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योगासन नवग्रह

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योगासन नवग्रह

स्वस्थ्य लाइफ जीने के लिए प्रेरित किया जाएगा। वैसे तो पुराने समय से ही हमारे ऋषि-मुनि योग के जरिए अपने को निरोगी रखते थे। इसी योग को आम लोगों तक पहुचाकर जन जन में स्वास्थ्य क्रांति जगाने की कोशिश की जा रही है। आज हम इस लेख में योग दिवस के दिन योगासन के माध्यम से ग्रह के नकारात्मक प्रभाव को कैसे दूर किया जा सकता है इस बारे में बता रहें हैं, जिससे ग्रहों से होने वाली शारीरिक समस्या से भी छुटकारा मिल सकता है। चारों ओर फैले हुए मायाजाल भौतिकतावाद में जीवन के मूल्यों को नष्ट कर दिया गया है और नकारात्मक विचार हमारे जीवन में कठिनाई लाते हैं और तनाव का सृजन होता है हमारे इन विचारों को दूर करने के लिए ऋषि-मुनियों ने अनेक सुझाव बताएं उन उपायों से हमारा अर्थ है आत्मबल बढ़ाना जिससे कि हमें सकारात्मक भावों विचारों का जन्म हो हंस योग इस क्रिया में बहुत सहायता करता है मनुष्य का शरीरिक और आंतरिक दोनों में एक सामंजस्य होना चाहिए और जिससे कि आसपास का वातावरण भी अच्छा होना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त में योगासन सबसे अच्छा माना जाता है। प्राण के वशीभूत सारा जगत है सूर्य किरणों द्वारा और अंतरिक्ष में स्थित किरण पृथ्वी पर आने के बाद वायु तत्व में मिलकर जो हमारे जीवो की जीवन शक्ति है उसको हम सांसो में धड़कन प्राण वायु के द्वारा योग करें। योग में आचरण का भी महत्व बहुत ज्यादा है। योग शास्त्र में दाहिने स्वर को सूर्य और बाय स्वर को चंद्रमा कहां है। ईश्वर ही जीवन है और इसको देने वाले सूर्य है। और योग ने इस श्वास को प्राण कहा है। चरण स्पर्श से लेकर मुद्रा थेरेपी तक पूजा पाठ में उपयोग होने वाले न्यास विनियोग और मुद्राओं का प्रयोग भोग लगाने में किया गया है। यह सारे कृत पूजा-पाठ नमाज पढ़ना आदि भी योगों से ही संबंधित है प्रदक्षिणा करना जिमनास्टिक और कामसूत्र भी इसमें सम्मिलित है! योग की भाषा है लघु ब्रह्मांड व संपूर्ण ब्रह्मांड । सूक्ष्म ढंग से मनुष्य एक छोटा सा ब्रह्मांड है, एक छोटे से अस्तित्व में सघन रूप से समाया हुआ है। यह ब्रह्मांड, यह संपूर्ण अस्तित्व और कुछ नहीं मनुष्य का विस्तार ही है। यह जो कुछ बाहर अस्तित्व रखता है, ठीक वही मनुष्य के भीतर भी अस्तित्व रखता है। बाहर के सूर्य की भाँति मनुष्य के भीतर भी सूर्य छिपा हुआ है; बाहर के चाँद की ही भाँति मनुष्य के भीतर भी चाँद छिपा हुआ है। महृषि पंतजलि कहते हैं कि - ''सूर्य पर संयम संपन्न करने से सौर ज्ञान की उपलब्धि होती है। तो उनका संकेत उस सूर्य की ओर नहीं है जो बाहर है। उनका मतलब उस सूर्य से है जो हमारे भीतर है। और निस्संदेह यह केवल सूर्य से ही प्रारंभ हो सकता है, क्योंकि सूर्य हमारा केंद्र है। सूर्य लक्ष्य नहीं है, बल्कि केंद्र है। परम नहीं है, फिर भी केंद्र तो है। हमको उससे भी ऊपर उठना है, उससे भी आगे निकलना है। फिर भी यह केवल प्रारंभ ही है अंतिम चरण नहीं है। जब महृषि पतंजलि हमें बताते हैं कि संयम को कैसे उपलब्ध हो ,करुणा में, प्रेम में व मैत्री में कैसे उतरे कैसे करुणावान हो , प्रेमपूर्ण होने की क्षमता कैसे अर्जित करे । तब वे आंतरिक जगत में पहुँच जाते हैं। महृषि पतंजलि की पहुँच अंतर-अवस्था के पूरे वैज्ञानिक विवरण तक है। 