! यह नाना प्रकार के उपहार स्वरूप नैवेद्य अत्यंत स्वादिष्ट एवं विविध प्रकार के रसों से परिपूर्ण हैं। कृपया इसे स्वीकार कीजिए। देवी! अन्न को ब्रह्मस्वरूप माना गया है। प्राण की रक्षा इसी पर निर्भर है। तुष्टि और पुष्टि प्रदान करना इसका सहज गुण है। आप इसे ग्रहण कीजिए। महालक्ष्मी! यह उत्तम पकवान चीनी और घृत से युक्त एवं अगहनी चावल से तैयार हैं। इसे आप स्वीकार कीजिए। देवी! शर्करा और घृत में किया हुआ परम मनोहर एवं स्वादिष्ट स्वस्तिक नामक नैवेद्य है। इसे आपकी सेवा में समर्पित किया है। स्वीकार करें। ॐ श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ नैवेद्य एवं सूखे मेवे आदि अर्पित हैं। (नैवेद्य अर्पित कर, बीच-बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें) :- 1.ओम प्राणाय स्वाहा। 2.ओम अपानाय स्वाहा। 3.ओम समानाय स्वाहा। 4.ओम उदानाय स्वाहा। 5.ओम व्यानाय स्वाहा। इसके पश्चात पुनः आचमन हेतु जल छोड़ें 'हे माता! नैवेद्य के उपरांत आचमन ग्रहण करें।' निम्न बोलकर चंदन अर्पित करें ॐ हे माता! करोदवर्तन हेतु चंदन अर्पित है। 12.ताम्बूल : (पान का बीड़ा) हे माता ! यह उत्तम ताम्बूल कर्पूर आदि सुगंधित वस्तुओं से सुवासित है। यह जिह्वा को स्फूर्ति प्रदान करने वाला है, इसे आप स्वीकार कीजिए। ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। आपकी प्रसन्नार्थ ताम्बूल अर्पित करता हूँ। (पान का बीड़ा अर्पित करें) 13.दक्षिणा व नारियल :- (द्रव्य व नारियल) 'हे जगजननी ! फलों में श्रेष्ठ यह नारियल एवं हिरण्यगर्भ ब्रह्मा के गर्भ स्थित अग्नि का बीज यह स्वर्ण आपकी सेवा में अर्पित है। आप इन्हें स्वीकार करें। मुझे शांति व प्रसन्नता प्रदान करें।' श्री महालक्ष्मी देवी ! आपको नमस्कार है। द्रव्य दक्षिणा एवं श्रीफल आपको अर्पित करता हूँ। (श्रीफल दक्षिणा सहित अर्पित करें।) 14.आरती : (कपूर की आरती) 'हे माता ! केले के गर्भ से उत्पन्न यह कपूर आपकी आरती हेतु जलाया गया है। आप इस आरती को देखकर मुझे वर प्रदान करें।' श्री महाकाली देवी आपको नमस्कार है। कपूर निराजन आरती आपको अर्पित है। (आरती उतारें, आरती लें व हाथ धो लें।) (नोट :- महाआरती बाद में होगी। पहले नीचे बताए अनुसार पूजन करें।) देहरी, दवात, कलम, बही-खाता, तिजोरी, तुला एवं दीपावली पूजन अ. देहरी (विनायक) पूजन अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार, घर के प्रवेश द्वार के ऊपर घी में घुले हुए सिंदूर से- ''स्वास्तिक चिन्ह'', ''शुभ-लाभ'', ''श्री गणेशाय नमः'' इत्यादि मंगलसूचक शब्द लिखें। पश्चात्‌ स्वस्तिक चिन्हों पर निम्न मंत्र बोलकर कुंकु, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें- 'ॐ देहली विनायक आपको नमस्कार है।' ब. दवात (महाकाली) पूजन दवात पर नाड़ा बाँधें, स्वस्तिक चिन्ह लगाऐँ एवं महालक्ष्मी की दाहिनी ओर रखकर दवात में महाकाली की भावना करें। 'ॐ महाकाली आपको नमस्कार है।' (जल के छींटे डालें, प्रणाम करें) पश्चात्‌ गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें :- 'ॐ महाकाली आपको नमस्कार है' निम्न प्रार्थना करें- हे जगन्माता कालिके ! तुम वन्दित होने पर भक्तों को सुख प्रदान करती हो एवं रोग इत्यादि हर लेती हो। माता ! जिस तरह तुम जन-जन के भय हर लेती हो, उसी तरह मुझे सौख्य प्रदान करो।' स. लेखनी (कलम) पूजन लेखनी (काली स्याही का पेन) पर नाड़ा बाँधकर सामने रखें। कुंकु, अक्षत से पूजन करें। निम्न मंत्र से प्रणाम करें- ॐ लेखनी-स्थायै देवी आपको नमस्कार है। जल छींटें, तत्पश्चात प्रार्थना करें : 'परम पिता ब्रह्मा ने आपको लोक हितार्थ निर्मित किया है। आप मेरे हाथों में स्थिर भाव से स्थित रहें।' द. बही-खाता पूजन नवीन बहियों एवं खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुंकु से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ। ऊपर 'श्री गणेशाय नमः' लिखें। साथ ही एक कोरी थैली में हल्दी की पाँच गाँठें, कमलगट्टा, अक्षत, दुर्वा, धनिया एवं द्रव्य रखकर, उस पर स्वस्तिक का चिन्ह बनाएँ। यहाँ पर भगवती, सरस्वती की भावना करके निम्न ध्यान बोलें- 'जो अपने कर कमलों में घंटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, कुन्द के समान जिनकी मनोहर कांति है, जो शुंभ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं, वाणी बीज, जिनका स्वरूप है तथा जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती का मैं ध्यान करता हूँ।' ध्यान के पश्चात गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें व निम्न मंत्र बोलें- 'ॐ वीणा पुस्तक धारिणी सरस्वती आपको नमस्कार है।' पश्चात निम्न प्रार्थना करें- हे सर्वस्वरूपिणी! आपको नमस्कार है। हे मूल प्रकृति स्वरूपा एवं अखिल ज्ञान-सागर आप हमें सद्बुद्धि प्रदान करें। इ. तिजोरी पूजन तिजोरी अथवा कीमती आभूषण व नकद द्रव्य रखे जाने वाली पेटी (संदूक) पर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर शुभ लाभ लिखें एवं धनपति कुबेर को प्रणाम कर पुष्पं, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रार्थना