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वसंत पञ्चमी ♾️💖🦢💖♾️

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वसंत पञ्चमी ♾️💖🦢💖♾️

वसन्त पञ्चमी की पावन वेला पर बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती का वरद हस्त हम पर सदैव बना रहे, ऐसी मङ्गलकामना और वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 🙏🏻💐

द्रुमाः सपुष्पाः सलिलं सपद्मं स्त्रियः सकामाः पवनः सुगन्धिः। सुखाः प्रदोषा दिवसाश्च रम्याः सर्वं प्रिये चारुतरं वसन्ते॥

🤷🏻‍♂️ माघ शुक्ल पञ्चमी (पूर्वाह्नव्यापिनी, चतुर्थीविद्धा) को वसन्त पञ्चमी पर्व मनाया जाता है। शुद्ध शब्द वसन्त है जिसको कुछ लोग बसंत पुकारते हैं और बसंत पंचमी कहते हैं। इस वर्ष 14 जनवरी 2023 को यह पर्व मनाया जाएगा। वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती पूजा और वसन्त ऋतु का आगमन सर्वविदित है••• ""“माघशुक्लपंचमी वसंतपंचमी तस्यां वसंतोत्सवारंभः।""" 🙇🏻‍♂️ बाल्यकाल से ही माताजी ने इस दिन माँ सरस्वती की आराधना करना, गुरुजनों की सेवा करना, पीले वस्त्र पहनना, पीली खाद्य सामग्री ग्रहण करना सिखा दिया था। वसन्त ऋतु आगमन और वाग्देवी सरस्वती की आराधना में एक अनुपम सम्बन्ध है।.

