🔹 1. ज्येष्ठ मास और मौसमीय संदर्भ (Seasonal Context) • ज्येष्ठ (मई-जून) भारत में गर्मी का चरम होता है। यह समय शरीर में डिटॉक्स (विषैले तत्वों को बाहर निकालने) के लिए उपयुक्त माना जाता है। • पसीने के माध्यम से शरीर बहुत पानी और खनिज (electrolytes) खोता है। • इस समय पाचन अग्नि कमजोर हो जाती है, इसलिए भोजन से विराम शरीर को आराम देता है।
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🔹 2. निर्जला उपवास और शरीर की सफाई (Fasting & Detoxification) • जब हम निर्जल (बिना पानी) उपवास करते हैं, तो शरीर खुद को ऑटोफैगी (Autophagy) प्रक्रिया से साफ करता है। इसमें शरीर पुरानी, क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करता है और नई कोशिकाएं बनती हैं। • इससे प्रतिरोधक क्षमता (इम्यून सिस्टम) मजबूत होती है।
⸻🔹 3. गैस्ट्रिक सिस्टम को विश्राम (Digestive Rest) • बिना अन्न और जल के उपवास से पाचन तंत्र को विश्राम मिलता है। • इससे गैस, अम्लपित्त, और कब्ज जैसी समस्याओं से राहत मिलती है।
⸻🔹 4. मानसिक अनुशासन और नियंत्रण • निर्जल व्रत केवल शरीर पर नहीं, बल्कि मन और इच्छाओं पर नियंत्रण का अभ्यास है। इससे धैर्य, संयम, और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है। • आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि उपवास से मेंटल क्लैरिटी और फोकस बेहतर होता है।
⸻🔹 5. उपवास और जीवनकाल (Longevity & Health) • अनेक वैज्ञानिक अध्ययन (जैसे इंटरमिटेंट फास्टिंग के) बताते हैं कि नियमित उपवास से जीवनकाल बढ़ता है और क्रोनिक बीमारियों का खतरा कम होता है।
⸻🌿 विशेष बात: एकादशी का चंद्र प्रभाव • एकादशी तिथि को चंद्रमा का प्रभाव मन और शरीर दोनों पर होता है। • चंद्रमा जल तत्त्व का कारक है, और निर्जल उपवास उस समय शरीर की जल संतुलन प्रणाली को संतुलित करता है।
⸻ निर्जला एकादशी व्रत केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह एक गूढ़ और वैज्ञानिक रूप से समर्थित स्वास्थ्य अभ्यास है। यह न केवल शरीर को शुद्ध करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलित करता है।