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MAA VEDA SECRETS

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राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्रपत्नी तथैव च | पत्नीमाता स्वमाता च पञ्चैताः मातरः स्मृताः || नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गति:। नास्ति मातृसमं त्राणं, नास्ति मातृसमा प्रिया ॥ माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान, इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं। किसी बनावटी डे की जरूरत नहीं निर्जीव पत्थरों में मातृत्व भर देने की शक्ति सनातन धर्म में ही थी, है और रहेगी #सनातनधर्मसर्वश्रेष्ठ_है 1. 'यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरितकी।' (अर्थात, हरीतकी (हरड़) मनुष्यों की माता के समान हित करने वाली होती है।) 2. 'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।' (अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।) 3. 'माता गुरुतरा भूमेरू।' (अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।) Sanskrit Shlokas for mother (मां के लिए संस्कृत में श्लोक) 4. 'नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः। नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।' 5. 'मातृ देवो भवः।' (अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।) 6. 'अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरूषो वेदः।' (भावार्थः जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।) 7. 'माँ' के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है- 'प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।' (अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।) 8. 'रजतिम ओ गुरु तिय मित्रतियाहू जान। निज माता और सासु ये, पाँचों मातृ समान।।' (अर्थात, जिस प्रकार संसार में पाँच प्रकार के पिता होते हैं, उसी प्रकार पाँच प्रकार की माँ होती हैं। जैसे, राजा की पत्नी, गुरु की पत्नी, मित्र की पत्नी, अपनी स्त्री की माता और अपनी मूल जननी माता।) 9. 'स्त्री ना होती जग म्हं, सृष्टि को रचावै कौण। ब्रह्मा विष्णु शिवजी तीनों, मन म्हं धारें बैठे मौन। एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।' (अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरूआत हुई।) 10. आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् । मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥ (भावार्थ- जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है । बछड़े को बांधने मे माँ की जांघ ही खम्भे का काम करती है।। उपाध्यायान दशाचार्य अचार्याणाम शतं पिता सहस्रं तु पितृनि माता गौरवेणातिरिच्यते।#मनुस्मृति 2.148 भावार्थ : वेदांगों के सहित वेद अध्ययन कराने वाले द्विज आचार्य का दस गुना,आचार्य से पिता का सौ गुना और पिता से माता का स्थान हजार गुना होता है ।

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