सरस्वती पूजा (बसंत पंचमी) की मङ्गलमय शुभकामनाएं.! अमला विश्ववन्द्या सा कमलाकरमालिनी। विमलाभ्रनिभा वोऽव्यात्कमला या सरस्वती।। चतुर्मुखस्य जाया या चतुर्वेदस्वरूपिणी। चतुर्भुजा च सा वोऽव्याच्चतुर्वर्गा सरस्वती।। सर्वलोकप्रपूज्या या पर्वचन्द्रनिभानना। सर्वजिह्वाग्रसंस्था सा सदा वोऽव्यात्सरस्वती।। ॐ विद्यायै नमः। ॐ वीणायै नमः। वन्देमातरम्। स्वस्तिरस्तु। प्रातर्नमामि। शुभंभूयात्। सुदिनमस्तु। माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि विद्या की देवी माता सरस्वती का जन्मोत्सव बसन्त पञ्चमी के रूप में मनाया जाता है जिसमें प्रकृति धरती के कण कण को सौन्दर्य एवं उत्साह से सराबोर कर देती है जिससे प्रत्येक भरत वंशी आनन्द एवं उमंग से भर जाता है। इसी दिन भगवान श्रीराम दंडकारण्य में स्थित माता सबरी के आश्रम में पधारे थे और इसी दिन दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने अपने दुश्मन मुहम्मद गोरी का शब्द भेदी बाण से वध किया था और अपने साथी चंदवरदाई के साथ एक दूसरे के पेट में छुरा घोंप कर आत्म बलिदान दिया था। इसी दिन राजा भोज, रामसिंह कूका व महाकवि पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का भी जन्मदिन मनाया जाता है। ।। श्री सरस्वत्यै नमः ।। लेखन, कला, शिक्षा, संगीत आदि कार्यों से जुड़े लोगों, पढ़ाई में कमजोर छात्रों के लिए . इस दिन का विशेष महत्व है. बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा भी की जाती है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। सरस्वती पूजन एवं ज्ञान का महापर्व है | प्राचीन समय में बसंत पंचमी के दिन बच्चों की जीभ पर केसर से मां सरस्वती की उपासना का बीज मंत्र लिखा जाता था, जिससे बच्चा बुद्धिमान बन सके. यह प्रथा आज भी कहीं-कहीं प्रचलित है | ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। | बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजन , हवन ,और व्रत आदि करने से वाणी मधुर होती है, स्मरण शक्ति तीव्र होती है, सौभाग्य प्राप्त होता है, विद्या में कुशलता प्राप्त होती है। पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। बाल्यकाल से ही माताजी ने इस दिन माँ सरस्वती की आराधना करना, गुरुजनों की सेवा करना, पीले वस्त्र पहनना, पीली खाद्य सामग्री ग्रहण करना सिखा दिया था। वसन्त ऋतु आगमन और वाग्देवी सरस्वती की आराधना में एक अनुपम सम्बन्ध है।. ♾️👉🏻 उत्तरायण होने के बाद वेदाङ्ग ज्योतिष प्रथम माह माघ में पञ्चमी पर वाग्देवी सरस्वती की आराधना की जाती है और माघ सप्तमी पर प्राण रुपी सूर्य की आराधना। वाक् वह मूल स्रोत है जहाँ से पदार्थों का गुप्त, श्रेष्ठ और परिपूर्ण भाव प्रकट होता है। ☝🏻 काल का निर्धारण सूर्य, पृथ्वी और चंद्र की गतियों से होता है जिसमें ऋतु परिवर्तन का मुख्य कारण है पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों ओर परिक्रमण और पृथ्वी का अक्षीय झुकाव। आध्यात्म में सूर्य, पृथ्वी और चंद्र का रूपान्तर क्रमशः प्राण, वाक् और मन के रूप में किया जा सकता है। वाक् में प्राण और मन की प्रतिष्ठा करना, उनका विकास करना ही ऋतुओं का कार्य है। जैसा कि सर्वविदित है, वसन्त