'सूर्य पर संयम संपन्न करने से, संपूर्ण सौर-ज्ञान की उपलब्धि होती है। 'इस पृथ्वी के लोगों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, सूर्य-व्यक्ति और चंद्र-व्यक्ति, या हम उन्हें यांग और यिन भी कह सकते हैं। सूर्य पुरुष का गुण है; स्त्री चंद्र का गुण है। सूर्य आक्रामक और सकारात्मक है। चंद्र ग्रहणशील और निष्क्रिय होता है। सारे जगत के लोगों को सूर्य और चंद्र इन दो रूपों में विभक्त किया जा सकता है।और हम अपने शरीर को भी सूर्य और चंद्र में विभक्त कर सकते हैं; योग ने इसे इसी भाँति विभक्त किया है। योग ने तो शरीर को इतने छोटे-छोटे रूपों में विभक्त किया है कि श्वास तक को भी बाँट दिया है। एक नासापुट में सूर्यगत श्वास है, तो दूसरे में चंद्रगता वास है जब व्यक्ति क्रोधित होता है, तब वह सूर्य के नासापुट से श्वास लेता है। और अगर शांत होना चाहता है तो उसे चंद्र नासापुट से श्वास लेनी होगी। योग में तो संपूर्ण शरीर को ही विभक्त कर दिया गया है मन का एक हिस्सा पुरुष है, मन का दूसरा हिस्सा स्त्री है। और व्यक्ति को सूर्य से चंद्र की ओर बढ़ना है, और अंत में दोनों के भी पार जाना है । प्राणायाम तीन प्रकार के होते हैं। इसमें शरीर को गर्मी देने वाले, शरीर को ठंडा रखने वाले और शरीर को ताकत देने वाले हैं। कई योगासन ऐसे हैं, जो शरीर को अंदर से गर्म रखते हैं। शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करते हैं, जिससे आप सर्दी में होने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं। इसके लिए आप प्रणायाम भी कर सकते हैं, जो सर्दी में खुद को गर्म रखने के लिए बहुत उपयोगी हैं। ठंड के मौसम में सूर्यभेदी, कपालभाति प्राणायाम करना चाहिए। इससे पिंगला नाड़ी का शोधन होता है। प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से व्यक्ति के कपाल की शुद्धि होती है। सर्दी के प्रकोप से खुद को बचाकर रखना है, तो यह बेहद ही फायदेमंद है। इसे करने से जठराग्नि (पेट के अंदर मौजूद शारीरिक ताप, जो भोजन पचाने का काम करता है) प्रदीप्त होती है। इससे शरीर को ऊर्जा की प्राप्ति होती है।