
कुछ पा कर खोना है,
कुछ खो कर पाना है।
जीवन का मतलब तो,
आना और जाना है।
जिंदगी और कुछ नहीं,
तेरी मेरी कहानी है।
नगमा गाया जाता है, दूसरे भाव से जहां शुक्र की राशि उदित होती है।
जिंदगी की शुरुआत मंगल से होती है,
( लग्न) भाव जहां मेष राशि उदित होती है। दोनों राशियां सम सप्तक है।
एक दूसरे के प्यार का इजहार मंगल व शुक्र आसमान में करते हैं ( काम देव व रति के रूप में)धरती पर स्त्री पुरुष। दोनों पाना भी चाहते हैं, लेकिन जिंदगी ऐसा नहीं होना देना चाहती।क्योकिं प्यार भोगात्मक है।
यही दोनों राशियां पुनः दूसरे व अष्टम भाव में सम सप्तक होकर विलग करती है। जिंदगी कुछ नहीं सिर्फ मंगल व शुक्र की कहानी है।
विवाह मैं दो प्रथा है
एक कार्य के अनुसार एक संस्कृति दोनों ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्नता प्रेम विवाह मिलती है
समय के अनुसार इसमें बदलाव भी आया है
1*नागरिक जो कि हम लोग स्टांप पर करते हैं...
.2. धार्मिक विवाह 8 प्रकार..
3.अंतरराष्ट्रीय विवाह इसमें धर्म परिवर्तन से संबंधित है
अंतरजातीय विवाह/ प्रेम विवाहअब प्रतिबंधित नहीं है। प्रारंभिक इतिहास में समान-जाति विवाह विशिष्ट रूप से अवैध था। कुछ देशों में समलैंगिक विवाह और नागरिक संघ कानूनी हैं।
एशिया व अफ्रीका में अरेंज मैरिज ज्यादा देखी गई है दक्षिण अफ्रीका ताइवान में समलैंगिक विवाह है अफ्रीका में एशिया में अवैध माने जाते हैं हालांकि सरकार ने से मान्यता दे दी है वहीं पर अब बहु विवाह भी मुस्लिम देशों में बहुत देखे गए हैं..
चीन भी इससे अलग नहीं है अब एकल या एकांकी विवाह प्रथा चल रही है..
पश्चिम में विवाह मैं रोमन कानून की झलक मिलती है..
ज्योतिष विशेषज्ञों के अनुसार, लव मैरिज के योग को हो सकते हैं, लेकिन इसमें कई प्रमुख कारक होते हैं जैसे कि कुंडली में ग्रहों की स्थिति, नक्षत्र आदि। कुछ योगों में लव मैरिज की संभावना को बढ़ावा मिल सकता है, जबकि कुछ योग इसे कम कर सकते हैं। यह निर्धारित करने के लिए कि आपके लिए लव मैरिज के योग हैं या नहीं, एक अच्छे ज्योतिषी से परामर्श लेना उपयुक्त हो सकता है।
लव मैरिज के लिए कुंडली में कई ग्रहों का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। प्रमुख ग्रहों में से कुछ निम्नलिखित हो सकते हैं:
राहु: प्रेम और संबंधों का कारक है, और लव मैरिज के लिए महत्वपूर्ण होता है। शुभ राहु की स्थिति विवाह में समृद्धि और सुख के योग को बढ़ाती है।
मंगल: मंगल प्रेमी और प्रेमिका के बीच प्रेम और रोमांस का प्रतीक है। यदि मंगल उच्च या शुभ स्थिति में है, तो लव मैरिज के योग बढ़ जाते हैं।
शुक्र: शुक्र भावनात्मक संबंधों, सौन्दर्य और सुख का प्रतीक है। एक सुखी और समृद्ध जीवनसाथी के लिए शुक्र की शुभ स्थिति महत्वपूर्ण हो सकती है।शुक्र नित्य भोजन करने के बाद 20 दिन में एक बूंद शुक्राणु की बनती है।
चंद्रमा: चंद्रमा भावनात्मक संबंधों, भावनाओं और सांस्कृतिक समझ का प्रतीक है। यदि चंद्रमा की स्थिति सुखद और समृद्धिपूर्ण है, तो लव मैरिज के योग बढ़ जाते हैं।
गुरु: विवाह का कारक होता है।गुरु षोडशी है, 16 वर्ष के पूर्व कन्या का विवाह कर देना चाहिए। जो आज भारत में कहीं खो गया।
गुरु और शुक्र की भूमिका के रूप में मैं आप लोगों को बताने जा रही पूरब में गुरु का प्रभाव और पश्चिम में शुक्र का प्रभाव...
