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कालसर्प और नागदोष में अंतर

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कालसर्प और नागदोष में अंतर

कालसर्प और नागदोष में अंतर

कई लोगों में भ्रम रहता है कि कालसर्प और नागदोष एक समान हैं किंतु यह सत्‍य नहीं है। कालसर्प दोष वंशानुगत होता है जबकि नाग दोष का प्रभाव जातक की मृत्‍यु के बाद भी प्रभावकारी रहता है। इसके अलावा अन्‍य सात ग्रहों के राहु या केतु के साथ युति होने पर कालसर्प दोष बनता है वहीं दूसरी ओर पहले, दूसरे,पांचवें, सातवें और आठवें घर में राहु-केतु के प्रवेश पर नाग दोष जन्‍म लेता है।

जैसे की किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर में, चन्द्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बन जाता है।

जो कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है। जैसे कि राहु अथवा केतु की चन्द्रमा के साथ स्थिति के कारण बनने वाला नाग दोष जातक को मानसिक परेशानियां, व्यवसायिक समस्याएं आदि जैसे अशुभ फल दे सकता है, राहु अथवा केतु के किसी कुंडली में लग्न में स्थित होने से बनने वाला नाग दोष जातक को स्वास्थ्य, व्यवसाय तथा वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्याएं प्रदान कर सकता है तथा किसी कुंडली में राहु अथवा केतु की शुक्र के साथ स्थिति के कारण बनने वाला नाग दोष जातक के वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के नाग दोष से पीड़ित जातक का एक अथवा एक से भी अधिक विवाह टूट भी सकते हैं।

 

नाग दोष से पीड़ित जातक ने अपने किसी स्वार्थ के चलते नागों अथवा सांपों को सताया होता है अथवा उन्हें मारा होता है जिसके कारण उन नागों के श्राप के कारण जातक की कुंडली में नाग दोष बनता है।

नाग दोष की एक अन्य प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के 1, 2, 5 , 7 अथवा 8 वें घर में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बनता है जिसके कारण जातक को विभिन्न प्रकार की समस्याओं तथा विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है जो जातक की कुंडली में राहु तथा केतु की स्थिति पर निर्भर करतीं हैं। नाग दोष की प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार यदि इस दोष के निर्माण का अध्ययन किया जाए तो इस परिणाम पर पहुंचा जा सकता है कि लगभग प्रत्येक दूसरी कुंडली में नाग दोष बनता है। इसलिए प्रत्येक दूसरा व्यक्ति इस दोष के दुष्प्रभावों से पीड़ित होना चाहिए तथा प्रत्येक दूसरे व्यक्ति ने अपने पिछले जन्म में नागों को मारा होगा जैसा कि इस दोष के निर्माण के साथ जोड़ा जाता है। वर्तमान में दुनिया की कुल जनसंख्या लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसका अभिप्राय यह है कि इनमें से लगभग साढ़े तीन अरब लोगों ने अपने पिछले जन्म में सांपों को मारा होगा जिसका अभिप्राय यह है कि संसार की वर्तमान जनसंख्या ही लगभग चार अरब सांपों को मार चुकी है।

 