ऋतु में प्रकृति में पुष्प खिलते हैं। अध्यात्म में इसका तात्पर्य यह लिया गया है कि वसन्त के माध्यम से जड प्रकृति में, जिसे वाक् कहा जा सकता है, प्राणों का, सूर्य का प्रवेश कराना है, वाक् में प्राणों की प्रतिष्ठा करनी है। वाक् के अभाव में सृष्टि के किसी भी पदार्थ का आख्यान नहीं हो सकता है, अत: वाक् के बिना सभी कुछ अस्तित्वहीन है। इस दृष्टि से वाक् को विश्व की जननी कहा गया है••• 'वागेव विश्वा भुवनानि जज्ञे।' ♾️👉🏻 यही कारण हो सकता है की वसन्त पञ्चमी को वाग्देवी माँ सरस्वती का जन्म दिवस माना जाता है जो ज्ञान, बुद्धि, संगीत की अधिष्ठात्री हैं। सृष्टिकाल   में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने स्वयं को पाँच भागों में विभक्त किया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा एवं सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से उत्पन्न हुईं थीं। यथा👇🏻👇🏻👇🏻 """सा च शक्तिः सृष्टिकाले पञ्चधा चेश्वरेच्छया। राधा पद्मा च सावित्री दुर्गा देवी सरस्वती॥”"" ☝🏻 उस समय श्रीकृष्ण के मुख (कण्ठ) से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ••• ""“कृष्णकण्ठीद्भवा या च सा च देवी सरस्वती॥”"" ☝🏻 सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की है, जिनके प्रसाद से मूर्ख भी पण्डित बन जाता है••• ""“आदौ सरस्वतीपूजा श्रीकृष्णेन विनिर्मिता। यत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मूर्खो भवति पण्डितः॥”"" 📚 ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा देवीभागवत पुराण के अनुसार जो मानव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि के दिन संयमपूर्वक उत्तम भक्ति के साथ षोडशोपचार से भगवती सरस्वती की अर्चना करता है, वह वैकुण्ठ धाम में स्थान पाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार••• सृष्टिकाल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने स्वयं को पाँच भागों में विभक्त किया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा एवं सरस्वती के रूप में भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न अंगों से उत्पन्न हुईं थीं। यथा👇🏻👇🏻👇🏻 """सा च शक्तिः सृष्टिकाले पञ्चधा चेश्वरेच्छया। राधा पद्मा च सावित्री दुर्गा देवी सरस्वती॥”"" ☝🏻 उस समय श्रीकृष्ण के मुख (कण्ठ) से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ••• ""“कृष्णकण्ठीद्भवा या च सा च देवी सरस्वती॥”"" ☝🏻 सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने सरस्वती की पूजा की है, जिनके प्रसाद से मूर्ख भी पण्डित बन जाता है••• ""“आदौ सरस्वतीपूजा श्रीकृष्णेन विनिर्मिता। यत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मूर्खो भवति पण्डितः॥”"" 📚 ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा देवीभागवत पुराण के अनुसार जो मानव माघ मास के शुक्ल पक्ष की पञ्चमी तिथि के दिन संयमपूर्वक उत्तम भक्ति के साथ षोडशोपचार से भगवती सरस्वती की अर्चना करता है, वह वैकुण्ठ धाम में स्थान पाता है। ☝🏻माघ शुक्ल पञ्चमी विद्यारम्भ की मुख्य तिथि है••• ""“माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भदिनेऽपि च।”""