इससे भी आप अंदर से गर्म रहेंगे। ऐसा इसलिए, क्योंकि भस्त्रिका प्राणायाम करने से सांस की गति तेज होती है, जिससे शरीर को गर्मी मिलती है। शरीर अंदर से गर्म रहेगा तो आप एलर्जी, सांस से संबंधित रोगों, गले में खराश, सर्दी-जुकाम, खांसी, साइनस आदि कफ उत्पन्न करने वाली बीमारियों से छुटकारा मिलता है। सूर्यभेदी प्राणायाम का अभ्यास करने से शरीर का तापमान बढ़ता है। इसमें दाहिने नाक के छिद्र से सांस भर कर बाएं से छोड़ते हैं। ऐसा करने से शरीर का तापमान तेजी से बढ़ता है। इस प्राणायाम को कम से कम पांच मिनट करना चाहिए। इसी तरह अश्व चालन आसन का अभ्यास करनाचाहिए। इसमें पैर के पंजे एवं हाथ की हथेलियों के बल पर सामने की ओर देखते हुए फूंफकार वाली गहरी सांस लेते और छोड़ते हुए चलना चाहिए। इस आसन का अभ्यास एक मिनट से अधिक नहीं करना चाहिए। इसी तरह षट्कर्म की क्रिया भस्त्रिका करना चाहिए। इसमें लोहार की धौकनी की तरह लंबी और गहरी सांस तेजी से लेना और छोडऩा होता है। इससे शरीर के रोम-रोम में गर्मी पैदा होती है, जो ठंड के प्रकोप से रक्षा करती है।सूर्य भेदी प्राणायाम दायींनासिका से करते हैं। माना जाता है कि दायीं नासिका सूर्य नाड़ी से जुड़ी होती है। इसे सूर्य स्वर कहते हैं। इसलिए इसका नाम सूर्यभेदी प्राणायाम है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर के अंदर गर्मी उत्पन्न होती है। इसका सर्दियों नियमित अभ्यास करना चाहिए। इसके अलावा एक ही जगह पर तेजी से कदम चलाते हुए सांस लेना और छोडऩा चाहिए। ऐसा 5-15 मिनट तक करना चाहिए। सूर्यभेदी प्राणायाम करने का तरीका;- अपनी आंखों को बंद करके पद्मासन में बैठें। अब दाहिने हाथ की अनामिका एवं छोटी ऊंगुली से बाईं नासिका को बंद करें। दाहिने नाक से सांस लें। दाहिनी नासिका को अपने अंगूठे से बंद करें। ठुड्डी को सीने के पास दबाएं और सांस को कुछ सेकंड के लिए रोकने की कोशिश करें। अब अंगूठे से दाहिने नाक को बंद करके बाईं नाक से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। भस्त्रिका प्राणायाम से शरीर को गर्मी मिलती है। इन आसनों को पांच मिनट से अधिक नहीं करना चाहिए। सिद्धासन या सुखासन में बैठ जाएं। अब कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। फिर तेज गति से सांस लें और तेज गति से ही सांस बाहर छोड़ें। सांस लेते समय पेट फूलना चाहिए और छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है। कपालभाती ;- यह प्राणायाम का एक रूप है जो आपके आंतरिक अंगों को उत्तेजित करता है और तेजी से सांस लेने के माध्यम से आपके शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। यह आपके चयापचय मेटाबलॉजिम को आपके पूरे शरीर में ऊर्जा जारी करने के लिए बढ़ावा देता है। ध्यान के किसी आसन में बैठ जाएं। अब आंखों को बंद कर लें। पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। अब नाक से तेजी से सांस बाहर निकालने की क्रिया करें। सांस को बाहर निकालते वक्त पेट को भीतर की ओर खींचें। ध्यान दें कि सांस को छोड़ने के बाद, सांस को बाहर न रोककर बिना प्रयास किए सामान्य रूप से सांस को अन्दर आने दें। इससे एक सेकेंड में एक बार सांस फेंकने की क्रिया कह सकते हैं। इसके बाद सांस को अंदर लें। ऐसा करते वक्त संतुलन बनाए रखें। वैसे दिल के मरीजों को कपालभाती प्राणायाम धीरे-धीरे करना चाहिए। योग के आसन करने में कुछ सावधानी बरतने की जरूरत होती है। अगर