इन आंकड़ों पर विश्वास करना कठिन लगता है तथा यह मान लेना भी व्यवहारिक दृष्टि से उचित तथा तर्कसंगत नहीं है कि संसार के प्रत्येक दूसरे व्यक्ति की कुंडली में नाग दोष बनता है क्योंकि वैदिक ज्योतिष में प्रचलित कोई भी योग या दोष इतना सहज सुलभ नहीं होता कि संसार के हर दूसरे व्यक्ति की कुंडली में इसका निर्माण हो जाए। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में नाग दोष का निर्माण अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार नहीं होता तथा इस दोष के निर्माण के लिए अन्य कुछ नियम भी अवश्य ही होने चाहिएं। किसी भी अन्य दोष की भांति ही नाग दोष के निर्माण के लिए भी कुंडली में राहु तथा केतु का अशुभ होना आवश्यक है
राहु और केतु क शुभ होने की स्थिति में कुंडली में नाग दोष नहीं बनेगा क्योंकि शुभ ग्रह किसी भी कुंडली में कभी भी दोष नहीं बनाते। राहु और केतु के अशुभ होने के पश्चात इनका कुंडली में सक्रिय होना भी आवश्यक है क्योंकि बिना सक्रिय हुए कोई अशुभ ग्रह भी कुंडली में दोष नहीं बनाता तथा किसी कुंडली के कुछ विशेष घरों में राहु अथवा केतु की स्थिति ही नाग दोष बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। किसी कुंडली में नाग दोष के निर्माण की पुष्टि हो जाने पर कुंडली में इस दोष का बल, इस दोष के अशुभ प्रभाव में आने वाले जातक के जीवन के इस दोष से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों आदि का भी भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए। कुंडली में बनने वाले नाग दोष के दुष्प्रभावों को वैदिक ज्योतिष के उपायों जैसे कि मंत्र, यंत्र, रत्न तथा कुछ अन्य उपायों के माध्यम से बहुत कम किया जा सकता है।

 

प्रभाव:

नाग दोष से प्रभावित जातकों के वैवाहिक जीवन में अड़चनें आती हैं, विवाह में देरी एवं कुछ मामलों में इनका तलाक भी संभव है। महिलाओं के लिए यह दोष किसी श्राप से कम नहीं होता। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं के गर्भपात की अत्‍यधिक संभावना रहती है। इनके जीवनसाथी का स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ा रहता है। इन जातकों को स्‍वप्‍न में सांप दिखाई देते हैं एवं इनका मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। इस दोष से ग्रस्‍त जातक की संतान ही उसकी विरोधी बन जाती है। यह व्‍यक्‍ति बुरे कर्मों में लिप्‍त रहता है।

 

नाग दोष होने पर जातक को कोई पुराना एवं यौन संचारित रोग होता है। इन्‍हें अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना संभव है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है। इन जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है।

नाग दोष का अत्‍यधिक नुकसान महिलाओं को होता है। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं को संतान प्राप्‍ति में परेशानी आती है। सेहत ज्‍यादातर खराब रहती है।

 

उपाय:

नाग दोष के प्रभाव को कम करने के लिए षष्‍टी के दिन सर्प परिहार पूजा करें एवं इसके समापन के पश्‍चात् स्‍नान अवश्‍य करें।

नियमित रूप से भगवान शिव की आराधना करें और शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाएं।

रोजाना 108 बार 'ऊं नम: शिवाय:' और 'दोष निवारण मंत्र' का जाप करें।

माथे पर चंदन का तिलक लगाएं।

मंगलवार और शनिवार के दिन शेषनाग की पूजा करें। यह पूजन कम से कम 18 सप्‍ताह तक अवश्‍य करें।

घर पर मोर पंख रखें।

नागपंचमी के दिन महाभारत पाठ करें और किसी ज्‍योतिष की सलाह से पंच धातु की अंगूठी धारण करें।

गोमेद रत्‍न की चांदी की अंगूठी मध्‍यमा अंगुली में धारण करें।

भगवान नरसिंह हेतु पूजा का आयोजन करें।

हर शनिवार जीवनसाथी के साथ किसी धार्मिक स्‍थान पर जाकर प्रार्थना करें।

42 बुधवार तक किसी गरीब एवं जरूरतमंद व्‍यक्‍ति को दाल दान में दें।

श्रावण मास में नाग मंत्र "ॐ नागराजाय विद्महे कद्रूवंशाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्" का सवालाख जाप और दशांश हवन कराना उत्तम माना गया है।

भुजंग स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें।

प्रतिदिन निम्न मंत्रो से नाग स्तुति करें।

अनंतं वासुकि शेष पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपाल धार्तराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्मे विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

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