🤷🏻‍♂️ श्रीकृष्ण नेवै चोपचारांश्च षोडश॥

काण्वशाखोक्तविधिना ध्यानेन स्तवनेन च।
जितेन्द्रियाः संयताश्च पुस्तकेषु घटेऽपि च॥
कृत्वा सुवर्णगुटिकां गन्धचन्दन चर्च्चिताम्।
कवचं ते ग्रहीष्यन्ति कण्ठे वा दक्षिणे भुजे॥
पठिष्यन्ति च विद्वांसः पूजाकाले च पूजिते।
इत्युक्त्वा पूजयामास तां देवीं सर्वपूजितः॥
ततस्तत्पूजनं चक्रुर्ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः।
अनन्तश्चापि धर्मश्च मुनीन्द्राः सनकादयः॥
सर्वे देवाश्च मनवो नृपा वा मानवादयः।

बभूव पूजिता नित्या सर्वलोकैः सरस्वती॥ सरस्वती से कहा था••• """प्रतिविश्वेषु ते पूजां महतीं ते मुदाऽन्विताः। माघस्य शुक्लपञ्चम्यां विद्यारम्भेषु सुन्दरि॥ मानवा मनवो देवा मुनीन्द्राश्च मुमुक्षवः। सन्तश्च योगिनः सिद्धा नागगन्धर्वकिंनराः॥ मद्वरेण करिष्यन्ति कल्पे कल्पे यथाविधि। भक्तियुक्ताश्च दत्त्वा """