किसी को उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या है तो उसे इन आसनों को नहीं करना चाहिए। वह गहरी सांस लेकर छोड़ सकते हैं। गुनगुने पानी का सेवन करें। पेट साफ न होने से ठंड अधिक लगती है, इसलिए हरी सब्जी का सेवन करें। केसर-कस्तूरी मिला गुनगुना पानी या गुड़ खाकर गुनगुना पानी भी पी सकते हैं। सोंठ और गुड़ मिश्रित लड्डू खाएं। सर्दी से बचने के लिए करें ये आसन;- योग करने से शरीर में ऊर्जा का उत्पादन होता है। योगासन ना केवल आपके शरीर को फिटनेस देता है बल्कि यह ठंड से होने वाले सर्दी, जुकाम, बुखार आदि मौसमी बीमारियों से भी निजात दिलाता है। साथ ही यह इम्यून सिस्टम को भी मजबूत बनाता है।आसन हठ योग के अंतर्गत आता है तथा इसके स्वास्थ्य को कई फायदे होते हैं। इसके नियमित अभ्यास से जब शरीर अंदर से गर्म रहता है । तो सर्दी की आम समस्या जैसे एलर्जी, सांस से संबंधित रोगों, गले में खराश, सर्दी-जुकाम, खांसी, साइनस आदि कफ उत्पन्न करने वाली बीमारियों में भी राहत मिलती है। दवाओं की अपेक्षा योग बेहतर रिमेडिज है। जब हम कोई शारीरिक की मांसपेशियों व मस्तिष्क की मांसपेशियों में एक्सरसाइज करते हैं तो माइक्रो कंडिया की कम संख्या होने से शरीर की सहनशीलता व मस्तिष्क द्वारा स्रावित हार्मोन के असंतुलन को बढ़ाती है फल स्वरुप न्यूरोट्रांसमीटर काम नहीं कर पाते हैं और न्यूरो जैन नेटिव रोगों को बढ़ावा मिलता है शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि नियमित कसरत व्यायाम करने से मांसपेशी की कोशिकाओं में माइट्रोकांड्रिया की संख्या बढ़ती है और व्यायाम से मानसिक स्थिति में कई सकारात्मक परिवर्तन आने शुरू हो जाते हैं। जब शरीर द्वारा व्यायाम किया जाता है तो रक्त में ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ने लगता है और ऑक्सीजन का अनुपात बढ़ते ही मस्तिष्क की कोशिकाओं में माइटोकॉन्डियां की संख्या बढ़ने लगती है और माइट्रो कोंडिया की संख्या जैसे ही बढ़ते हैं वैसे ही व्यक्ति में जोश, उंमग, तरोताजगी स्फूर्ति आने लगते हैं जिससे कि माइट्रोकांड्रिया कोशिकाओं में प्राण देने वाला यंत्र है जो कि शरीर में प्राण फूंकने की क्षमता रखता है। मौसम के हिसाब से तो और ज्यादा लाभ मिल सकता है सर्दियों में मौसम में करने वाला योग व्यायाम दौड़ना ट्रेडमिल साइकिलिंग वाकिंग योगनिद्रा कपालभाति भ्रामरी ताड़ासन बरसात के मौसम में भुजंगासन धनुरासन नौकासन योग निद्रा और भ्रमरी गर्मियों के मौसम में किया जाने योग मुद्रासन उष्ट्रासन स्विमिंग स्वासन योग निद्रा अर्धमत्स्येंद्रासन और मत्स्यासन है। अंजना ज्योतिषविद 94075555063 कारोना महामारी में जीवन के मूल्यों को नष्ट कर दिया गया है ,जिससे तनाव का सृजन हो गया है। इनसो दूर करने के लिए ऋषि-मुनियों ने अनेक सुझाव का अर्थ है आत्मबल बढ़ाना जिससे कि हमें सकारात्मक भावों विचारों का जन्म हो हंस योग इस क्रिया में बहुत सहायता करता है। जब भी हम व्यक्तित्व को निखारने की बात करते हैं या अपने कार्य क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं यह हमारा आत्मविश्वास बढ़ाना होता है जहां हमारी कोई एंटीबायोटिक चाहिए है बॉडी में इसके लिए हमें सूर्य को समझना बहुत जरूरी होता है और यह योग में किस तरह काम करता है जानते हैं।