करें- 'हे धन प्रदान करने वाले कुबेर ! आपको नमस्कार है, निधि के अधिपति भगवान कुबेर ! आपकी कृपा से मुझे धन, धान्य संपत्ति प्राप्त हो।' क. तुला पूजन सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बनाएँ, नाड़ा लपेटें एवं निम्न मंत्र बोलें : 'तुला-अधिष्ठात्र देवता आपको नमस्कार है' यह बोलकर गंध, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें एवं प्रार्थना करें- 'शक्ति एवं सत्य के देवता आपकी प्रसन्नता से हमें धन-धान्य संपत्ति की प्राप्ति हो।' ख. दीपमाला (दीपावली) पूजन एक थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर ग्यारह या इक्कीस दीपक प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के सम्मुख रखें एवं निम्न मंत्र से गंध, अक्षत, धूप से पूजन करें- 'ॐ दीपावल्यै नमः' इसके पश्चात गन्ना, सीताफल, साल की धानी, पतासे, ऋतुफल दीपक के सम्मुख रखें, साथ ही श्री गणेश, महालक्ष्मी एवं अन्य देवताओं को भी अर्पित करें। इसके पश्चात पूजित दीपकों को दुकान, घर के विभिन्न हिस्सों में सजाएँ। 15.महाआरती कपूर एवं घी का दीपक जलाकर महालक्ष्मी की आरती करें- लक्ष्मीजी की आरती ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निसिदिन सेवत, हर-विष्णु विधाता ॥ॐ जय...॥ उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता । सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय...॥ दुर्गारूप निरंजनि, सुख-संपत्ति दाता । जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय...॥ तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभदाता । कर्मप्रभाव प्रकाशिनी भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय...॥ जिस घर तुम रहती तहं, सब सद्गुण आता । सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता ॥ॐ जय...॥ तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता । खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय...॥ शुभ-गुण मंदिर सुंदर, क्षिरोदधि जाता । रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहिं पाता ॥ॐ जय...॥ महालक्ष्मी की आरती, जो कोई नर गाता । उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय...॥ आरती करके शीतलीकरण हेतु जल छोड़ें। (स्वयं व परिवार के सदस्य आरती लेकर हाथ धो लें।) 16.पुष्पांजलि : (सुगंधित पुष्प हाथों में लेकर बोलें) 'हे माता ! नाना प्रकार के सुगंधित पुष्प मैंने आपको पुष्पांजलि के रूप में अर्पित किए हैं। आप इन्हें स्वीकार करें व मुझे आशीर्वाद प्रदान करें।' ॐ! श्री महालक्ष्मी आपको नमस्कार है। पुष्पांजलि आपको अर्पित है। (चरणों में पुष्प अर्पित करें) 17.प्रदक्षिणा : (परिक्रमा करें) 'जाने-अनजाने में जो कोई पाप मनुष्य द्वारा किए गए हैं वे परिक्रमा करते समय पग-पग पर नष्ट होते हैं।' ॐ श्री महालक्ष्मी ! आपको नमस्कार है। प्रदक्षिणा आपको अर्पित है। (प्रदक्षिणा करें, दंडवत करें) 18.क्षमा प्रार्थना : 'सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता। माँ ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र। अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता। मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ। शिवे ! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती। माँ ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी। महादेवी ! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है। किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना। हे माता ! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना। सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है।' 19.समर्पण : हे देवी ! सुरेश्वरी ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो। मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो। तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो। \ दीपावली पूजन मुहूर्त राशियों के अनुसार 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ आप सभी सनातन धर्म प्रेमी बंधुओ को दीपोत्सव की हार्दिक मंगल कामनाएं।

श्रीराम जी के वनवास समाप्त कर अयोध्या वापिस आने के उपलक्ष्य मे भारतवर्ष में आज दिपावली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज लक्ष्मी पूजन करने के लिए हम चौघड़िया मुहूर्त को देखने की आवश्यकता नही होती। क्योंकि वे मुहूर्त यात्रा के लिए उपयुक्त होते हैं। लक्ष्मी पूजा के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रदोष काल के दौरान होता है। जब स्थिर लग्न प्रचलित होती है। ऐसा माना जाता है कि अगर स्थिर लग्न के दौरान लक्ष्मी पूजा की जाये तो लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती है। इसीलिए लक्ष्मी पूजा के लिए यह समय सबसे उपयुक्त होता है।वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और दीवाली के त्यौहार के दौरान यह अधिकतर प्रदोष काल के साथ अधिव्याप्त होता है।

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