♾️👉🏻 अर्थात— “सुन्दरि! प्रत्येक ब्रह्माण्ड में माघ शुक्ल पञ्चमी के दिन विद्यारम्भ के शुभ अवसर पर बड़े गौरव के साथ तुम्हारी विशाल पूजा होगी। मेरे वर के प्रभाव से आज से लेकर प्रलयपर्यन्त प्रत्येक कल्प में मनुष्य, मनुगण, देवता, मोक्षकामी प्रसिद्ध मुनिगण, वसु, योगी, सिद्ध, नाग, गन्धर्व और राक्षस– सभी बड़ी भक्ति के साथ सोलह प्रकार के उपचारों के द्वारा तुम्हारी पूजा करेंगे। उन संयमशील जितेन्द्रिय पुरुषों के द्वारा कण्वशाखा में कही हुई विधि के अनुसार तुम्हारा ध्यान और पूजन होगा। वे कलश अथवा पुस्तक में तुम्हें आवाहित करेंगे। तुम्हारे कवच को भोजपत्र पर लिखकर उसे सोने की डिब्बी में रख गन्ध एवं चन्दन आदि से सुपूजित करके लोग अपने गले अथवा दाहिनी भुजा में धारण करेंगे। पूजा के पवित्र अवसर पर विद्वान पुरुषों के द्वारा तुम्हारा सम्यक प्रकार से स्तुति-पाठ होगा। इस प्रकार कहकर सर्वपूजित भगवान श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती की पूजा की। तत्पश्चात, ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण– इन सब ने भगवती सरस्वती की आराधना की। तब से ये सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों द्वारा सदा पूजित होने लगीं। हर राशि के छात्र अपनी राशि के शुभ पुष्पों से मां महासरस्वती की साधना कर सकते हैं। परीक्षा में पूर्ण सफलता के लिए वसंत पंचमी पर जन्मकुंडली अनुसार उपाय मेष और वृश्चिक राशि के छात्र लाल पुष्प विशेषत: गुड़हल, लाल कनेर, लाल गैंदे आदि से आराधना करके लाभ उठाएं। वृष और तुला राशि वाले श्वेत पुष्पों तथा मिथुन और कन्या राशि वाले छात्र कमल पुष्पों से आराधना कर सकते हैं। कर्क राशि वाले श्वेत कमल या अन्य श्वेत पुष्प से, सिंह राशि के लोग जवाकुसुम (लाल गुड़हल) से आराधना करके लाभ पा सकते हैं। धनु और मीन के लोग पीले पुष्प मकर और कुंभ राशिके लोग नीले पुष्पों से मां सरस्वती की आराधना कर सकते हैं। इस दिन हवन में केसर या हल्दी मिश्रित हलवे की आहुतियां विशिष्ट मंत्रो के साथ देनी चाहिये। माँ सरस्वती के मन्त्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नम: का जाप करके आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस मन्त्र के जाप से जन्मकुण्डली के लग्न (प्रथम भाव), पंचम (विद्या) और नवम (भाग्य) भाव के दोष भी समाप्त हो जाते हैं। इन तीनों भावों (त्रिकोण) पर श्री महाकाली, श्री महासरस्वती और श्री महालक्ष्मी का अधिपत्य माना जाता है। मां सरस्वती की कृपा से ही विद्या, बुद्धि, वाणी और ज्ञान की प्राप्ति होती है। बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्तों में शामिल किया जाता है. बसंत पंचमी के दिन शुभ कार्य जिसमें विवाह, भवन निर्माण, कूप निर्माण, फैक्ट्री आदि का शुभारम्भ, शिक्षा संस्थाओं का उद्धघाटन करने के लिये शुभ मुहूर्त के रुप में प्रयोग किया जाता है. विशेष अगर आप का बच्चा बोलने में कठिनाई महसूस करता है, हकलाता या तुतलाता है तो इस दिन उसकी राशि के अनुसार महाउपाय और मां सरस्वती की पूजा उसके लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है.

सरस्वती ध्यान ♾️💖🦢💖♾️

सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्। कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां सस्मितां सुमनोहराम्। रत्नसारेन्द्र खचितवरभूषणभूषिताम्॥ सुपूजितां सुरगणैर्ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः। वन्दे भक्त्या वन्दिता तां मुनीन्द्रमनुमानवैः॥

♾️👉🏻 अर्थात— ‘सरस्वती का श्रीविग्रह शुक्लवर्ण है। ये परम् सुन्दरी देवी सदा मुस्कराती रहती हैं। इनके परिपुष्ट विग्रह के सामने करोड़ों चन्द्रमा की प्रभा भी तुच्छ है। ये विशुद्ध चिन्मय वस्त्र पहने हैं। इनके एक हाथ में वीणा है और दूसरे में पुस्तक। सर्वोत्तम रत्नों से बने हुए आभूषण इन्हें सुशोभित कर रहे हैं। ब्रह्मा, विष्णु और शिव प्रभृति प्रधान देवताओं तथा सुरगणों से ये सुपूजित हैं। श्रेष्ठ मुनि, मनु तथा मानव इनके चरणों में मस्तक झुकाते हैं। ऐसे भगवती सरस्वती को मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ।’ ☝🏻 वसन्त पञ्चमी पर सरस्वती मूल मंत्र की कम से कम 1 माला जप अवश्य करना चाहिए।

