" उच्छिष्टः पूजयन् याति पैशाचं तु द्विजाधमः ।
संक्रुद्धो राक्षसं स्थानं प्राप्नुयान्मूढधीर्द्विजाः ।।
अभक्ष्यभक्षी सम्पूज्य याक्षं प्राप्नोति दुर्जनः ।
गानशीलश्च गान्धर्वं नृत्यशीलस्तथैव च ।।"
हे द्विजो ! उच्छिष्ट अधम द्विज शिव की पूजा करके पिशाचलोक को जाता है और क्रोध में भरकर पूजन करने वाला मूढबुद्धि राक्षसों के लोक को प्राप्त करता है -- अभक्ष्य भोजन का भक्षण करने वाला दुष्ट मनुष्य शिव की पूजा करके यक्ष लोक प्राप्त करता है और नृत्यगान करने वाला उनकी पूजा करके गन्धर्वलोक प्राप्त करता है ।
" ख्यातिशीलस्तथा चान्द्रं स्त्रीषु सक्तो नराधमः ।
मदार्तः पूजयन् रूद्रं सोमस्थानमवाप्नुयात् ।।"
प्रसिद्धि का इच्छुक और स्त्रियों में आसक्त नराधम बुधलोक प्राप्त करता है -- मदोन्मत्त व्यक्ति रूद्र की पूजा करता हुआ सोमलोक प्राप्त करता है ।
" गायत्र्या देवमभ्यर्च्य प्राजापत्यमवाप्नुयात् ।
ब्राह्मं हि प्रणवेनैव वैष्णवं चाभिनन्द्य च ।।
श्रद्धया सकृदेवापि समभ्यर्च्य महेश्वरम् ।
रूद्रलोकमनुप्राप्य रूद्रेः सार्धं प्रमोदते ।। "
रूद्र गायत्रीमन्त्र द्वारा शिव का पूजन करके मनुष्य प्रजापतिलोक को और प्रणव के द्वारा पूजन करके ब्रह्मलोक तथा विष्णुलोक को प्राप्त करता है -- श्रद्धापूर्वक एक बार भी महेश्वर का पूजन करके मनुष्य रूद्रलोक में पहुंचकर रूद्रों के साथ आमोद - प्रमोद करता है ।
जय महादेव