योग से ग्रहों के बुरे प्रभाव को दूर करने सनातन धर्म में शास्त्रों में जीवन जीने के तौर तरीके दिये हैं तो साथ मे ही स्वस्थ्य जीवन के लिए कुछ नियम भी बनाए गये हैं। वैसे भी आज के दौड़ भाग भरी जिंदगी में लोगो के पास स्वस्थ्य जीवन जीने का समय ही कहा बचा है, ऐसे में अगर सुबह के समय का आधा घंटा भी हम लोग अपने लिए निकाले तो इसके आधार पर हम स्वस्थ्य जीवन की कल्पना को साकार कर सकते हैं। नवग्रह सूर्य के लिए योगा ज्योतिष को Art of planning Life कहे तो बेहतर होगा। सूर्य जब भी हम व्यक्तित्व को निखारने की बात करते हैं या अपने कार्य क्षेत्र में अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं यह हमारा आत्मविश्वास बढ़ाना होता है जहां हमारी कोई एंटीबायोटिक चाहिए है बॉडी में इसके लिए हमें सूर्य को समझना बहुत जरूरी होता है और यह योग में किस तरह काम करता है जानते हैं। सूर्य के लिए योगासन – अगर कुंडली में सूर्य की स्थिति अशुभ है तो इसके कारण आत्मविश्वास में कमी के साथ ही नकारात्मकता हावी होती है। साथ ही आंखों की रोशनी, स्नायु तंत्र, ह्रदय रोग और रक्त संबंधी समस्याओं रहती है। ससे बचने के लिए नियमित रूप से सूर्य नमस्कार, त्राटक योग, अनुलोम – विलोम और अग्निसार, सिद्धासन पद्मासन सिद्धासन आदि योग करना चाहिए। चंद्रमा इंद्रियों का स्वामी मन है और मन का स्वामी प्रांतीय हम अपनी प्राण शक्ति पर काबू रखें मन तो स्वता ही काबू रहेगा इसके लिए नियमित आसन और प्राणायाम ध्यान आवश्यक है चंद्रमा के लिए योगासन – चंद्रमा की कमजोर स्थिति को कारण हमेशा तनाव और बेचैनी का एहसास होता है। व्यक्ति अपने को चंद्रमा की मजबूत स्थिति से बचाने के लिए नियमित रुप से अनुलोम–विलोम और भस्त्रिका प्राणायाम कर सकता है, इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा पानी भी पीएं। : मंगल यह एक अनुशासन को भी बताता है हमें बाणी का अनुशासन, जीवन का अनुशासन और व्यायाम का अनुशासन आना चाहिए आज के युग में दिनचर्या में मंगल जैसी ग्रह की ऊर्जा की जरूरत है यह उगता हुआ सूरज मंगल लिए हुए होता है। मंगल के लिए योगासन – कुंडली के कमजोर मंगल के नकारात्मक प्रभाव से जीवन में अस्थिरता बनी रहती है। इसके कारण जीवन में कभी किसी चीज की काफी अधिकता तो काफी कमी हो जाती है। मंगल के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए पद्मासन, मयूरासन और शीतलीकरण प्राणायाम करें।  