♾️👉🏻 मूल मंत्र— “श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा” सरस्वती जी का वैदिक अष्टाक्षर मूल मंत्र जिसे भगवान शिव ने कणादमुनि तथा गौतम को, श्रीनारायण ने वाल्मीकि को, ब्रह्मा जी ने भृगु को, भृगुमुनि ने शुक्राचार्य को, कश्यप ने बृहस्पति को दिया था जिसको सिद्ध करने से मनुष्य बृहस्पति के समान हो जाता है

🤷🏻‍♂️ सरस्वती पूजा के लिए नैवैद्य•••• 📙(ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार)

नवनीतं दधि क्षीरं लाजांश्च तिललड्डुकान्। इक्षुमिक्षुरसं शुक्लवर्णं पक्वगुडं मधु॥ स्वस्तिकं शर्करां शुक्लधान्यस्याक्षतमक्षतम्। अस्विन्नशुक्लधान्यस्य पृथुकं शुक्लमोदकम्॥ घृतसैन्धवसंस्कारैर्हविष्यैर्व्यञ्जनैस्तथा। यवगोधूमचूर्णानां पिष्टकं घृतसंस्कृतम्॥ पिष्टकं स्वस्तिकस्यापि पक्वरम्भाफलस्य च। परमान्नं च सघृतं मिष्टान्नं च सुधोपमम्॥ नारिकेलं तदुदकं केशरं मूलमार्द्रकम्। पक्वरम्भाफलं चारु श्रीफलं बदरीफलम्॥ कालदेशोद्भवं पक्वफलं शुक्लं सुसंस्कृतम्॥

♾️👉🏻 अर्थात— ताजा मक्खन, दही, दूध, धान का लावा, तिल के लड्डू, सफेद गन्ना और उसका रस, उसे पकाकर बनाया हुआ गुड़, स्वास्तिक (एक प्रकार का पकवान), शक्कर या मिश्री, सफेद धान का चावल जो टूटा न हो (अक्षत), बिना उबाले हुए धान का चिउड़ा, सफेद लड्डू, घी और सेंधा नमक डालकर तैयार किये गये व्यंजन के साथ शास्त्रोक्त हविष्यान्न, जौ अथवा गेहूँ के आटे से घृत में तले हुए पदार्थ, पके हुए स्वच्छ केले का पिष्टक, उत्तम अन्न को घृत में पकाकर उससे बना हुआ अमृत के समान मधुर मिष्टान्न, नारियल, उसका पानी, कसेरू, मूली, अदरख, पका हुआ केला, बढ़िया बेल, बेर का फल, देश और काल के अनुसार उपलब्ध ऋतुफल तथा अन्य भी पवित्र स्वच्छ वर्ण के फल – ये सब नैवेद्य के समान हैं।

सुगन्धि शुक्लपुष्पं च गन्धाढ्यं शुक्लचन्दनम्। नवीनं शुक्लवस्त्रं च शङ्खं च सुमनोहरम्॥ माल्यं च शुक्लपुष्पाणां मुक्ताहीरादिभूषणम्॥