इस स्तर पर ज्योतिष कारण भी दिखाई दिए 12 सालों से मेरा आना जाना विदेश में रहा वहां पर इस तरह के विवाह बहुत ज्यादा प्रचलन में है..
अगर भारत की बात करें तो भारत में भी हम कामदेव के मंदिर खजुराहो को देख सकते हैं देख सकते हैं...
स्त्री व पुरुष एक poleसे दूसरे pole की विपरीत रूप की एक आकृति के रूप में है.. वही अर्धनारीश्वर के रूप में हमारे शरीर में एक बीच में बालों की रेखा होती है...
प्रेम
दिन दीया जले, मेरे मन में फिर भी अंधियारा है--
काम की अग्नि दिन रात जलती है,
फिर भी मन में अंधेरा है। चोथाभाव( मन) में अंधेरा रहता है।
दिन सन्ध्या काल( सप्तम भाव) हल्का प्रकाश।सूर्य नीच का सप्तम भाव में, सूर्य राजा है, काम के कारण वह नीच कीश्रेणी में। चौथे भाव में गुरु उच्च का, काम को वश में कर रखा है। रात्रि होने पर भी। यह सब खेल हैसितारों का। जो कामांध है वे शुद्र है.यहां जाती व्यवस्था नही है...
ज्योतिषीय कारक
पुरुष लिंग राशि
मेष मिथुन सिंह तुला धनु कुंभ
स्त्रीलिंग राशि
वृषभ कर्क कन्या वृश्चिक मकर मीन
प्रजनन शक्ति की राशियां
कर्क वृश्चिक मकर कुंभ और मीन
बांझ राशियां
मिथुन सिंह कन्या धनु
और उभय योद्राशियां
मिथुन मीन
बीज रहित राशियां हैं
मेष वृषभ तुला और वृश्चिकका पूर्वार्ध भी।
लव मैरिज के लिए कुंडली में कुछ खास भाव होते हैं जिनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है
:पंचम भाव: पंचम भाव प्रेम और रोमांस का भाव है। यह भाव प्रेम संबंधों, संतानों के निर्माण, और संतानों के साथ सम्बंधित होता है।
सप्तम भाव: सप्तम भाव विवाह और जीवनसाथी के लिए महत्वपूर्ण होता है। यह भाव संबंधों, साझेदारी के योग, और विवाह के संबंधों को संदर्भित करता है।
द्वादश भाव: द्वादश भाव सामाजिक स्थिति और संबंधों को संदर्भित करता है।शैया सुख,यह भाव भाग्य, संबंधों का समर्थन, और पारिवारिक सुख को दर्शाता है।
लग्न भाव: लग्न भाव व्यक्ति के व्यक्तित्व और शारीरिक स्वास्थ्य को संदर्भित करता है। यह भाव भावनाओं, स्वाभाविक गुणों, और संबंधों के लिए महत्वपूर्ण होता है।
इन भावों के साथ-साथ, दूसरे भावों की स्थिति भी प्रेम और लव मैरिज के योग का महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकती है। कुंडली का संपूर्ण विश्लेषण करने के लिए एक अच्छे ज्योतिषी से परामर्श लेना सबसे उत्तम होगा।
कालपुरूष की कुंडली में
1से 7भाव गृहस्थ जीवन।
1, 8, 9, 10, 11, 12 भाव वैराग्य मय जीवन।
9, 10, 11, 12 भाव का सम्बंध मृत्यु के बाद मिलता है।
इसीलिए शुक्र और मंगल का मिलान बहुत ही आवश्यक है इसे समझना ही अनिवार्य है अगर इसे समझ लिया तो गृहस्थ जीवन बहुत ही सहजता से आसानी से चलता है।
और गृहस्थ अनुकूल हो गया वह जग जीत लेता है।
इसमें केवल केवल और केवल तीन ही परिपूर्ण उदाहरण है स्वयं श्री हरि विष्णु महादेव और श्री कृष्ण प्रेम और गृहस्थ जीवन केअच्छे उदाहरण है।
आचार्या अंजना