बुध के नकारात्मक प्रभाव से लोगो को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। : बुध के लिए योगासन – इससे बचने के लिए नियमित रुप से अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और भस्त्रिका योगसन को करना चाहिए। योगनिद्रा जिसमें की श्वास की गति मंद करनी होती है और अंगों को शिथिल करना होता है वही विचारों की गति को कम करके शरीर को ढीला छोड़ कर दृष्टा भाव से देखना होता है ओंकार की ध्वनिका उच्चारण करने पर विशेष रूप से भ्रमरी प्राणायाम द्वारा किया जा सकता है। : गुरु बृहस्पति जो हमारे विवेक के कारक हैं और हमारा हर कोशिका का संबंध गुरु से तत्व से है प्राण शक्ति शरीर मैं एक्स्ट्रा टिशू या मोटापा से कोशिकाओं को हटाने का काम प्राणायाम के द्वारा करके गुरु तत्व को बैलेंस किया जा सकता है। बृहस्पति के लिए योगासन – कुंडली में कमजोर गुरु के कारण बीमारियों का सामना करना पडता है इसके कारण से डायबिटिज और कैंसर जैसे रोग होते हैं। इससे बाचव के लिए नियमित रुप से कपाल भाति, सर्वांगासन और अग्निसार के साथ ही सूर्य नमस्कार करें। इसके लिए ध्यान की भी जरूरत है यहां पर शारीरिक क्रिया व साक्षी भाव को फिल करना होता है : शुक्र के लिए योगासन – कमजोर शुक्र कुंडली मे है तो इसके कारण व्यक्तिगत समस्याएं आती हैं व महिलाओं को भी कई तरह के रोग होते हैं। इससे बचाव के लिए नियमित रुप से धनुरासन, हलासन और मूलबंध योगासन करें। शनि ग्रह हमारे जो सांस लेते हैं वह सारे प्राणायाम में आता है। योग का यहां विषाक्त पदार्थों को कम करने के लिए पसीना हमारा सबसे बड़ा टॉक्सिन के रूप में होता उसे बाहर निकालने के लिए शनि ग्रह की जरूरत होती है और प्राण ऊर्जा मजबूत होती है फेफड़ों का व्यायाम भी जरूरी होता है।  शनि के लिए योगासन – कुड़ली में शनि के नकारात्मक प्रभाव के कारण गैस्ट्रिक, एसिडिटी,टाकसिन,आर्थराइटिस, उच्च रक्तचाप और ह्रदय संबंधी रोग परेशान करते हैं, इससे बचने के लिए कपाल भांति, अनुलोम – विलोम, अग्निसार और भ्रामरी योगासन करना चाहिए। राहु वैसे तो छाया ग्रह हैं परंतु हमारे स्नायु संस्थान मस्तिष्क पर हाइपोथैलेमस पर अपना प्रभाव रखता है यह सिर के क्षेत्र में पिट्यूटरी ग्लैंड पर अपना अधिकार रखता है। राहु वैसे तो छाया ग्रह हैं परंतु हमारे स्नायु संस्थान मस्तिष्क पर हाइपोथैलेमस पर अपना प्रभाव रखता है यह सिर के क्षेत्र में पिट्यूटरी ग्लैंड पर अपना अधिकार रखता है। राहु के लिए योगासन – राहु का कुंडली में नकारात्मक प्रभाव होने से सोचने – समझने की शक्ति पर असर डलता है, इसके लिए अनुलोम – विलोम, भ्रामरी और भस्त्रिका योगसन से लाभ मिलेगा। : केतु केतु हमारे जीवन में कंपन किसी तरह का अचानक दर्द होता और प्रतिरोधक क्षमता घटने, कोई रोग छिपा हुआ है इसका कारण होता है मांसपेशियों में सिकुड़ना खून के प्रभाव को रोकना हृदय की धड़कन को रोकना कोई दर्द अचानक शूल जैसा चुभना। लकवाग्रस्त होना। केतु के लिए योगासन – केतु के नकारात्मक प्रभाव से एनिमिया के साथ ही बवासीर, पेट के रोग औऱ स्नायु तंत्र से संबंधी परेशानियां होती है। इससे बचने के लिए अनुलोम–विलोम और कपालभाती करना लाभकारी होता है।

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