♾️👉🏻 सुगन्धित श्वेत पुष्प, श्वेत स्वच्छ चन्दन तथा नवीन श्वेत वस्त्र और सुन्दर शंख देवी सरस्वती को अर्पण करना चाहिये। श्वेत पुष्पों की माला और श्वेत भूषण भी भगवती को चढ़ावे। वसंत पंचमी की तिथि ================ पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 13 फरवरी को दोपहर 02 बजकर 41 मिनट से हो रही है। अगले दिन 14 फरवरी को दोपहर 12 बजकर 09 मिनट पर इसका समापन होगा। उदया तिथि 14 फरवरी को प्राप्त हो रही है, इसलिए इस साल वसंत पंचमी का पर्व 14 फरवरी को मनाया जाएगा। वसंत पंचमी पूजा का शुभ मुहूर्त ==================== 14 फरवरी को वसंत पंचमी वाले दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 1 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 35 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस दिन पूजा के लिए आपके पास करीब 5 घंटे 35 मिनट तक का समय है। वसंत पंचमी की पूजा विधि =================== वसंत पंचमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पीले या सफेद रंग का वस्त्र पहनें। उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें। पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं। फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं। इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें। इस दिन सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं। साथ ही पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से मां सरस्वती की पूजा करें। आप चाहें तो पूजा के समय सरस्वती कवच का पाठ भी कर सकते हैं। आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नमः: स्वहा” मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें। फिर अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें। क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी? ===================== बसंत पंचमी (जिसे वसंत पंचमी भी कहा जाता है) जीवन में नई चीजें शुरू करने का एक शुभ दिन है। बहुत से लोग इस दिन "गृहप्रवेश" के दिन नए घर में प्रवेश करते हैं, कोई नया व्यवसाय शुरू करते हैं या महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू करते हैं। इस त्योहार को अक्सर समृद्धि और सौभाग्य से जोड़ा जाता है। बसंत पंचमी के साथ, यह माना जाता है कि वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों और कटाई के लिए एक अच्छा समय है। कड़ाके की ठंड के बाद, इस त्योहार को वसंत का पहला दिन, फसल काटने का समय माना जाता है। चूंकि भारत मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए यह समझ में आता है कि यह त्योहार भारतीयों के दिलों में काफी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन माता सरस्वती प्रकट हुई थीं इसलिए इस दिन बसंत पंचमी के दिन सरस्वती माता की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मां सरस्वती को विद्या एवं बुद्धि की देवी माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती से विद्या, बुद्धि, कला एवं ज्ञान का वरदान माना जाता है इसलिए लोगों को इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने चाहिए और पीले फूलों से देवी सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।

🤷🏻‍♂️ स्मरण शक्ति प्राप्त करने के लिए वसंत पञ्चमी से शुरू करके प्रतिदिन याज्ञवल्क्य द्वारा रचित भगवती सरस्वती की स्तुति करनी चाहिए।

व्यासः पुराणसूत्रं समपृच्छद्वाल्मिकिं यदा। मौनीभूतः स सस्मार त्वामेव जगदम्बिकाम्॥२३॥ तदा चकार सिद्धान्तं त्वद्वरेण मुनीश्वरः। स प्राप निर्मलं ज्ञानं प्रमादध्वंसकारणम्॥२४॥ पुराण सूत्रं श्रुत्वा स व्यासः कृष्णकलोद्भवः। त्वां सिषेवे च दध्यौ तं शतवर्षं च पुष्क्करे॥२५॥ तदा त्वत्तो वरं प्राप्य स कवीन्द्रो बभूव ह। तदा वेदविभागं च पुराणानि चकार ह॥२६॥ यदा महेन्द्रे पप्रच्छ तत्वज्ञानं शिवा शिवम्। क्षणं त्वामेव सञ्चिन्त्य तस्यै ज्ञानं दधौ विभुः॥२७॥ पप्रच्छ शब्दशास्त्रं च महेन्द्रस्च बृहस्पतिम्। दिव्यं वर्षसहस्रं च स त्वां दध्यौ च पुष्करे॥२८॥ तदा त्वत्तो वरं प्राप्य दिव्यं वर्षसहस्रकम्। उवाच शब्दशास्त्रं च तदर्थं च सुरेश्वरम्॥२९॥ अध्यापिताश्च यैः शिष्याः यैरधीतं मुनीश्वरैः। ते च त्वां परिसञ्चिन्त्य प्रवर्तन्ते सुरेश्वरि॥३०॥ त्वं संस्तुता पूजिता च मुनीन्द्रमनुमानवैः। दैत्यैश्च सुरैश्चापि ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः॥३१॥ जडीभूतः सहस्रास्यः पञ्चवक्त्रश्चतुर्मुखः। यां स्तोतुं किमहं स्तौमि तामेकास्येन मानवः॥३२॥ इत्युक्त्वा याज्ञवल्क्यश्च भक्तिनम्रात्मकन्धरः। प्रणनाम निराहारो रुरोद च मुहुर्मुहुः॥३३॥ तदा ज्योतिः स्वरूपा सा तेनाऽदृष्टाऽप्युवाच तम्। सुकवीन्द्रो भवेत्युक्त्वा वैकुण्ठं च जगाम ह॥३४॥ महामूर्खश्च दुर्मेधा वर्षमेकं च यः पठेत्। स पण्डितश्च मेधावी सुकविश्च भवेद्ध्रुवम्॥३५॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे नारदनारायणसंवादे याज्ञवल्क्योक्त वाणीस्तवनं नाम पञ्चमोऽध्यायः॥

