सावन माह में शुक्ल पक्ष के दौरान आने वाली चतुर्थी तिथि “वरद चतुर्थी” के नाम से मनाई जाती है। इस वर्ष 20 अगस्त 2023 को वरद चतुर्थी का व्रत संपन्न होगा। इस दिन भगवान श्री गणेश का पूजन होता है। वरद चतुर्थी का अर्थ हुआ भगवन श्री गणेश द्वारा आशीर्वाद देना। गणेश जी को अनेकों नामों से पुकारा जाता है। गणेश भगवान को विनायक, विध्नहर्ता जैसे नामों से भी पुकारा जाता है।
प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि भगवान गणेश से संबंधित है अत: हर माह के दौरान आने वाली चतुर्थी भिन्न-भिन्न नामों से पुकारी जाती है। इस चतुर्थी को वरद विनायकी चतुर्थी के नाम से भी पुकारा जाता है। वरद चतुर्थी पर श्री गणेश का पूजन दोपहर समय पर एवं मध्याह्न समय पर करना अत्यंत ही शुभदायक होता है।
वरद चतुर्थी की पूजा विधि:
वरद चतुर्थी की पूजा मुख्य तौर पर दोपहर में की जाती है। इस समय पर पूजा का विशेष महत्व रहा है। वरद चतुर्थी पूजा स्थल पर भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए। व्रत का संकल्प करना चाहिए। अक्षत, रोली, फूल माला, गंध, धूप आदि से गणेश जी को अर्पित करने चाहिए। गणेश जी दुर्वा अर्पित और लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए।
गणेश जी को दूर्वा अर्पित करते समय ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
कपूर, घी के दीपक से आरती करनी चाहिए।
भगवान को भोग लगाना चाहिए और उस प्रसाद को सभी में बांटना चाहिए।
व्रत में फलाहार का सेवन करते हुए संध्या समय गणेश जी की पुन: पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूजा के पश्चात ब्राह्मण् को भोजन कराना चाहिए उसके बाद स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए।
वरद चतुर्थी व्रत की कथा:
एक बार भगवान शिव और माता पार्वती जब हिमालय पर समय व्यतीत कर रहे होते हैं, तो माता पार्वती भगवान शिव से चौसर खेलने को कहती हैं। शिव भगवान माता को प्रसन्न करने हेतु चौसर खेलना आरंभ कर देते हैं। लेकिन दोनों के समक्ष हार और जीत का निर्णय हो पाना संभव नहीं था। क्योंकि उन दोनों के लिए हार जीत का फैसला कर पाने के लिए कोई तैयार नहीं होना चाहता था। ऎसे में भगवान ने एक सुझाव दिया और उन्होंने अपनी शक्ति द्वारा एक घास-फूस से बालक का निर्माण किया और उस बालक को चौसर में दोनों की हार चीज का निर्णय करने का फैसला करने का अधिकार दिया।
खेल में पाता पार्वती जीतती हैं पर बालक से पूछा गया तो वह बालक ने कहा की भगवान शिव जीते। इस प्रकार के वचन सुन माता पार्वती गुस्सा हो उठती हैं और उस पुतले रुपी बालक को सदैव कीचड़ में पड़े रहने का श्राप देती हैं। बालक के माफी मांगते हुए कहा की उसने ऎसा जानबुझ कर नही किया उसे क्षमा कर दिया जाए। बालक को रोता देखते माता पार्वती बहुत दुखी हुई और कहा की तुम्हारे श्राप की मुक्ति संभव है।
आज से एक साल बाद नाग कन्याएं चतुर्थी के दिन यहां पूजा के लिए आएंगी। उन नाग कन्याओं से तुम गणेश चतुर्थी का व्रत विधि पूछना और उस अनुरुप व्रत करने पर तुमारे कष्ट दूर हो जाएंगे। इस प्रकार एक वर्ष पश्चात वरद चतुर्थी के दिन नाग कन्याएं उस स्थान पर आती हैं और उस बालक को वरद चतुर्थी पूजा की विधि बताती है। बालक ने भी उस दिन वरद चतुर्थी का व्रत किया और उससे माता पार्वती के श्राप से मुक्ति प्राप्त होती है।
वरद चतुर्थी पर चंद्र पूजा करें लेकिन दर्शन नहीं:
वरद चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। मान्यता है की चतुर्थी तिथि के दिन चंद्र देव को नहीं देखना चाहिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार चंद्रमा को भगवान श्री गणेश द्वारा श्राप दिया गया था की यदि कोई भी चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा का दर्शन करेगा तो उसे कलंक लगेगा। ऎसे में इस कारण से चतुर्थी तिथि के दिन चंद्रमा के दर्शन को मना किया जाता है। कहा जाता है कि इस दोष का प्रभाव भगवान कृष्ण को भी झेलना पड़ा था। लेकिन इस में मुख्य रुप से भाद्रपद माह में जो चतुर्थी आती है उस तिथि को अधिक महत्व दिया जाता है।
भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप के कारण भगवान कृष्ण की स्थिति देख के, नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप झेलना पड़ा है। नारद जी की सलाह द्वारा ही भगवान को चतुर्थी तिथि के दिन गणेश जी का पूजन करने की विधि प्राप्त होती है। तब भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये वरद गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्ति को प्राप्त होते हैं।