♾️👉🏻 जो पुरुष याज्ञवल्क्यरचित इस सरस्वती स्तोत्र को पढ़ता है, उसे कवीन्द्रपद की प्राप्ति हो जाती है। भाषण करने में वह बृहस्पति की तुलना कर सकता है। कोई महान् मूर्ख अथवा दुर्बुद्धि ही क्यों न हो, यदि वह एक वर्ष तक नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करता है तो वह निश्चय ही पण्डित परम बुद्धिमान् एवं सुकवि हो जाता है।

ओजस्वी वाणी, वाक् सिद्धि, विद्या - बुद्धि की प्राप्ति के लिए नित्य विश्वविजय सरस्वती कवच का पाठ करें ________ जय भगवती विश्वविजय सरस्वती कवच ॥ ध्यान ॥ सरस्वतीं शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम् । कोटिचन्द्रप्रभाजुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम् ॥ वह्निशुद्धांशुकाधानां सस्मितां सुमनोहराम् । रत्नसारेन्द्र खचितवरभूषणभूषिताम् ॥ सुपूजितां सुरगणैर्ब्रह्मविष्णुशिवादिभिः । वन्दे भक्त्या वन्दिता तां मुनीन्द्रमनुमानवैः ॥ ॥ मन्त्र ॥ ” श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा ॥” ॥ ब्रह्मोवाच ॥ श्रृणु वत्स प्रवक्ष्यामि कवचं सर्वकामदम् । श्रुतिसारं श्रुतिसुखं श्रुत्युक्तं श्रुतिपूजितम् ॥ उक्तं कृष्णेन गोलोके मह्यं वृन्दावने वने । रासेश्वरेण विभुना वै रासमण्डले ॥ अतीव गोपनीयं च कल्पवृक्षसमं परम् । अश्रुताद्भुतमन्त्राणां समूहैश्च समन्वितम् ॥ यद् धृत्वा भगवाञ्छुक्रः सर्वदैत्येषु पूजितः । यद् धृत्वा पठनाद् ब्रह्मन् बुद्धिमांश्च बृहस्पतिः ॥ पठणाद्धारणाद्वाग्मी कवीन्द्रो वाल्मिको मुनिः । स्वायम्भुवो मनुश्चैव यद् धृत्वा सर्वपूजितः ॥ कणादो गौतमः कण्वः पाणिनीः शाकटायनः। ग्रन्थं चकार यद् धृत्वा दक्षः कात्यायनः स्वयम् ॥ धृत्वा वेदविभागं च पुराणान्यखिलानि च । चकार लीलामात्रेण कृष्णद्वैपायनः स्वयम् ॥ शातातपश्च संवर्तो वसिष्ठश्च पराशरः । यद् धृत्वा पठनाद् ग्रन्थं याज्ञवल्क्यश्चकार सः ॥ ऋष्यशृङ्गो भरद्वाजश्चास्तीको देवलस्तथा । जैगीषव्योऽथ जाबालिर्यद् धृत्वा सर्वपूजिताः ॥ ॥ मूल-पाठ ॥ कचवस्यास्य विप्रेन्द्र ऋषिरेष प्रजापतिः। स्वयं बृहतीच्छन्दो देवता शारदाम्बिका ॥ सर्वतत्त्वपरिज्ञाने सर्वार्थसाधनेषु च । कवितासु च सर्वासु विनियोगः प्रकीर्तितः ॥ श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा शिरो मे पातु सर्वत:। श्रीं वाग्देवतायै स्वाहा भालं मे सर्वदावतु।। ऊं सरस्वत्यै स्वाहेति श्रोत्र पातु निरन्तरम्। ऊं श्रीं ह्रीं भारत्यै स्वाहा नेत्रयुग्मं सदावतु।। ऐं ह्रीं वाग्वादिन्यै स्वाहा नासां मे सर्वतोवतु। ह्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा ओष्ठं सदावतु।। ऊं श्रीं ह्रीं ब्राह्मयै स्वाहेति दन्तपंक्ती: सदावतु। ऐमित्येकाक्षरो मन्त्रो मम कण्ठं सदावतु।। ऊं श्रीं ह्रीं पातु मे ग्रीवां स्कन्धं मे श्रीं सदावतु। श्रीं विद्याधिष्ठातृदेव्यै स्वाहा वक्ष: सदावतु।। ऊं ह्रीं विद्यास्वरुपायै स्वाहा मे पातु नाभिकाम्। ऊं ह्रीं ह्रीं वाण्यै स्वाहेति मम पृष्ठं सदावतु।। ऊं सर्ववर्णात्मिकायै पादयुग्मं सदावतु। ऊं रागधिष्ठातृदेव्यै सर्वांगं मे सदावतु।। ऊं सर्वकण्ठवासिन्यै स्वाहा प्राच्यां सदावतु। ऊं ह्रीं जिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहाग्निदिशि रक्षतु।। ऊं ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा। सततं मन्त्रराजोऽयं दक्षिणे मां सदावतु।। ऊं ह्रीं श्रीं त्र्यक्षरो मन्त्रो नैर्ऋत्यां मे सदावतु। कविजिह्वाग्रवासिन्यै स्वाहा मां वारुणेऽवतु।। ऊं सदाम्बिकायै स्वाहा वायव्ये मां सदावतु। ऊं गद्यपद्यवासिन्यै स्वाहा मामुत्तरेवतु।। ऊं सर्वशास्त्रवासिन्यै स्वाहैशान्यां सदावतु। ऊं ह्रीं सर्वपूजितायै स्वाहा चोध्र्वं सदावतु।। ऐं ह्रीं पुस्तकवासिन्यै स्वाहाधो मां सदावतु। ऊं ग्रन्थबीजरुपायै स्वाहा मां सर्वतोवतु।। ॥ फल-श्रुति ॥ इति ते कथितं विप्र ब्रह्ममन्त्रौघविग्रहम् । इदं विश्वजयं नाम कवचं ब्रह्मरुपकम् ॥ पुरा श्रुतं धर्मवक्त्रात् पर्वते गन्धमादने । तव स्नेहान्मयाऽऽख्यातं प्रवक्तव्यं न कस्यचित् ॥ गुरुमभ्यर्च्य विधिवद् वस्त्रालंकारचन्दनैः । प्रणम्य दण्डवद् भूमौ कवचं धारयेत् सुधीः ॥ पञ्चलक्षजपैनैव सिद्धं तु कवचं भवेत् । यदि स्यात् सिद्धकवचो बृहस्पतिसमो भवेत् ॥ महावाग्मी कवीन्द्रश्च त्रैलोक्यविजयी भवेत् । शक्नोति सर्वं जेतुं स कवचस्य प्रसादतः ॥ इदं ते काण्वशाखोक्तं कथितं कवचं मुने । स्तोत्रं पूजाविधानं च ध्यानं वै वन्दनं तथा ॥ ॥ इति श्रीब्रह्मवैवर्ते ध्यानमन्त्रसहितं विश्वविजय-सरस्वतीकवचं सम्पूर्णम् ॥  

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